यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि वे भू-माफिया हटाएंगे… लेकिन नौकरशाह और भू-माफिया साथ मिल कर योगी को ही ‘औकात’ में रखने की परिस्थितियां रचते हैं. योगी का एंटी भू-माफिया अभियान इसीलिए फेल हो रहा है. कोई भी राजनीतिक दल हो, भाजपा हो या सपा, बसपा हो या कांग्रेस, या छोटे दल… सारे दल भ्रष्टाचार के दलदल में धंसे हैं. कोई भू-माफिया भाजपाई है तो कोई सपाई… सारे माफिया और दलाल किसी न किसी राजनीतिक दल से जुड़े हैं, नौकरशाह उनके साथ खड़े हैं, तो कैसे नहीं फेल होगा योगी का अभियान! एंटी भू-माफिया अभियान के एक साल हो गए. भू-माफियाओं की जकड़न समाज में और ज्यादा बढ़ गई है. अब ज्यादा शातिराना तरीके से भू-माफिया आखेट कर रहे हैं. कुछ ठोस उदाहरणों के साथ प्रस्तुत है भू-माफियाओं और शासनतंत्र के ‘नेक्सस’ को उजागर करती यह एक्सक्लूसिव रिपोर्ट…
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भू-माफियाओं पर कार्रवाई के लिए बड़े-बड़े आदेश जारी किए, बड़ी-बड़ी घोषणाएं कीं और बड़े-बड़े विज्ञापनों के कंधे पर सवार होकर ‘एंटी-भू-माफिया पोर्टल’ जारी किया, लेकिन नतीजा क्या निकला? इसका नतीजा प्रदेश के आम लोग भुगत रहे हैं, जिनकी जमीनें और घर भू-माफियाओं के कब्जे में हैं और शासन-प्रशासन के सम्बद्ध अधिकारी भू-माफियाओं का साथ दे रहे हैं. कार्रवाई के नाम पर बांस की लंबी लचीली खपच्ची से घास हटाने का उपक्रम हो रहा है, ठीक वैसे ही जैसे मोदी का स्वच्छता अभियान चल रहा है. समाज में चारों तरफ माफिया फैले हैं या गंदगी फैली है.
आपको भू-माफियाओं का नंगा राज देखना हो तो उत्तर प्रदेश के राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र का दौरा कर लें. केवल नोएडा और ग्रेटर नोएडा क्षेत्र का ही जायजा ले लें तो ‘एंटी-भू-माफिया ऑपरेशन’ की भौंडी हकीकत से आप ठीक से परिचित हो जाएंगे. योगी सरकार की घोषणा और कार्रवाई की एक विचित्र सच्चाई यह भी है कि भू-माफियाओं के खिलाफ की गई कार्रवाई का कोई ब्यौरा सरकार के ‘एंटी-भू-माफिया पोर्टल’ पर उपलब्ध नहीं है. यहां तक कि भू-माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई का दो आदेश जारी करने के बाद सरकार मस्त हो गई. एक शासनादेश एक मई 2017 को निकला और दूसरा सात दिन बाद आठ मई 2017 को.
उसके बाद सरकार को कोई आदेश जारी करने की जरूरत ही नहीं पड़ी. योगी सरकार ने भू-माफियाओं के खिलाफ की गई कार्रवाई का सभी जिलों से न कोई लेखा-जोखा लिया और न दोषी अधिकारियों-कर्मचारियों के खिलाफ कोई सजा मुकर्रर की. गृह विभाग के एक आला अधिकारी ने दावे से कहा कि भू-माफियाओं के खिलाफ कार्रवाइयां की गई हैं. फिर कार्रवाइयों का ब्यौरा सरकारी पोर्टल पर सार्वजनिक क्यों नहीं किया गया? माफियाओं का नाम सार्वजनिक करने में सरकार को संकोच क्यों हो रहा है? इसके पीछे कौन सी राजनीतिक मंशा है? यह सवाल पूछने पर उक्त अधिकारी कोई जवाब देने के बजाय यह आग्रह करने लगे कि उनका नाम न छापा जाए.
यह कहते हुए अधिकारी महोदय ने माना कि शुरुआत में कुछ जिलों से कार्रवाई के बारे में पूछताछ जरूर की गई और कृत कार्रवाई का ब्यौरा भी मंगाया गया, लेकिन बाद में सब पुरानी रफ्तार में आ गया. यह है सरकार के सामाजिक सरोकार की सक्रियता और पारदर्शिता…
अब आप थोड़ा और केंद्र में आएं, फोटो साफ-साफ देखने के लिए जिस तरह ज़ूम करना पड़ता है, उसी तरह अगर आप एक खास क्षेत्र गौतम बुद्ध नगर को फोकस करें तो आपको स्पष्ट दिखने लगेगा कि आज की तारीख में सबसे बेशकीमती जमीनी क्षेत्र का स्वामी गौतम बुद्ध नगर किस तरह दीमकों से भरा पड़ा है. भू-माफिया, दलाल, भ्रष्ट अफसर और कर्मचारी दीमक की तरह नोएडा और ग्रेटर नोएडा क्षेत्र को चूस-चूस कर खोखला किए जा रहे हैं. मुख्यमंत्री एंटी-भू-माफिया पोर्टल जारी कर निश्चिंत हैं.
