पश्र्चिम बंगाल के लोगों का मानना है कि केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने साल 2016-17 का जो बजट पेश किया है उसने लोगों की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है. जेटली के इस बजट की पश्र्चिम बंगाल की जनता और राजनीतिक दलों ने तीखी निंदा की है. केंद्र सरकार ने पांच राज्यों में होने वाले चुनावों को ध्यान में रखते हुए यह बजट पेश किया है, लेकिन लोग कहते हैं कि इस बजट में पश्र्चिम बंगाल और असम के लिए कुछ भी खास नहीं है, जिसका चुनाव पर कोई असर पड़ेगा.
उत्तर भारत में असम और बंगाल दो ऐसे राज्य हैं जहां विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और इन राज्यों में भाजपा की स्थिति बहुत अच्छी नहीं रही है. बंगाल में वाम दलों के बाद तृणमूल जैसी क्षेत्रीय पार्टी और असम में अधिकतर कांग्रेस का ही बोलबाला रहा है. बजट पर प्रतिक्रिया देते हुए असम के मुख्यमंत्री तरुण गोगोई ने कहा कि इस बजट में आम आदमी के लिए कुछ नहीं है. गोगोई टैक्स देने वालों पर और बोझ लादे जाने को दुर्भाग्यपूर्ण बताया. दूसरी तरफ पश्र्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने कहा कि केंद्रीय बजट में विजन का अभाव साफ दिख रहा है.
यह आम लोगों के हित में नहीं है. पश्र्चिम बंगाल के लोगों के लिए तो ये किसी काम का नहीं है. केंद्रीय बजट को पश्र्चिम बंगाल सरकार दिशाहीन और निराशाजनक बता रही है. राज्य के वित्त मंत्री अमित मित्रा ने बजट के बहाने नरेंद्र मोदी सरकार की एफडीआई (विदेशी पूंजी निवेश) नीति की पारदर्शिता पर भी सवाल उठाया और कहा कि यह पूरी तरह लक्ष्यहीन है.
प्रदेश के पंचायत मंत्री सुब्रत मुखर्जी ने कहा कि केंद्रीय बजट में दृष्टि का अभाव है. इसमें आम लोगों और आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए कुछ भी नहीं है. इस बजट से पश्र्चिम बंगाल को कुछ भी नहीं मिला है. जानबूझ कर राज्य को वंचित रखा गया है. बजट में कोयले की कीमत में वृद्धि का प्रस्ताव दिया गया है. कोयले की कीमत बढ़ने से बिजली एवं अन्य जरूरी सामग्रियों की कीमत भी बढ़ेगी. पश्र्चिम बंगाल सरकार के कुछ अन्य मंत्रियों का भी कहना था कि केंद्र सरकार ने राज्यों के ही कुछ फार्मूलों की नकल की है.
केंद्रीय बजट में इस साल घर खरीदने के बारे में सोचने वालों के लिए विशेष सुविधा का ऐलान किया गया है, लेकिन पश्र्चिम बंगाल के शहरी विकास मंत्री फरहाद हकीम कहते हैं कि यह सुविधा पश्र्चिम बंगाल के लोगों को देने के बारे में राज्य सरकार पहले ही फैसला कर चुकी है. इसके अलावा, राज्य सरकार केंद्र से पहले ही चिटफंड के खिलाफ बिल लेकर आई है. केंद्र में यह बिल लंबे वक्त से लटका था जिसे अब स्वीकृति मिली है. लेकिन हमारा बिल पहले पूरा हुआ. यह ममता बनर्जी की योजना थी. इसलिए हम कह सकते हैं कि केंद्र सरकार हमारी ही राह पर चल रही है. यह हमारे लिए गर्व की बात है कि केंद्र हमारी दिखाई राह पर चल रहा है.
कोलकाता की सड़कों पर आम लोगों से बातें करते हुए जो राय सामने आई उससे भी साफ प्रतीत हुआ कि केंद्रीय बजट आम लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा. बेहला के रहने वाले आशुतोष रॉयचौधुरी बांग्ला में कहते हैं -बांगाली मानुषेर विरोधी आछे एई बजट, आमरा तो किच्छु पाए नी- यानी केंद्रीय बजट आम बंगाली नागरिकों के खिलाफ है. हम बंगालियों को तो इससे कुछ भी हासिल नहीं हुआ. इसी तरह की मिली जुली राय अन्य बंगाली मध्यवर्गीय लोगों की भी थी. चाहे वे उल्टाडांगा के जीवानंद भट्टाचार्य रहे हों, या टॉलीगंज के बुजुर्ग फणीभूषण मजूमदार.
इक्का-दुक्का ऐसे लोग भी मिले जो केंद्रीय बजट की प्रशंसा कर रहे थे. गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के महासचिव रोशन गिरी ने बजट की तारीफ करते हुए कहा कि बजट से साफ जाहिर है कि भाजपा सरकार ग्रामीण अर्थ (रूरल इकोनॉमी) को प्राथमिकता दे रही है. उन्होंने प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना के अंतर्गत अगले एक साल में एक करोड़ युवाओं में इंटरप्रेन्योर स्किल्स डेवलप करने के मोदी सरकार के कदम की सराहना की. गिरी कहते हैं कि स्किल डेवलपमेंट सेंटरों के जरिए युवाओं के कौशल में सुधार होगा जिससे देश की बेरोजगारी की समस्या दूर करने में काफी मदद मिलेगी.
मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी पॉलित ब्यूरो ने बजट पर प्रतिक्रिया जताते हुए कहा कि केंद्रीय बजट में न तो विकास की दृष्टि है और न ही इसमें लोगों के हित को ध्यान में रखा गया है. इस बजट से असमानता, बेरोजगारी व कंट्रैक्ट निर्यात बढ़ेगा.
इससे कृषि के क्षेत्र में तकलीफ बढ़ेगी. बजट में पब्लिक सेक्टर के विनिवेश के जरिये 56500 करोड़ रुपये उगाहने की बात कही गई है. पर, बीमा व खाद्य क्षेत्र में विनिवेशीकरण का बुरा प्रभाव पड़ेगा तथा इससे भारतीय अर्थव्यवस्था भी अस्थिर होगी. दूसरी तरफ प्रदेश भाजपा ने स्वाभाविक तौर पर केंद्रीय बजट की प्रशंसा की और इसे विकासोन्मुखी बताया.
पश्र्चिम बंगाल प्रदेश भाजपा के आर्थिक सेल के संयोजक डॉ. धनपत राम अग्रवाल ने कहा है कि यह बजट अर्थव्यवस्था को और मजबूत करेगा जो कि विश्र्व में सबसे तेज गति यानी 7.6 फीसदी की दर से विकास कर रही है. भारत को स्थिरता के लिए विश्र्व भर में जाना जा रहा है. बजट प्रस्ताव से नए रोजगार का सृजन होगा और मझोले व छोटे उद्यम को और ऋण मिल सकेगा. केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कृषि और आधारभूत ढांचे के लिए अतिरिक्त आवंटन मंजूर किया है.
इससे सामग्रिक विकास हो सकेगा. वित्तीय घाटा भी नियंत्रण में है. काले धन की रोकथाम के लिए उपाय अपनाए गए हैं. जबकि पश्र्चिम बंगाल कांग्रेस ने केंद्रीय बजट को देश के संघीय ढांचे का विरोधी बजट बताया है. प्रदेश कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वरिष्ठ विधायक डॉ. मानस रंजन भुईंया ने केंद्रीय बजट को संविधान का संघीय ढांचा विरोधी करार दिया और कहा कि इसके पहले वर्ष के बजट में जेटली ने कहा था कि वह कॉऑपरेटिव फेडरलिज्म के पक्षपाती हैं, लेकिन बजट में साफ है कि यह पूरी तरह से केंद्रीय बजट है.
पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के समय बजट में प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना में केंद्र की भागीदारी 100 फीसदी होती थी, लेकिन बजट में इसे घटा कर 60 फीसदी कर दिया गया है. अब राज्य में 40 फीसदी अधिक भार पड़ेगा. इसके साथ ही केंद्रीय वित्त मंत्री ने मनरेगा के लिए 3000 करोड़ रुपये आवंटित करने की घोषणा की है, लेकिन यह राशि तो वेतन मद में ही खर्च हो जाएगी. केंद्र सरकार ने राज्यों की 25 योजनाओं को बंद कर दिया है, जिसका भार अब राज्यों को ही वहन करना पड़ रहा है.
मानस भुईंया ने कहा कि केंद्रीय बजट किसान व गरीब विरोधी और उद्योगपतियों के हित का बजट है. उन्होंने कहा कि वित्त मंत्री ने घोषणा की कि 15 हजार करोड़ रुपये किसानों के ऋण को माफ कर दिया है, लेकिन पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने अपने बजट में 72 हजार करोड़ रुपये किसानों के कर्ज माफ किए थे.
असम के सांसद और ऑल इंडिया यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट के नेता बदरुद्दीन अजमल ने बजट को निराशाजनक बताया और कहा कि इसमें खेती और किसानों के लिए बड़े-बड़े आइडिया तो हैं लेकिन सवाल यह है कि सरकार उन पर अमल कैसे करेगी. वित्त मंत्री ने 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने की बात तो कह दी लेकिन देखने वाली बात यह होगी कि 2019 के बाद वो अपने लंबे-लंबे वादों को कैसे पूरा करते हैं.
मनरेगा और आधार जैसी यूपीए की तमाम योजनाओं का प्रधानमंत्री मोदी अक्सर मजाक उड़ाते रहे हैं, लेकिन बजट में उन्हीं योजनाओं पर खासा ध्यान दिया गया है. भाजपा ने यूपीए की बहुत सी योजनाओं को अपनाया है. साफ है कि यूपीए की योजनाओं को अपनी प्लेट में परोसना मोदी सरकार के काम करने का तरीका बनता जा रहा है. इस बजट में सबसे अफसोसजनक है कि इसमें डिफेंस और एजुकेशन को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है. इस बजट से साफ होता है कि संप्रदाय के आधार पर समाज को बांटने वाली केंद्र सरकार आम आदमी से अपनी पकड़ खोती जा रही है.