a1मुख्यमंत्री रघुवर दास झारखंड को औद्योगिक हब में परिवर्तित करने के लिए मेट्रो शहर देश के बड़े औद्योगिक शहरों में रोड शो कर निवेशकों को आकर्षित करने में लगे हुए हैं. मुख्यमंत्री का विदेश में भी रोड शो करने का कार्यक्रम है, कुछ उद्योगपति निवेश को लेकर आकर्षित भी हुए हैं, पर अभी तो जो प्रस्ताव मिले हैं, उसमें अधिकांश अस्पताल खोलने एवं मल्टीप्लेक्स को लेकर है. मुख्यमंत्री औद्योगिक निवेश को लेकर अति उत्साहित है और पूरे आत्मविश्वास के साथ यह दावा भी कर रहे हैं कि झारखंड बीस वर्षों में दुनिया का सबसे समृद्धत्तम राज्य बन जायेगा. इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता है कि झारखंड गठन के बाद पहली बार बहुमत में आकर भाजपा की स्थायी सरकार बनी है और उसे कोई भी ठोस फैसले लेने में किसी दल को मनाने की जरूरत नहीं पड़ेगी, पर झारखंड में जो वर्तमान में समस्याएं मौजूद है, उसे सरकार नजरअंदाज कर रही है. सीएनटी एसपीटी एक्ट के कारण पूरे झारखंड में उबाल मचा हुआ है. झारखंडी दल एवं नेता यह कह रहे हैं कि आदिवासियों की एक इंच भी जमीन लूटने नहीं दिया जायेगा, इसे लेकर खुद भाजपा में अंतर्कलह उभर कर सामने आ गया है, तो ऐसे में उद्योगपतियों को आखिरकार मुख्यमंत्री जमीन कैसे दे पाएंगे. नक्सलवाद और अपराध एक बड़ी समस्या है, साथ ही आधारभूत संरचना का भी घोर अभाव है. बिजली के क्षेत्र में आत्मनिर्भर होने की बात मुख्यमंत्री अवश्य करते हैं और सत्ता संभालते ही जीरो पावर कट का दावा उन्होंने किया था, पर सच्चाई कुछ और ही बयां करती है. जीरो पावर कट पर अमल तो नहीं हो पाया, राजधानी रांची में भी गर्मी के दिनों में बिजली की समस्या कुछ ज्यादा ही गहरा जाती है. पांच-पांच घंटे तक का लोड शेडिंग हो जाता है.

झारखंड खनिज संपदाओं से भरा-पूरा राज्य है, भगवान ने अकूट मात्रा में हर तरह के खनिज पदार्थ इस राज्य को दिये हैं, वन संपदा के साथ-साथ प्राकृतिक सौंदर्यता भी है, पर इस राज्य का दुर्भाग्य है कि इसका विकास नहीं हो पाया. इसके खनिज से दूसरे राज्य की बढ़ोतरी तो हो रही है, पर झारखंड एवं इसकी आबादी अभी पिछले पायदान पर ही है. झारखंड की लगभग 52 प्रतिशत आबादी गरीबी रेखा से नीचे जीवन बसर करने को मजबूर है. हर सरकार ने औद्योगिक घरानों को अपने राज्य की ओर आकर्षित करने का प्रयास किया, सभी इसमें सफल भी रहे, पूरे ताम-झाम के साथ एम.ओ.यू. पर हस्ताक्षर हुए, पर कोई भी नया उद्योग जमीन पर नहीं उतर सका. तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुण्डा ने अपने शासनकाल में बड़े-बड़े उद्योगपतियों को अपनी ओर आकर्षित किया. बीस लाख करोड़ से भी ज्यादा के निवेश के प्रस्ताव आये. लक्ष्मीनारायण मित्तल जैसे उद्योगपति ने झारखंड में उद्योग लगाने की इच्छा जाहिर की, एम.ओ.यू. हुए, मित्तल ने अपना कारपोरेट ऑफिस भी खोला. जमीन खरीदने की कार्रवाई तेज हुई, जमीन चिन्हित भी किये गये. रांची के नजदीक तोरपा में मित्तल जैसे उद्योग लगाने को सोचा, पर इस संबंध में आदिवासी संगठनों को जब जानकारी हुए तो विरोध प्रदर्शन शुरू हो गया, मित्तल द्वारा ऊंचे दाम पर जमीन खरीदने की घोषणा के बाद भी जब विरोध होता रहा तो मित्तल ने अपना बोरिया बिस्तर ही समेटना अच्छा समझा और अपना काम समेट कर चले गये. कमोबेश कुछ यही हालात जिंदल, एस.आर. ग्रुप, रिलायंस पावर, अभिजीत एवं अन्य के साथ भी हुआ. सरकारी कंपनियां भी जमीन विवाद से परेशान है. हजारीबाग में एनटीपीसी को काफी विरोध का सामना करना पड़ रहा है, जबकि एन.एच.पी.सी. ने तो कोयलकारों में अपनी विद्युत परियोजना को नहीं शुरू करने की घोषणा कर अपना कार्यालय तक बंद कर दिया.

झारखंड में औद्योगिक घरानों को जमीन मिलना एक मुश्किल काम है, एक तरह से यह टेढ़ी खीर के समान है. अधिकांश जमीन आदिवासियों एवं स्थानीय लोगों की है. राज्य में सीएनटी एसपीटी एक्ट लागू रहने से बाहरी लोग जमीन खरीद नहीं सकते हैं. राज्य सरकार ने इस एक्ट में संशोधन करने की ठानी तो आदिवासी संगठनों सहित आदिवासी विधायक खुलकर सामने आ गये. सत्ताधारी भाजपा भी इस मुद्दे को लेकर दो खेमों में बंट गयी, यहां तक कि भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष ताला मरांडी ने सार्वजनिक तौर पर यह बयान दिया कि इस एक्ट में अगर संशोधन हुआ तो आदिवासी एवं स्थानीय लोग जूते-चप्पल से पीटेंगे. सरकार में शामिल आजसू ने भी इस मुद्दे को लेकर जनांदोलन छेड़ दिया है, तो ऐसे में आखिर सरकार औद्योगिक घरानों को जमीन कहां से मुहैया करायेगी. सरकार के पास अपना कोई भूमि बैंक भी नहीं है, जिससे उद्योगों को जमीन दिया जा सके. इन सब बातों को नजरअंदाज कर मुख्यमंत्री देश-विदेश में रोड शो कर रहे हैं. इस पर करोड़ों रुपये खर्च भी हो रहे हैं. अगर औद्योगिक घराना मुख्यमंत्री की बातों पर विश्वास कर झारखंड में निवेश की इच्छा भी जाहिर करते हैं तो फिर नतीजा सिफर ही निकेला. उद्योग बैठाने के लिए लोग यहां आएंगे फिर जमीन नहीं मिलेगा, तो वापस चले जाएंगे. अगर इस बार फिर पुरानी बातों की ही पुनरावृत्ति हुई, तो इसका दूरगामी प्रभाव भी पड़ सकता है. उसके बाद अगर यहां जमीन भी उपलब्ध रहेगा तो उद्योगपति यहां आने से भी हिचकेंगे.

अतिउत्साह से लबरेज मुख्यमंत्री रघुवर दास फरवरी में रांची में एक बड़ा औद्योगिक सम्मेलन करने जा रहे हैं, इसमें फिक्की एवं सी.आई.आई. बिजनेस पार्टनर हैं. इसमें देश-विदेश के बड़े उद्योगपति शिरकत करेंगे, पुनः एम.ओ.यू. की बातें होंगी, पर नतीजा क्या निकलेगा, यह समय ही बताएगा. उद्योग जमीन पर उतरेंगे या फिर कागजों पर ही रह जाएंगे, यह देखना है.

मुख्यमंत्री अर्जुन मुण्डा के कार्यकाल में भी आये थे निवेश के प्रस्ताव

भाजपा शासित सरकार के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुण्डा ने भी राज्य में औद्योगिक माहौल बनाने का प्रयास किया और इसमें बहुत हद तक सफल भी रहे. निवेशकों का झुकाव झारखंड की ओर हुआ. श्री मुण्डा, मित्तल एवं अंबानी जैसे उद्योगपतियों के साथ एम.ओ.यू. किया. लक्ष्मी नारायण मित्तल स्वयं विदेश से आकर झारखंड में उद्योग स्थापना को लेकर मुख्यमंत्री के साथ गहन मंत्रणा की, पर जमीन विवाद एवं अन्य कारणों से यहां वे उद्योग स्थापित नहीं कर सके और अंततः झारखंड में निवेश से अपना हाथ खींच लिया. कमोबेश यही हाल अंबानी समूह, बिड़ला एवं अन्य औद्योगिक घरानों के साथ ऐसा ही हुआ. तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन मुण्डा एक विजन के तहत काम कर रहे थे. मुण्डा को यह अहसास था कि खनिज संपदाओं से भरपूर इस राज्य की ओर उद्योगपतियों को आकर्षित किया जा सकता है और इसमें वे सफल भी रहे. लगभग 50 लाख करोड़ से भी ज्यादा निवेश के प्रस्ताव आये. बड़े औद्योगिक घरानों के साथ एम.ओ.यू. हुए. पर नतीजा सिफर रहा. औद्योगिक घरानों को कोल ब्लॉक तो आवंटित हो गये, पर सरकार जमीन नहीं दिला सकी. जमीन नहीं मिलने के कारण उद्योगपतियों को निराश हाथ लगी और वे रांची स्थित कार्यालय को समेट कर चले गये.

बीस वर्षों में झारखंड दुनिया का सबसे समृद्ध राज्य होगा : रघुवर

मुख्यमंत्री रघुवर दास यह दावा करते हैं कि झारखंड औद्योगिक निवेश के लिए सबसे अच्छा राज्य है. राज्य में भरपूर मात्रा में खनिज संपदा है. विधि-व्यवस्था की कोई समस्या नहीं है, जबकि उद्योगों के लिए झारखंड में बेहतर आधारभूत संरचना है, पर मुख्यमंत्री दास पूरे आत्मविश्वास से लबरेज होकर कहते हैं कि उद्योगपतियों को जमीन की कोई कमी नहीं होने दी जायेगी. इसके लिए लैंड बैंक बनाये जाने की भी बात मुख्यमंत्री कह रहे हैं. अभी हाल में मेट्रो शहरों में आयोजित रोड शो के दौरान मुख्यमंत्री रघुवर दास ने उद्योगपतियों से बातचीत करते हुए उन्हें आश्वस्त किया था कि झारखंड 10 साल में देश ही नहीं दुनिया का समृद्धतम राज्य होगा. उन्होंने औद्योगिक घरानों से झारखंड में निवेश का अनुरोध भी किया. मुख्यमंत्री का यह भी मानना है कि राज्य में बिजली पानी की कोई कमी नहीं होने दी जायेगी. कुछ नये पावर प्लांट लगाये जा रहे हैं और यह राज्य देश का सबसे बड़ा पावर हब बनेगा. मुख्यमंत्री का यह भी मानना है कि खनिज संपदाओं के साथ ही मानव संपदा की भी कोई कमी नहीं है, बस केवल इन्हें तरासना है. इसके बाद झारखंड को अपेक्षित नतीजे हासिल करने से कोई नहीं रोक सकता है. कौशल विकास योजना के तहत लोगों को प्रशिक्षित किया जा रहा है. झारखंड में विधि-व्यवस्था के सवाल पर मुख्यमंत्री का मानना है कि राज्य में विधि-व्यवस्था अन्य राज्यों से बेहतर है. नक्सलवाद पर काबू पा लिया गया है. नक्सलवाद अब झारखंड की समस्या नहीं रह गयी है, ऐसे भी झारखंड में माओवादी नहीं, बल्कि माओवादी के नाम पर गुंडे हैं. उन्होंने कहा कि राज्य एवं देशहित के साथ निवेशकों की सुरक्षा और सुविधाओं का भी पर्याप्त ख्याल रखा जा रहा है. झारखंड में निवेशकों को किसी भी तरह की समस्या नहीं आयेगी, यह सोचकर निवेशक झारखंड आयें. मुख्यमंत्री ने कहा कि इसी का परिणाम है कि 20 महीने में 21308 करोड़ रुपये का निवेश झारखंड में हुआ है और सभी पर जमीनी स्तर पर काम भी चल रहा है. जमीन के मुद्दे पर मुख्यमंत्री श्री दास का मानना है कि अगर औद्योगिक घराना झारखंड में आता है तो उसे जमीन की कोई कमी नहीं होने दी जाएगी. भूमि बैंक तो बनाया गया है, इसके साथ ही सरकार अपने स्तर से उद्योगपतियों को जमीन उपलब्ध करायेगी.

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