नौकरशाही के दो संवर्गों में मची खींचतान, तनाव और विवाद के बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बुधवार 20 दिसम्बर 2017 को विधानसभा में उत्तर प्रदेश संगठित अपराध नियंत्रण कानून (यूपीकोका) विधेयक 2017 पेश किया, जो गुरुवार 21 दिसम्बर 2017 को पारित हो गया. सैद्धांतिक तौर पर इस विधेयक में राष्ट्र-विरोधी गतिविधियां करने, आतंक फैलाने या बलपूर्वक हिंसा द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए विस्फोटकों या अन्य हिंसात्मक साधनों का प्रयोग करने, किसी की जान या सम्पत्ति को नष्ट करने, लोक प्राधिकारी को मौत की धमकी देकर या बर्बाद कर देने की धमकी देकर फिरौती के लिए बाध्य करने जैसे गंभीर अपराध से निपटने के लिए सख्त प्रावधान किए गए हैं. लेकिन व्यवहारिक तौर पर इस कानून के जरिए पुलिस क्या-क्या करेगी, यह समय ही बताएगा.
हालांकि मुख्यमंत्री ने सदन में कहा कि यह कानून राजनीतिक प्रतिशोध के लिए नहीं, बल्कि अपराध के खिलाफ है. योगी ने यह भी आश्वासन दिया कि सरकार पहले से लदे 20 हजार राजनीतिक मुकदमे खत्म करने जा रही है.
विधेयक के उद्देश्य और कारण में कहा गया है कि मौजूदा कानूनी ढांचा संगठित अपराध के खतरे के निवारण एवं नियंत्रण के अपर्याप्त पाया गया है, इसलिए संगठित अपराध के खतरे को नियंत्रित करने के लिए सम्पत्ति की कुर्की, रिमांड की प्रक्रिया, अपराध नियंत्रण प्रक्रिया, त्वरित विचार और न्याय के मकसद से विशेष न्यायालयों के गठन और विशेष अभियोजकों की नियुक्ति और संगठित अपराध के खतरे को नियंत्रित करने की अनुसंधान सम्बन्धी प्रक्रियाओं को कड़े एवं निवारक प्रावधानों के साथ विशेष कानून अधिनियमित करने का निश्चय किया गया. विधेयक में संगठित अपराध को विस्तार से पारिभाषित किया गया है.
फिरौती के लिए अपहरण, सरकारी ठेके में शक्ति प्रदर्शन, खाली या विवादित सरकारी भूमि या भवन पर जाली दस्तावेजों के जरिए या बलपूर्वक कब्जा, बाजार और फुटपाथ विक्रेताओं से अवैध वसूली, शक्ति का प्रयोग कर अवैध खनन, धमकी या वन्यजीव व्यापार, धन की हेराफेरी, मानव तस्करी, नकली दवाओं या अवैध शराब का कारोबार, मादक द्रव्यों की तस्करी वगैरह को इसके अंतर्गत रखा गया है. विधेयक में संगठित अपराध के लिए सख्त सजा का प्रावधान किया गया है.
संगठित अपराध के कारण किसी की मौत होने की स्थिति में मृत्युदंड या आजीवन कारावास की व्यवस्था है. साथ ही न्यूनतम 25 लाख रुपए के अर्थदंड का प्रावधान है. किसी अन्य अपराध के मामले में कम से कम सात साल के कारावास से लेकर आजीवन कारावास तक का प्रावधान है और न्यूनतम 15 लाख रुपए का अर्थदंड भी प्रस्तावित है. यूपीकोका विधेयक संगठित अपराध के मामलों के तेजी से निस्तारण के लिए विशेष अदालत के गठन का प्रावधान करता है. विधेयक में राज्य संगठित अपराध नियंत्रण प्राधिकरण के गठन का भी प्रावधान है, जिसके अध्यक्ष गृह विभाग के प्रमुख सचिव होंगे.
