भारत 15 अगस्त 1947 के दिन आजाद हुआ उसके पहले और सरदार पटेल ने छसौसे भी अधिक संस्थानों को भारत में शामिल करने की कवायद की ! लेकिन एक गोवा ही है ! जिसे आज़ादी के लिए चौदह साल जद्दो-जहद करनी पडी ! जिसमें ज़्यादा तर लोगों का समावेश समाजवादी पार्टी के बैरिस्टर नाथ पै, मधु लिमये, नाना साहब गोरे, प्रोफेसर मधु दंडवते, जयवंत मठकर, और उनके सबसे बड़े नेता डॉ राम मनोहर लोहिया ने तो 15 जून को छोटी सभा और 18 जून को 1946 मडगाव के मैदान जिसे अब डॉ राम मनोहर लोहिया के नाम से जाना जाता है ! उसमें उसमे ही बिगुल बजा कर मडगाव की सभा में ऐलान कर दिया था ! लेकिन उसे भी चौदह साल गुजर गए तब कहीं गोवा आजाद हुआ है ! 18-19 दिसंबर 1961 के दिन !
और पोर्तुगाली शासन अंग्रेजों से भी ज्यादा सैतान थे ! उनके अत्याचार और यंत्रणा देने के तरीके हिटलर, मुसोलिनी को भी मात देने वाले थे ! भारत की संसद के सबसे सुसंस्कृत, सभ्य,और बेहतरीन सदस्य बैरिस्टर नाथ पै के अकालमृत्यू के लिए शत-प्रतिशत पुर्तगाली शासन ने उन्हें दी हुई यंत्रणा देने का नतीजा वह हमेशा के लिए हृदय क्षतिग्रस्त होने के कारण वह उम्र के पचास साल के भीतर ही हमें छोड़कर चले गये ! बैरिस्टर नाथ पै के उपर इतनी यंत्रणाए की थी पुर्तगाली पुलिसने उनके छाती पर जुतो के साथ चढकर कुचलने की करतूत की है ! और जिस कारण उनका हृदय क्षतिग्रस्त होने के कारण वह उम्र के पचास साल के भीतर ही बेलगाँव की सभा में माईक पर बोलते हुए अचानक चल बसे!
मधु लिमये को बारह साल की सजा, और उसके खिलाफ नहीं उन्होंने कोई पैरवी की है और नहीं माफी मांगने के बैरिस्टर सावरकर की जैसी गलती की ! तरह तरह से उन्हें भी यंत्रणा देने का नतीजा वह भी एक पेशंट बनकर रह रहे थे ! आखिरी मे आँखे चली गई थी ! और 8,जनवरी 1995 के दिन उम्र के 72 वे में चल बसे ! यह साल 1 मई 1921 उनके जन्मशती का साल शुरू हो चुका है ! उन्होंने गोवा आजादी के आंदोलन के समय जेलो रहते हुए जेल डायरी लिखीं हैं और गोवा लिबरेशन मुव्हमेंट के नाम से 1996 गोवा मुक्ति के सुवर्ण जयंती के अवसर पर दोबारा प्रकाशित हुई है !
डॉ राम मनोहर लोहिया के साथ भी लाहौर किले मे 1942 के बाद जयप्रकाश नारायण और लोहिया की यंत्रणा से भी बढचढकर पोर्तुगाली शासन के अत्याचार के किस्से हैं, नाना साहब गोरे, दंडवते पती-पत्नी और पंडित महादेव शास्त्री जोशी और उनकी पत्नी इसी तरह शेकडो राष्ट्र सेवा दल के सैनिकों को यंत्रणा देने का सिलसिला आज़ाद भारत में तेरह-चौदह साल बित्ते भर का पोर्तुगाली शासन के अत्याचार मुझे रह रहकर परेशान करते हैं ! कि उस समय तथाकथित स्वतंत्र भारत की दिल्ली की सरकार ऐसे कौन से कामो मे व्यस्त थी ? कि गोवा की तरफ ध्यान नहीं दे सकी ? और देश के महत्वपूर्ण राजनेताओं को पोर्तुगाली शासन के अत्याचार के शिकार होना पड़ा ! और कुछ लोगों को उस अत्याचार के कारण जीवन भर शारीरिक और मानसिक रूप से कुछ बिमारियों के शिकार होना पड़ा !
