मै जब मर जाऊँ तो मेरी अलग पहचान लिख देना
लहू से मेरी पेशानी पे हिंदुस्तान लिख देना !!”
-राहत साहब

नमन राहत साहब ,अलविदा नहीं कहूँगा क्योकि , आप कही नही गए , आप हमारे दिलों में जिंदा है, और इस देश की मिट्टी की सुगंध में कयामत तक ज़िंदा रहेंगे –रीतेश शर्मा “माही”

नमन राहत साहब आप कही नही गए ,हमारे दिलों में जिंदा है, इस देश की मिट्टी की सुगंध में कयामत तक ज़िंदा रहेंगे। हमारे मुल्क की मिट्टी का शायर, उर्दू और हिंदी अदब का शायर, हर जुबाँ का शायर, हरदिल अज़ीज़ शायर, कल आज और कल का राहत इंदौरी तारीख़ी शायर हैं|
बीते हुए कल और आज का शायर, हर उम्र-ए-खास-ए-आम का शायर, इंकलाब का शायर, मुहब्बत का शायर, अमन पसंद शायर, ना समझो का शायर, शायरों का शायर, राहत इंदौरी केवल इंदौर के ही नही देश-प्रदेश का ही नहीं पूरी दुनिया में अपने अंदाज़ के साथ शायरी कहने वाले राहत इंदौरी हर दिल अज़ीज़ इंसान हैं|
मुशायरों में उनका हर लफ़्ज़ न सिर्फ़ तालियां बटोरता है, बल्कि उनके अंदाज़ पर भी लोग लाजवाब हो जाते हैं| शायरी की दुनिया के चमकते सितारे राहत इंदौरी ने कई तरह की शायरी की. ग़ज़ल, नज़्में पढ़ीं जो खूब मशहूर हुईं| वहीं, राहत इंदौरी ने कुछ ऐसा भी रचा, जिसमें चुनौती भी है और चुनौती बनकर टकराने का माद्दा भी तीन दशक पहले लिखी गई नज़्म हर इंकलाबी की जुबान पे रही औऱ हक की लड़ाई में उत्प्रेरक की तरह काम किया,ये नज़्म थी . ‘किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है ये राहत इंदौरी की ऐसी ही ग़ज़ल है, जो पैग़ाम भी बन चुकी है. ये ग़ज़ल न सिर्फ लोकप्रिय हुई, बल्कि आंदोलनों में लोगों द्वारा अपनी बात कहने का जरिया भी बना ली गई| इंकलाब में उसकी हर लाइन, हर मिसरा अपने आप मे मिसाल है ।
“किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है”
अगर खिलाफ हैं, होने दो, जान थोड़ी है
ये सब धुंआ है, कोई आसमान थोड़ी है,
लगेगी आग तो आएंगे घर कई ज़द में
यहां पे सिर्फ़ हमारा मकान थोड़ी है,
मैं जानता हूं कि दुश्मन भी कम नहीं लेकिन
हमारी तरह हथेली पे जान थोड़ी है,
हमारे मुंह से जो निकले वही सदाक़त है
हमारे मुंह में तुम्हारी ज़ुबान थोड़ी है,
जो आज साहिब-इ-मसनद हैं कल नहीं होंगे
किराएदार हैं जाती मकान थोड़ी है,
सभी का खून है शामिल यहां की मिट्टी में
किसी के बाप का हिंदुस्तान थोड़ी है||
कुछ औऱ मशहूर शेर आप सबके सामने जो राहत साहब की शख्शियत बयाँ करती है ।।
 “बहुत हसीन है दुनिया”
आँख में पानी रखो होठों पे चिंगारी रखो
जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो
उस आदमी को बस इक धुन सवार रहती है
बहुत हसीन है दुनिया इसे खराब करूँ 
“धज्जियां उड़ जाएँ”
 बहुत गुरूर है दरिया को अपने होने पर
जो मेरी प्यास से उलझे तो धज्जियां उड़ जाएँ 
“तैर के दरिया पार करो”
तूफानों से आँख मिलाओ, सैलाबों पर वार करो
मल्लाहों का चक्कर छोड़ो, तैर के दरिया पार करो 
“जो हो परदेस में वो”
ऐसी सर्दी है कि सूरज भी दुहाई माँगे
जो हो परदेस में वो किससे रजाई माँगे 
 “फकीरी पे तरस आता है”
अपने हाकिम की फकीरी पे तरस आता है
जो गरीबों से पसीने की कमाई माँगे
“मैं कितनी बार लुटा हूँ”
 जुबां तो खोल, नजर तो मिला, जवाब तो दे
मैं कितनी बार लुटा हूं, हिसाब तो दे 
“ये खता एक बार नहीं”
फूलों की दुकानें खोलो, खुशबू का व्यापार करो
इश्क खता है तो, ये खता एक बार नहीं, सौ बार करो 
“मैं बच भी जाता तो..”
किसने दस्तक दी, दिल पे, ये कौन है
आप तो अन्दर हैं, बाहर कौन है
ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था
मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था
मेरा नसीब, मेरे हाथ कट गए वरना
मैं तेरी मांग में सिन्दूर भरने वाला था 
“अंदर का जहर चूम लिया”
अंदर का जहर चूम लिया धुल के आ गए
कितने शरीफ लोग थे सब खुल के आ गए
कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं कागज की इक नाव लिए
चारों तरफ़ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है
कहीं अकेले में मिल कर झिंझोड़ दूंगा उसे
जहां जहां से वो टूटा है जोड़ दूंगा उसे 
” एक चिंगारी नजर आई थी “
नींद से मेरा ताल्लुक ही नहीं बरसों से
ख़्वाब आ आ के मेरी छत पे टहलते क्यूं हैं
एक चिंगारी नजर आई थी बस्ती में उसे
वो अलग हट गया आंधी को इशारा कर के
इन रातों से अपना रिश्ता जाने कैसा रिश्ता है
नींदें कमरों में जागी हैं ख़्वाब छतों पर बिखरे हैं  ।।।
नमन करता हूँ उनको, राहत साहब का जाना इस देश के साहित्य को बहुत बड़ी क्षति है, उनका स्थान भर पाना मुश्किल ही नही नाममुमकिन है
मेरी विनम्र श्रंद्धाजलि ईश्वर उन्हें जन्नत नसीब करे ।।
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