21 अक्टूबर को दक्षिण कश्मीर के कुलगाम जिले में तीन मिलिटेंट समेत सात आम लोग मारे गए थे और दर्जनों ज़ख़्मी हुए थे. कश्मीर दौरे पर आए गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने 23 अक्टूबर को श्रीनगर में अपने प्रेस कांफ्रेंस के दौरान इस घटना पर अफसोस जाहिर किया था.
उस समय उन्होंने यह भी कहा था कि नई दिल्ली कश्मीर में किसी के साथ भी बातचीत के लिए तैयार है. उन्हें यह बात जोर देकर कही कि सरकार बातचीत के लिए गंभीर है. मैं इमानदारी के साथ कहता हूं कि जो लोग भी बातचीत करना चाहते हैं, हम उनसे बातचीत के लिए तैयार हैं.
गृह मंत्री के इस सकारात्मक बयान के बावजूद बहुत कम लोगों को यकीन है कि नई दिल्ली घाटी में इस समय बातचीत की प्रक्रिया शुरू करेगी. समीक्षकों का कहना है कि एक ऐसे समय में जब 2019 के चुनावों की प्रक्रिया शुरू होने वाली है, भाजपा सरकार कश्मीर में अलगाववादियों के साथ बातचीत शुरू करने की स्थित में नहीं होगी.
जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आएंगे, अलगाववादियों और पाकिस्तान के प्रति मोदी सरकार के तेवर और सख्त होते जाएंगे. जहां तक राजनाथ सिंह के बयान का सम्बन्ध है, यह उनकी तरफ से जारी होने वाला ऐसा कोई पहला बयान नहीं है.
इसी साल 26 मई को उन्होंने अपने एक बयान में कहा था कि केंद्र सरकार न केवल हुर्रियत नेताओं, बल्कि पाकिस्तान के साथ भी बातचीत के लिए तैयार है. लेकिन उसके कुछ दिनों बाद ही भाजपा के कुछ नेताओं की तरफ से परस्पर विरोधी बयान आने शुरू हो गए, जिसके बाद गृहमंत्री के बयान की अहमियत समाप्त हो गई.
उनके पूर्व के बयानों का हश्र देखते हुए समीक्षक उनके मौजूदा बयान को अधिक महत्व नहीं दे रहे हैं. उनका कहना है कि मोदी सरकार इस समय राजनैतिक प्रक्रिया शुरू करने की स्थिति में नहीं है. क्योंकि पिछला चुनाव भाजपा राम मंदिर निर्माण, समान नागरिक संहिता लागू करने और आर्टिकल 370 समाप्त करने के साथ-साथ विकास, रोज़गार, मंहगाई और कालाधन के मुद्दों पर जीता था.
लेकिन यह सरकार उनमें से कोई भी वादा पूरा नहीं कर पाई है. समीक्षकों का मानना है कि अबकी बार वोटरों को लुभाने के लिए भाजपा देश में हिंदुत्व कायम करने, पाकिस्तान की ईंट से ईंट बजाने और कश्मीरी अलगाववादियों को सबक सिखाने जैसे भावनात्मक नारों का इस्तेमाल करेगी और ऐसी स्थिति में यह संभव ही नहीं कि मोदी सरकार कश्मीर में बातचीत की कोई प्रक्रिया शुरू करे. इसका मतलब यह निकाला जा सकता है कि निकट भविष्य में कश्मीर में जारी हिंसा की लहर से छुटकारा मिलने की कोई उम्मीद नहीं है.