सीबीआई सरकार का ही एक अंग है और ऐसा अंग जो कि अक्षम और भ्रष्ट है. हक़ीक़त तो यह है कि व्यापारिक घरानों को कठघरे में खड़ा करके या तो सीबीआई के अधिकारी पैसा बना रहे हैं या तो बड़े राजनीतिक खिलाड़ी पैसा बना रहे हैं. कोल ब्लॉक आबंटन प्रकरण से देश की छवि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में दांव पर लगी हुई है और इससे निजात पाने का जो सबसे बेहतर तरीक़ा है, वह यह कि पूर्व में किए गए सभी आबंटन को रद्द कर दिया जाए. यदि सरकार यह नहीं कर सकती, तो सर्वोच्च न्यायालय को ऐसा करना चाहिए.
कोलगेट प्रकरण एक बार फिर चर्चा में है. इस संदर्भ में एक नई एफआईआर दर्ज हुई है, जिसमें देश के एक बड़े औद्योगिक घराने और उसके चेयरमैन कुमार मंगलम बिड़ला का भी नाम शामिल है. पूर्व कोयला सचिव पी. सी. पारेख, जिनकी छवि एक ईमानदार अधिकारी के तौर पर है, उनका नाम भी इस एफआईआर में शामिल है. पी सी पारेख ने तर्कसंगत ढंग से अपनी प्रतिक्रिया में कहा कि चूंकि उस समय कोयला मंत्रालय की ज़िम्मेदारी प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास थी, इसलिए उनका नाम भी इसमें शामिल करना चाहिए. यह दुर्भाग्य है कि ऐसी घटनाओं का यह सिलसिला कभी ख़त्म नहीं होगा. देश के हित के लिए यह ज़रूरी है कि इस सिलसिले को सही ढंग से ख़त्म किया जाए और उसका सबसे बेहतर तरीक़ा यही होगा कि तत्कालीन व्यवस्था के तहत किए गए सभी कोल ब्लॉक आबंटन को निरस्त किया जाए. एक नई प्रक्रिया के तहत फिर से निविदाएं आमंत्रित की जाएं या बोली लगाई जाए या दूसरा जो भी सही तरीक़ा हो, उसके माध्यम में नए सिरे से आबंटन किए जाएं. इस प्रकरण से देश को जो शर्मिंदगी झेलनी पड़ रही है, उससे बचने का एक मात्र यही तरीक़ा है. एफआईआर दर्ज करना और सीबीआई को बिना स्वायत्त बनाए उसे इस मामले की जांच अथॉरिटी बनाना, इन सबका कोई मतलब नहीं है.
सभी जानते हैं कि सीबीआई सरकार का ही एक अंग है और ऐसा अंग जो कि अक्षम और भ्रष्ट है. हक़ीक़त तो यह है कि व्यापारिक घरानों को कठघरे में खड़ा करके या तो सीबीआई के अधिकारी पैसा बना रहे हैं या तो बड़े राजनीतिक खिलाड़ी पैसा बना रहे हैं. कोल ब्लॉक आबंटन प्रकरण से देश की छवि अंतरराष्ट्रीय बिरादरी में दांव पर लगी हुई है और इससे निजात पाने का जो सबसे बेहतर तरीक़ा है, वह यह कि पूर्व में किए गए सभी आबंटन को रद्द कर दिया जाए. यदि सरकार यह नहीं कर सकती, तो सर्वोच्च न्यायालय को ऐसा करना चाहिए. रोज़ एक नई एफआईआर दर्ज कराना वास्तव में बस अख़बारों के लिए सनसनीखेज व अभद्र ख़बरों का माध्यम भर बन जाता है और यह किसी भी तरह से देश के हित में नहीं है. ऐसा करके हम केवल उन अख़बारों की प्रसार संख्या बढ़ा रहे हैं, जिनके ऊपर यह संदेह किया जाता है कि वे औद्योगिक घरानों से संबद्ध हैं. ऐसा करके देश को कोई फ़ायदा नहीं होने वाला.
