आम आदमी पार्टी बीजेपी की बी टीम है ; नहीं है ; है ; नहीं है … सोशल मीडिया के चैनलों पर आने वाले कथित दिग्गज पत्रकारों में इस बात को लेकर एका नहीं है कि केजरीवाल या आम आदमी पार्टी बीजेपी की बी टीम है या नहीं। केजरीवाल और उनकी पार्टी ने आज तक इस मुद्दे पर शायद कुछ नहीं कहा है या कोई बयान नहीं दिया है। केजरीवाल को हमने जितना पढ़ा और समझा है उसकी बात करें तो एक बात बहुत स्पष्ट है कि केजरीवाल का व्यक्तित्व कुछ ऐसा उलझन भरा और उलझते बिखरते ऊन के फंदों जैसा है कि शायद हर किसी की समझ से परे ही लगेगा। चरित्र की बात न करें वहां कोई उलझन नहीं है केवल स्वभाव और व्यक्तित्व की बात करें तो केजरीवाल की राजनीति को लेकर एक स्पष्ट समझ है। वही जो नब्बे के दशक तक हम सबकी रही होगी। राजनीति बहुत गंदी चीज़ है । यह कीचड़ है और इससे जितना दूर रहा जाए उतना अच्छा। बल्कि जो राजनीति में आना चाहता था उसे या तो दुत्कारा जाता था या उससे दूरी बना कर रखी जाती थी। केजरीवाल हरियाणा से हैं । हरियाणा उत्तर भारत का एक प्रदेश है दिल्ली से एकदम सटा हुआ। दिल्ली राजनीति का गढ़ है। उत्तर भारत और दिल्ली दोनों ही महत्वपूर्ण हैं जो पूरे देश का एक तरह से प्रतिनिधित्व करते हैं या राजनीति की दृष्टि से अगुआ माने जाते हैं ऐसा आम तौर पर कहा जाता है जो काफी हद तक सच भी है। लेकिन यहां की जनता जितनी सजग, चौकन्नी और अपेक्षाकृत समझदार है उतनी ही चतुर चालाक और बहुत हद तक धूर्त भी है। हरियाणा और पंजाब के लोग क्षमा करेंगे। पंजाबियत में चालाकी , खुदगर्जी, बेशर्मी और धूर्तता ज्यादा मिलती है बनिस्पत शेष भारत के। प्रतिशत के हिसाब से कहा जाए तो सत्तर से अस्सी प्रतिशत। इसलिए पूरा उत्तर भारत ही ऐसा है यह नहीं कहा जा सकता लेकिन जहां जहां पंजाबियत गयी है वहां वहां इसका प्रतिशत अधिक है। पंजाब, हरियाणा, दिल्ली और दिल्ली से सटे उत्तर प्रदेश के इलाकों में आप इस पंजाबियत को पाएंगे। बाबा रामदेव कितने धूर्त हैं लोग जानते हैं। वे हरियाणा से हैं। इसी तरह केजरीवाल भी हरियाणा से हैं। पंजाबियत के सारे गुण अवगुण केजरीवाल में मौजूद हैं।
किसी भी ईमानदार व्यक्ति के मन में कीचड़ होती राजनीति को लेकर परेशानी हो सकती है। राजनीति देश ही नहीं देश के लोगों के जीवन को भी परोक्ष अपरोक्ष रूप से प्रभावित करती है। मैं जानता रहा हूं ऐसे लोगों को जो इस राजनीति से आहत रहे हैं और हमेशा चाहते रहे हैं कि कोई तो पहल करे इसे साफ करने की । केजरीवाल और उनके पांच छह दोस्तों ने यह सपना देखा । और उन्होंने दिल्ली के गली मोहल्लों और वार्डों में सोशल वर्क करना शुरु किया। उनका लक्ष्य राजनीति करना था लेकिन वे यह भी जानते थे कि राजनीति का नाम लेते ही लोगों की कैसी कैसी राय हमारे बारे में बनेगी और लोग हम से किस तरह छिटक जाएंगे। इसलिए उन्होंने राजनीति से दूरी की बात की ही नहीं, बल्कि साफ किया कि राजनीति में जाने का हमारा कोई इरादा नहीं है। उन्होंने झूठ बोला या आप कह सकते हैं कि उन्हें झूठ बोलना पड़ा । जनता में साफ छवि बनाने के लिए वे स्वच्छ और ईमानदार छवि वाले अन्ना हजारे को लेकर आये और निश्चित रूप से उन्होंने अन्ना का ‘इस्तेमाल’ किया। केजरीवाल ने अपने दम खम से पूरे देश में स्वच्छ और साफ सुथरे आंदोलन की हवा चला दी। ऐसा आंदोलन जो निकम्मी और