इसमें तीन अन्य सदस्य अपर पुलिस महानिदेशक (कानून व्यवस्था), अपर पुलिस महानिदेशक (अपराध) और विधि विभाग के विशेष सचिव स्तर के अधिकारी शामिल होंगे, जो सरकार की ओर से मनोनीत होंगे. इसके अलावा जिला स्तर पर अपराध नियंत्रण प्राधिकरण बनाने का प्रस्ताव है, जो सम्बन्धित जिलाधिकारियों की अध्यक्षता में होगा और इसमें पुलिस अधीक्षक, अपर पुलिस अधीक्षक एवं अभियोजन अधिकारी बतौर सदस्य शामिल होंगे. हाईकोर्ट के रिटायर्ड न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक अपीली प्राधिकरण होगा, जिसमें राज्य सरकार के दो सदस्य होंगे. यह प्राधिकरण प्रस्तावित कानून (यूपीकोका) के तहत आरोपी की याचिका की सुनवाई करेगा.
योगी सरकार के इस विधेयक का सदन में विपक्ष ने जमकर विरोध किया. विधेयक पेश होने के पहले भी सपा अध्यक्ष पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और बसपा नेता व पूर्व मुख्यमंत्री मायावती समेत तमाम विपक्षी दलों के नेताओं ने कहा कि राजनीतिक बदले की भावना से इस विधेयक का दुरुपयोग हो सकता है. इन नेताओं ने आशंका जताई कि इस विधेयक का दुरुपयोग अल्पसंख्यकों, गरीबों और समाज के कमजोर वर्ग के खिलाफ हो सकता है. सपा नेता अखिलेश यादव ने कहा, ‘यूपीकोका नहीं, यह धोखा है.’ अखिलेश ने कहा कि फर्नीचर साफ करने के पाउडर को खतरनाक विस्फोटक बता कर जनता को बहकाने वाली पार्टी अब यूपीकोका के नाम पर लोगों को दिग्भ्रमित कर रही है. अखिलेश ने यह कहते हुए चुटकी ली कि योगी सरकार ने नए साल में जनता को तोहफा दिया है, अब सेल्फी लेने पर भी यूपीकोका लग सकता है.
इन प्रतिक्रियाओं के बीच सरकार की तरफ से प्रदेश के कैबिनेट मंत्री श्रीकांत शर्मा ने सफाई दी कि कानून का प्रारूप बाकायदा न्याय विभाग की सहमति से तैयार हुआ है. शर्मा ने कहा कि संगठित अपराधियों, माफियाओं और अन्य सफेदपोश अपराधियों की गतिविधियों पर नियंत्रण के सम्बन्ध में हाईकोर्ट में दायर याचिका पर 12 जुलाई 2006 को पारित आदेश के क्रम में माफिया गतिविधियों और राज्य सरकार के कार्यों में हस्तक्षेप पर अंकुश लगाने के लिए कानून का प्रारूप न्याय विभाग की सहमति से तैयार किया गया. इस विधेयक में 28 ऐसे प्रावधान हैं, जो पहले से लागू गैंगस्टर एक्ट में शामिल नहीं हैं.
प्रस्तावित कानून के तहत दर्ज मुकदमों की सुनवाई के लिए विशेष अदालतें बनेंगी. उन्होंने कहा कि विधेयक के परीक्षण के लिए गृह विभाग के सचिव की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई थी. इसमें अपर पुलिस महानिदेशक (अपराध) और विशेष सचिव (न्याय विभाग) को भी शामिल किया गया था. इस समिति द्वारा परीक्षण के दौरान हाईकोर्ट के निर्णय और महाराष्ट्र संगठित अपराध नियंत्रण कानून-1999 (मकोका) का भी गहन अध्ययन करके इस विधेयक का प्रारूप तैयार किया गया. सरकार ने कहा कि राज्य संगठित अपराध नियंत्रण प्राधिकरण खुद संज्ञान लेकर या शिकायत होने पर संगठित अपराधियों की गतिविधियों की छानबीन करेगा और इसके लिए प्राधिकरण शासन की कोई भी फाइल देखने के लिए अधिकृत होगा.