मुझे नहीं पता कि प्रधानमंत्री इस मसले पर क्या सोचते हैं. हालांकि, कोल ब्लॉक के आबंटन में जिन्होंने पैसा लगाया है, ज़ाहिर तौर पर उन्हें बुरा लगेगा, लेकिन हम यहां पर समूचे देश के हित में बात कर रहे हैं, न कि किसी व्यक्ति विशेष को केंद्र में रखकर. सुप्रीम कोर्ट को चाहिए किसी जांच के आदेश या सीबीआई को कार्यवाही करने का आदेश देने के बजाए वह सभी आबंटन रद्द कर दे और फिर से नई प्रक्रिया के तहत बोली लगाई जाए. इस तरह जिस किसी भी औद्योगिक घरानों ने नौकरशाहों या राजनेताओं को पैसा देकर कोल ब्लॉक हासिल किया था, उनके पैसे डूब जाएंगे और वास्तव में वे इसी के हक़दार हैं, क्योंकि उन्होंने जो किया है, वह असंगत तरी़के से किया गया था. इस समस्या के हल का नैतिक, वैधानिक या जो कोई भी माना जाए, यही एक तरीक़ा है.
दूसरा, जैसा कि मैंने सुना कि उत्तर प्रदेश के एक ज़िले में सोने की तलाश में खुदाई हुई. एक साधु ने सपना देखा कि वहां पर सोना गड़ा हुआ है, जिसके चलते यह खुदाई हुई. मुझे नहीं पता इस पूरी प्रक्रिया में सरकार ने कितना पैसा ख़र्च किया होगा. साथ ही यह भी आश्चर्य की बात है कि 21वीं सदी के इस दौर में केवल किसी के सपना देखने पर कि कहीं पर ज़मीन में सोना गड़ा है, उस पर विश्वास कर लिया जाता है और सरकार उसे सही मानते हुए उस पर कार्रवाई करने लगती है.
चुनाव नजदीक आ रहे हैं और देश में जो माहौल बन रहा है, उसे वास्तव में बेहतर नहीं कहा जा सकता. अर्थव्यवस्था संकट में है. राजनीतिक स्थितियां बिगड़ रही हैं. अव्यवस्था और भ्रष्टाचार का माहौल बना हुआ है और ऐसे में सरकार को चाहिए कि वह कोशिश करे कि अब भ्रष्टाचार का कोई नया प्रकरण सामने न आए. सरकार जो भी कर रही है, वास्तव में उसे सही ढंग से करने की ज़रूरत है.
मुझे यक़ीन है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह एक योग्य व्यक्ति हैं और चीज़ों को सुचारु ढंग से चलाने के लिए उन्हें और स्वतंत्रता मिलनी चाहिए. राजनीतिक ताक़तें, जो एक दिन यह तय करती हैं कि अध्यादेश लाया जाए और उनके अपने ही लोग सार्वजनिक रूप से अध्यादेश का मज़ाक उड़ाकर यह समझते हैं कि उन्होंने प्रधानमंत्री और सरकार का मज़ाक उड़ाया है, वास्तव में अपनी पार्टी का ही मज़ाक उड़ा रहे हैं. पार्टी की कोर कमेटी सही ढंग से काम नहीं कर रही है. पार्टी अध्यक्ष एक बात कहती हैं तो पार्टी उपाध्यक्ष दूसरी बात कहते हैं. अगर उन्हें लगता है कि सुप्रीम कोर्ट का यह निर्णय दोषपूर्ण है, यह क़ानून के मुताबिक नहीं है, तो पार्टी को इस पर बैठकर विचार करना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट के कुछ न्यायाधीश भी यह कह चुके हैं कि निर्णय क़ानून के आधार पर विधिसंगत नहीं हैं.
हां, जनता का मत है कि दोषी राजनेताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई हो. संसद को चाहिए कि वह पहल करे न कि कोर्ट. संसद का काम देश की सुप्रीम कोर्ट कर रही है और यह भी लोकतांत्रिक व्यवस्था के लिए शुभ संकेत नहीं है.