नोएडा और ग्रेटर नोएडा में तो भू-माफिया न केवल जमीनों, मकानों पर कब्जा कर रहे हैं, बल्कि वे सरकारी जमीनों को भी बंधक रख कर बैंक से लोन उठा रहे हैं. इस गोरखधंधे में राष्ट्रीयकृत बैंक के अधिकारी लिप्त हैं. बैंक की मिलीभगत से जमीन के दस्तावेजों में आपराधिक फेरबदल कर उस पर भी लाखों रुपए का लोन हासिल किया जा रहा है. एक ही जमीन पर बैंक कई-कई बार लोन दे रहा है. लोन लूट की ऐसी अंधेरगर्दी मची है कि सवर्ण भू-माफिया दलित जाति के भूस्वामी को अपना नाना-दादा बता कर उन जमीनों को अपना दिखा रहे हैं और उस पर लोन ले रहे हैं. मुसलमान भू-माफिया दलित भूस्वामी को अपना सगा रिश्तेदार बताने से संकोच नहीं कर रहा और ऐसे ही दस्तावेज भी बनवा लाया है. ये
भू-माफिया नोएडा अथॉरिटी को जमीन देकर एक तरफ भारी मुआवजा कमा रहे हैं तो दूसरी तरफ उसी जमीन को बंधक रख कर बैंक से लोन भी ले रहे हैं. भू-माफियाओं की शासन-प्रशासन पर इतनी पकड़ है कि कोई चूं तक नहीं कर सकता. जिन जमीनों का मालिकाना हक नोएडा प्राधिकरण के नाम हो चुका है, उन जमीनों पर भी भू-माफियाओं द्वारा बैंक से लाखों रुपए का बार-बार लोन लेना यही बताता है कि तंत्र पर भू-माफियाओं की कितनी पकड़ है.
प्रशासनिक मिलीभगत की ‘केस-स्टडी’
अब आपको एक खास ‘केस-स्टडी’ से वाकिफ कराते हैं. गौतम बुद्ध नगर के दादरी तहसील के जारचा गांव को ग्रेटर नोएडा अथॉरिटी, दादरी तहसील के अधिकारियों और भू-माफियाओं ने मिल कर राजस्व लूट का अड्डा बना रखा है. प्रशासनिक अराजकता का हाल यह है कि दलितों और कुछ अन्य कमजोर वर्ग के लोगों की नियमानुसार खरीदी गई जमीनों और मुसलमानों की कब्रगाह की जमीन को भी सरकारी भूमि दिखा कर जब्त कर लिया गया है. इन जमीनों पर पहले से दलितों के मकान, दुकान और मुसलमानों का कब्रिस्तान था. इसी में प्रसिद्ध फिल्म अभिनेता जगदीप के दादा मरहूम अलमदार हुसैन जाफरी की भी कब्र है. भू-माफिया अब उन्हीं जब्तशुदा जमीनों को मॉरगेज करके बैंक से ऋण ले रहे हैं और कब्रिस्तान की जमीन पर मार्केटिंग कॉम्प्लेक्स बनाने की तैयारी में लगे हैं. दलितों और अन्य लोगों के मकानों और दुकानों पर तहसील का ताला जड़ दिया गया है, जबकि कुछ लोग भ्रष्ट अधिकारियों और माफियाओं से मिलीभगत करके ताले खुलवा कर रह रहे हैं.
यह मामला आला अधिकारियों की नोटिस में भी लाया गया, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की गई. विडंबना यह है कि मशहूर फिल्म अभिनेता सैयद इश्तियाक अहमद जाफरी उर्फ जगदीप के परिवार और उनके तमाम नजदीकी रिश्तेदारों, मसलन, आरिफ अब्बास जाफरी, बू अली जाफरी वगैरह की पुश्तैनी कब्रगाह गाटा संख्या-1403 में दर्ज थी. लेकिन कागजातों में फर्जीवाड़ा करके इसे सरकारी राजस्व भूमि में दर्ज कर दिया गया. एक तरफ इसे सरकारी भूमि में दर्ज कर दिया गया तो दूसरी तरफ भू-माफियाओं ने प्राधिकरण और तहसील के अधिकारियों से मिलीभगत करके वहां मार्केटिंग कॉम्प्लेक्स बनाने की तैयारी शुरू कर दी.
उक्त जमीन पर शिया मुसलमानों के पुश्तैनी कब्रिस्तान होने के ऐतिहासिक दस्तावेज और साथ-साथ चकबंदी और राजस्व के सारे पुराने रिकॉर्ड पेश किए गए, लेकिन रिश्वत में पगे अफसरों ने इस पर कोई ध्यान नहीं दिया. उस कब्रगाह में फिल्म अभिनेता जगदीप के दादा अलमदार हुसैन जाफरी समेत कई शख्सियतों की कब्रें आज भी अपनी गवाही पेश कर रही हैं, लेकिन भू-माफिया इसे मिटा देने पर आमादा हैं. भ्रष्टाचार का विचित्र पहलू यह भी है कि कब्रिस्तान की जमीन को भी बंधक रख कर भू-माफियाओं ने सिंडिकेट बैंक से लोन ले रखा है. आप क्या यह समझते हैं कि तहसील, प्राधिकरण, राजस्व विभाग या सिंडिकेट बैंक के अधिकारी यह सब नहीं जानते? सारे अधिकारी इसे जानते हैं, वे भू-माफियाओं से घूस लेते हैं, राजस्व लूट में हिस्सेदारी निभाते हैं और समझ-बूझ कर माफियाओं को संरक्षण देते हैं.
