क्यू-क्वांटिटेटिव इजिंग (केंद्रीय बैंक द्वारा मुद्रा की आपूर्ति). अगर इसे उलट दिया जाए, तो विनियम दर प्रभावित होगी. इसमें सरकार का कोई हाथ नहीं है, यह भूमंडलीकरण की वजह से है. अगर आप भूमंडलीकरण से किनाराकशी अख्तियार करेंगे, तो आप उत्तर कोरिया की तरह अलग-थलग पड़ जाएंगे. आर-यमन और नेपाल में कारगर रेस्क्यू या बचाव कार्य. एस-स्वच्छ भारत न कि साक्षी महाराज.

leadershipए-एशिया की बारी है. चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, मंगोलिया और सिंगापुर का दौरा. इस पर जवाहर लाल नेहरू (जो इंडोनेशिया के बैनडंग में अफ्रीकी एशियाई कांफ्रेंस के लिए गए थे) के बाद किसी ने ध्यान ही नहीं दिया. अब का एशिया पहले से अधिक शक्तिशाली और अलग है.
बी-बांग्लादेश के साथ समझौता. न केवल सीमा समझौता बिल सर्वसम्मति से पास हो गया (जिसके लिए सुषमा स्वराज के संसदीय कौशल की प्रशंसा की जानी चाहिए), बल्कि यह सभी राजनीतिक दलों के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है.
सी-यूपीए शासन के विपरीत पूरे साल के दौरान करप्शन या घोटाले का कोई मामला सामने नहीं आया. यह सोच ही अद्भुत है कि मौजूदा समय न केवल यूपीए-2 से, बल्कि 1947 के बाद से अब तक के समय से कितना अलग है. आपको याद होगा कि फिरोज गांधी पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने नेहरू के शासनकाल में भ्रष्टाचार को उजागर किया था.
डी-डेफिसिट या घाटे को नियंत्रण में रखना. वह भी पी चिदंबरम के अनिश्चित अंतरिम बजट की विरासत के बाद. भाजपा ने यूपीए-2 की कारगुजारी के लिए उसकी आलोचना नहीं की. अरुण जेटली ने इसे चुनौती के तौर पर लिया और बजट घाटे को नियंत्रण में रखा.
ई-ईंधन सब्सिडी को एफीसिएंट या सुचारू तरीके से ख़त्म करना. सरकार ने पेट्रोल की क़ीमतों में आई गिरावट को बड़ी होशियारी से इस्तेमाल किया. पेट्रोल उपभोक्ता न तो पुनर्वितरण की बुनियाद पर और न पर्यावरण की बुनियाद पर सब्सिडी के हक़दार हैं.
एफ-बीमा, रक्षा और दूसरे क्षेत्रों में एफडीआई के लिए रास्ता सा़फ करना. आपसी मतभेद और ग़लतफहमी के बावजूद राजनीतिक दलों में बेहतर समझ पैदा हुई है कि कैसे देश की भलाई के लिए एफडीआई का इस्तेमाल किया जाए.
जी-जीएसटी बिल, जो एक दशक के विचार मंथन के बाद संसद के दोनों सदनों में सर्वसम्मति से पास हो जाना चाहिए था. जी से जीडीपी में वृद्धि भी है, जो यूपीए-2 के पिछले तीन वर्षों से अधिक है. यह जी-20 के देशों में सबसे अधिक जीडीपी में से एक है.
एच-हरियाणा में जीत.
आई-इंफ्लेशन या महंगाई में कमी लाना.
जे-जन धन योजना.
के-जम्मू-कश्मीर में शांतिपूर्ण चुनाव कराना और गठबंधन सरकार चलाना.
एल-पेट्रोल की क़ीमतों में कमी के लिए गुडलक या अच्छी किस्मत.
एम-मेक इन इंडिया. हालांकि, इस पर अभी बहुत काम करना बाकी है, लेकिन इसमें अवधारणा यह है कि घरेलू और विदेशी निर्माता भारत की क्षमता का इस्तेमाल कर सकें.
एन-नीति आयोग ने बेअसर हो चुके योजना आयोग का स्थान लिया. यह भी अपने शुरुआती दौर में है, जिसे अपनी उपयोगिता साबित करनी है.
ओ-अप्रवासी भारतीय (ओवरसीज इंडियन), जिन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का न्यूयॉर्क में बड़े उत्साह के साथ स्वागत किया. ऐसा ही दृश्य हमने कनाडा में भी देखा. जब प्रधानमंत्री ब्रिटेन आएंगे, तो हम इससे कई गुना उत्साह देखेंगे.
पी-पार्लियामेंट या संसद, जिसने बहुत सारे स्थगनों के बावजूद पिछले पांच वर्षों की तुलना में बेहतर तरीके से काम किया.
क्यू-क्वांटिटेटिव इजिंग (केंद्रीय बैंक द्वारा मुद्रा की आपूर्ति). अगर इसे उलट दिया जाए, तो विनियम दर प्रभावित होगी. इसमें सरकार का कोई हाथ नहीं है, यह भूमंडलीकरण की वजह से है. अगर आप भूमंडलीकरण से किनाराकशी अख्तियार करेंगे, तो आप उत्तर कोरिया की तरह अलग-थलग पड़ जाएंगे.
आर-यमन और नेपाल में कारगर रेस्क्यू या बचाव कार्य.
एस-स्वच्छ भारत न कि साक्षी महाराज. हमें अधिक से अधिक स्वच्छता और कम से कम साक्षी महाराज की ज़रूरत है.
टी-एक ऐसे प्रधानमंत्री का आगमन, जो (अपने से पहले के प्रधानमंत्री, जो बेशक ईमानदार थे और जो बेईमान सहकर्मियों में घिर गए थे, के विपरीत) देश के लोगों से ट्‌वीटर, फेसबुक और मन की बात के माध्यम से बात (टॉक) कर सकता है. और जब आवश्यकता होती है, तो संसद में भी अपनी बात रखता है. टी से ट्रेन सुविधाओं में सुधार भी होता है, जिसका ज़िक्र सुरेश प्रभु ने रेल बजट में किया था.
यू- एक बिल्कुल अनोखी (णर्र्पीीीरश्र) बात कि किसी सरकारी सूत्र द्वारा कोई खुलासा या गॉसिप बाहर नहीं आ रहा है, जिसकी वजह से टीवी चैनलों को चर्चा के लिए कोई बड़ा मुद्दा नहीं मिल रहा है.
वी-विकास, जैसे सबका साथ-सबका विकास.
डब्ल्यू- मौसम (थशरींहशी), जिसकी वजह से अविश्वसनीय क्षति हो सकती है, जैसे बेमौसम बरसात, बहुत अधिक गर्मी, मॉनसून में देरी, जो बेहतरीन योजनाओं को भी पटरी से उतार सकती है. 60 से अधिक वर्षों के बाद भी (जिसमें से अधिकांश समय कांग्रेस के शासन में गुज़रा है) भारत को मॉनसून से डर लगना ही चाहिए.
एक्स-मतदाताओं की ताक़त, जो जानते हैं कि किसी भी पार्टी को ब्लैंक चेक नहीं देना चाहिए, आम चुनाव और राज्यों के चुनाव में अलग-अलग पार्टी को वोट देकर. यह मतदाता ही है, जो सबको आश्चर्यचकित कर देता है.
वाई-यंग इंडिया, जो जितनी जल्दी मुमकिन हो सके, बेहतर काम की उम्मीद लगाए हुए है.
जेड-भ्रष्टाचार के लिए जीरो सहिष्णुता.

 

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