बच नहीं पाएंगे अपराधी
सरकार यह मानती है कि संगठित अपराध में लिप्त अपराधियों से निपटने के लिए लाए जा रहे यूपीकोका से अपराधी बच नहीं पाएंगे. गृह विभाग के आला अधिकारी ने कहा कि यूपीकोका विधेयक को राज्यपाल की मंजूरी मिलते ही संगठित अपराध में लिप्त अपराधियों पर सरकार का शिकंजा कस जाएगा.
विधेयक के प्रावधानों के अनुसार किसी व्यक्ति द्वारा अकेले या संयुक्त रूप से या संगठित अपराध, संगठित अपराध के सिंडिकेट के सदस्य के रूप में काम करना, हिंसा का सहारा लेना, दबाव की धमकी, घूसखोरी, प्रलोभन या लालच के सहारे अपराध को अंजाम देना संगठित अपराध की श्रेणी में आएगा. इसके अलावा आर्थिक लाभ, किसी अन्य व्यक्ति को अनुचित लाभ पहुंचाने, बगावत को बढ़ावा देने, अवैध साधनों से अवैध क्रिया कलापों को जारी रखने, आतंक फैलाने, बलपूर्वक या हिंसा द्वारा सरकार को उखाड़ फेंकने के लिए विस्फोटकों, आग्नेयास्त्रों, हिंसात्मक साधनों के प्रयोग करके जीवन या सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाने, लोक प्राधिकारी को मारने या बरबाद करने की धमकी देकर फिरौती की मांग करना भी इसके दायरे में आएगा.
इसके अलावा फिरौती के लिए अगवा करने, किसी ठेके के टेंडर में भागीदार बनने से किसी को रोकने, सुपारी लेकर हत्या करने, जमीन पर अवैध तरीके से कब्जा करने, जाली दस्तावेज तैयार कराने, बाजारों से अवैध वसूली करने, अवैध खनन, हवाला कारोबार, मानव तस्करी, नकली दवाओं का धंधा करने और अवैध शराब की बिक्री करने पर भी यूपीकोका के तहत कार्रवाई की जाएगी.
इसे विस्तार से बताते हुए गृह विभाग के अधिकारी ने कहा कि संगठित अपराध को रोकने के लिए सरकार ने विधेयक में काफी कड़े प्रावधान किए हैं. अभी तक पुलिस आरोपी को पकड़ती थी और अदालत में पेश कर बताती थी कि उक्त व्यक्ति अपराधी है. इसे साबित करने के लिए सबूत लगाती थी, लेकिन यूपीकोका के प्रावधानों में अपराध के समय मौके पर होने का सबूत मिलने के बाद आरोपी को ही यह साबित करना होगा कि वह आरोपी नहीं है.
अपनी पहचान छिपा सकेंगे गवाह
कई बार गवाहों की पहचान उजागर होने पर उनकी जान माल का खतरा बना रहता है, लेकिन यूपीकोका कानून के तहत इसका खास ख्याल रखा गया है कि अगर गवाह चाहे तो उसकी पहचान उजागर नहीं की जाएगी. इस प्रावधान के तहत सरकार गवाहों को न सिर्फ सुरक्षा देगी, बल्कि गवाही की प्रक्रिया भी बंद कमरे में होगी और अदालत भी गवाह का नाम उजागर नहीं करेगी. मनमाने ढंग से किसी व्यक्ति पर मुकदमे न दर्ज हों इसके लिए भी विधेयक में प्रावधान किया गया है. हर जिले में एक जिला संगठित अपराध नियंत्रण प्राधिकरण होगा.
