उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की बदहाली के आरोप अब अपराधियों पर कहर बरपाने के आरोप में तब्दील हो गए हैं. आरोपों की इस तेज गति की गिरगिटिया-तब्दीली में लाज-लिहाज का कोई स्थान नहीं है. बस आरोपों का सिलसिला चलते रहना चाहिए. कानून व्यवस्था की बदहाली का रोना रोने वाला वही मीडिया अब 11 महीने में 1240 मुठभेड़ों का गाना गा रहा है. निश्चिंत सोने वाली पुलिस अब अचानक रक्तपिपासु पुलिस में तब्दील हो गई है.
अब एमनेस्टी इंटरनेशनल भी अचानक जाग्रत होकर मुठभेड़ों में नौ सौ मौतों की फर्जी गिनती गिनने लगा है. जबकि आधिकारिक सत्य यह है कि योगी सरकार के अस्तित्व में आने के बाद से 14 फरवरी 2018 तक प्रदेश में 1240 मुठभेड़ की घटनाएं दर्ज हुईं, जिनमें 40 अपराधी मारे गए. इन मुठभेड़ों में तीन हजार अपराधी पकड़े गए. बौखलाहट का यह हाल है कि अग्निकांड की दुर्घटना को भी आउट ऑफ टर्न प्रमोशन पाने के लिए की गई मुठभेड़ बता दिया जाता है. जबकि यूपी में आउट ऑफ टर्न प्रमोशन का चलन काफी पहले से बंद है.
उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था में सुधार हाल ही में लखनऊ में हुए इन्वेस्टर्स समिट में चर्चा के केंद्र में रहा. समिट में देश-दुनिया के मशहूर उद्योगपति और अप्रवासी पूंजीपति शरीक हुए और यूपी में अरबों रुपए के निवेश का करार किया. राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री से लेकर तमाम केंद्रीय मंत्रियों तक ने यूपी की कानून व्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार और पुलिस की सराहना की, जिसके कारण नामी उद्योगपति यूपी में पूंजी निवेश करने को राजी हुए.
सार्थक और सराहनीय प्रयासों की भी मीडिया कर रहा उपेक्षा
कानून व्यवस्था में सुधार को लेकर चर्चा के बजाय अपराधियों पर ‘अमानवीय’ हमला करने की चर्चा को प्रमुखता देने वाले मीडिया ने उन कदमों और प्रयासों को भी नजरअंदाज कर दिया, जो पुलिस संगठन के व्यवहारात्मक और कार्य-संस्कृति के सकारात्मक बदलाव के लिए उठाए गए. प्रदेश के नव नियुक्त पुलिस महानिदेशक (डीजीपी) ओपी सिंह ने आते ही बेमानी शासनादेश जारी करने की औपचारिकता के पुराने ढर्रे पर चलने के बजाय यूपी पुलिस की कार्यशैली और संगठनात्मक ढांचे में समग्र बदलाव की कोशिशें व्यवहारिक स्तर पर शुरू कर दीं. पदभार ग्रहण करने के महीनेभर के अंदर डीजीपी ने कानपुर, मेरठ और लखनऊ में थाना प्रभारी (एसएचओ) स्तर तक के अधिकारियों के साथ बैठकें कीं और जमीनी स्तर पर उनके साथ पेश आने वाली दिक्कतें दूर करने के बारे में त्वरित फैसले लिए.
इस पहल से पुलिस के सामान्य अधिकारियों और उच्चाधिकारियों के बीच बनाए रखे गए बेमानी फर्क को दूर करने में मदद मिली और कॉन्सटेबल स्तर तक आपस में बेहतर संवाद कायम हो सका. डीजीपी ने कई अच्छी कार्रवाइयों में सीधे कॉन्सेटबल से बात कर उनका उत्साह बढ़ाया और सदाशयता की नजीर कायम की. थाना स्तर पर ‘कॉप ऑफ दि मंथ’ चुने जाने का रिवाज शुरू करके भी डीजीपी ने पुलिस संगठन में सार्थक संदेश दिया. ‘कॉप ऑफ दि मंथ’ चुने जाने वाले पुलिसकर्मी की फोटो और उनका काम थाने के नोटिस बोर्ड पर काफी महत्व देकर चस्पा किया जाता है और प्रशंसा मिलती है.