ग्रेटर नोएडा के दादरी तहसील का जारचा गांव ‘शोले’ टाइप की फिल्म का प्लॉट बन गया है, जहां डकैत गब्बर सिंह का तो नहीं, पर बब्बर माफियाओं, दलालों और अफसरों का आतंक कायम है. इत्तेफाक ही है कि उस ‘शोले’ फिल्म में जगदीप भी एक प्रमुख पात्र थे जो मूल रूप से इसी जारचा गांव के रहने वाले हैं. बाद में उनका परिवार दतिया (मध्य प्रदेश) चला गया. जारचा गांव के उन्हीं बब्बर माफियाओं से मिलीभगत करके तहसील अधिकारियों ने नियम कानून से जमीनें खरीदने वाले दलितों और अन्य कमजोर वर्ग के लोगों की जमीनों को सरकारी जमीन बताकर उसे जब्त कर लिया है. ऐसे दर्जनों दलित और अन्य वर्ग के लोग मिले, जिनकी जमीनें सरकारी जमीन बता कर जब्त कर ली गईं, जबकि उन्हीं जमीनों को अपना बता कर भू-माफिया मुआवजा ले रहे हैं और उसे बंधक रख कर बैंक से लोन भी ले रहे हैं.
ऐसे भुक्तभोगियों में जय जाटव पुत्र भरता जाटव, बुद्धि जाटव पुत्र सूखा जाटव, गजराज जाटव पुत्र छज्जू जाटव, धनीराम जाटव पुत्र मंगला जाटव, राम सिंह पुत्र मोमराज जाटव, बालू पुत्र यादू, हरिओम पुत्र ब्रह्मानंद, हनीफ़ पुत्र शकूर, राजेंद्र और नरेंद्र पुत्र राजपाल, शकुंतला देवी पुत्री शीशराम जाटव, ग्राम मुर्शिदपुरा, हारून और रईसुद्दीन पुत्र महमूद, निवासी ग्राम कलौंदा, तहसील दादरी, आरिफ़ अब्बास जाफरी पुत्र बू अली जाफरी, बू अली जाफरी पुत्र स्व. सफदर अब्बास जाफरी, जान मोहम्मद पुत्र मुनीर खां, निवासी ग्राम कलौंदा, तहसील दादरी वगैरह शामिल हैं. इन जैसे कई दूसरे भुक्तभोगी भी अपनी आपबीती किसी भी कानूनी और सार्वजनिक मंच पर बयान करने के लिए तैयार हैं. इन भुक्तभोगियों में जारचा गांव के बुजुर्ग बू अली जाफरी भी शामिल हैं, जिनकी जमीन पर फर्जी दस्तावेजों के जरिए भू-माफिया कैसरुल इस्लाम उर्फ शन्नू और उसके गुर्गों ने कब्जा जमा रखा है.
स्थानीय लोग बताते हैं कि शन्नू और उसके बेटे वकार अब्बास के साथ मिल कर ताहिर, अंतेश, हरीशचंद्र, गंगा, खेमचंद्र, वगैरह जमीन पर कब्जा करने और उस पर लोन लेने का धंधा करते हैं. बू अली जाफरी फिल्म अभिनेता जगदीप के नजदीकी रिश्तेदार हैं. इनकी जमीन पर भू-माफियाओं के कब्जे के मसले पर तहसीलदार और राजस्व विभाग के अधिकारी मोटी रिश्वत लेकर चुप बैठे हैं. रिश्वत का लेन-देन खुलेआम बैंकों के जरिए हो रहा है, उसके ठोस प्रमाण शासन में बैठे शीर्ष अधिकारियों को दिए जा रहे हैं, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं हो रही है. खूबी यह है कि जो भू-माफिया दादरी तहसील या नोएडा-ग्रेटर नोएडा में सक्रिय हैं, उनके नाम भू-माफियाओं की सरकारी लिस्ट में दर्ज नहीं किए जा रहे हैं.
विरासत में धर्म का घालमेल
ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में मुआवजे और लोन की ऐसी लूट मची है कि जो जमीनें ‘कस्टोडियन’ खाते में दर्ज हैं, उनके भी फर्जी वारिस उभर कर सामने आ रहे हैं. जो जमीनें हिंदू दलितों के नाम की हैं उन जमीनों के मुसलमान वारिस उभर कर सामने आ रहे हैं और आधिकारिक तौर पर यह बयान दे रहे हैं कि हिंदू दलित उनके नाना थे या कोई अन्य रिश्तेदार थे. आप यह जानते हैं कि विभाजन के वक्त जो लोग पाकिस्तान चले गए उनकी जमीनें ‘कस्टोडियन’ खाते में दर्ज हो गईं और उन्हें सरकारी जमीन मान लिया गया. मुआवजा पाने की होड़ में हिंदू दलित की जमीनों के सवर्ण मुसलमान वारिस या सवर्ण हिंदू वारिसों की कतार लगी है. उदाहरण के तौर पर खाता संख्या-711 व खसरा संख्या-909 का एक नायाब मसला सामने आया.