यूपीकोका लगाने के लिए वह अपनी संस्तुति मंडलायुक्त और आईजी या डीआईजी की दो सदस्यीय समिति के पास भेजेगा. जिला प्राधिकरण से आई संस्तुति पर मंडलायुक्त और रेंज के आईजी अथवा डीआईजी की कमेटी को एक सप्ताह में निर्णय लेना होगा. उनके अनुमोदन के बाद ही यूपीकोका के तहत कोई मुकदमा दर्ज किया जाएगा. विवेचना के बाद आरोप पत्र जोन के एडीजी या आईजी की अनुमति के बाद ही दाखिल किया जा सकेगा. यूपी कोका के तहत उच्च न्यायालय के अवकाश प्राप्त न्यायाधीश की अध्यक्षता में अपीलीय प्राधिकरण के गठन का प्रावधान किया गया है. अगर किसी को गलत फंसाया गया तो वह कार्रवाई के खिलाफ प्राधिकरण में अपील कर सकेगा.
ज़ब्त हो जाएगी अपराधियों की सम्पत्ति
अधिनियम के लागू होने पर राज्य सरकार संगठित अपराधों से अर्जित की गई सम्पत्ति को विवेचना के दौरान सम्बन्धित न्यायालय की अनुमति लेकर जब्त कर सकेगी. न्यायालय से सजा पाने के बाद संगठित अपराधियों की सम्पत्ति राज्य सरकार द्वारा जब्त कर लिए जाने का प्रावधान किया गया है. अवैध कब्जे और अवैध खनन के आरोपी भी इसके दायरे में होंगे. गैंगस्टर एक्ट के 28 प्रावधान अलग से किए जा रहे हैं.
आतंकवाद, हवाला, अवैध शराब कारोबार, बाहुबल से ठेके हथियाने, फिरौती के लिए अपहरण, अवैध खनन, वन उपज के गैरकानूनी ढंग से दोहन, वन्यजीवों की तस्करी, नकली दवाओं के निर्माण या बिक्री, सरकारी व गैरसरकारी सम्पत्ति को कब्जाने और रंगदारी या गुंडा टैक्स वसूलने सरीखे संगठित अपराधों में यूपीकोका लागू किया जाएगा. इसमें 28 प्रावधान ऐसे होंगे, जो गैंगस्टर एक्ट में नहीं हैं. इसके तहत कम से कम सात साल की कैद और 15 लाख रुपए का जुर्माना और अधिकतम सजा-ए-मौत और 25 लाख रुपए तक के जुर्माने का प्रावधान है.
संगठित अपराध नियंत्रण प्राधिकरण रखेगा नज़र
प्रदेश में अपराध करने वाले गिरोहों पर शिकंजा कसने और उनकी गतिविधियों पर नजर रखने के लिए प्रमुख सचिव गृह की अध्यक्षता में राज्यस्तरीय संगठित अपराध नियंत्रण प्राधिकरण की स्थापना की जाएगी. जिलास्तर पर डीएम की अध्यक्षता में जिला संगठित अपराध नियंत्रण प्राधिकरण का गठन भी किया जाएगा.
आधा दर्जन विवादास्पद क़ानूनों में शुमार हो गया कोका
दिकोका, मकोका, गुजकोका के बाद यूपीकोका चर्चा में है. कंट्रोल ऑफ ऑर्गेनाइज्ड क्राइम एक्ट (कोका) देश के उन आधा दर्जन कुख्यात कानूनों में शुमार हो गया है, जिसे लेकर तमाम विवाद उठते रहे हैं. ऐसे ही विवादास्पद कानूनों में शामिल है बहुचर्चित कानून अफस्पा (आर्म्ड फोर्सेज़ स्पेशल पावर ऐक्ट). आरोप लगते रहे हैं कि अफस्पा से सुरक्षा बलों को मनमानी छूट मिल जाती है. लेकिन समानान्तर तर्क यह है कि अगर अफस्पा हटा दिया जाए, तो हिंसा प्रभावित क्षेत्रों में कानून-व्यवस्था खत्म न हो जाएगी.
