अदालत से एक आदेश चला, राहत तब लेकर पहुंचा, जब ढैया पूरी तरह लुट चुकी…! लोग कुट, पिट, टूट चुके…! इस शहर से लेकर उस नगर तक और इस सूबे से लेकर उस प्रदेश तक रक्षकों ने अति सेवा करने का सारा फ्रस्ट्रेशन लोगों की “तशरीफ” पर ही निकाला…! कर्फ्यू और लॉक डाउन के अंतर को न समझ पाने के चलते लोगों को रक्षक किसी भक्षक से भी ज्यादा भयावह और खौफनाक दिखाई देने लगे…! मास्क की अनिवार्यता, सोशल डिस्टेंस का पालन, नियम को उल्लंघित करते सड़क पर निकल आना, किसी तरह से सजा की तजवीज नहीं करता, कानूनी कार्रवाई के इन मामलों को तत्काल सजा दे डालने के रक्षकों के रौद्र रूप ने कई लोगों को सताया, डराया, घरों में दुबकाया है…! अब अदालत ने उस दौर में इस कार्यवाही को गलत करार दिया है, जब सब कुछ सामान्य होने की तरफ बढ़ रहा है…! अब नहीं करेंगे के साथ गलती करने वाले बच्चे को कोरी माफी नहीं मिलती, तो इन कुसुरवारों के लिए कोई सख्त सजा या कार्यवाही की सिफारिश किया जाना भी मुनासिब है…! हर रोज की चौथ वसूली, बदमाशों और काले धंधों से मिलने वाली बंदी, इसको अंदर=उसको बाहर करने की आदत और इससे होने वाली तगड़ी जेब कमाई के रुक जाने का गुस्सा तो जरूर है… इसीलिए लॉक डाउन के दौर में मास्क की बजाए हेलमेट और वाहन के कागजों की चेकिंग से गुरेज नहीं किया गया…! मंडी और बाजार आने वाले फल सब्जी पर हाथ साफ करने में भी कोताही नहीं हुई…! रक्षकों लॉक डाउन, महामारी, बंद, बीमारी और हर तरफ से टूटे लोगों को सताने की सजा तुम्हें ईश्वर की आखिरी अदालत से ही मिलेगी, यहां की अदालतों के रास्ते से निकलती गलियों से कानून को तुमने खिलौना बना रखा है….!
पुछल्ला
अकल से पैदल साहब
न उनका अधिकार क्षेत्र, न उनको इस बात की समझ कि फरमान जारी करने के मायने और असर क्या होंगे? एसपी साहब ने कह डाला की मीडिया कवरेज भी आम दफ्तरों की तरह Mon टू Friday ही होगा। सागर की लहर में ज्ञान गोते लगाने वाले साहब को कोई बताए कि न तो मीडिया उनके दायरे में आने वाला कोई महकमा है और ना खबरों को कवर करने, लिखने, छपने, प्रसारित होने, प्रचारित होने का कोई दिन, समय, अवधि या कार्यकाल तय है।