santoshbhartiya-sir-600कौन होगा उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का चेहरा जो पार्टी को नंबर दो या नंबर तीन की स्थिति से निकाल कर प्रथम श्रेणी में ला सके यानी चुनाव जिता सके. बहुत सारे नाम चर्चा में हैं और उत्तर प्रदेश में कई ऐसे लोग हैं जो अपना नाम आगे लाना चाहते हैं. सबसे पहला नाम भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष केशव प्रसाद मौर्या का सामने रखते हैं, लेकिन उनके हाथ में तो अभी उत्तर प्रदेश की पूरी कमान भी नहीं मिली है. इसलिए जैसे ही उनका नाम लेते हैं, वैसे ही हवा में कपूर की तरह उनका नाम गायब हो जाता है. वरुण गांधी की बहुत दिनों से ख्वाहिश थी और उन्होंने उत्तर प्रदेश में घूम-घूमकर अपने को स्थापित करने की कोशिश भी की, इलाहाबाद जैसी जगहों पर पोस्टर-बैनर भी लगे, लेकिन वरुण गांधी को संभवत: संघ नहीं चाहता और न भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता चाहते हैं. इसके बाद दिनेश जी का नाम आता है जो संघ से जुड़े हैं, लेकिन वे भी जनता के बीच के चेहरे नहीं हैं. इसलिए उन्हें भी किसी मुकाबले में नहीं माना जा सकता.

अब नाम बचता है योगी आदित्यनाथ और स्मृति ईरानी का. स्मृति ईरानी चूंकि अमेठी से चुनाव लड़ना चाहती हैं इसलिए उनका नाम उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए उछालकर उनके समर्थक भविष्य में उन्हें उत्तर प्रदेश से लोकसभा में बड़े नेता के तौर पर पेश करना चाहते हैं ताकि वो स्मृति ईरानी के ग्लैमर के सहारे उन्हें राजनीति में महत्वपूर्ण स्थान दिलवा सकें. लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री पद के लिए स्मृति ईरानी का नाम भारतीय जनता पार्टी के भीतर भी हास्यास्पद बन गया है. सबसे गंभीर नाम योगी आदित्यनाथ का है. योगी आदित्यनाथ महंत अवैधनाथ के शिष्य हैं, जो कभी लोकसभा का चुनाव नहीं हारे. गोरक्षपीठ के अधीश्वर हैं वे भी लोकसभा का चुनाव कभी नहीं हारे.

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उन्होंने पूर्वांचल में हिंदू वाहिनी सेना बना रखी है जिसकी जनता में गहरी पैठ है, लेकिन जिसका अंतर्द्वंद्व हमेशा भारतीय जनता पार्टी से चलता रहता है. योगी आदित्यनाथ का व्यक्तित्व भारतीय जनता पार्टी के नेताओं के बीच सख्त किस्म का रहा है और पिछले लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों की जीत दरअसल मोदी के करिश्मे की जीत थी. उत्तर प्रदेश में उपचुनावों के दौरान योगी आदित्यनाथ ने लव जिहाद को मुद्दा बनाया था. उत्तर प्रदेश की जनता ने उनके इस नारे पर कोई ध्यान नहीं दिया और भारतीय जनता पार्टी को इसका कोई फायदा नहीं मिला. अगर योगी आदित्यनाथ भारतीय जनता पार्टी का चेहरा बनते हैं, तो फिर भारतीय जनता पार्टी अपनी पुरानी रणनीति पर चलने का फैसला करेगी. इसमें कार्यकर्ताओं की सोच होगी कि तेजी से धार्मिक ध्रुवीकरण हो और सारे हिंदू भारतीय जनता पार्टी की तरफ आएं. मुसलमानों को जिधर जाना हो, उधर जाएं.

उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव और मायावती दो बड़े चेहरे हैं, जो लोगों के सामने अपनी बात खुलकर रखते हैं और उन्हें अपनी तरफ खींचने की कोशिश भी करते हैं. अब तक उत्तर प्रदेश में कमोबेश इन्हीं दोनों की सरकारें अदल-बदलकर बनती रही हैं. इस बार चुनाव में भारतीय जनता पार्टी नरेंद्र मोदी की वजह से प्रमुख प्रतिस्पर्धी के तौर पर सरकार बनाने की इच्छाशक्ति के साथ चुनाव में उतरना चाहती है. उसे अपने बीच ऐसा चेहरा तलाशना होगा जो मुलायम सिंह और मायावती की टक्कर का हो. ऐसे सिर्फ दो चेहरे भारतीय जनता पार्टी के पास हैं, एक देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह और दूसरे राजस्थान के राज्यपाल कल्याण सिंह. कल्याण सिंह अपने को राजस्थान में बहुत सुरक्षित मानते हैं और  वे राजस्थान की राजनीति के साथ घुल-मिल भी गए हैं. इसलिए वेे शायद वहां से उत्तर प्रदेश के चुनाव में भारतीय जनता पार्टी का नेतृत्व करने न आना चाहें. उत्तर प्रदेश के पिछड़े समाज के भीतर भारतीय जनता पार्टी के पास कल्याण सिंह का कोई विकल्प नहीं है. इसलिए उनका नाम उत्तर प्रदेश का नेतृत्व करने वालों की चर्चा के दौरान बार-बार उछलता रहता है. राजनाथ सिंह देश के गृहमंत्री हैं, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं, सज्जन पुरुष हैं और इनके अलावा आज की तारीख में भारतीय जनता पार्टी के पास कोई दूसरा चेहरा दिखाई नहीं देता.