अफसरों को प्रोत्साहित करने और बेहतर संवाद में लाने के अलावा मझोले दर्जे के अफसरों की लीडरशिप ट्रेनिंग की व्यवस्था भी शुरू की गई है. इसकी शुरुआत लखनऊ के पुलिस उपाधीक्षकों (डीएसपी) और अपर पुलिस अधीक्षकों (एएसपी) की लीडरशिप ट्रेनिंग से की गई. यह इसलिए भी जरूरी था क्योंकि सीनियर स्तर के अधिकारियों और मातहत स्तर के अधिकारियों के बीच बेहतर संवाद के लिए डीएसपी और एएसपी ही कारगर जरिया होते हैं. बेहतर कार्य-संस्कृति और अनुशासन स्थापित करने के लिए डीजीपी अपना व्यक्तिगत उदाहरण पेश कर रहे हैं.
डीजीपी का समय से पहले दफ्तर आ जाना और देर रात तक उनका दफ्तर में या शहर के विभिन्न इलाकों में दौरा करते पाया जाना पुलिस महकमे के लिए उदाहरण के साथ-साथ चर्चा का विषय बना हुआ है. कानपुर समेत कई अन्य जिलों में मध्यरात्रि के बाद भी डेढ़ बजे तक बैठक करना और लौटते समय प्रोटोकोल की औपचारिकताएं भुला कर रास्ते में पुलिस थानों पर रुकना और सिपाहियों से बातें करना पुलिस कर्मचारियों और अधिकारियों में उत्साह का संचार कर रहा है.
लखनऊ में तैनात डीआईजी स्तर के एक अधिकारी ने बताया कि लखनऊ में एक चोरी के मामले में डीजीपी ने सर्किल अफसर (सीओ) से छह बार बात की और आवश्यक निर्देश दिए. नतीजा यह हुआ कि वह मामला शीघ्र खुल गया और चोरी के सारे सामान और जेवरात बरामद हो गए. अपराध नियंत्रण और संगठनात्मक कार्यकलापों के अलावा डीजीपी ने यूनिसेफ के साथ मिल कर बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा को लेकर स्पेशल ऑपरेशंस शुरू करने की पहल की है.
डीजीपी ओपी सिंह ने अमेरिका की इंडियाना युनिवर्सिटी के साथ मिल कर ‘प्रेडिक्टिव पुलिसिंग’ शुरू करने की पहल भी की है, जिसके तहत गणितीय, तकनीकी और विश्लेषण के आधार पर अपराध और अपराधियों का पूर्व आकलन किया जा सके. कानून व्यवस्था के क्षेत्र में सार्थक योगदान के लिए सोशल मीडिया की भूमिका तय करने के इरादे से ‘डिजिटल वॉलंटियर्स’ भी तैनात किए जा रहे हैं.
अपराध नियंत्रण के लिए पुलिस को पूरी छूट, सुविधाओं का वादा
डीजीपी ओपी सिंह (ओम प्रकाश सिंह) ने कानून-व्यवस्था को लेकर पुलिस अधिकारियों और कर्मचारियों को स्पष्ट दिशा निर्देश दिए हैं कि अपराध नियंत्रण के लिए सरकार की तरफ से पूरी छूट है, लिहाजा वे बदमाशों पर टूट पड़ें. साथ ही डीजीपी ने यह भी ताकीद की है कि पुलिस की छवि अत्याचारी के रूप में नहीं, बल्कि अपराधियों के खिलाफ सख्ती के रूप में और आम जनता के मित्र के रूप में होनी चाहिए. डीजीपी ने कहा कि यूपी पुलिस अपराधियों के खिलाफ लगातार काम करती रहेगी. अपराधी जो भी हो, उसे बख्शा नहीं जाएगा. जो समाज में अराजकता फैलाएगा वह मारा जाएगा.
कानून व्यवस्था ठीक करने के लिए डीजीपी अफसरों को व्यक्तिगत तौर पर गाइड भी करते हैं. वे कहते हैं कि यदि कोई पुलिसकर्मी गलती करता है तो उसे दंड देने से पहले समझाया जाना चाहिए ताकि उसे खुद में सुधार करने का मौका मिले. सिंह थानेदारों को अधिक समय तक थाने में रहने की सलाह देते हैं, ताकि उन्हें अपने क्षेत्र की अद्यतन स्थितियों की जानकारी मिलती रहे.