इसमें जमीन के मालिक जारचा गांव के बुधवन जाटव पुत्र मोहन जाटव हैं, लेकिन उनके वारिस होने का दावा ठोक रहे हैं तहसीन अब्बास, गौहर अब्बास, गय्यूर अब्बास और जरगाम अब्बास. वारिस होने का दावा ठोकने वाले लोगों का कहना है कि बुधवन जाटव उनके नाना मज़हर हुसैन के सगे भाई थे. फिर ये दावेदार यह भी कहते हैं कि वे बुधवन जाटव की भतीजी मजहर बानो के पुत्र हैं. उन्हें यह जमीन 28 अगस्त 2008 को पंजीकृत वसीयत के जरिए मिली. अब किसी को भी इस विचित्र किस्से का न सिरा समझ में आ रहा है और न उसका कोई छोर मिल रहा है. हिंदू दलित जाति के बुधवन जाटव के रिश्तेदारों के मुसलमान बन जाने का कोई रिकॉर्ड भी नहीं है और न जमीन के दावेदार ऐसा कोई रिकॉर्ड उपलब्ध करा पा रहे हैं. राजस्व विभाग के एक अधिकारी ने बताया कि उक्त चारों दावेदार क्षेत्र के बड़े कुख्यात भू-माफिया हैं.
उनके पिता अज़हर अब्बास पहले जारचा गांव के प्रधान थे. उन्होंने ही चकबंदी अधिकारी को ‘प्रभाव’ में लेकर ग्रामसभा की ‘कस्टोडियन’ और अन्य सरकारी जमीनों को अपने बेटों के नाम दर्ज करने का फर्जीवाड़ा रचा था. उस ग्राम प्रधान ने अपने बेटों को जारचा गांव की लगभग 80 बीघा जमीन का मालिक बना दिया था. इस अंधेरगर्दी की सीबीआई से जांच कराने की मांग की जा रही है. स्पष्ट है कि फर्जी दस्तावेजों को आधार बना कर भू-माफिया मुआवजे भी ले रहे हैं और उन्हीं जमीनों को बंधक रख कर बैंक से लोन भी ले रहे हैं. इस पर प्रशासन तंत्र के अधिकारी-कर्मचारी जानबूझ कर अंधे बने हुए हैं. इन भू-माफियाओं और दलालों में से कई लोग जारचा के चर्चित मीर अली हत्याकांड के अभियुक्त भी हैं, लेकिन स्थानीय पुलिस भी इन दबंगों को संरक्षण दे रही है. लोन-लूट में सिंडिकेट बैंक की जारचा शाखा बेहिचक शामिल है और बैंकिंग के नियम-कानून की धज्जियां उड़ा रही है.
जैसा आपको ऊपर बताया कि जो जमीनें ‘कस्टोडियन’, दलित वर्ग या सरकारी भूमि में दर्ज हैं, उनके दस्तावेजों में आपराधिक हेराफेरी करके करोड़ों रुपए का मुआवजा भी उठाया जा रहा है और उन्हीं जमीनों को बंधक रख कर बैंक से लाखों रुपए का लोन भी लिया जा रहा है. इसका एक नायाब उदाहरण देखिए. खाता संख्या-514 के खसरा नंबर-491 की जमीनों के मालिकों को सरकारी मुआवजा देने के बाद ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण ने खरीदार के रूप में उन जमीनों को अधिग्रहीत करके उसे तहसीलदार के नाम बैनामा कर दिया. लेकिन भू-माफियाओं ने उन्हीं जमीनों को बंधक रख कर सिंडिकेट बैंक से लाखों रुपए का लोन ले लिया. ऐसे दर्जनों उदाहरण सामने आए हैं और ‘चौथी दुनिया’ के पास इसके दस्तावेजी प्रमाण हैं.
ऐसे ही अजीबोगरीब उदाहरणों का एक और हिस्सा आपके सामने है. 28 अप्रैल 2006 को राजस्व परिषद के सदस्य वरिष्ठ आईएएस टी जॉर्ज जोसफ ने आदेश जारी कर जिन जमीनों को बेचने, बंधक रखने और ट्रांसफर करने पर रोक लगा थी और जिसे बाकायदा सरकारी भूमि घोषित कर दिया था, उन जमीनों को भी बंधक रख कर सिंडिकेट बैंक ने भू-माफिया जरगम अब्बास, गय्यूर अब्बास, तहसीन अब्बास, गौहर अब्बास, शन्नू उर्फ कैसरुल इस्लाम, वक़ार उर्फ कैसरुल इस्लाम, ताहिर, नईम अब्बास, मज़हर अब्बास उर्फ बाबू और अकील राज चौहान उर्फ अकीलुद्दीन को लाखों रुपए के लोन दे दिए. इन भू-माफियाओं ने जिन जमीनों को अपना बताया था, वे सारी जमीनें ग्रामसभा यानि, सरकार की थीं. यहां तक कि इलाके के भू-माफियाओं और दलालों के जरिए सारे अधिकारी वर्ल्ड बैंक की फंडिंग से चल रही भारत सरकार की राष्ट्रीय राजमार्ग योजना और ग्रेटर नोएडा औद्योगिक विकास प्राधिकरण के विकास के लिए दी जा रही अरबों रुपए की धनराशि की भीषण लूट में लगे हैं.
