देश 1989 में अचानक आये वीपी लहर ने दलित-मुस्लिम राजनीति को भी एक नयी दिशा दी और केन्द्र की कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंका. तब से सभी की नजर इस नये समीकरण और वोट बैंक की ओर गयी. यही कारण रहा कि देश के अन्य राज्यों में भी यह वोट बैंक, वहां की राजनीति को प्रभावित किया. लेकिन बिहार की राजनीति में मुस्लिम-दलित वोट बैंक ने बड़े बदलाव कर डालें. इसी समीकरण और वीपी सिंह के अरक्षण मुद्दे से मजबूत राजनीतिक आधार बनाने वाले लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान आज राज्य व देश की राजनीति की एक महत्वपूर्ण कड़ी है.
मगध में मुस्लिम राजनीति भी बहुत मायने रखती है. बिहार में 1990 के बाद बदली राजनीति और राजनीतिक समीकरण ने राष्ट्रीय दलों को अपनी रणनीति और सोच बदलने को बाध्य किया. इसका प्रभाव मगध के 26 विधान सभा क्षेत्रों पर भी पड़ा. देश 1989 में अचानक आये वीपी लहर ने दलित-मुस्लिम राजनीति को भी एक नयी दिशा दी और केन्द्र की कांग्रेस सरकार को उखाड़ फेंका. तब से सभी की नजर इस नये समीकरण और वोट बैंक की ओर गयी. यही कारण रहा कि देश के अन्य राज्यों में भी यह वोट बैंक, वहां की राजनीति को प्रभावित किया. लेकिन बिहार की राजनीति में मुस्लिम-दलित वोट बैंक ने बड़े बदलाव कर डालें. इसी समीकरण और वीपी सिंह के अरक्षण मुद्दे से मजबूत राजनीतिक आधार बनाने वाले लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान आज राज्य व देश की राजनीति की एक महत्वपूर्ण कड़ी है. 1990 के बाद में अल्पसंख्यको की भी राजनीति ने नयी दिशा दी.
हर राज्य में मुस्लिम ने बड़ी पार्टियों को छोड़कर क्षेत्रीय दलों को गले लगाना शुरू किया. इसी का असर मगध में भी पड़ा और मुस्लिम वोटों का झुकाव लालू प्रसाद के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय जनता दल की ओर होने लगा. मगध में इसके सबसे बड़े पैरोकार हुए अधिवक्ता शकील अहमद खान. इन्होंनें राजद का दामन ऐसा थामा कि मगध में अल्पसंख्यक मतदाता कांग्रेस को छोड़ राजद के वोट बैंक बन गये. पिछले ढाई दशक में दो दशक तक मगध राजद का मजबूत गढ़ रहा तो इसमें सबसे बड़ा योगदान शकील अहमद खान का रहा. क्योंकि मगध के मुसलमानों ने इन्हें सर्वमान्य नेता माना. हालांकि, मुसलमानों का वोट मगध में राजद-कांग्रेस का वोट बैंक माना जाता हैं.
इसमें जदयू भी घुसपैठ करने का प्रयास करती रही है. बीमारी से तीन साल पूर्व शकील अहमद खान के निधन के बाद से मगध में मुस्लिमों के सवर्र्मान्य नेता कौन पर सवाल खड़ा हो गया है. ऐसे तो बड़े नेता कहलाने वाले दर्जन भर मुस्लिम नेता अल्पसंख्यक वोट बैंक के सहारे राजनीति में सक्रिय है. लेकिन शकील अहमद खान जैसा नेता कोई नहीं है, जिसे मगध के मुसलमान अपना नेता मानें. भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी से अपनी राजनीति शुरू कर राजद और अंत में जदयू का दामन थामने वाले शकील अहमद खान जिस दल में गये, मगध के मुस्लिम वोट बैंक को उसके पक्ष में कराने में सफल होते थें. यही कारण था कि अन्य दलों के लोेग भी मानते थे कि शकील अहमद खान मगध के अल्पसंख्यक वोट बैंक के बड़े नेता हैं. अब उनके गुजर जाने के बाद अल्पसंख्यकों का वोट बैंक मगध में बिखर सा गया है.
