ना आसना हर रहगुजर
ना मेहरबां है एक नजर
जाएं तो अब जाएं किधर…
मशहूर शायर जावेद अख्तर की ये पंक्तियां कठपुतली कॉलोनी से विस्थापित किए जा रहे लोगों के दर्द को बयां करती है. दिल्ली और आसपास के इलाकों में कला-कौशल का प्रदर्शन कर पेट पालने वाले हजारों लोग आज अपने ही घरों से निकाले जा रहे हैं. पुलिस का भय दिखाकर उन्हें घर छोड़ने को विवश किया जा रहा है. देश की राजधानी को झुग्गियों से आजादी दिलाने और विकास के आंक़डों को दुरुस्त करने की सियासी कोशिशों में वे दर-बदर होने को मजबूर हैं, जिन्होंने पूरी जिंदगी दो जून की रोटी के लिए जद्दोजहद में ही गुजार दी.
जीने के लिए हर दिन दो वक्त की रोटी जिनकी चिंता हो, वे भला चकाचौंध वाले अपार्टमेंट के बारे में कैसे सोच सकते थे? लेकिन जब उनकी आंखों में सियासी सपने सजाए गए, तो लगा कि उनके भी अच्छे दिन आ जाएंगे. फिर जब यह कहा गया कि नए फ्लैट के लिए उन्हें लगभग डेढ़ लाख रुपए देने होंगे, तो वे सपने धाराशाई होते दिखने लगे.
बिहार, बंगाल, राजस्थान, महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों से आकर दिल्ली के शादीपुर इलाके के पास बसे लोगों ने आजादी के बाद से ही इस जगह को अपना बसेरा बनाया हुआ है. उस समय उन्होंने अपनी रचनात्मकता को ही इस जगह का नाम दिया था, लेकिन आज विस्थापन के भय में जी रहे लोगों को आशंका है कि कहीं उनका जीवन ही कठपुतली का खेल ना बन जाए.
बेघर होने का डर
कौन नहीं चाहता कि उसका अपना पक्का छत हो, जहां वह बेफिक्र होकर रहे. लेकिन कठपुतली कॉलोनी के लोगों को दिखाए गए घर के सपने या तो षड्यंत्र निकले या झूठे आश्वासन बनकर रह गए. कठपुतली कॉलोनी के निवासी कहते हैं, अपने फ्लैट के झूठे सपने से झुग्गी ही अच्छी है.
वे बताते हैं कि यह उनकी खुशकिस्मती थी कि कॉमनवेल्थ गेम्स से पहले जब दिल्ली के चेहरे को सुंदर दिखाने के लिए तमाम झुग्गियों को उजाड़ा जा रहा था, तब वे बच गए थे. लेकिन अबकी बार जिस तरह से पुलिस तैनात करके जबरदस्ती वहां से निकाला जा रहा है, इससे इन्हें बेघर होने का डर सताने लगा है. दिल्ली में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां झुग्गियों को हटाने के लिए उनमें रातोंरात आग लगा दी गई, लोगों पर लाठियां भी बरसाई गईं.
लेकिन जिन वादों के साथ उन्हें हटाया गया था और जो सपने दिखाए गए थे, वे सपने ही रह गए. यह भी एक कारण है कि अपने फ्लैट का लालच भी उन्हें झुग्गी छोड़ने को मजबूर नहीं कर रहा. डीडीए यहां पर अपार्टमेंट निर्माण के लिए पिछले 7 साल से प्रयास कर रहा है, लेकिन अब भी लोगों को इसके लिए राजी नहीं किया जा सका है.
झुग्गी खाली कराने के डीडीए के कड़े रुख के कारण लोगों ने आंदोलन का रास्ता अपना लिया है. पुलिस के प्रयासों का विरोध करने और पत्थरबाजी के आरोप में 20 से ज्यादा लोगों पर मुकदमा दर्ज हो चुका है. कई दिनों से बस्ती के भीतर रह रहे लोगों का कहना है कि वे पुलिस की डर से बाहर नहीं जा पा रहे, कमाई बंद है. अब भी यहां 500 से ज्यादा फोर्स तैनात है. उन्हें डर है कि अगर हम बाहर निकले, तो पुलिस हमें पकड़ कर किसी केस में फंसा देगी.
