चुनाव के आते ही अब सियासी मैदान से विकास गायब हो चुका है और इसकी जगह जातीय गणित भारी पडने लगा है. बिहार में भी जातीय समीकरण को दुरुस्त करने की कवायद शुरू हो गई है. बिहार में कुश्वाहा समाज जनसंख्या के आधार पर एक ठीकठाक स्थिति में है. लेकिन, इस समाज का असली नेता कौन है, इसे ले कर काफी समय से विवाद चलता आ रहा है.
राष्ट्रीय लोक समता पार्टी सुप्रीमो व केंद्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा की स्वीकृति अपने समाज में भले कुछ बढ़ी जरूर है. वे अपने दल को इस समाज के हितरक्षक के तौर पर तो पेश कर ही रहे हैं, ढाई-तीन वर्षों में एक अभियान भी चला रहे हैं- यादव और कुर्मी के बाद अब कुशवाहा मुख्यमंत्री क्यों नहीं?
सूबे में कुशवाहा समाज की आबादी कोई साढ़े पांच प्रतिशत है. कहा जाता है कि उनके इस अभियान को अपने समाज में समर्थन भी मिल रहा है. इस समाज के कई छोटे-बड़े नेता उनके साथ जुड़ रहे हैं. इससे भी उनके पक्ष में संदेश जा रहा है. कुशवाहा समाज में ऐसी महत्वाकांक्षा को जद (यू) सुप्रीमो के समर्थक उनकी राजनीति के लिए खतरनाक मानते हैं.
पिछले एक साल के दौरान कई ऐसी घटनाएं हुई हैं, जिनसे यह संकेत गया कि नीतीश कुमार की राजनीति उपेन्द्र कुशवाहा को हाशिये पर धकेलने की है. इसका संदेश नीतीश कुमार के लिए अच्छा नहीं गया है. बिहार के राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि रालोसपा को जद (यू) सुप्रीमो एनडीए से बाहर करने की जुगत में हैं.
कुशवाहा समाज में इस बात की चर्चा आम है. इधर, मुज़फ़्फरपुर बालिका गृह कांड में तत्कालीन समाज कल्याण मंत्री मंजु वर्मा से इस्तीफा लेने के नीतीश कुमार के फैसले को भी कुशवाहा समाज ने अपने साथ दुर्भावना के रूप में लिया है. इस मामले में शक की सुई एक और मंत्री पर गई थी, जो अगड़े सामाजिक समूह के हैं, लेकिन उन्हें छोड़ दिया गया.
ऐसे नकारात्मक संदेशों के कारण नीतीश कुमार के लिए कुशवाहा समाज को अपने साथ जोड़ने की सकारात्मक कोशिश वक्त की जरूरत हो गई है. इसीलिए गत दो महीनों में इस समाज के प्रमुख लोगों व इससे जुड़े जद (यू) के नेताओं-कार्यकर्त्ताओं की दो अलग-अलग बैठकें मुख्यमंत्री आवास में आयोजित जा चुकी हैं.
मुख्यमंत्री के निर्देश पर एक संगठन, कुशवाहा राजनीतिक विचार मंच का गठन किया गया. इस मंच की ओर से सूबे के विभिन्न जिलों, विशेषकर कुशवाहा बहुल क्षेत्रों में, कार्यक्रम चलाने का निर्णय लिया गया है. मुख्यमंत्री ने इस अभियान की जिम्मेवारी दल के विभिन्न कुशवाहा नेताओं को दी है और इसके लिए टीमों का गठन भी कर दिया गया है. कुशवाहा समाज से नीतीश कुमार की बनी दूरी को पाटने के लिए और भी काम आरंभ करने की तैयारी चल रही है. फिर भी, जद (यू) संगठन और सुप्रीमो व उनके खास लोग बहुत आशावादी नहीं हैं.