प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 25 मई को धनबाद जाने वाले हैं. उनकी यह यात्रा करीब-करीब फाइनल है. वे अपनी इस यात्रा के दौरान आईएसएम के दीक्षांत समारोह में शरीक होने के साथ ही सिंदरी कारखाना, पतरातू पावर प्लांट व एम्स का भी शिलान्यास करेंगे. बता दें कि उनकी इसी यात्रा में गोड्डा में प्रस्तावित अडाणी पावर प्लांट की आधारशिला रखने का कार्यक्रम भी शामिल था, लेकिन फिलहाल इसे रद्द कर दिया गया है. पीएमओ ने इस पर सहमति नहीं दी है. सूत्रों के मुताबिक पीएमओ ने फिलहाल अडाणी पावर प्लांट का शिलान्यास यह कह कर टाल दिया है कि सरकारी परियोजनाओं के साथ निजी कंपनियों का शिलान्यास उचित नहीं है.
दरअसल, माजरा कुछ अलग है. पीएमओ द्वारा जो दलील दी जा रही है कि सरकारी परियोजनाओं के साथ निजी कंपनियों का शिलान्यास उचित नहीं है, यह पूरा सच नहीं है. असल में सच तो यह है कि गौतम अडाणी को लेकर प्रधानमंत्री मोदी पर कई तरह के आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे हैं. अतीत भी इस बात का साक्षी है कि मोदी ने कई मौकों पर खुल कर गृह प्रदेश का होने के नाते अडाणी को लाभ पहुंचाया है.
बहरहाल, मोदी और अडाणी के संबंध में गड़े मुर्दे उखाड़ने के पहले हम यह जान लें कि आखिर पीएमओ ऑफिस की ऐसी कौन सी मजबूरी आन पड़ी कि उसे अडाणी के पावर प्लांट के शिलान्यास के लिए मना करना पड़ा. यह तो सब भली भांति जानते हैं कि अडाणी को मोदी की सरपरस्ती में विकास की उड़ान भरने का मौका मिला है. नरेन्द्र भाई की व्यक्तिगत मंशा नही होती तो शायद अडाणी बुलंदियों को छू नहीं सकते थे.
अडाणी के इस गोड्डा प्लांट को लेकर भी मोदी पर आउट ऑफ वे जाकर मदद करने के आरोप लगे हैं.बता दें कि यह प्रोजेक्ट वर्ष 2015 में प्रस्तावित था. 17 फरवरी 2016 को झारखंड सरकार के साथ एमओयू हुआ, लेकिन मई 2016 में ही नया प्रपोजल यह कह कर दिया गया कि कोयला इम्पोर्ट होगा. अप्रैल 2017 में आए पर्यावरण इम्पैक्ट एसेसमेंट के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट के लिए घरेलू कोयला मौजूद नहीं है. अगर बिजली बांग्लादेश भेजनी है तो कोयला इम्पोर्ट करना होगा. विवाद का फसाद यहीं से शुरू हो गया.
हालांकि योजना गोड्डा प्लांट के लिए अडाणी के जितपुर कोल माइंस से कोयला देने की थी. इस प्रोजेक्ट को लेकर मुसीबत और बढ़ती गई. दुनिया में ऊर्जा क्षेत्र से संबंधित प्रोजेक्ट्स के आर्थिक-सामाजिक मापदंडों का अध्ययन करने वाली इंस्टीट्यूट फॉर एनर्जी इकोनॉमिक्स एंड फाइनेंशियल एनालिसिस (आईईईएफए) ने अनेक ऐसे खुलासे किए हैं कि मोदी इसके शिलान्यास से मना नहीं करते तो सीधे-सीधे पीएम मोदी की छवि पर भी दाग लग सकते थे.
इस रिपोर्ट में कई कमियां बताई गई हैं. इसमें अनेक ऐसे खुलासे भी सामने आए हैं, जो इस बात को इंगित करते हैं कि अडाणी को मोदी की सरपरस्ती नहीं होती तो इस परियोजना में इतना झोल नहीं होता. सबसे पहले तो यह बात सामने आई कि अडाणी पावर बेहद आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है. प्लांट शायद बने ही ना, अगर बन भी गया तो बांग्लादेश के लिए न केवल महंगी बिजली पैदा करेगा बल्कि खतरनाक भी साबित होगा. बता दें कि अडाणी के इस प्लांट से बांग्लादेश को 8.71 रु. प्रति टका प्रति किलोवाट आवर के हिसाब बिजली मिलेगी. जबकि बांग्लादेश में ही 5 कंपनियां ऐसी हैं जो 3.24 से 7.78 टका प्रति किलोवाट आवर की दर से बिजली दे रही हैं. इसके साथ ही रिपोर्ट में इस बात की शंका भी जाहिर की गई कि यह प्रोजेक्ट सिर्फ और सिर्फ अडाणी को ही फायदा पहुंचाएगा, बांग्लादेश के लोगों को नहीं.