अस्थाई घर कब तक
कठपुतली कॉलोनी के लोगों को डीडीए द्वारा आनंद पर्वत में अस्थाई रूप से बनाए गए ट्रांजिट कैंपों में शिफ्ट किया जा रहा है. लोगों से कहा गया है कि उन्हें 2 साल वहां पर रहना होगा, तब तक अपार्टमेंट बन जाएगा फिर उन्हें फ्लैट दे दिया जाएगा. लेकिन लोगों को डीडीए का यह
आश्वासन आशंका से परे नहीं लग रहा. उनसे झुग्गी छोड़ने के लिए दस्तावेजों पर दस्तखत कराए जा रहे हैं, लेकिन इस बात की कोई लिखित गारंटी नहीं है कि उन्हें अगले दो साल में अपना फ्लैट मिल ही जाएगा. यहां आंदोलन कर रहे लोगों की मांग है कि डीडीए और रहेजा बिल्डर्स कोर्ट के सामने लिखित में यह दे कि हमें 2019 में हमारा फ्लैट मिल जाएगा, वह भी उन सुविधाओं के साथ जिनका वादा किया जा रहा है.
लोगों का यह भी आरोप है कि यह डीडीए की मिलीभगत से रहेजा बिल्डर्स की उन्हें यहां से बेदखल करने की सोची-समझी रणनीति है. वे कारण बताते हैं कि यह बस्ती 5.22 हेक्टेयर में फैली हुई है, जिसमें से अपार्टमेंट केवल 3.4 हेक्टेयर जमीन पर बनेगा और बाकी पर रहेजा बिल्डर्स को निर्माण की आजादी होगी.
190 मीटर ऊंची 54 मंजिली इस इमारत में 170 लग्जरी फ्लैट होंगे, जिसमें एक स्काई क्लब और हेलीपैड भी बनाए जाने हैं. लोगों का कहना है कि ऐसा तो हो नहीं सकता कि ये फ्लैट हमें दिए जाएं. लोगों का यह भी कहना है कि हम अपनी पीड़ा लेकर सबके पास गए, लेकिन हमें उजड़ने से बचाने के लिए कोई राजनीतिक पार्टी आगे नहीं आ रही है.
एक अनुमान के मुताबिक, यहां 3500 झुग्गियां हैं. डीडीए द्वारा 2009 में किए गए सर्वे पर भी यकीन करें, तो यहां 3100 झुग्गियां होने की बात कही गई थी, लेकिन प्रस्तावित पुनर्वास योजना में केवल 2641 फ्लैट बनाने की बात कही गई है.
लोगों का गुस्सा इस बात को लेकर भी है कि उन्हें फ्लैट में रहने के लिए 1.12 लाख रुपए देने पड़ेंगे. इसके अलावा 5 साल तक रख-रखाव के लिए 30 हजार रुपए भी देने होंगे. यह सोचने वाली बात है कि जो लोग खेल-करतब और अपनी रचनात्मकता को बेचकर जीवन-बसर करते हैं, वे फ्लैट के लिए डेढ़ लाख रुपए कहां से लाएंगे.
80 के दशक से प्रयास जारी है
इससे पहले भी कई बार कठपुतली कॉलोनी के लोगों को अलग बसाने की बात कही गई. लेकिन वे सब कोशिशें बयानों तक ही सिमट कर रह गईं. सबसे पहले 1986 में यहां बसे लोगों को वसंत कुंज में स्थाई बसेरा देने की बात कही गर्ई, लेकिन हुआ कुछ नहीं. 1990 में डीडीए के स्लम विंग ने कठपुतली कॉलोनी के लोगों के पुनर्वास के लिए योजना बनाई, लेकिन यह प्रयास सिर्फ योजना बनाने तक ही रह गया.
2002 में तत्कालीन शहरी विकास मंत्री बंडारू दत्तात्रेय ने कहा था कि उन्हें द्वारका के सेक्टर-16 में बसाया जाएगा, लेकिन यह बात बयानों से आगे नहीं बढ़ पाई. इस कोशिश के तहत आज पुलिस के डंडे का डर दिखाकर कठपुतली कॉलोनी के लोगों को वहां से हटाया जा रहा है. इसकी शुरुआत 2007 में हुई, जब झुग्गी मुक्त दिल्ली-2021 के मास्टर प्लान के तहत डीडीए ने काम करना शुरू किया.
झुग्गियों की जगह पर अपार्टमेंट बनाने के लिए टेंडर निकाला गया. आठ आवेदनों में से डीडीए ने रहेजा बिल्डर्स को इस जगह पर अपार्टमेंट बनाने के लिए चुना. डीडीए और रहेजा बिल्डर्स के बीच अक्टूबर 2009 में हुए करार के अनुसार, यहां बनाए जा रहे अपार्टमेंट में 2 कमरे के 2641 फ्लैट्स बनाए जाने हैं. इस अपार्टमेंट में दो स्कूल, पार्क और ओपन थियेटर बनाने की भी बात कही गई है.