दरअसल राजनाथ सिंह के बारे में शुरू से अफवाहों के दौर चलते रहे. राजनाथ सिंह के बारे में जितनी भी अफवाहें रहीं, वो भारतीय जनता पार्टी के भीतर से निकलीं, जिससे लोगों को ये लगा कि राजनाथ सिंह को दिल्ली में सत्ता चलाने वाले खासकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आस-पास के लोग, जिनमें वित्त मंत्री अरुण जेटली का नाम प्रमुख है, पसंद नहीं करते. अगर दिल्ली में मंत्रिमंडल का परिवर्तन हो चुका होता तब शायद स्थिति ज्यादा साफ होती. लेकिन राजनाथ सिंह मजबूरी में ही उत्तर प्रदेश आना चाहेंगे. उन्हें मालूम है कि उत्तर प्रदेश की लड़ाई कितनी कठिन है. अगर राजनाथ सिंह उत्तर प्रदेश आते हैं और वो यहां पर भारतीय जनता पार्टी की सरकार बनवाने में अपने नेतृत्व की कुशलता साबित कर देते हैं, तो फिर राजनाथ सिंह को वैसा ही सम्मान मिलेगा जैसा नरेंद्र मोदी को देश का चुनाव जीतने के बाद मिला था.

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दरअसल, उत्तर प्रदेश में सामाजिक वर्गों का भी एक गणित काम कर रहा है. ब्राह्मण कांग्रेस के साथ बुनियादी तौर पर रहा करता था, लेकिन ब्राह्मण समाज कांग्रेस के बाद मायावती के पास चला गया. पिछली बार ब्राह्मण समाज मायावती से हटकर भारतीय जनता पार्टी की तरफ चला गया. इस बार फिर लगता है कि ब्राह्मण समाज का एक हिस्सा मायावती के पास जाएगा. उसे अब अपने लिए भारतीय जनता पार्टी में कोई आकर्षण नहीं दिखता. कलराज मिश्र उत्तर प्रदेश में ब्राह्मणों के अकेले बड़े नेता हैं, लेकिन उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल में जो स्थान मिला है, उससे ब्राह्मण समाज संतुष्ट नहीं है. पिछड़े वर्ग बड़े पैमाने पर मुलायम सिंह यादव, मायावती और भारतीय जनता पार्टी के बीच बंटे हैं. अब दो वर्ग बचते हैं जिनमें एक राजपूत हैं और दूसरे मुसलमान. मुसलमान समाज उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह के साथ है, लेकिन पिछले दो-तीन साल से उनमें थोड़ी बेचैनी है. इस बेचैनी ने उत्तर प्रदेश चुनाव में किसी विकल्प के अभाव में कोई निश्चित तस्वीर नहीं बनाई है. जहां मायावती मुस्लिम उम्मीदवार देंगी, वहां मुसलमान मायावती के साथ जाएंगे लेकिन आम तौर पर मुसलमान मुलायम सिंह के साथ ही रहेंगे.  यही राजनाथ सिंह के लिए सबसे कठिन परिस्थिति होगी.

उन्हें ठाकुरों या राजपूतों का कितना साथ मिलेगा, यह भी नहीं कहा जा सकता, लेकिन बाक़ी वर्गों को मायावती और मुलायम सिंह से तोड़कर अपने साथ लाना किसी युद्ध से कम नहीं है. इसके बावजूद भारतीय जनता पार्टी के भीतर राजनाथ सिंह का अकेला ऐसा चेहरा है जिसे मुलायम सिंह और मायावती के समक्ष खड़ा किया जा सकता है और उत्तर प्रदेश के सामान्य वोटरों को कहा जा सकता है कि एक ईमानदार, अपेक्षाकृत कम साम्प्रादायिक, मृदुभाषी और सौम्य चेहरे वाला, नेतृत्व कर सकने वाला व्यक्ति भारतीय जनता पार्टी के पास है. भारतीय जनता पार्टी के लिए यह चुनाव जीने और मरने के समान है. अमित शाह ने उत्तर प्रदेश के हर बूथ पर 20 से 30 लोगों की ़फौज बनाने की मुहिम शुरू कर दी है. वैसे उन्होंने यह मुहिम बिहार में भी की थी, लेकिन वहां जो उम्मीदवार चुनाव जीते उन्हें कहीं यह ़फौज बूथ लेवल पर नहीं दिखी. उत्तर प्रदेश में चूंकि भारतीय जनता पार्टी बहुत दिनों से काम कर रही है, इसलिए हो सकता है कि इस बार उनकी बूथ सेना कुछ काम आए. पर सबसे बड़ा सवाल आखिर में फिर वही रह जाता है कि भारतीय जनता पार्टी के पास अगर कोई एक चेहरा नहीं हुआ तो यह सारी क़वायद धरी रह जाएगी. वैसे भारतीय जनता पार्टी चाहे तो बिहार जैसे प्रयोग को फिर दोहरा सकती है. वह उत्तर प्रदेश में किसी को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार न घोषित करे और नरेंद्र मोदी के चेहरे पर ही उत्तर प्रदेश का चुनाव लड़ा जाए.

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