‘द वायर’ के लिए आरफा खानम शेरवानी प. उप्र में बागपत जिले के बड़ौत में किसानों से इंटरव्यू कर रही थीं । तपे हुए एक से एक बुजुर्ग, अधेड़ और एकाध युवा किसान थे ।उनकी बौद्धिक प्रौढ़ता देख कर मजा आया ।सभी मोदी विरोधी थे । ठप्पा लग सकता है कि एक ही मत के लोगों से बात की । लेकिन इंटरव्यू देखते सुनते उन बुजुर्गों की बातों से उस ओर खयाल ही नहीं जाता था । जाहिर है आरफा को भी आनंद आ ही रहा था ।आखीर में एक बुजुर्ग किसान ने मजेदार बात कही ।जब बात आयी कि मोदी जी ने किसान बिल वापस लिए , पेट्रोल के दाम कम किये तो मोदी जी को अकल तो आ रही है उस पर एक मंझे हुए किसान ने नहले पर दहला मारा कि इस अकल का हम क्या करें । अगर उन्हें अकल आ रही है तो हमें भी तो अकल आ रही है । तुम्हीं बताओ जब बिल लाये तो किसानों के हक में ,बिल वापस लिए तो किसानों के हक में ।ये क्या है ।ऐसी अकल का क्या करें । यह इंटरव्यू बहु प्रसारित होना चाहिए ।

लेकिन इन्हीं बातों में यह चर्चा भी जरूरी है कि गोदी मीडिया के बरक्स वैकल्पिक मीडिया की गुणवत्ता क्या है और क्या होनी चाहिए ।हर चर्चा और हर बहस जरूरी है बशर्ते कि उसमें भाग लेने वाले आला दर्जे के बौद्धिक विमर्श के लोग हों ।नामी गिरामी पत्रकार हों ।यह भी जरूरी है कि किसी एक को इतना न लथेड़ा जाए कि उसे देख कर ऊब हो और सुनना बंद कर दिया जाए । आजकल ‘सत्य हिंदी’ में ऐसा ही कुछ दिख रहा है । कोई शक नहीं कि सत्य हिंदी का विस्तार हो रहा है ।और यह विस्तार प्रभावी भी है । आजकल तो एक और खूबसूरत कार्यक्रम मुकेश कुमार द्वारा रविवार के दिन शुरू किया गया है । साहित्य जगत से जुड़ा ‘ताना बाना’ नाम से । बहुत सुकून देता है ।लंबा है लेकिन रविवार की रात सुनने में आनंददायक है ।यह इस बात का प्रतीक है कि सत्य हिंदी विस्तार चाहता है । बहुत अच्छी बात है । मेरे विचार में इस समय सत्य हिंदी की विश्वसनीयता चरम पर है ।फाउंडर मेंबर के रूप में आशुतोष आज एक प्रबंधक जैसे भी दिख रहे हैं ।वे लोकप्रिय हैं, प्रबुद्ध हैं और दोस्तों के दोस्त हैं । लेकिन गुस्सैल, दंभी और हमेशा हाबड़ ताबड़ में दिखने वाले भी वही हैं ।उनके पैनल में दिखने वाले चेहरों से अक्सर ऊब होती है । लोगों का मानना है कि मुकेश कुमार का पैनल ज्यादातर आकर्षित करता है । सर्वे करा कर देखिए तो पायेंगे कि मुकेश कुमार ज्यादा लोकप्रिय हो रहे हैं सत्य हिंदी में ।पहले मैं उन्हें हवा में दोनों हाथों से ढोल बजाने वाला समझता था । पर मुकेश ने अपनी गंभीरता से सब कुछ बदला है । हल्का सा गुरूर उनमें भी है जब वे कुरबान अली और एन के सिंह पर टीका टिप्पणी कर देते हैं । पर यह सब नगण्य है ।बात सिर्फ तजुर्बेदारी की इतनी है कि सत्य हिंदी वाले पैनल में ऊब पैदा करने वाले (एस के सिंह और इन जैसे कई ) से बचें । विनोद अग्निहोत्री को भी जरूरत से ज्यादा खींचा जाता है । नये से नये लोगों को शामिल करें ।

एक छोटापन और दिखाई देता है ।बड़े बड़े मगों में चाय सुढ़कना ।छोटे इलाकों में छोटे छोटे कपों में ‘कट’ के रूप में चाय मिलती है । हथेली से बड़े कपों में जब पैनलिस्ट चाय सुढ़कते हैं तो बहुत से लोगों को कोफ्त होती है ।और शायद उस संस्कृति से अपमानित भी होते हैं । बड़े शहरों का दंभ नजर आता है ।फूहड़ संस्कृति में बदल जाता है सब कुछ ।दलित चिंतक रविकांत तो चाय ऐसे सुढ़कते हैं कि हजार किमी दूर से सुढ़कने की आवाज आती है । गंभीर और शिष्ट लोगों के हाथों में आप चाय का मग कभी नहीं देखेंगे । अपूर्वानंद, श्रवण गर्ग, संतोष भारतीय, अभय कुमार दुबे जैसों को आप कभी नहीं देखेंगे । बहरहाल, कुछ मित्रों का मानना था कि मुझे इस पर लिखना चाहिए, सो लिखा । छोटे शहर के लोग इसे अपना अपमान समझते होंगे ।चाहे तो सर्वे करा लीजिए ।