उत्तर प्रदेश में पुलिस कमिश्नर व्यवस्था लागू हो इसके लिए भी डीजीपी ओपी सिंह सरकार के साथ मिल कर पहल कर रहे हैं. सरकार को इस बारे में प्रस्ताव भेजा जा रहा है. प्रदेश के व्यापारियों को सुरक्षा देने के लिए व्यापारी सुरक्षा कोष बनाया जा रहा है, जिसकी मॉनिटरिंग एसपी स्तर के अफसर करेंगे. डीजीपी ने डायल-100 से जुड़े पुलिसकर्मियों के घटनास्थल पर पहुंचने का समय 24 मिनट से घटा कर 14 मिनट कर दिया है और पुलिसकर्मियों को आश्वासन दिया है कि डायल-100 के लिए आधुनिक मोटरसाइकिलें शीघ्र मुहैया कराई जाएंगी.
‘सर्विस’ और ‘प्रोफेशनलिज्म’ का बेहतरीन समन्वय
उल्लेखनीय है कि ओपी सिंह नेशनल डिजास्टर रेसपॉन्स फोर्स (एनडीआरएफ) के भी महानिदेशक रहे हैं. यह बल प्राकृतिक आपदाओं से निपटने वाला विशिष्ट बल है. कश्मीर की बहुचर्चित बाढ़ और नेपाल के भूकंप में ओपी सिंह के नेतृत्व में एनडीआरएफ ने जो सार्थक भूमिका अदा की उसे दुनिया जानती है. वर्ष 2014-15 में प्राकृतिक आपदाओं के दौरान चलाए गए राहत अभियान, खास तौर पर जम्मू-कश्मीर में बाढ़ आने पर ओपी सिंह ने राहत अभियान का नेतृत्व करके भारी संख्या में स्थानीय लोगों को बचाया और उन्हें बेहतरीन राहत पहुंचाई थी.
इनके नेतृत्व में एनडीआरएफ ने नेपाल भूकंप के दौरान भी उत्कृष्ट राहत कार्य किया जिसकी वैश्विक स्तर पर संयुक्त राष्ट्र संघ द्वारा और नेपाल सरकार द्वारा सराहना की गई. वर्ष 2015 में तमिलनाडु के विभिन्न शहरों में आई बाढ़ के दौरान भी श्री सिंह के नेतृत्व में एनडीआरएफ द्वारा किया गया राहत कार्य उल्लेखनीय है. इस तरह आठ बड़ी आपदाओं से निपटने की श्री सिंह की योजना से भारत और नेपाल के 30 लाख लोगों को लाभ पहुंचा. इसके लिए अखिल भारतीय मानवाधिकार, स्वतंत्रता और सामाजिक न्याय परिषद ने उन्हें वर्ष 2015 में अंतरराष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस के अवसर पर डिस्टिंग्विश्ड लीडरशिप अवार्ड से नवाज़ा.
केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (सीआईएसएफ) के महानिदेशक रहते हुए श्री सिंह ने सीआईएसएफ को आधुनिक और प्रोफेशनल फोर्स बनाने में सक्रिय भूमिका अदा की. 1983 बैच के भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी ओपी सिंह कानून प्रवर्तन, सुरक्षा, आसूचना, अपराध की रोकथाम, आपदा प्रबंधन और आपराधिक अनुसंधान के क्षेत्र के विशेषज्ञ माने जाते हैं. श्री सिंह भारत सरकार से वीरता के लिए भारतीय पुलिस पदक, सराहनीय सेवा के लिए भारतीय पुलिस पदक, पुलिस विशेष ड्यूटी पदक, डिजास्टर रेसपॉन्स पदक और विशिष्ट सेवाओं के लिए राष्ट्रपति के पुलिस पदक से सम्मानित किए जा चुके हैं. इलाहाबाद में अर्द्ध कुंभ मेले में उत्कृष्ट पुलिस व्यवस्था के लिए और लखनऊ के शाश्वत शिया-सुन्नी विवाद का समाधान निकालने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार उनकी सराहना कर चुकी है.