पिछले ढाई दशक में अल्पसंख्यकों के कई बड़े नेता हुए, परन्तु उंचाई पर जाने के बाद भी मगध में मुसलमानों के सर्वमान्य नेता नही बन सके. जलालउद्दीन अंसारी भारतीय कम्युनिष्ट पार्टी के स्टेट सेक्रेटरी (प्रदेश अध्यक्ष) और राज्य सभा सदस्य भी हुए. मगध में इन्होंने अपने सासंद फंड से बहुत कार्य भी कराये, जो आज भी किसी सांसद-विधायक के काम की तुलना के लिए मानक बने हुए है. अंसारी ने ही बिहार में राजद से हुए गठबंधन से अलग होने की घोेषणा की और भाकपा तब अलग होकर चुनाव लड़ी थी. अंसारी का मानना था कि लालू प्रसाद बिहार के हित में विकास कार्य और विधि-व्यवस्था को कायम रखने में अक्षम साबित हुए हैं.
इस सब के बाद भी मगध के मुसलमानों ने इन्हे अपना नेता नहीं माना. राज्य सभा सदस्य रहते अंसारी ने गया शहर में हिंदू-मुस्लिम दोनों के लिए अपने फंड से बहुत से कार्य कराए. बावजूद इसके 2010 के विधान सभा चुनाव में गया शहर के मतदाताओं ने इन्हें नकार दिया. दो वर्ष पूर्व इनका भी निधन हो गया. जहानाबाद के इरकी गांव निवासी नौशाद अहमद बिहार अल्पसंख्यक आयोग के करीब नौ वर्ष तक अध्यक्ष रहें. लेेकिन मगध के अल्पसंख्यकों ने इन्हें भी अपना नेता नहीं माना. अभी ये हम पार्टी के अल्पसंख्यक सेल के राष्ट्रीय अध्यक्ष है. नवादा के सलमान रागिब पिछले तीन टर्म से निकाय क्षेत्र से विधान पार्षद हैं.
लंबे समय से विधान परिषद सदस्य रहने के बाद भी ये अपनी पहचान पूरे मगध में नहीं बना सके. इनकी पहचान नवादा में जदयू के कौशल यादव के साथ जुड़ी हुई है. इसी प्रकार औरंगाबाद के रफीगंज से दो बार राजद विधायक बनने वाले डा. नेहालुद्दीन भी मगध के मुसलमानों के नेता नही बन सकें. इससे पूर्व नेहालुद्दीन बिहार राज्य सुन्नी वफ्फ बोर्ड के अध्यक्ष भी रह चुके थे. इन सब के बावजूद मगध के अल्पसंख्यकों ने इन्हें अपना सर्वमान्य नेता नहीं माना. इसके अलावा भी करीब आधा दर्जन ऐसे नेता हैं, जो मगध के विभिन्न क्षेत्रों में नगर परिषद, नगर पंचायत के अध्यक्ष-उपाध्यक्ष विभिन्न दलों के जिलाध्यक्ष भी रह चुकें है या हैं. लेकिन कोई बड़ी पहचान नहीं है.
नवादा के ही नेता मसीहुद्दीन में ऐसी काबिलियत थी, जिससे वे मगध के मुसलमानों के नेता बन सकते थे. 1995 में हिसुआ विधान सभा क्षेत्र से निर्दलीय चुनाव लड़ने के बाद वे सक्रिय राजनीति में आयें और बाद में वे नीतीश कुमार के साथ समता पार्टी से जुड़ गये. लेकिन बाद के दिनों में समता पार्टी में इन्हे उपेक्षित किया जाने लगा तो वे पार्टी छोड़ दूसरे दल में चले गये. लोेजपा-बसपा में जाकर मसीहुद्दीन ने मगध में पार्टी को मजबूती प्रदान की. परन्तु राजनीति के बदलते रूप में वे अपने को फिट नही रख सके. 2009 में मसीहुद्दीन बसपा प्रत्याशी के रूप में नवादा से लोेकसभा का चुनाव लड़े.
नवादा की राजनीति के साथ-साथ आज मसीहुद्दीन समाजसेवा के सहारे लोेगों से जुड़े हैं. बिहार के प्रसिद्ध जलप्रपात ककोलत विकास परिषद के अध्यक्ष है. इन्हें मौका मिलता तो ये मगध में मुसलमानों के नेता बन सकते है. अभी वे जदयू के प्रदेश कार्यकारणी के सदस्य हैं. वे शकील अहमद खान जैसा व्यक्तित्व बन सकते है, बशर्ते मौका मिले. मगध के मुसलमान आज भी शकील अहमद खान के किये कार्यो तथा उनके व्यवहार को याद करते है. राजनीति में बहुत कम लोेग होते हैं, जो व्यवहार कुशल भी होते है. यही कारण है कि आज मगध के मुसलमानों का कोई सर्वमान्य नेता नहीं हैं.