एक ही ज़मीन पर बार-बार दिया लोन
गौतमबुद्ध नगर स्थित दादरी तहसील के जारचा गांव की किसी भी जमीन की खरीद-बिक्री पर राजस्व परिषद की तरफ से रोक लगा दी गई थी. राजस्व परिषद सदस्य टी जॉर्ज जोसफ के उक्त आदेश के हवाले से दादरी के एसडीएम ने भी आदेश (पत्रांकः 2654/रीडर-एसडीएम दादरी/06 दिनांकः 28-4-06) जारी कर ग्राम जारचा के कुल नम्बरों पर विक्रय करने, बंधक रखने और हस्तांतरण करने पर रोक लगा दिया था. इसके बावजूद जारचा की जमीनों को बंधक रखने और सिंडिकेट बैंक द्वारा आंख मूंद कर लोन जारी करने का खेल जारी रहा. लोन लूट का यह खेल अब भी जारी है.
दादरी के एसडीएम ने जारचा के खाता संख्या 439 की जमीनों पर तहसीन अब्बास, जरगांव अब्बास, गौहर अब्बास, गय्यूर अब्बास पुत्र अजहर अब्बास का नाम रद्द करते हुए पूर्व की तरह उस जमीन को ग्रामसभा में निहित कर दिया था. इसके बावजूद सिडिकेट बैंक ने उसी जमीन को बंधक रख कर जरगम अब्बास को 49 हजार रुपए का लोन जारी कर दिया. सिंडिकेट ने उसी जमीन के एवज में गय्यूर अब्बास को भी 49 हजार का लोन दे दिया. सिंडिकेट बैंक ने तहसीन अब्बास को पौन पांच लाख रुपए का लोन दिया. सिंडिकेट बैंक ने प्रतिबंधित जमीन में से ही एक हिस्से को बंधक रख कर गौहर अब्बास को साढ़े चार लाख रुपए का लोन जारी कर दिया. जरगांव अब्बास को भी सिंडिकेट बैंक से एक लाख 70 हजार रुपए का लोन मिल गया. उन्हीं जमीनों को बंधक रख कर गय्यूर अब्बास ने सिंडिकेट बैंक से फिर दो लाख 90 हजार का लोन ले लिया. लोन की लूट बेतहाशा जारी रही. फिर 2010 में गौहर अब्बास ने उसी जमीन को बंधक रख कर एक लाख 40 हजार का लोन ले लिया.
इस तरह अन्य जमीनों को भी बंधक रख कर सिंडिकेट बैंक से लोन लेने का खेल जारी रहा. 2012 में गौहर अब्बास ने तीन लाख का लोन लिया तो उसी साल गय्यूर अब्बास ने भी तीन लाख का लोन ले लिया. इस बीच दादरी तहसील ने खाता नंबर 514 के तहत खसरा नंबर 491 की जमीन से तहसीन अब्बास, जरगांव अब्बास, गौहर अब्बास और गय्यूर अब्बास का नाम खारिज कर दिया. लेकिन लोन का खेल बंद नहीं हुआ. वर्ष 2015 में जरगांव अब्बास ने उस पर छह लाख का लोन लिया तो गय्यूर अब्बास ने वर्ष 2016 में पौने छह लाख रुपए का लोन ले लिया. अगले साल 2017 में जरगांव अब्बास को सिंडिकेट बैंक ने ढाई लाख रुपए का लोन दे दिया.
फेल हो गया टोटल, एंटी भू-माफिया पोर्टल
सरकार की ओर से चलाए गए एंटी भू-माफिया अभियान को धार देने के इरादे से ‘एंटी भू-माफिया पोर्टल’ शुरू किया गया था, जिसमें आम नागरिक ठोस प्रमाण के साथ अपनी शिकायतें पोर्टल पर डाल सकें, ताकि शासन त्वरित कार्रवाई सुनिश्चित करा सके. लेकिन शासन तंत्र ने पोर्टल का हाल बेहाल कर रखा है. पोर्टल पर दर्ज कराई गई शिकायतों पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही और बचने के लिए पोर्टल को अपडेट भी नहीं किया जाता. पोर्टल को इस लायक नहीं छोड़ा गया है कि भू-माफियाओं के खिलाफ की गई कार्रवाइयों से आम नागरिक अवगत हो सकें. यह कोई तकनीकी या मानवीय भूल नहीं है, यह सुनियोजित है. नौकरशाह बहुत शातिर हैं, वे ऐसा रास्ता नहीं खोलते, जिससे वे खुद पकड़े जाएं.
