जॉन एलिया उर्दू शायरी की महफ़िल का एक बहुत बड़ा नाम हैं।

जौन साहब उत्तरप्रदेश  के अमरोहा में पैदा हुए थे. उनके वालिद अल्लामा शफीक हसन एलिया जाने-माने विद्वान और शायर थे. जौन एलिया पांच भाइयों में सबसे छोटे थे उन्होने 8 साल की उम्र में पहला शेर कहा|

जौन साहब की एक उर्दू पत्रिका को निकालने के दौरान जाहिदा हिना से मुलाकात हुई | उन्ही से शादी हुई  तीन बच्चे हुए लेकिन रिश्ता ज्यादा दिन चल नहीं पाया. 1984 में तलाक हुआ | गम मे डूबे हुए जौन बर्बाद होने लग गए | उनकी शायरी मे उनके गम को बख़ूबी समझा जा सकता है |

पेश हैं उनके लिखे कुछ मशहूर शेर:

मैं भी बहुत अजीब हूं, इतना अजीब हूं कि बस
ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं

जो गुज़ारी न जा सकी हम से
हम ने वो ज़िंदगी गुज़ारी है

कौन इस घर की देख-भाल करे
रोज़ इक चीज़ टूट जाती है

यूं जो तकता है आसमान को तू
कोई रहता है आसमान में क्या

कितने ऐश उड़ाते होंगे कितने इतराते होंगे
जाने कैसे लोग वो होंगे जो उस को भाते होंगे

मैं भी बहुत अजीब हूं इतना अजीब हूं कि बस
ख़ुद को तबाह कर लिया और मलाल भी नहीं

मैं रहा उम्र भर जुदा ख़ुद से
याद मैं ख़ुद को उम्र भर आया

क्या बताऊं के मर नहीं पाता
जीते जी जब से मर गया हूं मैं

रोया हूं तो अपने दोस्तों में
पर तुझ से तो हंस के ही मिला हूं

हो रहा हूं मैं किस तरह बर्बाद
देखने वाले हाथ मलते हैं

ख़ूब है शौक़ का ये पहलू भी
मैं भी बर्बाद हो गया तू भी

उस गली ने ये सुन के सब्र किया
जाने वाले यहां के थे ही नहीं

अपना ख़ाका लगता हूं
एक तमाशा लगता हूं

सीना दहक रहा हो तो क्या चुप रहे कोई
क्यूं चीख़ चीख़ कर न गला छील ले कोई

ख़ूब है इश्क़ का ये पहलू भी
मैं भी बर्बाद हो गया तू भी

और तो क्या था बेचने के लिए
अपनी आँखों के ख़्वाब बेचे हैं

काम की बात मैंने की ही नहीं
ये मेरा तौर-ए-ज़िंदगी ही नहीं

बहुत नज़दीक आती जा रही हो
बिछड़ने का इरादा कर लिया क्या

“जॉन एलिया “

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