किसानों की समस्या को लेकर हाल में महाराष्ट्र के भंडारा-गोंदिया के सांसद नाना पटोले का भाजपा की प्राथमिक सदस्यता और लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना एक ऐसी घटना थी, जो एक साथ कई कहानियां बयां करती थी. यूं तो मोदी सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर पिछले वर्षों के दौरान पार्टी के अन्दर से विरोध की कुछ खुली और दबी-दबी आवाजें आती रही हैं, लेकिन पटोले पहले सांसद हैं जिन्होंने एक साथ पार्टी और संसद की सदस्यता छोड़ने का फैसला किया. पटोले ने मुख्य रूप से किसानों की समस्या के प्रति केंद्र और राज्य सरकारों की उदासीनता के चलते अपना इस्तीफा दिया था.

दरअसल पटोले का इस्तीफा अचानक नहीं आया है. वो पहले से ही केंद्र और राज्य सरकार की नीतियों, खास तौर पर किसान विरोधी नीतियों की आलोचना करते आये थे. अपने त्यागपत्र के साथ संलग्न पत्र में उन्होंने अपने इस फैसले के लिए 14 कारण बताए, जिनमें प्रमुख रूप से किसानों की आत्महत्या, जीएसटी, और नोटबंदी शामिल हैं. वे पहले भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आड़े हाथों लेते रहे हैं. इस वर्ष अगस्त महीने में उन्होंने आरोप लगाया था कि मोदी सवाल सुनना पसंद नहीं करते. उन्होंने गुजरात चुनाव के दौरान आये नीच विवाद का हवाला देते हुए अपना त्यागपत्र लिखा कि प्रधानमंत्री इस शब्द से आहत हुए, क्योंकि वे ओबीसी जाति से सम्बन्ध रखते हैं, लेकिन मैं सबको यह बताना चाहता हूं कि उन्होंने पार्टी के हर ओबीसी एमपी और कार्यकर्ता का अपमान किया है.

यह तो स्पष्ट है कि पटोले ने अपने इस्तीफे का मुख्य कारण केंद्र और महाराष्ट्र सरकार की किसानों की समस्याओं के प्रति उदासीनता को बताया है. पटोले के इस आरोप की पुष्टि राज्य सरकार द्वारा जारी आंकड़ों से भी हो जाती है. एक सवाल के जवाब में महाराष्ट्र सरकार के सहकारिता मंत्री सुभाष देशमुख ने विधान सभा को बताया था कि इस वर्ष जून और अक्टूबर के दरम्यान 1254 किसानों ने आत्महत्या की. यदि इन आंकड़ों में जनवरी से मई तक की संख्या को मिला लिया जाए तो इस वर्ष आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या दो हज़ार का आंकड़ा पार कर जाती है. एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्य में इस वर्ष के दस महीनों में आत्महत्या करने वाले किसानों की संख्या 2414 है. गौरतलब है कि जब से महाराष्ट्र सरकार ने 34 हज़ार करोड़ की ऋण मा़फी की घोषणा की है तब से अब तक 1020 किसानों ने अपनी जान दे दी है.

अपने त्यागपत्र में पटोले ने यह भी आरोप लगाया है कि इस मामले को उन्होंने पार्टी में और पार्टी के वरिष्ठ नेताओं के समक्ष उठाने की कोशिश की, लेकिन कहीं भी उनकी सुनवाई नहीं हुई. उक्त आंकड़ों के मद्देनज़र पटोले के आरोप में सत्यता नज़र आती है कि सरकार केवल दावे कर रही है ज़मीनी स्तर पर कोई काम नहीं हो रहा है, सही प्रतीत होता है. अभी लाखों किसानों की आत्महत्या के बाद भी सरकारें आत्महत्या की परिभाषा में फंसी हुई हैं. किसानों को राहत देने के लिए जिस पैकेज की घोषणा होती है वो ज़रूरतमंदों तक पहुंच नहीं पाती. वही हाल महाराष्ट्र सरकार द्वारा 34 हज़ार करोड़ की ऋण मा़फी की घोषणा की भी है.

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