चुनावी चर्चाएं बहुत हो गईं. अब तो चुनाव परिणाम भी आ गए और ममता बनर्जी फिर से सत्ता पर काबिज हो गईं. लिहाजा, थोड़ा विषयांतर भी जरूरी है. राजनीतिक खबरों और विश्लेषणों से अलग बंगाल के सामान्य लोगों में हिंदी कैसे बोली जाती है, इसका भी थोड़ा आनंद लेते चलें. कहने की जरूरत नहीं कि सारी भाषाएं मूल रूप से संस्कृत से निकली हैं. बांग्ला एक अत्यंत समृद्ध भाषा है. क्योंकि इसमें संस्कृत के शब्द बहुतायत में मिल जाएंगे. हिंदी तो अत्यंत शुद्ध और समृद्ध है ही. लेकिन पश्चिम बंगाल में दोनों भाषाओं का रोचक घालमेल देखने कोे मिलता है. एक भाषा में दूसरी भाषा के शब्दों का आना पश्चिम बंगाल में सामान्य सी बात है. सब वैसे ही जैसे कि भाषा की सारी नदियां हिंदी की गंगा में मिल जाती हैं. हिंदी में स्वच्छ की जगह बांग्ला का प्रचलित शब्द परिष्कार भी चलता है और नया की जगह नूतन भी चलता है. हां, बांग्ला उच्चारण (प्रोनंसिएशन) के हिसाब से नतून नहीं चलता.
शुरुआत एक रोचक घटना से करते हैं. एक परिवार ने मुझे भोजन पर आमंत्रित किया था. समय काटने के लिए उनके बच्चे की हिंदी की कॉपी देख रहा था. बच्चों को ऐसे व्यक्ति पर लेख लिखना था जो उनके लिए प्रेरणा का स्रोत हो. जिस परिवार में मैं आमंत्रित था, उनकी बच्ची ने अपनी दीदी को प्रेरणा का स्रोत बताया था और उनके बारे में लिखा था. कॉपी जांचने वाली अध्यापिका बांग्ला भाषा के परिवेश से थीं. उस बच्ची के लेख में उन्होंने एक पंक्ति जोड़ दी थी. पंक्ति इस प्रकार थी- मेरी दीदी मेरी सारी चाहिदाएं पूरी कर देती हैं. (चाहिदा बांग्ला शब्द है, जिसका अर्थ है इच्छा). अध्यापिका लिखना चाहती थीं-मेरी दीदी मेरी सारी इच्छाएं पूरी कर देती हैं. लेकिन वह बांग्ला मिश्रित हिंदी हो गई. मुझे यह पढ़ कर झटका भी लगा और अच्छा भी लगा, क्योंकि भाषाएं इसी तरह गलबहियां डाल कर आगे बढ़ती जाती हैं. वह अबोध बच्ची बांग्ला मिश्रित हिंदी सीख रही थी, इस ओर अभिभावकों का ध्यान दिलाने पर उन्होंने कहा कि वे स्कूल की प्रधानाध्यापिका से मिलेंगे और इस समस्या पर बातचीत करेंगेे. उन्होंने कहा कि कम वेतन देकर कुछ प्राइवेट स्कूल हिंदी की कम जानकारी वाली किसी महिला को भी हिंदी टीचर नियुक्त कर देते हैं.
दूसरी घटना भी कम रोचक नहीं है. एक कार्यालय में उत्तर प्रदेश से कुछ सामान भेजा गया. अंदर जो कागज मिला, उस पर लिखा था- भेजे गए सामान की सूची. इस सूची में लिखा गया- नए रजिस्टरों की संख्या-?. अब हिंदी के अंकों को समझने वाला वहां कोई नहीं था. एक बांग्ला जानने वाले कर्मचारी ने हिंदी समझने का दावा किया और उसने बांग्ला में हिंदी के नौ को सात लिख दिया. अब दोनों कार्यालयों में पत्राचार शुरू हुआ. कोई किसी की बात मानने को राजी नहीं. अंत में जब सामान भेजने वाले कार्यालय की जांच टीम कोलकाता आई और हिंदी व बांग्ला अनुवाद आमने-सामने रखा गया तो गलती पकड़ में आई. हिंदी जानने का दावा करने वाले कर्मचारी ने कहा कि हिंदी का ? बांग्ला के सात से मिलता-जुलता है, इसलिए मैंने सात लिख दिया.