ऊपर आपको नोएडा-ग्रेटर नोएडा प्राधिकरण की करतूतें बताईं. प्रदेश के सारे प्राधिकरणों के कृत्य एक जैसे हैं. पूरे प्रदेश में प्राधिकरण और सम्बन्धित तहसीलों के अधिकारी भू-माफियाओं और दलालों के साथ लिप्त हैं. राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र के नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद से लेकर लखनऊ, वाराणसी, गोरखपुर, इलाहाबाद, कानपुर, बरेली से इलाहाबाद तक जहां भी नजर दौड़ा लें, सभी विकास प्राधिकरणों का काम किसानों की जमीनें छीनना और भू-माफियाओं को कब्जा दिलाना रह गया है. प्रदेश के सभी जिलों के विकास प्राधिकरण भू-माफियाओं के चंगुल में हैं. शहरों के कीमती प्लॉट्स पहले ही भू-माफियाओं, दलालों या दबंग पूंजीपतियों को आवंटित कर दिए जाते हैं. कोई शिकायत करता है तो उसे पोर्टल के जाल में फंसा दिया जाता है. भ्रष्ट अधिकारी सार्वजनिक भूमि और पार्कों तक को बेच डाल रहे हैं. इलाहाबाद का उदाहरण सामने है जहां एशिया का सबसे बड़ा नेहरू पार्क बनाने के नाम पर किसानों की करीब 50 एकड़ जमीन अधिग्रहीत की गई, लेकिन पार्क नहीं बना. किसानों को मुआवजा भी नहीं दिया और जमीन की प्लॉटिंग करके उसे बिल्डर रूपधारी भू-माफियाओं के हाथों बेच डाला गया.
यही हाल राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में शामिल गाजियाबाद में हिंडन नदी के किनारे साढ़े तीन सौ एकड़ में प्रस्तावित सिटी फॉरेस्ट का हुआ. गाजियाबाद विकास प्राधिकरण का यह प्रोजेक्ट आज भू-माफियाओं के कब्जे में है. वहां दुकानें लगाने, कैंटीन चलाने, झील में नाव चलाने, जीप सफारी, घोडा और ऊंट सफारी से लेकर वाहन स्टैंड तक के सारे ठेके माफिया के हाथ में हैं.
क्या भू-माफियाओं और अधिकारियों की इन करतूतों की जानकारी ‘एंटी भू-माफिया पोर्टल’ पर दर्ज नहीं कराई जातीं? शिकायतें खूब दर्ज होती हैं, लेकिन उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती. उल्टा लोगों में यह भय व्याप्त हो गया है कि पोर्टल पर शिकायत दर्ज कराने के बाद अधिकारी ही माफिया को शिकायतकर्ता के बारे में बता देते हैं और शिकायतकर्ता की जान उल्टे फंस जाती है. यहां तक कि ‘एंटी भू-माफिया पोर्टल’ या ‘जन सुनवाई पोर्टल’ को ही भ्रष्ट अधिकारियों ने वसूली का जरिया बना लिया है. इसका भी एक नायाब उदाहरण देखिए. प्रतापगढ़ जिले में रानीगंज तहसील के नजियापुर गांव में भू-माफियाओं ने चक रोड पर ही कब्जा कर लिया. इसकी शिकायत की गई तो सरकारी कारिंदों का जो जवाब आया उसे सुनें तो राजू श्रीवास्तव का चुटकुला फेल.
खंड विकास अधिकारी ने रिपोर्ट दी कि मौके पर कोई चक रोड ही नहीं है. राजस्व अधिकारी की रिपोर्ट आई कि मौके पर चक रोड बिल्कुल खाली है, उस पर कोई कब्जा नहीं है. इस हास्यास्पद जवाब के बाद शिकायत बाकायदा ‘जन सुनवाई पोर्टल’ पर अपलोड की गई. फिर क्या था, राजस्व विभाग के घूसानंद अधिकारियों ने पोर्टल पर फर्जी आख्या (फेक स्टेटस रिपोर्ट) डाल दी और भू-माफियाओं के खिलाफ कार्रवाई हो गई. दुखद किंतु दिलचस्प तथ्य यह है कि फेक-रिपोर्ट के साथ-साथ कार्रवाई के फर्जी दस्तावेज भी पोर्टल पर अपलोड कर दिए गए. मॉनिटरिंग की कोई व्यवस्था नहीं है, और न शासन को इसकी चिंता है.
… पर असली भू-माफिया हैं कहां?
गौतम बुद्ध जिला प्रशासन की सूची में नोएडा के 43 भू-माफिया के नाम हैं. जानकार बताते हैं कि नोएडा और ग्रेटर नोएडा क्षेत्र में खुला आखेट कर रहे भू-माफियाओं के नाम सरकारी लिस्ट में जानबूझ कर दर्ज नहीं किए जा रहे. अगर उनके नाम लिस्ट में दर्ज हो गए तो सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की बेतहाशा होने वाली आमदनी पर कुल्हाड़ी लग जाएगी.
इस वजह से भू-माफियाओं को सरकारी अधिकारी और पुलिस ही संरक्षण दे रही है. गौतम बुद्ध जिले के जो 43 माफिया लिस्टेड हैं, उनमें टीटू उर्फ बीटू पुत्र शाहमल निवासी बहलोलपुर थाना फेज़-3 नोएडा, रवि यादव, गोलू यादव पुत्र महावीर निवासी गढ़ी थाना फेज़-3 नोएडा, अनिल विश्वकर्मा पुत्र डालचंद्र निवासी गढ़ी चौखंडी थाना फेज़-3 नोएडा, जग्गी यादव पुत्र रमेश निवासी बहलोलपुर थाना फेज़-3 नोएडा, रामभूल पुत्र फूलसिंह निवासी गढ़ी चौखंडी थाना फेज़-3 नोएडा, देवेंद्र पुत्र साहब सिंह, धर्म सिंह, इंदर, चतर पुत्र मवासी, मवासी पुत्र वलुवा निवासी गढ़ी कस्बा थाना दनकौर, मनीष पुत्र प्रकाश चंद्र निवासी मोहल्ला प्रेमपुरी कस्बा थाना दनकौर, अंतराम पुत्र बदौली, बिंदर पुत्र अंतराम, दिनेश, देवी पुत्र रघुवीर, सपन पुत्र संतराम निवासी मोहल्ला गढ़ी कस्बा थाना दनकौर, रिंकू पुत्र जगत सिंह, सुंदर पुत्र राजाराम, जगत सिंह पुत्र राजाराम, प्रवीन पुत्र करतार निवासी गेझा थाना फेज़-2 नोएडा, नितिन यादव पुत्र मिंटर यादव, लिटिल यादव पुत्र जगवीर निवासी ग्राम गढ़ी चौखंडी थाना फेज़-3 नोएडा, करतार सिंह पुत्र राजाराम निवासी गेझा थाना फेज़-2 नोएडा, विक्रम पुत्र स्व. मामचंद्र निवासी निठारी सेक्टर-31 नोएडा थाना सैक्टर-20 नोएडा शामिल हैं.