देश के हिंसाग्रस्त और आतंकवाद ग्रस्त क्षेत्रों में यह कानून लगाया जाता है. अभी कश्मीर और पूर्वोत्तर के कुछ हिस्से में यह कानून लागू है. अफस्पा 1958 में लाया गया था. मणिपुर में इरोम शर्मिला इसी अफस्पा कानून के विरोध में साल 2000 के नवम्बर से अनशन पर बैठी हुई थी, जो नौ अगस्त 2016 को खत्म हुआ. अफस्पा से सम्बन्धित मामलों की जांच के लिए संतोष हेगड़े कमेटी बनाई गई थी. इसके पहले आपातकाल के दरम्यान मीसा (मेंटेनेंस ऑफ इंटरनल सिक्युरिटी एक्ट) का नाम दहशत के साथ लिया जाता था.
यह विवादित कानून वर्ष 1971 में इंदिरा गांधी सरकार के कार्यकाल में पास हुआ था. इसके बाद केंद्र सरकार के पास असीमित अधिकार आ गए थे. पुलिस या सरकारी एजेंसियां किसी को भी असीमित समय के लिए गिरफ्तार कर सकती थीं. इस कानून के जरिए फोन टैपिंग भी सरकार के लिए वैध हो गया था. 39वें संशोधन के जरिए इसे 9वीं अनूसूची में डाल कर इंदिरा गांधी ने इसे कोर्ट के दायरे से अलग कर दिया था. आपातकाल के दौरान इसका खूब दुरुपयोग हुआ. कांग्रेस विरोधियों को महीनों जेलों में बंद रखा गया.
अटल बिहारी वाजपेई, लालकृष्ण आडवाणी, चंद्रशेखर, शरद यादव, लालू प्रसाद समेत कई नेता इस कानून के तहत जेल में रहे थे. मीसा कानून के तहत गिरफ्तार लोगों को मीसाबंदी भी कहा जाता था. इसके बाद टाडा (टेररिस्ट एंड डिसरप्टिव एक्टिविटीज एक्ट) का नाम आया. टाडा कानून 1985 से 1995 के बीच लागू था. पंजाब में बढ़ते आतंकवाद के चलते सुरक्षाबलों को विशेषाधिकार देने के लिए यह कानून लाया गया था. संजय दत्त को इसी कानून के तहत पहले गिरफ्तार किया गया था. 1994 तक टाडा में 76166 लोग गिरफ्तार किया जा चुके थे.
लेकिन इसमें केवल चार प्रतिशत लोग ही अपराधी साबित हुए. इस कानून के कड़े प्रावधानों के चलते कई लोग वर्षों तक जेल में सड़ते रहे. पोटा (प्रिवेंशन ऑफ टेरेरिज्म एक्ट) भी ऐसा ही कानून था. वर्ष 2002 में संसद पर हमले के बाद पोटा कानून पास किया गया था. टाडा की तरह पोटा भी आतंकवाद निरोधी कानून था. पोटा के तहत भी सरकारी सुरक्षा एजेंसियों को असीमित अधिकार मिल गए थे.
2004 में इस कानून को रद्द कर दिया गया. उत्तर प्रदेश के मौजूदा मंत्री राजा भैया, तमिलनाडु के सीनियर नेता वाइको इस एक्ट में गिरफ्तार होने वाले प्रमुख नेताओं में शामिल हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर एसएआर गिलानी को पोटा कोर्ट ने संसद पर हमले के आरोप में मौत की सजा दी थी, जिसे बाद में दिल्ली हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया था. काफी पहले 1967 में अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेंशन एक्ट (यूएपीए) लाया गया था. यह कानून आज भी लागू है. इस कानून के जरिए भी मानवाधिकार हनन किए जाने के आरोप लगते रहे हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर जीएन साईबाबा और माओवादी बुद्धिजीवी कोबाड गांधी को इसी एक्ट के तहत गिरफ्तार किया गया था.