क्या इस आंदोलन के नेतृत्व समाजवादी पार्टी के लोगों द्वारा किया जा रहा था इसलिए ? हालाँकि इसमें स्थानीय लोगों का जिसमें डॉ जुलियो मेनेझेस के अलावा जिन्होंने डॉक्टर साहब को स्वास्थ्य लाभ के लिए अपने आसेला स्थित आवास पर बुलाया था और डॉ राम मनोहर लोहिया के सामने गोवा के पोर्तुगाली शासन के अत्याचार के किस्से आये तो उन्होंने तुरंत मेनेझेस के घर पर छोटी मीटिंग की और उसके बाद मडगाव के मैदान जिसे अब डॉ राम मनोहर लोहिया के नाम से जाना जाता है उसमें बडी सभा की है और वह दिन है 18 ,जून 1946 !
प्रभाकर विठ्ठल सीनारी, प्रभाकर वैद्द, विश्वनाथ लवंडे यह आझाद गोमंतक दल के लोग जो पहले से ही अपने क्षमता के अनुसार गोवा मुक्ति के लिए कोशिश कर रहे थे ! लेकिन बयालीस ( भारत छोड़ो आंदोलन के) के क्रांतिकारी डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने गोवा में आकर उस आंदोलन मे शामिल होकर जान फूंकने का इतिहास दत्त कार्य किया है ! और इसीलिए आज डॉक्टर साहब की इज्जत भारत के किसी और प्रदेश की तुलना मे सबसे ज्यादा गोवा में है ! और वह सर्व सामान्य गोवा के लोगों के अंदर है ! और कोई जरूरी नहीं है कि वह समाजवादी लोग ही है ! सर्व सामान्य गोवा के नागरिकों मे से है !
तत्कालीन जनसंघ के जगन्नाथराव जोशी और मराठी भाषा के गणमान्य विद्वान पंडित महादेव शास्त्री जोशी और उनकी पत्नी इसी तरह शेकडो राष्ट्र भक्त जिसमें बंगाल से त्रिदिब चौधरी जैसे भारत के सभी हिस्सों के लोगों की सहभागिता रहने के बावजूद यह चौदह साल की पहेली कोई छुडवा सकता ? हमारे विद्वान मित्र प्रोफेसर आनंद कुमार आजकल अपनी पत्नी की बिमारी के कारण गोवा में रह रहे हैं ! अगर वह कुछ रोशनी डालने का प्रयास करे तो बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहेगा !
दुसरे हमारे युवा मित्र अभिषेक रंजन डॉ राम मनोहर लोहिया के नाम पर अकादमी चला रहे हैं ! रवींद्रनाथ टैगोर की एकला चलो रे कविता उनकी जिंदगी की सबसे प्रिय कविता होने के कारण ! अकेले ही गोवा से लेकर अरूणाचल, तक (उर्वशियम ) और डॉ राम मनोहर लोहिया के जीवन के महत्वपूर्ण और अप्रकाशित रचनाओं तथा उनके योगदान को प्रकाशित करने का संकल्प लेकर बहुत ही मेहनत कर रहे हैं ! और कोरोना के लाॅकडाऊन के समय में भी उन्होंने 18 जून को सशरीर गोवा जाकर डॉ राम मनोहर लोहिया के गोवा आजादी के साठ साल ! और डॉ राम मनोहर लोहिया के गोवा आजादी के पचहत्तर साल की सालगिरह कल मनाने का साहसिक कार्य किया है ! इस लिए वह अभिनंदन के पात्र हैं ! लेकिन उनसे भी प्रार्थना है कि चौदह साल की पहेली पर ऐतिहासिक रोशनी डालनेका प्रयास करे !
गोवा मुक्ति के लिए हुए शहीद और अन्य सेनानियों को विनम्र अभिवादन के साथ !