योगी क्यों नहीं कर पाए मॉनिटरिंग?
प्रदेश के आम लोगों के मन में यह स्वाभाविक प्रश्न उठता है कि जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि वे एंटी भू-माफिया अभियान की खुद मॉनिटरिंग करेंगे तो वे ऐसा क्यों नहीं कर पाए? कहीं वे भू-माफियाओं के दबाव में तो नहीं आ गए? कहीं मुख्यमंत्री के ऊपर पार्टी संगठन के अलमबरदारों से दबाव तो नहीं पड़ गया कि वे सामर्थ्यवान भू-माफियाओं पर सख्ती न बरतें? पारदर्शिता के हिमायती मुख्यमंत्री को इन सवालों का ईमानदार जवाब देना चाहिए. पिछले साल जून महीने की 23 या 24 तारीख रही होगी जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भू-माफियाओं के खिलाफ सख्त अभियान को धार देने के लिए ‘एंटी भू-माफिया टास्क फोर्स’ और ‘एंटी भू-माफिया पोर्टल’ शुरू किया था. तब योगी ने कहा था कि वे इस अभियान की खुद मॉनिटरिंग करेंगे.
योगी ने उस वक्त कहा था कि प्रदेश में 1035 भू-माफियाओं की शिनाख्त की गई है, उनमें 42 पर गैंग्स्टर एक्ट लगा है और 70 भू-माफियाओं पर आपराधिक मुकदमे दर्ज कर कार्रवाई की गई है. फिर सरकार ने शब्दावली बदली और माफियाओं के बजाय अतिक्रमणकारी शब्द का इस्तेमाल शुरू किया. सरकार ने कहा कि 153808 अतिक्रमणकारियों को चिन्हित किया गया, जिनमें 940 मामलों में कानूनी कार्रवाई की गई है. तब सरकार ने कहा था कि 6,794 हेक्टेयर भूमि अवैध कब्जे से कराई गई है. ये जमीनें किस तरह की थीं और भू-माफिया या अतिक्रमणकारी कौन थे, इसका ब्यौरा सरकार ने जनता के समक्ष कभी नहीं रखा.
थलसेना और वायुसेना की ज़मीनों पर भी क़ब्ज़ा कर रहे हैं भू-मा़िफया
उत्तर प्रदेश के भ्रष्ट नौकरशाहों की कृपा से भू-माफियाओं का मन इतना बढ़ा हुआ है कि वे थलसेना और वायुसेना की जमीनें भी कब्जा कर रहे हैं और उन जमीनों पर बाकायदा फार्म हाउसेज़ डेवलप करा रहे हैं. अभी कुछ ही अर्सा पहले नोएडा में वायुसेना की 80 एकड़ जमीन मुक्त कराई गई थी, जिस पर कई फार्म हाउसेज़ बने हुए थे. इस कार्रवाई पर जिला प्रशासन से लेकर पुलिस तक ने अपनी-अपनी पीठ खुब ठोकी. जबकि वास्तविकता यह है कि नोएडा के नंगला नंगली और नंगली साकपुर गांवों में वायु सेना की 340 एकड़ जमीन पर भू-माफियाओं ने कब्जा जमा रखा है.
वायुसेना के पास कुल 482 एकड़ जमीन थी, जिसमें से 142 एकड़ जमीन हरियाणा के फरीदाबाद में लगती है. वहां भी वायुसेना की जमीन अवैध कब्जे में ही है. विडंबना यह है कि वायुसेना को वर्ष 1950 में ही बॉम्बिंग रेज बनाने के लिए 482 एकड़ जमीन दी गई थी, लेकिन उस जमीन पर वायुसेना को कभी कब्जा मिला ही नहीं. अभी जो 80 एकड़ जमीन खाली कराई गई उस पर 41 फार्म हाउसेज़ बने थे. वायुसेना की ऐसी सैकड़ों एकड़ जमीन पर भू-माफियाओं का कब्जा है, लेकिन इसे मुक्त कराने में सरकार फेल है.