भ्रष्ट सरकार के खिलाफ था। नतीजे में देश के बड़े बड़े लोग, समाज सेवी , सिविल सोसायटी और तमाम ऐसे लोग जुड़े और विश्वास किया। केजरीवाल जानते थे यह सिर्फ एक भ्रम है। इन सबको अंततः अलग होना है। जिस दिन सबको यह पता चलेगा कि हमारा लक्ष्य राजनीति है उस दिन सबसे पहले अन्ना छूटेंगे और साथ ही ढेर सारे लोग। इस तरह केजरीवाल ने सीधे रास्ते राजनीति में न आकर वह रास्ता चुना जो लोगों के दिलों से होकर जाता था । केजरीवाल जानते थे कि जरूरत से ज्यादा शुचिता हानिकारक भी हो सकती है इसीलिए प्रशांत भूषण, योगेन्द्र यादव, आनंद कुमार और स्वामी अग्निवेश जैसे लोग उनके लिए खतरा हैं। और उन्हें अलग करना जरूरी है । उन्होंने ऐसा किया। लेकिन जिस तरीके से किया उसने केजरीवाल की छवि पर बट्टा भी लगाया।
अपनी धुन के पक्के, स्वभाव के अड़ियल और लक्ष्य पर आंख गड़ाए केजरीवाल को उसी तरह संघ और बीजेपी से परहेज़ नहीं रहा जिस तरह जेपी, जार्ज फर्नांडिस, यशवंत सिन्हा जैसे तमाम लोगों को। बहुत से लोग केजरीवाल को संघी या भाजपाई सिद्ध करने के लिए एक ऐसी मीटिंग की तस्वीर दिखाते हैं जिसमें केजरीवाल के साथ बीजेपी के बड़े बड़े नेता बैठे हैं। केजरीवाल जानते थे कि कांग्रेस के विरोध में जो अन्ना आंदोलन है इसमें संघ और बीजेपी के लोग सक्रिय हैं। लेकिन केजरीवाल का जो लक्ष्य था वह था। अर्जुन की आंख की तरह । भाजपा और संघ से प्रभावित हुए बिना। लोगों का यह भी आरोप है कि केजरीवाल अपने अतीत में संघ से जुड़े रहे हैं। लेकिन लोग यह नहीं जानते कि केजरीवाल अपने लक्ष्य के रास्ते में किसी को भी बर्दाश्त नहीं कर सकते। आज हम केजरीवाल को लेकर दो बातों पर संदेह कर सकते हैं कि वे अपनी जाहिर ईमानदारी से नीचे क्यों गिर रहे हैं और क्या उनकी राजनीति ठीक वैसी ही हो जाएगी जिसके विरुद्ध उनकी लड़ाई थी।
मुझे उन कथित पत्रकारों पर हंसी आती है जो अभी भी आप को या केजरीवाल को बीजेपी की बी टीम मानते हैं। नाम लेने में मैं कोई हर्ज नहीं समझता और जरूरी भी है नाम लेना। राजेश बादल, विवेक देशपांडे, अनिल सिन्हा, अजय जिसका सरनेम याद नहीं आ रहा और ऐसे कई भूसा पत्रकार ( मेरी नज़र में) । विवेक देशपांडे तो एक कदम आगे बढ़ कर कहते हैं कि आप बीजेपी की बी टीम नहीं है वह संघ की बी टीम है। आज मोदी जिस तरह से आम आदमी पार्टी को तहस नहस करने पर उतारू हैं उसे देख कर कौन बी टीम बी टीम का राग आलाप सकता है। केजरीवाल ने अपने स्वभाव के मुताबिक ईडी को लानत भेजी उसके सामने न हाजिर होकर। जो पत्र उन्होंने ईडी को लिखा वह वाजिब है।
अक्सर कहा जाता है कि आम आदमी पार्टी या केजरीवाल कांग्रेस का नुकसान करने और बीजेपी का फायदा पहुंचाने राजनीति में आये हैं। ऊपर कही गई बातों से लगता भी है। हर कांग्रेसी यही मानता है और केजरीवाल से चिढ़ता है। उसका चिढ़ना स्वाभाविक है, गुजरात का उदाहरण सामने जो है। इसको इस तरह लीजिए। जिस समय केजरीवाल और उनके लोग सामाजिक रूप से सक्रिय हुए उस समय मनमोहन सिंह दिल्ली की सत्ता पर काबिज थे। वे न तो उस वक्त सुशासन दे पा रहे थे और न अपने ऊपर लगे भ्रष्टाचार के आरोपों से छुटकारा पाने के लिए कुछ कर पा रहे थे। देश इस सबसे खौल रहा था। ठीक यही वक्त केजरीवाल के लिए मुफीद था। और उन्होंने इस सत्ता पर जोरदार वार किया। अपने आंदोलन के क्या साइड अफेक्ट