योगी आदित्यनाथ का मुख्यमंत्री बनना बहुतों को पसंद नहीं आया. लोग यह अंदाज़ा लगा रहे हैं कि भारतीय जनता पार्टी उत्तर प्रदेश के उस कारनामे को दोहराना चाहती है, जो उसने 2014 में 73 सांसदों के रूप में किया था. भारतीय जनता पार्टी के इस विश्वास को इस बात से और बल मिला, जब 2017 में विधानसभा चुनावों में उसे 325 सीटें मिल गईं. भारतीय जनता पार्टी को अवश्य इस बात का विश्वास होगा कि वो उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ को मुख्यमंत्री बनाकर न केवल इस करिश्मे को दोहराएगी, बल्कि और ज्यादा सांसदों को, भले ही वो दो ज्यादा हों, उत्तर प्रदेश से संसद में लेकर आएगी, ताकि 2019 में प्रधानमंत्री मोदी का पुन: प्रधानमंत्री बनना निश्चित हो सके.
यह भारतीय जनता पार्टी का सोचना हो सकता है और उसका सपना भी हो सकता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के लोगों का सपना दूसरा है. उत्तर प्रदेश के लोग बार-बार कभी सपा तो कभी बसपा की सरकारों में अपने आस-पास हुए परिवर्तन को देख चुके हैं. उन्हें अब इस बात की अपेक्षा है कि सरकार उनके जीवन को बदलने वाले काम शुरू करे. योगी के आने से उत्तर प्रदेश की जनता का बहुत बड़ा वर्ग ये सोच रहा है कि योगी अपनी समझदारी से उन सारी योजनाओं को जल्दी से-जल्दी लागू करेंगे, जो योजनाएं तो थीं, लेकिन धरती पर उतर नहीं रही थीं. हर वर्ग के लोगों में योगी को लेकर आशाएं जगी हैं. अब इन आशाओं को पूरा करना सिर्फ और सिर्फ मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के कंधे पर है.
उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति जर्जर हो गई थी. अखिलेश यादव मुख्यमंत्री रहते हुए लगातार यह कहते रहे कि घटनाएं दूसरे प्रदेशों में ज्यादा होती हैं. वे विभिन्न अपराध के आंकड़े इकट्ठे करने वाली एजेंसियों का हवाला भी देते रहे और यह कहते रहे कि उत्तर प्रदेश में अपराध कम होते हैं, प्रचार ज्यादा होता है. अब सवाल है कि आप मुख्यमंत्री थे. अगर अपराधों का प्रचार होता है तो आपने उसका मुक़ाबला करने के लिए क्या किया? ऐसा तो नहीं है कि अखिलेश यादव के पक्ष में मीडिया ने प्रचार नहीं किया या अखिलेश यादव के साथ के लोग इस तथ्य से परिचित नहीं थे. दूसरी तऱफ उत्तर प्रदेश के साधारण लोग पुलिस थानों से परेशान थे. लोगों ने यह मान लिया था कि यह स्थिति कभी नहीं बदलेगी इसलिए शिकायत करने का क्या फायदा? मायावती जी के ज़माने में अपराधों के ऊपर नियंत्रण लगा था.
कानून व्यवस्था भी सुधरी थी, लेकिन सिर्फ इतना ही काफी नहीं होता है. यह पहला कदम होता है. मायावती ने उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए विकास के बुनियादी कार्यों को प्राथमिकता में नहीं रखा. शायद इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में लोगों का वोट देने का निर्णय लेने में कई सारे तथ्यों के साथ यह तथ्य भी प्रमुख रहा. योगी आदित्यनाथ के सिर पर पहली बड़ी जिम्मेदारी कानून व्यवस्था को सुधारने की है. अक्सर यह देखा गया है कि अगर मुख्यमंत्री कड़ा हो या कभी-कभी मंत्री कड़ा हो तो चीज़ें सुधरती हैं क्योंकि व्यवस्था का संचालन शिखर से होता है. योगी आदित्यनाथ ने पिछले 15 वर्षों में ऐसी बहुत सी शिकायतें सुनी हैं. लोगों से मिले हैं, लोगों का दर्द जाना है. अब योगी आदित्यनाथ उनका निवारण नहीं कर सकते, जबकि पूरी सत्ता उनके हाथ में है, फैसले उनके हाथ में हैं और उनके मंत्रिमंडल में कोई दूसरा ऐसा नहीं है जो इस शक्ति का दूसरा केन्द्र बन सके या उन्हें रोक सके. तब भी अगर उत्तर प्रदेश के लोगों को अच्छी कानून व्यवस्था और विकास के बुनियादी काम नहीं मिलते हैं तो यह जितना भारतीय जनता पार्टी या योगी का दुर्भाग्य होगा, उतना ही उत्तर प्रदेश की जनता का भी दुर्भाग्य होगा.
उत्तर प्रदेश एक ऐसा प्रदेश है, जिसमें लोगों ने प्रयोग किए हैं. उत्तर प्रदेश में अब प्रयोगों की गुंजाइश कम और धरती पर काम करने की गुंजाइश ज्यादा है. बिजली, जिसमें सोलर सबसे प्रमुख है, पानी जो समाप्त होता जा रहा है और पीने का पानी खतरनाक स्तर से भी ऊपर पहुंच गया है. उत्तर प्रदेश के बहुत सारे गांव पानी के लिए तरस रहे हैं. यह समस्या सरकारों और लोगों द्वारा भी खुद बनाई गई है. उत्तर प्रदेश सरकार की प्राथमिकताओं में पीने का पानी अवश्य होना चाहिए, चाहे इसके लिए पुरानी बावड़ी, वाटर हार्वेस्टिंग या फिर पानी इकट्ठा करने की तकनीक हो, इसे गांव-गांव में अपनाया जाना ज़रूरी है. अगर योगी ऐसा नहीं कर पाते हैं तो इसके अलावा कोई ऐसा रास्ता नहीं है कि हर गांव में पीने का पानी उपलब्ध कराया जा सके. सिंचाई के पानी की भी कमी है. देखना है कि योगी आदित्यनाथ की प्राथमिकताओं में कानून व्यवस्था के बाद पीने का पानी आता है या नहीं.
योगी आदित्यनाथ को यह कोई नहीं बताएगा कि उत्तर प्रदेश के सारे ब्लॉक के केन्द्र में अगर वो वहां उपलब्ध कच्चे माल के आधार पर उद्योग स्थापित करा देते हैं, तो वो कितने ज्यादा रोज़गार खड़े कर देंगे. इसमें सरकार को पैसे लगाने की ज़रूरत नहीं है. अगर सरकार बिना लालफीताशाही और भ्रष्टाचार के सिर्फ लोगों को लाइसेंस दे दे, तब उत्तर प्रदेश के हर ब्लॉक में, हर विकास खंड में, वहां कच्चे माल पर आधारित उद्योग लग सकते हैं. अब टेक्नोलॉजी इतनी विकसित हो रही है कि जहां कच्चा माल है, अगर वहीं वो परिष्कृत या प्रोसेस होता है तो उसके खरीदार वहीं पहुंच जाते हैं. उत्तर प्रदेश में स्थानीय कच्चे माल पर आधारित छोटे उद्योगों की श्रृंखला लगाना योगी आदित्यनाथ की तीसरी प्राथमिकता हो सकती है.
योगी आदित्यनाथ की चौथी प्राथमिकता उत्तर प्रदेश में शिक्षा व्यवस्था और स्वास्थ्य सेवाओं को सुधारने की होनी चाहिए. अगर शिक्षा और स्वास्थ्य सुधरता है, तो यह योगी आदित्यनाथ का उस उत्तर प्रदेश को उनका ऋृण चुकाने जैसा होगा, जिसने उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठने लायक अपार बहुमत दिया है.
योगी आदित्यनाथ अगर अपने मंत्रियों द्वारा किए गए कामों का नियमित विश्लेषण करते रहेंगे, तो उनकी सरकार उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए अवश्य कुछ करती दिखाई देगी. लेकिन अगर उन्होंेने अपने मंत्रियों को ढीला छोड़ दिया या सिर्फ वैचारिक भाषणबाज़ी के लिए छोड़ दिया, तब शोर तो मचेगा, लेकिन विकास नहीं होगा. अगर विकास नहीं होगा तब उत्तर प्रदेश के लोगों के लिए सब कुछ बेकार हो जाएगा. योगी आदित्यनाथ से आशाएं हैं, वो आशाएं योगी आदित्यनाथ पूरी करें, अभी तो यह विश्वास करना चाहिए.