बताते चलें कि गोड्डा प्लांट से बनने वाली 1600 मेगावाट बिजली बांग्लादेश भेजी जानी है. रिपोर्ट में इस बात को लेकर भी आगाह किया गया है कि प्लांट 2022 से पहले उत्पादन शुरू नहीं कर पाएगा. जब अडाणी का यह पावर प्रोजेक्ट कर्ज में है तो समय पर इसके शुरू होने में भी अंदेशा है. सनद रहे कि मार्च 2017 में झारखंड की चीफ सेक्रेटरी ने कहा था कि जून में अडाणी का यह प्रोजेक्ट शुरू हो जाएगा, 18 महीनों में यह पूरा भी हो जाएगा. लेकिन अडाणी पावर कंपनी खुद यह मान रही है कि मई 2022 से पहले यह प्रोजेक्ट पूरा नहीं होगा. इसमें कोई दो राय नहीं है कि अडाणी पावर इस समय कर्ज की समस्या से जूझ रहा है. अडाणी पावर ने दिसंबर 2017 में कहा था कि उसे 9 महीनों में 1513 करोड़ रु. का घाटा हुआ है. कंपनी पर 48 हजार करोड़ रु. का कर्ज है.
इस बीच कंपनी ने यह भी माना कि गुजरात के मुंद्रा स्थित प्लांट से बिजली सप्लाई भी बंद है. काबिलेगौर यह है कि अडाणी इस प्रोजेक्ट का 51 फीसदी हिस्सा गुजरात सरकार को बेचने की तैयारी में हैं, इसलिए ऑडिटर्स को शक है कि कंपनी नया प्लांट बना पाएगी भी या नहीं. इसके साथ ही आईईईएफए की रिपोर्ट में पर्यावरणीय मुद्दों पर भी सवाल उठाए गए हैं. इसके मुताबिक भारत में 25 वर्षों के लिए कोई भी बिजली वितरण कंपनी पीपीए नहीं कर रही है. पच्चीस वर्षों के लिए कोयले पर चलने वाले प्लांट से पूरा इलाका बुरी तरह से प्रदूषित हो जाएगा.
जबकि अभी देश में प्रदूषणरहित-सस्ती ऊर्जा की मुहिम चल रही है. इस रिपोर्ट में इस बात की भी शंका जाहिर की गई है कि अडाणी इस प्लांट से केवल और केवल अपना भला करना चाहते हैं. इस प्लांट के सहारे ही वे ऑस्ट्रेलिया में मौजूद अपनी बदहाल कोयला कंपनी कार्मिकेल को फिर से खड़ा करना चाहते हैं. वे झारखंड के इस प्लांट में कोयला भी ऑस्ट्रेलिया स्थित अपनी बदहाल कंपनी से ही मंगाना चाहते हैं.
कोयला समुद्र के रास्ते पहले ओडिशा के धामरा पोर्ट पर लाएंगे, फिर धामरा से गोड्डा लाया जाएगा. धामरा- गोड्डा 700 किमी दूर है. फिर ट्रेन से कोयला प्लांट पर पहुंचाया जाएगा, जबकि अडाणी के पास जितपुर कोल माइंस है, जो गोड्डा प्लांट से मात्र 16 किमी दूर है. समुद्री रास्ते से कोयला मंगाकर फिर उसे ट्रेन से प्लांट तक पहुंचाना कितना अक्लमंदी का काम होगा. बहरहाल यह सस्ता तो नहीं ही होगा.
इन सब उलझनों और आशंकाओं के बावजूद अगर नरेन्द्र भाई मोदी अडाणी के इस पावर प्लांट को लोकार्पित करेंगे, तो उंगलियां उठनी तो लाजिमी हैं. मोदी इन्हीं परेशानियों को देखते हुए अडाणी के इस पावर प्लांट से दूरी बनाए हैं. वैसे भी अडाणी को लेकर अब तक मोदी पर अनेक आरोप-प्रत्यारोप लगते रहे हैं.