होंगे या हो सकते हैं इससे एकदम बेफिक्र होकर। मोदी का केंद्र की सत्ता में आना ऐसा ही था। देश हर हाल में बदलाव चाहता था। केजरीवाल दिल्ली की सत्ता पर काबिज होना चाहते थे। यही उनका लक्ष्य था और वह हासिल हुआ। केन्द्र में जाहिर है बीजेपी को आना था। वह भी आई । लेकिन आज सबसे बड़ा सवाल है कि बीजेपी खतरनाक है या मोदी खतरनाक हैं। बीजेपी अटल बिहारी वाजपेई की भी थी। अन्ना आंदोलन के समय बीजेपी भले सक्रिय थी लेकिन मोदी की कोई चर्चा नहीं थी। और अभय कुमार दुबे जैसे पत्रकार तो बताते हैं कि मोदी संघ की पहली पसंद नहीं थे । मोदी ने जैक लगाया और येन केन प्रकारेण संघ पर दबाव बना कर प्रधानमंत्री का पद हासिल किया। ऐसे में कांग्रेसियों का केजरीवाल से चिढ़ना स्वाभाविक है। लेकिन मैं इसके लिए कभी भी केजरीवाल को दोषी नहीं मानूंगा क्योंकि उस वक्त की कांग्रेस निकम्मी हो चुकी थी। इसीलिए योगेन्द्र यादव जैसों को कहना पड़ा कि कांग्रेस को मर जाना चाहिए। आज यदि प्रशांत भूषण या योगेन्द्र यादव से आप आम आदमी पार्टी के विषय में बात करें जिन्हें केजरीवाल ने बेइज्जत करके पार्टी से निकाला था तो वे भी इस पार्टी को सीधे तौर पर खारिज नहीं करेंगे। उसका कारण है दिल्ली में आप पार्टी द्वारा किये गये कार्य। कम से कम शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में। दिल्ली के सरकारी स्कूल प्राइवेट स्कूलों को मात दे रहे हैं। बिजली, पानी, स्कूल, स्वास्थ्य यही सब तो चाहिए होता है एक आम इंसान को। ऐसे में वह इस बात को भी नजरंदाज कर सकता है कि केजरीवाल ने अपने बंगले पर कितना लाख खर्च किया।
केजरीवाल को पूरे देश के राज्यों के बाद देश की सत्ता चाहिए। इसके लिए वे जहां जहां जाएंगे कांग्रेस को नुकसान होगा ही । आज आम आदमी पार्टी इंडिया गठबंधन का हिस्सा है। इंडिया गठबंधन में शामिल होकर यदि केजरीवाल से समझदारी के साथ कांग्रेस से तालमेल बैठाये तो यह देश के लिए फिलहाल बेहतर होगा। क्योंकि इस वक्त मोदी को सत्ता से हटाना देशहित में है। वरना देश को बरबाद होने से कोई नहीं रोक सकता। लेकिन कांग्रेस यह भी खयाल रखे कि केजरीवाल कांग्रेस का लंबा साथ नहीं देंगे। केजरीवाल की निजी ईमानदारी और नीयत पर किसी को शक नहीं करना चाहिए। लेकिन उनके स्वभाव की धूर्तता और यू-टर्न जग प्रसिद्ध हैं। इन सबको ध्यान में रख कर। देखना सिर्फ यह है कि केजरीवाल की राजनीति देशहित में है या नहीं। बी टीम न वे कभी किसी के थे और न हैं। उन्होंने जो किया, चाहे सॉफ्ट हिंदुत्व ही सही, वह बी टीम के नाते नहीं बल्कि अपनी राजनीति के लिए।
मोदी और केजरीवाल में कई बातें समान हैं। उनमें यह बात कॉमन है कि दोनों अपने सामने किसी को बर्दाश्त नहीं कर सकते। तो यह भी उतना ही सही है कि दोनों आपस में भी एक दूसरे को फूंटी आंख नहीं देख सकते। दोनों में सांप नेवले जैसी लड़ाई है। नेवले से ज्यादा खतरनाक सांप होता है, सब जानते हैं। कांग्रेस को समझना होगा और केजरीवाल से सावधान रहते हुए और अपने हितों का खयाल रख कर तालमेल बैठाना होगा। फिलहाल नेवले की गरदन सांप के हाथ में है लेकिन नेवला भी कम नहीं। मोदी की ईडी को आंख दिखाता है। देखिए आगे की राजनीति क्या मोड़ लेती है।
केजरीवाल को लेकर इतनी गफलत क्यों है आखिर ….
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