ऐसा ही हाल थलसेना की जमीनों का भी है. केवल राजधानी लखनऊ ही नहीं, बल्कि कानपुर, गोरखपुर, मेरठ, वाराणसी, फैजाबाद, इलाहाबाद सब तरफ सेना की जमीनों पर माफियाओं और नेताओं का कब्जा है. सेना की जमीन पर शान से अवैध बिल्डिंग्स, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स और कोठियां खड़ी हैं. लखनऊ में सेना की ट्रांस गोमती राइफल रेंज की 195 एकड़ जमीन, अमौसी सैन्य क्षेत्र की 185 एकड़ जमीन, कुकरैल राइफल रेंज की सौ एकड़ जमीन, बख्शी का तालाब की 40 एकड़ जमीन और मोहनलालगंज क्षेत्र में 22 एकड़ जमीन भू-माफियाओं के कब्जे में है.
लखनऊ में सुल्तानपुर रोड पर सेना की फायरिंग रेंज के बड़े हिस्से की प्लॉटिंग तक कर दी गई और जमीनें खुलेआम बिक गईं. सरकारी उपक्रम आवास विकास परिषद ने गोसाईंगंज थाने में प्रॉपर्टी डीलर के वेश में काम करने वाले भू-माफियाओं के खिलाफ मुकदमा भी दर्ज कराया, लेकिन दुस्साहसी भू-माफियाओं ने सरकारी सूचना बोर्ड उखाड़ फेंका जिस पर लिखा था कि यह सेना की फायरिंग रेंज की जमीन है. ट्रांस गोमती राइफल रेंज की 90 एकड़ जमीन और अमौसी की जमीनों पर भू-माफियाओं का कब्जा है. कुकरैल में तो सेना की करीब 50 एकड़ जमीन पर बड़ी इमारतें और दुकानें बन चुकी हैं.
छावनी से बाहर सेना की करीब छह सौ एकड़ जमीन उत्तर प्रदेश सरकार से ही विवाद में फंसी हुई है. कानपुर में सेना की जमीन पर भू-माफियाओं ने अलग-अलग इलाकों में आधा दर्जन बस्तियां बसा रखी हैं. कानपुर शहर के वार्ड नम्बर एक में भज्जीपुरवा, लालकुर्ती, गोलाघाट, पचई का पुरवा जैसी कई बस्तियां बसी हैं. बंगला नम्बर 16 और बंगला नम्बर 17 की ओर जाने वाले दो इलाकों में अवैध बस्तियां बसी हुई हैं, भू-माफियाओं के आधिपत्य के कारण उन्हें हटाना प्रशासन के बूते में नहीं है. कानपुर छावनी क्षेत्र में बना आलीशान स्टेटस क्लब ही अवैध कारगुजारियों का भव्य-भद्दा उदाहरण है. सैन्य क्षेत्र में यह क्लब कैसे अस्तित्व में आया और इस एवज में किसने क्या-क्या पाया, सरकार और सेना दोनों ही इसका जवाब तलाशने से कन्नी काट लेती है.
गोरखपुर में गगहा बाजार स्थित सेना के कैंपिंग ग्राउंड की 33 एकड़ जमीन में से करीब दस एकड़ जमीन पर भू-माफियाओं का कब्जा है. गोरखपुर के सहजनवा, महराजगंज जिले के पास रनियापुर और नौतनवां में सेना की जमीनों पर अवैध कब्जे हैं. इलाहाबाद शहर में सेना के परेड ग्राउंड की करीब 50 एकड़ जमीन कब्जे में है. यहां भू-माफियाओं ने अवैध बस्तियां आबाद कर रखी हैं. 32 चैथम लाइंस, 6 चैथम लाइंस और न्यू कैंट में भी सेना की जमीन पर अवैध कब्जा है. मेरठ छावनी क्षेत्र तो मॉल, शॉपिंग कॉम्प्लेक्स एवं सिविल कॉलोनी में तब्दील हो चुका है.
लूट में खुद लिप्त है तो जवाब क्या देगा सिंडिकेट बैंक!
गैर कानूनी तरीके से लोन दिए जाने, एक ही जमीन को बार-बार बंधक रख कर लोन लेने-देने का क्रम जारी रखने, सरकारी जमीनों को भी बंधक रख कर कुछ खास लोगों द्वारा लोन लिए जाने के मसलों पर सिंडिकेट बैंक का भौंडा जवाब माफियाओं और बैंक की मिलीभगत (नेक्सस) उजागर करता है. सरकारी जमीनों को बंधक रख कर लिए गए लाखों रुपए के लोन का आरटीआई के जरिए ब्यौरा मांगने पर समाजसेवी अल्लामा जमीर नकवी को भेजे गए जवाब में सिंडिकेट बैंक कहता है कि ग्राहकों की गोपनीयता का ध्यान रखते हुए बैंक प्रबंधन इसका ब्यौरा नहीं दे सकता. जबकि भाजपा सांसद साक्षी महाराज ने सिंडिकेट बैंक के जोनल प्रबंधक डी सम्पत कुमार चारी को पूर्व में ही यह जानकारी दे दी थी कि सिंडिकेट बैंक की जारचा शाखा के अधिकारी भू-माफियाओं से साठगांठ करके सरकारी भूमि पर भी धड़ल्ले से बड़े ऋण जारी कर रहे हैं. सांसद ने बैंक प्रबंधन को जारचा शाखा के भ्रष्टाचार की गहराई से जांच करने की भी मांग की थी. लेकिन बैंक प्रबंधन ने सांसद की मांग हवा में उड़ा दी.