अब बंगाल के साइन-बोर्ड भी देखें. कोलकाता के पास एक अत्यंत प्रसिद्ध स्थान है- दक्षिणेश्वर. यह वही विशिष्ट स्थान है जहां विख्यात संत रामकृष्ण परमहंस ने आध्यात्मिक साधनाएं की थीं और मां काली का साक्षात दर्शन किया था. जहां उनके शिष्य स्वामी विवेकानंद ने उनसे दीक्षा ली थी. यहां हिंदी भाषी प्रदेश के अनेक लोग रोज आते हैं और मां काली का दर्शन करते हैं. शनिवार और मंगलवार को तो यहां भारी भीड़ होती है. कोलकाता आने वाला हर आस्तिक व्यक्ति यहां आना चाहता है. यहां बस स्टैंड पर कुछ सरकारी बोर्ड लगे हैं. इसमें एक पर लिखा है- बेलघरिया एक्सप्रेस हाई ओय. बेलघरिया एक्सप्रेस हाई-वे की जगह यह अशुद्ध हिंदी आपको खूब गुदगुदाती है. हिंदी के ऐसे प्रयोग देख कर मन दुखी भी होता है, लेकिन हिंदी सब जगह प्रविष्ट है, यह देख कर संतोष भी होता है.
कोलकाता में बांग्ला-हिंदी का यह सिर्फ एक उदाहरण नहीं है. मेट्रो रेल के डिब्बे में एक स्टिकर चिपकाया गया था. अब उसे हटा लिया गया है- दरवाजे पास-पास में खुलेंगे, दरवाजों पर टेक न लगाएं. कहने की कोशिश है कि मेट्रो रेल के दरवाजे सरक (स्लाइड) कर खुलते हैं. लेकिन जो दरवाजे एक दूसरे के विपरीत (अपोज़िट) सरक कर खुलते हैं, उन्हें पास-पास लिखा जाना बांग्ला प्रभाव कोे दर्शाता है. कोलकाता में आपको सुरक्षित स्थान के बदले सुरझित स्थान लिखा हुआ कई जगह दिख जाएगा. दक्षिण कोलकाता के बाजारों में सोने-चांदी के गहनों की अनेक दुकानें हैं. हैं तो उत्तर कोलकाता में भी, लेकिन दक्षिण कोलकाता में अपेक्षाकृत ज्यादा हैं. किसी जमाने में यहां एक प्रसिद्ध ज्वेलर हुआ करते थे- लक्ष्मी बाबू (बांग्ला में इसे लक्खी बाबू कहते हैं). उनका नाम प्रतिष्ठा और शुद्धता का पर्याय बन गया है. आप किसी न किसी दुकान पर यह लिखा जरूर देख सकते हैं- यहि लखि बाबु की असली दोकान हाय. (यह लक्खी बाबू की असली दुकान है). इसी तरह अनेक जगहों पर चित्तू बाबू कोे चित्तु बाबु लिखना आम चलन है. यदि आपको अशुद्ध हिंदी खटकती है तो इसका मतलब है कि आप भाषा के फैलाव और विस्तार का आनंद नहीं ले रहे. भाषा को लेकर एक ही ढक्कन में बंद होना तकलीफ देता है. अब देखिए, हिंदी में कई बार जहां बड़ी ई वाली मात्रा का प्रयोग होता है, वहां बांग्ला में छोटी ई चलता है. जैसे- बीड़ी कोे ही लें. इसे बांग्ला में बिड़ि लिखा जाता है. कुछ बांग्ला लिखने वाले हिंदी में बीड़ी को बिड़ि ही लिखते हैं. उन्हें यही लिखने की आदत है.
