बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी अपने ही गठबंधन की सरकार से नाराज चल रहे हैं. मांझी बुधवार को पटना में अपने पार्टी द्वारा आयोजित धरना प्रदर्शन में भाग लिया और अपने बयानों से सरकार को कटघरे में खड़ा करने की कोशिश की. मांझी ना केवल सरकार के खिलाफ धरना पर बैठे, बल्कि उन्होंने विभिन्न मुद्दों पर नीतीश सरकार को घेरने की कोशिश भी की. सबसे पहले शराबबंदी को विफल बताते हुए मांझी ने ये आरोप लगाया कि अगर सरकारी अधिकारियों की जांच हो, तो अधिकांश शाम के बाद शराब का सेवन करते पकड़े जाएंगे. मांझी ने कहा कि केवल गरीब लोगों को ब्रेथ एनलायजर द्वारा पकड़ा जा रहा है.
नीतीश कुमार की यात्रा पर व्यंग्य करते हुए मांझी ने कहा कि अगर उनकी सरकार होती तो अभी तक राज्य में समान काम के बदले समान वेतन का सिद्धांत लागू होता. मांझी के अनुसार, नीतीश कुमार को अपने सात निश्चय में एक और निश्चय ये शामिल करना चाहिए कि राज्य में दलितों को पांच डेसिमल जमीन दी जाए. लेकिन मांझी के करीबी मानते हैं कि फिलहाल उनका धरना प्रदर्शन अपनी और ध्यान आकर्षित करने के लिए ज्यादा है. मांझी इस बात को लेकर परेशान हैं कि बिहार चुनावों के बाद भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व उन्हें भाव नहीं देता. नीतीश शायद इस बात को अभी भी नहीं भूले कि मांझी ने उनके साथ कैसे दगाबाजी की. इसलिए वो रामबिलास पासवान को ज्यादा तरजीह देते हैं.
भाजपा के नेताओं के अनुसार मांझी चाहते थे कि नीतीश ने जैसे रामबिलास पासवान के भाई पसुपति पारस को मंत्री बनाया वैसे उनके बेटे संतोष को विधान पार्षद बनाके मंत्रिमंडल में शामिल कराएं. लेकिन भाजपा नेता ये भी मानते हैं कि मांझी इस गलतफहमी के शिकार हैं कि वो राज्य में मांझी समाज के नेता हैं. लेकिन बिहार के विधान सभा चुनाव की सच्चाई यहीं है कि अपने गृह जिले में वो जिन दो सीटों से चुनाव में खड़े थे एक जगह से उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा.