r168602_629756एक बार फिर देश ने स्वतंत्रता दिवस मनाया. वास्तव में स्वतंत्रता के मायने क्या हैं, यह हम सभी को, चाहे वे राजनेता हों, औद्योगिक घरानों के मुखिया हों या सिविल सोसाइटी के लोग हों, सभी को इस प्रश्‍न पर फिर से विचार करना चाहिए. क्या हम उसी राह पर चल रहे हैं, जैसा  संविधान में उल्लिखित है या 1952 से लेकर आज तक संविधान के सभी भाग को धीरे-धीरे विकृत कर रहे हैं? कागजों पर तो हम संविधान के मुताबिक चल रहे हैं, लेकिन हकीकत कुछ और है. उदाहरण के लिए, संविधान में इस बात का उल्लेेख है कि सरकार का चुनाव कैसे होता है और उसके कर्तव्य क्या हैं? सरकार की भूमिका क्या हो, यह भी स्पष्ट है. चुनी हुई सरकार नीतियां बनाए, वह चाहे राजनीतिक हो, आर्थिक या सामाजिक, लेकिन उनका क्रियान्वयन प्रशासनिक अधिकारियों के माध्यम से होना चाहिए. इनमें भारतीय प्रशासनिक सेवा व दूसरी सेवाओं के अधिकारी हैं, जो एक कठिन प्रक्रिया के बाद चयनित होते हैं. इन सेवाओं के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं के माध्यम से कुशल लोगों का चयन होता है. इन नीतियों के क्रियान्वयन के लिए ये अधिकारी सबसे बेहतर साबित हो सकते हैं, लेकिन क्या उनका सही इस्तेमाल हो रहा है?

नहीं, दुर्भाग्य से जो भी राजनीतिक दल चुनकर आए, उन्होंने छोटे-छोटे मुद्दों पर ही अपनी रुचि दिखाई, न कि बड़े व जरूरी विषयों पर. कोई भी राजनीतिक दल उन आधारभूत विसंगतियों को बदलना नहीं चाहता है, जो समूचे देश में व्याप्त हैं. उदाहरण के तौर पर, जब विभाजन हुआ, तो दुर्भाग्य से जिन्ना ने धर्म के आधार पर विभाजन किया. पाकिस्तान का निर्माण भारत में रह रहे मुस्लिमों के लिए हुआ, लेकिन उसी दिन से, जिस दिन से विभाजन हुआ, यह बात स्पष्ट हो गई थी कि भारत में उससे ज्यादा मुस्लिम रह गए, जितने कि विभाजन के बाद पाकिस्तान गए. यह क्या दर्शाता है और जो मुस्लिम भारत में ही रह गए, उन्होंने यहीं पर रहने को क्यों तरजीह दी? क्योंकि महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, सरदार पटेल, मौलाना आजाद ने देश की जनता को यह आश्‍वासन दिया था कि पाकिस्तान एक इस्लामिक राष्ट्र हो सकता है, लेकिन भारत धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र बना रहेगा और सरकार देश के नागरिकों के लिए धर्म को कभी आधार नहीं बनाएगी. धर्म एक व्यक्तिगत मसला है. इसका केवल इतना मतलब है कि आप ईश्‍वर को बस किसी और नाम से याद कर रहे हैं. आप कहीं इसे भगवान कह सकते हैं, कहीं अल्लाह, कहीं जीजस क्राइस्ट, तो कहीं वाहे गुरु. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप उन्हें किस नाम से बुला रहे हैं, लेकिन क्या हम उस भावना के साथ चल रहे हैं? अगर मैं मुसलमान होता (जो कि मैं नहीं हूं) और भारत में रह रहा होता तो निराश होता क्योंकि देश के महान नेताओं ने जो वादा किया था, उसे बाद की सरकारों ने नहीं निभाया.

हां, यह सही है कि हमें सबने केवल वोट बैंक के तौर पर इस्तेमाल किया. इस देश की कुल आबादी का 15 प्रतिशत हिस्सा मुस्लिमों का है, लेकिन उनकी सहभागिता क्या है, यह बड़ा सवाल है? भारतीय प्रशासनिक सेवाओं में दो प्रतिशत, भारतीय पुलिस सेवा में दो प्रतिशत और कॉर्पोरेट जगत में तो बमुश्किल एक या दो प्रतिशत. फिर उन्हें क्या हासिल हुआ? साफ है कि मुसलमानों के साथ समानता का व्यवहार नहीं किया गया. उन्हें बराबर का अवसर नहीं मिला. उन्हें बेहतर शिक्षा नहीं मिली. ज्यादातर मुसलमान आज भी अनपढ़ हैं, अशिक्षित हैं. यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. भारत एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र है, एक समाजवादी और लोकतांत्रिक देश है. अब यह बेहद जरूरी है कि मौजूदा सरकार संविधान में उल्लिखित नीति निर्देशक सिद्धांतों का पालन करे, जिसकी इस समय पूरी अनदेखी की जा रही है. यह मायने नहीं रखता कि सरकार किस दल की है? कोई भी सरकार हो, हमें संविधान में उल्लिखित सिद्धांतों पर चलना ही होगा. सरकार को गरीबों के हित में सोचना होगा. छात्रों, अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, महिलाओं व अल्पसंख्यकों के हितों के बारे में सोचना होगा. कॉर्पोरेट तरीके से चलकर यह हासिल नहीं हो पाएगा.

गरीबी के बारे में जो आंकड़े हैं, वे शर्मनाक हैं. वैसे, आंकड़े महत्वपूर्ण नहीं हैं, लेकिन जरूरी यह है कि हमें गरीबों के लिए कुछ करना चाहिए. मनरेगा और खाद्य सुरक्षा जैसे कार्यक्रम न तो व्यवस्थित हैं और न ही उन्हें सही ढंग से संचालित किया जा रहा है. इन योजनाओं के नाम पर बेशुमार पैसा खर्च हो रहा है. बेशक, ये योजनाएं सही दिशा में उठाए गए कदम हैं, लेकिन मनरेगा और खाद्य सुरक्षा विधेयक में जिस तरह से पैसा बहाया जा रहा है, उसके लिए बड़े आर्थिक आधार की जरूरत है और इसके बिना इसे लागू नहीं किया जा सकता. प्रधानमंत्री के लिए यह सबसे जरूरी वक्त है कि वे एक व्यावहारिक नीति बनाएं. यह भी सोचना होगा कि हम किस तरह से सबसे निचले तबके या गरीब तबके को मध्यम वर्ग की श्रेणी में ले आएं. अमीर और अमीर हो रहे हैं, यह कोई समस्या नहीं है, लेकिन गरीब अब भी वहीं है, यह समस्या है. ऐसे समय में संविधान के अनुपालन की बेहद जरूरत है.

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