बंदर के हाथ उस्तरा और ईंट, गिट्टी, मिट्टी से सने हाथों में शिफा की जिम्मेदारी होगी तो यही तो होगा…! पहले डेंटिस्ट से दिल के मरीज का इलाज करवा दिया… उस पर भी दादागिरी बरकरार रही… सिर्फ बरकरार नहीं रही, बल्कि इस हद पहुंची कि इस्लामियत के ऑपरेशन करने की हद तक पहुंच गई…! जमीनों, मकानों और जेसीबी या बुलडोजर से वास्ता रखने वालों को जब वक्फ बोर्ड जिम्मा सौंप रहा था, सबको खल रहा था, सवाल उठाया गया था कि इनको न मर्ज की समझ न मरीज से बात करने का शऊर, ये कैसे करेंगे… जवाब आया, ये कोम की खिदमत करेंगे…!
खिदमत की शुरुआत पिछले दामों को दुगुना करके की गई…! जो इक्का दुक्का डॉक्टर या एक्सपर्ट मौजूद थे, उनकी विदाई से आई…! अब लोगों के जख्मों पर मरहम लगाने की उम्मीद की जाने वाली जगह से इंसानियत, इस्लामियत और पेशे को बदनाम करने की हद कर दी गई है…! ऑपरेशन थिएटर में पिटाई, हाफिज की दाढ़ी की मुंडाई और उस पर भी चेहरों पर मौजूद बेहयाई…!
जो भी हो, शिफा का ये मोहसिन समाज का हमदर्द है, जिसने एक मुस्लिम होने(?) के बावजूद किसी दूसरे मुस्लिम (हाफिज) के चेहरे से सुन्नत ए रसूल का कत्ल कर दिया…! बदकिस्मती से ये हत्या किसी गैर हाथों से हुई होती तो राजधानी का तापमान आज शायद कुछ और होता…! लेकिन अब मुसलमान खामोश हैं, समाज के एक मोहसिन को पीछे से टेक लगाती कई चापलूस बल्लियां भी खड़ी हो चुकी हैं…!
पुछल्ला
दागियों को सज़ा तजवीज करे वक्फ बोर्ड
अल्लाह की जायदाद से अपनी जेब भरने वाले शिफा अस्पताल संचालक दागियों की गिनती में शुमार हो चुके। दाग चंद सिक्के कमाकर अपने गले तक भर लेने तक का नहीं है। गुनाह ए अजीम एक हाफिज की बेहुरमती, सुन्नत ए रसूल को कत्ल करने और खुलेआम गुण्डाई करने का है। गुनाह अब तो सरकारी रिकॉर्ड में भी दर्ज हो चुका। वक्फ जिम्मेदार किस बात का इंतजार कर रहे हैं ऐसे दो कौड़ी के लोगों को लात मारकर अपनी टीम से बाहर निकालने के लिए।