यहां छपने वाले हिंदी के पैंफलेटों में कई बार इसी तरह की अशुद्धियां दिख जाती हैं और कई बार क्लिष्टता भी दिखती है जैसे- स्वच्छता बनाए रखें को परिष्कारिता बनाए रखें, चेतना रैली कोे सचैतन्य रैली लिखा जाता है और आम सभा का अनुवाद साधारण सभा कर दिया जाता है. एक दिलचस्प घटना का जिक्र करना यहां जरूरी है. एक राजनीतिक दल की रैली में बांग्ला में पर्चा छपवाया गया. उस पर रैली की तिथि, समय और उसमें आने का आह्वान किया गया था. अंत में लिखा गया था- दले-दले आसून (दल बना कर आइए. यानी समूह बना कर आइए. निहितार्थ- रैली को सफल बनाइए). किसी को हिंदी अनुवाद करने को कहा गया ताकि पर्चा हिंदी में भी छप सके. अनुवादक ने अंतिम पंक्ति का अनुवाद किया- दलदल में आइए. अब कौन दलदल में फंसने के लिए आए? पढ़ने वाले को सदमा लगे तो उसका दुर्भाग्य और मजा आए तो उसके हवादार दिमाग को साधुवाद.
एक और दिलचस्प वाकया का जिक्र न करने से यह रिपोर्ताज अधूरी रह जाएगी. पश्चिम बंगाल में मूढ़ी (पफ्ड राइस) खाने का चलन है. आमतौर पर लोग शाम को मूढ़ी का नाश्ता ही करते हैं. यह सुपाच्य और बिना घी-तेल वाला नाश्ता है. हालांकि मूढ़ी में नमक, नमकीन और सरसों का तेल डलवा कर, बेगुन भाजा (बांग्ला में बैगन के पकौड़े को बेगुन भाजा कहते हैं) के साथ खाने वालों की भी कमी नहीं है. लेकिन स्वास्थ्य के प्रति सतर्क लोग सादा मूढ़़ी ही खाते हैं. नाश्ते के रूप में अनेक लोग मूढ़ी कोे सर्वोपरि रखते हैं. तो एक जगह लिखा था- स्वादिष्ट और ताजा मुड़ी खाइए. अब भोजपुरी बोलने वालों के लिए मुड़ी का अर्थ है सिर. मूढ़ी की जगह मुड़ी देख कर भोजपुरी वाला यह समझने की गलती न करें, स्वादिष्ट और ताजा सिर खाइए. आमतौर पर लोग लिखने का निहितार्थ समझते हैं, अशुद्धियों पर ध्यान जरूर देते हैं, पर उसका मोजा (मजा) लेते हैं.
ऐसे ही कुछ और मोजा-दार उदाहरण बंगाल में मिलेंगे. कई मामलों में कुछ शब्द हिंदी में भी बांग्ला उच्चारण जैसे ही लिख दिए जाते हैं. जैसे- पानी टंकी कोे टेंकी, बस कोे बास, गाय को गोरू, नमकीन को नुनता और स्वादिष्ट कोे दारुण. हिंदी में दारुण अत्यंत कष्टकारी अर्थ में लिया जाता है. लेकिन बांग्ला में अत्यंत स्वादिष्ट सामग्री की प्रशंसा दारुण टेस्ट कहकर की जाती है. सत्तू को छातू लिख देना भी इसी कड़ी का हिस्सा है. छाता को छाती लिखना-कहना बांग्ला हिंदी का आम हिस्सा है. उनके लिए बड़ा छाता, छाता और छोटा छाता, छाती. जबकि हिंदी में छाता और छाती का कहीं कोई रिश्ता नहीं है. बंगाली हिंदी में अनेक शब्द को अनेकों लिख कर अशुद्ध कर दिया जाता है, लेकिन यह गलती तो हिंदी के जानकार भी करते हैं. बंगाल के गुहा साहब को पुकारते हुए हिंदी जगत के लोग गुहा की क्या दुर्गत करते हैं, इसका दर्द बंगाली महसूस करते हैं, फिर भी मोजा लेते हैं…