gandhiwadiचंपारण संघर्ष की भूमि रही है. राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने 15 अप्रैल 1917 को यहां से सत्याग्रह का आगाज किया था. इस वर्ष सत्याग्रह के सौ साल पूरे हो जाएंगे. शताब्दी को लेकर एक से एक आयोजन हो रहे हैं, पर  गांधी का अंतिम आदमी आज भी हाशिये पर है. बिहार में भूमिहीनता सबसे बड़ी विडंबना है. राज्य सरकार की ओर से भूमि सुधार के दावे तो बहुत किए जा रहे हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर यह कितना सच है इसे बापू की प्रयोगभूमि चंपारण में देखा जा सकता है. गरीबों के हक की लड़ाई लड़ने वाले सामाजिक कार्यकर्ता संकट में हैं.

लोकनायक जयप्रकाश नारायण के 1974 आंदोलन के सेनानी रहे पंकज को सरकारी प्रताड़नाओं का शिकार होना पड़ रहा है. पंकज बिहार राज्य भूमि सुधार व राजस्व विभाग द्वारा गठित भूमि सुधार कोर कमिटी के सदस्य हैं. वे गरीबों और भूमिहीनों के पक्ष में बने भूमि सुधार कानूनों को लागू कराने हेतु विगत दो दशक से लोकतांत्रिक विधि से आंदोलनरत हैं. इन दिनों सरकार ने उन्हें जेल में बंद कर रखा है.

उन पर एक मुकदमा पश्‍चिमी चंपारण के बगहा-1 के अंचलाधिकारी ने दायर किया है. यह मुकदमा 3 नवंबर, 2015 को चौतरवा थाना (प्राथमिकी संख्या- 282/15) में दर्ज किया गया है. इस मामले में पंकज व 13 भूमिहीन पर्चाधारी 20 जुलाई, 2016 से बगहा जेल में हैं. इसके पहले पंकज व उनके साथियों के दबाव के बाद 26 साल पुराना केस फिर से 2015 में खुला और पर्चाधारियों के पक्ष में फैसला भी हुआ. भूस्वामी फिर अपील में राजस्व पार्षद, पटना (वाद संख्या- 17/2016 श्री एसएम राजू के तहत) चले गए हैं.

पश्‍चिमी चंपारण के तीन अंचलों में 500 एकड़ से अधिक भूमि पर भूमिहीनों का कब्ज़ा अहिंसक आंदोलन के कारण संभव हो सका है. शांतिपूर्वक कार्रवाई के दौरान बगहा 1 अंचल के सलहा बरियरवा गांव में सीलिंग से अधिशेष भूमि पर कब्ज़ा हेतु एक भूमि सत्याग्रह का आयोजन 27 जून 2015 में किया गया था. इस दिन पर्चाधारियों ने धान की फसल लगाई और इसी फसल को 3 नवंबर को काटने के दौरान चौतरवा थाना में सीओ, बगहा 1 ने दर्ज करा दिया. इसके बाद चौतरवा थाना कांड संख्या 282, 03.11.2015 में पटना उच्च न्यायालय द्वारा अग्रिम जमानत की अर्जी ख़ारिज करने के बाद 20 जुलाई, 2016 को सामाजिक कार्यकर्ता पंकज के नेतृत्व में बगहा कोर्ट में हाजिर होकर 19 नामजद में से 13 लोगों ने गिरफ़्तारी दी.

2015-16 में बिहार सरकार के ऑपरेशन दखल दहानी के विशेष कैम्पों के बाद जारी आंकड़ों के अनुसार प. चंपारण के लगभग दो लाख भूमिहीनों को गैर-मजरूआ मालिक, गैर-मजरूआ आम, भूदान और भू-हदबंदी कानून के अंतर्गत घोषित अधिशेष भूमि का पर्चा मिला है, लेकिन इनमें से लगभग आधे लोगों को पर्चे की भूमि पर कब्ज़ा हासिल नहीं हुआ है. भूमिहीन नागरिक वर्षों से प्रशासन से कब्जे की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन अधिकारियों की उपेक्षा और  उदासीनता के कारण क़ानूनी रूप से प्राप्त जमीन पर भूमिहीन अपनी हकदारी से वंचित हैं. हरिनगर चीनी मिल की 5200 एकड़ भूमि भू-हदबंदी कानून के अंतर्गत समाहर्ता, प. चंपारण ने 2007 में अधिशेष घोषित कर दी, लेकिन अभी तक यह मामला राजस्व मंत्री, बिहार सरकार के कोर्ट में लंबित है. सात साल में मंत्री जी का न्यायालय यह निर्णय भी नहीं कर सका है कि यह मामला सुनवाई के योग्य है या नहीं.

पंकज सहित 18 दलितों की गिरफ्तारी को लेकर देश भर के सामाजिक कार्यकर्ताओं में भारी रोष हैै. मोतिहारी स्थित गांधी संग्रहालय में देश के 13 राज्यों के सौ से अधिक सामाजिक कार्यकर्ताओं ने एक स्वर से गिरफ्तारी का विरोध करते हुए नीतीश सरकार से इनकी रिहाई की मांग की है. सरकार की ऐसी कार्रवाई पर हैरानी जताते हुए राजगोपाल पी.व्ही ने कहा कि पंकज सरकार के वादे के मुताबिक उनकी जवाबदेही को मुकम्मल कराने का काम कर रहे थे. ऐसे में पंकज की गिरफ्तारी से सरकार की कथनी पर संदेह बढ़ता जा रहा है.

जलपुरुष राजेन्द्र सिंह और सर्व सेवा संघ के ट्रस्टी तपेश्‍वर भाई ने बाकायदा बगहा जेल जाकर पंकज से मुलाकात की और उनकी रिहाई के लिए हाल में जदयू में शामिल स्वामी अग्निवेश से आग्रह किया है कि वे इस संदर्भ में मुख्यमंत्री से बात करें और पंकज सहित 18 दलितों की रिहाई सुनिश्‍चित करें. इसी के साथ सामाजिक कार्यकर्ताओं के सम्मेलन में एक जन आयोग गठित करने का ऐलान किया है. उच्च न्यायालय के अवकाशप्राप्त जज की अध्यक्षता में बननेवाले इस जन आयोग में तीन सदस्य होंगे. यह आयोग पंकज सहित 18 दलितों की गिरफ्तारी के मामले की जांच करेगा.

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