काफी इंतज़ार के बाद सिंह को लाने में कामयाब हुए योगी
शीर्ष स्तर की राजनीति और नौकरशाही दोनों की ही खींचतान के कारण ओपी सिंह को यूपी का डीजीपी बनाने में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को काफी इंतजार करना पड़ा. आखिरकार मुख्यमंत्री ने ओपी सिंह को चार वरिष्ठ आईपीएस अधिकारियों पर वरीयता देकर डीजीपी बनाया. डीजीपी के पद पर ज्वाइन करने में भी तमाम अड़चनें खड़ी की गईं, लेकिन अंततः ओपी सिंह ही प्रदेश के पुलिस महानिदेशक बने. अब महानिदेशक के तौर पर ओपी सिंह का कार्यकाल 31 जनवरी 2020 तक रहेगा. यानि, इस बीच उत्तर प्रदेश का लोकसभा चुनाव भी सम्पन्न होगा. ओपी सिंह के कारण 1982 बैच के आईपीएस अधिकारी प्रवीण सिंह और 1983 बैच के तीन आईपीएस अधिकारी सूर्य कुमार शुक्ला, आरआर भटनागर और गोपाल गुप्ता सुपरसीड हुए और डीजीपी के रेस में पिछड़ गए.
ओपी सिंह की नियुक्ति के खिलाफ राजनीतिक लामबंदी के साथ-साथ नौकरशाही की लामबंदी खूब हुई. लेकिन योगी की पसंद ही आखिरकार स्थापित हुई. ओपी सिंह को मुलायम-काल (दो जून 1995) के बहुचर्चित गेस्ट-हाउस कांड से जोड़ कर भी रोकने की कोशिश हुई. गेस्ट-हाउस कांड के समय ओपी सिंह लखनऊ के एसएसपी हुआ करते थे. लखनऊ का एसएसपी बने चार दिन ही हुए थे कि गेस्ट-हाउस कांड हो गया और मुलायम सिंह यादव ने ओपी सिंह को निलंबित कर दिया, जबकि उस कांड से ओपी सिंह का कोई लेनादेना नहीं था. लेकिन मायावती जबतक यूपी की मुख्यमंत्री रहीं, उन्होंने ओपी सिंह को हाशिए पर ही रखा. केंद्र में ओपी सिंह ने कई महत्वपूर्ण ओहदे संभाले और उल्लेखनीय कार्य किए.
पुलिस और नागरिकों के बीच संवाद स्थापना पर दिया जा रहा ज़ोर
सेमिनार, प्रशिक्षण और गोष्ठियों के जरिए पुलिस और नागरिकों के बीच सरल-संवाद स्थापित करने पर भी जोर दिया जा रहा है. राजधानी लखनऊ समेत प्रदेश के सभी जिलों की पुलिस लाइनों में प्रशिक्षण शिविर और सेमिनार आयोजित करने का सिलसिला शुरू किया गया है. शिक्षा परिसरों में भी छात्रों और पुलिस के बीच संवाद स्थापित करने के इरादे से बातचीत और सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है. पिछले ही दिनों लखनऊ में भी पुलिस लाइन में सेमिनार और प्रशिक्षण शिविर का आयोजन हुआ जिसका उद्घाटन डीजीपी ओपी सिंह ने किया. इसमें वरिष्ठ पुलिस अधिकारी, मंझोले और सामान्य स्तर के अधिकारी और पुलिसकर्मियों के साथ-साथ समाज के प्रबुद्ध वर्ग के लोग और आम नागरिक मौजूद थे.
सेमिनार में हिस्सा ले रहे पुलिसकर्मियों ने बदलते समय में खुद को बदलने का संकल्प लिया और माना कि तभी समाज में उन्हें सम्मान की निगाह से देखा जाएगा. सेमिनार में पुलिस के गौरवशाली काम और शर्मसार करने वाले काम के दो उदाहरण दिए. उन्होंने गौरवशाली काम के लिए सहारनपुर पुलिस का उदाहरण दिया जिसमें पुलिस अधिकारी भूपेंद्र तोमर ने अपनी बिटिया की मौत की खबर मिलने के बावजूद एक घायल युवक को अस्पताल पहुंचाने का काम पहले किया और उसकी जान बचा ली. दूसरी तरह शाहजहांपुर में मुफ्त में सिगरेट नहीं देने पर पांच पुलिसकर्मियों ने दुकानदार को पीट कर पूरे पुलिस विभाग को अपमानित करने का काम किया. साझा सेमिनार और प्रशिक्षण शिविर में पुलिसकर्मियों ने अपने तीखे-मीठे अनुभव भी साझा किए.