लोगों को हमेशा इंतजार रहता है शनिवार को विजय त्रिवेदी शो का और रविवार को लाउड इंडिया टीवी पर अभय दुबे शो का । इस बार विजय जी ने अटल जी को याद किया । लेकिन पैनल में लोग बोर लगे । राहुल देव के बारे में हमेशा से यह धारणा रही है कि वे अक्सर दोनों नावों में आसानी से पैर रख लेते हैं । थकी थकी सी बातें । बहरहाल ।
अभय कुमार दुबे ने इस बार हैप्पी क्रिसमस से बात शुरू की । शुरू शुरू में तो काफी कंफ्यूज़न सा लग रहा था ।समझ नहीं आ रहा था कि वे तारीफ में हैं या विरोध में । कहना क्या चाहते हैं ।पर बाद में उन्होंने स्वयं ही स्पष्ट कर दिया । विभिन्न मतों के अभिवादनों पर जानना रोचक था और यह भी कि बौद्ध धर्म में तो सचमुच कुछ भी नहीं है । बौद्ध धर्म में बरास्ता बाबा साहेब लोग ‘जय भीम’ कह सकते हैं ।पर बरसों से मुझे स्वयं यह बात परेशान करती रही है कि बौद्ध धर्म में अभिवादन के लिए क्या शब्द है ।जैन धर्म में तो स्पष्ट है कि जय जिनेन्द्र है । संतोष भारतीय ने क्रिसमस डे पर तुलसी जयंती का जिक्र किया । दरअसल यह तुलसी जयंती नहीं ,तुलसी पूजन है ।और यह कुछ धूर्त किस्म के लोगों ने 2014 से शुरू किया । क्रिसमस ‘ट्री’ की जगह ‘तुलसी पौधा’ ।इसके पीछे तर्क यह है कि क्रिसमस’ट्री’ हमें क्या है देता है । बरक्स इसके तुलसी पौधे के तो अनेक लाभ हैं । इसलिए इन्होंने क्रिसमस पर ‘तुलसी पौधे’ का पूजन शुरू किया ।

गये शुक्रवार को रवीश कुमार का मोदी स्टाइल में एक ही दिन में कई कपड़े (परिधान) बदलने का शो रोचक लगा । लेकिन रवीश कुमार इस बात को समझें कि ज्यादातर उनके प्राइम टाइम बहुत प्रबुद्ध लोगों के दर्जे के हो जाते हैं ।वे ही शो लोकप्रिय बन पाते हैं जिनमें हड़तालों और प्रदर्शनों का जिक्र होता है ।इसी कपड़े बदलने वाले शो में ‘वो’ क्या था ‌उसका खुलासा उन्होंने बहुत इंतजार के बाद किया ।और वह था हमारा ‘विवेक’ । आज के औसत बुद्धि के व्यक्ति से पूछिए तो कहेगा यह विवेक किस चिड़िया का नाम है ।आज का ज्ञान फेसबुक , ट्विटर और व्हाट्सएप का ज्ञान है । यदि आप चुनाव के दिनों में वोटर को प्रभावित करने की फ़िक्र में हैं तो जान लीजिए कि जो जितना निरक्षर है वह मोदी का पक्का वोटर है । मोदी ने इस देश को जितने बेहतर तरीके से समझा है, मुझे नहीं लगता किसी और राजनेता ने कभी समझा होगा । फिर भी रवीश कुमार सोमवार से शुक्रवार तक मीडिया की जरूरी शख्सियत तो बन ही चुके हैं ।

बाकी पुण्य प्रसून वाजपेई को जितना समझ सकते हैं , कहना तो यह चाहिए जितना झेल सकते हैं, आपके लिए बेहतर ही है । एक सरीखा प्रवचन रोज उबाऊ हो जाता है ।यही हफ्ते में दो बार भी आता तो इसकी भूख बनती ।जानकारीपरक हो या ज्ञानवर्धक हो तो बात ही क्या ? भाषा सिंह की मेहनत पसंद आती है । उर्मिलेश जी के ‘नमस्कार, आदाब, ससरियाकाल’ (सत् श्रीअकाल) वाले वीडियो कभी कभी सुनने लायक बन पड़ते हैं ।सत्य हिंदी के अमरीष कुमार राहुल गांधी को गोद में लिए बैठे हैं ।
एक बात हमारे पत्रकारों की ढोंग समान लगती है कि जब वे कुछ शब्दों की बयानी से शर्मसार होते दिखते हैं ।जैसे अनुराग ठाकुर ने नारा लगवाया – ‘देश के गद्दारों को, गोली मारो सालों को’ ।इसी तरह हरिद्वार की तथाकथित धर्म संसद में जिस तरह की जुबान बोली गयी , उससे अब क्या शरमाना ।आरफा खानम शेरवानी ने अपने वीडियो में कहा, ऐसी बातें जो मैं अपनी जुबान से आपको बता नहीं सकती । लेकिन वहीं वायर के दूसरे वीडियो में सारे नारे और भाषण सुनाने जा रहे थे । यह दोगलापन क्यों ? जो चीज है एक बार एअर हो चुकी है ।उसे बताने में हर्ज क्या ।इसी तरह ‘सालों’ शब्द दोहराने में क्या आपत्ति है । यह तो आम चलन की गाली है । अब वक्त आ गया है कि पूरी दबंगई लेकिन विवेक के साथ अपनी बात कही जाए ।जैसे आशुतोष ने आलोक जोशी के उस शो में कही थी जो हाल ही में केरल हाईकोर्ट के जज द्वारा प्रधानमंत्री के सम्मान के संदर्भ में निर्णय से संबंधित था । बहसें और चर्चाएं ऐसी कीजिए जो लोगों को बरसों तक याद रहें ।अजीत अंजुम और आरफा खानम शेरवानी के दौरे प्रभावी लगते हैं ।

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