देश में शहरी क्षेत्रों के 38 करोड़ लोगों द्वारा उत्पन्न 30 प्रतिशत गंदा पानी ही शुद्ध होकर निकलता है. बाकी 70 प्रतिशत पानी बिना ट्रीटमेंट के नदियों, नालों, तालाबों व झीलों में डाल दिया जाता है. सीवेज का गंदा पानी इसी तरह नदियों, नालों, तालाबों और अन्य जगहों पर छोड़ा जाता रहा, तो न नदियां साफ हो पाएंगी और न नमामि गंगे की योजना ही परवान चढ़ सकेगी. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का लक्ष्य है कि वर्ष 2019 तक देश का हर नागरिक शौचालय का इस्तेमाल करेे. इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सरकार के पास अभी चार साल का समय है, लेकिन सवाल है कि सरकार इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त करेगी? अगर मान लिया जाए कि सरकार यह लक्ष्य प्राप्त भी कर लेती है, तो नदियों, नालों एवं जल के स्त्रोतों को प्रदूषित होने से कैसे रोका जाएगा?
सरकारी की तरफ से जारी आंकड़ों से पता चलता है कि शहरी क्षेत्रों से लगभग 62,000 मिलियन लीटर (एमएलडी) गंदा पानी प्रतिदिन निकलता है. भारत में परिशोधन क्षमता केवल 23,277 एमएलडी या निकलने वाले सीवेज का 30 प्रतिशत है. आंकड़ों के अनुसार पूरे देश में सूचीबद्ध 816 नगर निगम के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट(एसटीपी) में से 522 ही काम कर रहे हैं. 62,000 एमएलडी में से सूचीबद्ध क्षमता 23,277 एमएलडी है, लेकिन वास्तव में निकलने वाले गंदे पानी में से 18,883 एमएलडी से अधिक पानी परिशोधित नहीं किया जाता है. इसका मतलब यह हुआ कि भारत के शहरी इलाकों से बहने वाला 70 प्रतिशत गंदा पानी परिशोधित नहीं किया जाता है. सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की रिपोर्ट के मुताबिक 79 सीवेज संयंत्र काम नहीं कर रहे हैं, वहीं 145 निर्माणाधीन हैं और 70 प्रस्तावित हैं.
भारत के एक लाख से अधिक और 50 हजार से एक लाख तक के आबादी वाले शहरों से 38,255 एमएलडी सीवेज प्रतिदिन निकलता है, जिसमें से केवल 11,787 एमएलडी निकलने वाले सीवेज को परिशोधित किया जाता है. बाकी दूषित पानी को सीधे नदियों, नालों, झीलों या अन्य जल स्त्रोतों में छोड़ दिया जाता है. रिपोर्ट के अनुसार इस वजह से भारत के भूजल संसाधनों का तीन-चौथाई भाग प्रदूषित होता है और जल स्त्रोतों का लगभग 80 प्रतिशत भाग प्रदूषित है. साथ ही 39 प्रतिशत संयंत्र धाराओं या जल स्त्रोतों में छोड़े जाने के लिए पर्यावरण नियमों के अनुरूप नहीं है. जल प्रदूषण का 75 से 80 प्रतिशत हिस्सा घरेलू सीवेज से निकलता है जो बिना किसी ट्रीटमेंट के स्थानीय जल स्त्रोत में मिल जाता है.
पूरे देश में काम करने वाले 522 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में सबसे अधिक 86 पंजाब में हैं, लेकिन इसमें 38 या उससे भी कम काम करने योग्य हैं. उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक 62 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट काम कर रहे हैं. दूसरे नंबर पर महाराष्ट्र में 60 और तीसरे स्थान पर कर्नाटक में 44 सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट काम कर रहे हैं.
भारत के शहरी क्षेत्रों में करीब दो करोड़ घरों में सफाई की समुचित व्यवस्था नहीं है. एफएसएम की रिपोर्ट के मुताबिक एक करोड़ पचास लाख घरों में शौचालय नहीं हैं. अगर हम एक परिवार में पांच लोगों को मानते हैं तो इसका मतलब हुआ कि साढ़े आठ करोड़ लोग शहरी इलाकों में वगैर साफ-सफाई के रह रहे हैं. लोकसभा में पूछे गए एक सवाल के जवाब में जानकारी मिली कि 7 दिसंबर 2015 तक ग्रामीण परिवारों में केवल 48.4 प्रतिशत घरों में शौचालयों की सुविधा है. शहरी क्षेत्रों में 7.1 प्रतिशत परिवारों के पास ऐसे(पिट लैटरिन्स) शौचालय हैं जिसमें कोई स्लैब नहीं है जो सीधे नालियों में मिलते हैं. शहरी क्षेत्रों में केवल 32.7 प्रतिशत लोग भूमिगत सीवेज नेटवर्क से जुड़े शौचालय का उपयोग करते हैं. साथ ही सेप्टिक टैंक के साथ शहर में रहने वाले लगभग 8 करोड़ परिवारों में से 3 करोड़ परिवारों के पास कचरा निस्तारण के लिए कोई साधन नहीं है.
शहरी परिवारों के 12.6 प्रतिशत और झुग्गी-झोपड़ी की बात करें, तो इनमें 18.9 प्रतिशत लोग खुले में शौच जाते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक 1.7 प्रतिशत लोग शौचालय होने के बावजूद खुले में शौच जाते हैं.
राज्यों में स्वच्छता की स्थिति
मध्य प्रदेश के शहरी क्षेत्रों में करीब 22.5 प्रतिशत लोग खुले में शौच जाते हैं, तमिलनाडु में 16.2 प्रतिशत, उत्तर प्रदेश में 14.8 प्रतिशत, गुजरात 8.7 प्रतिशत, महाराष्ट्र में 7.7 प्रतिशत और दिल्ली में 3 प्रतिशत लोग खुल में शौच जाते हैं. पिछले वर्ष मई में लोकसभा में पेश आंकड़ों के मुताबिक लगभग 55 प्रतिशत ग्रामीण परिवार खुले में शौच जाते हैं. इस संबंध में ओडिशा पहले स्थान पर है. ओडिशा में 86.6 प्रतिशत परिवार और केरल में 3.9 प्रतिशत लोग खुले में शौच जाते हैं.
मोदी सरकार द्वारा 2 अक्टूबर 2014 को शुरू की गई स्वच्छ भारत अभियान का लक्ष्य 2 अक्टूबर 2019 तक भारत को खुले में शौच से मुक्तबनाना है. ग्रामीण शहरी इलाकों में सामुदायिक और सार्वजनिक शौचालय बनाना और पानी की आपूर्ति करना. सड़कें, फुटपाथ और बस्तियों को साफ रखना और अशुद्ध जल को स्वच्छ करना. लेकिन अभी 70 प्रतिशत सीवेज को बिना परिशोधित किए नदियों, नालों, झीलों, तालाबों और अन्य जल स्त्रोतों में छोड़ा जा रहा है. सरकार शौचालय बनाने पर जोर दे रही है, लेकिन सवाल ये है कि क्या शौचालयों से निकलने वाली गंदगी के ट्रीटमेंट के लिए प्लांट भी लगाया जाएगा या इसे बिना परिशोधन के ही जलस्त्रोतों में छोड़ दिया जाएगा? सच्चाई यह है कि सरकार अपने लक्ष्य से बहुत पीछे नजर आ रही है.
शौचालय निर्माण के अलावा सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की भी ज़रूरत : क्या ऐसे साफ होंगी नदियां
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