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संघ, कांग्रेस और धन्यवाद

महाराष्ट्र के चंद्रपुर में चंद्रपुर शहर युवक कांग्रेस के अध्यक्ष ने शहर के बीच एक बड़ा बैनर लगाकर सरसंघ चालक मोहन भागवत जी का आभार व्यक्त किया. मराठी में लिखे इस बैनर के मुताबिक देश की आजादी में कांग्रेस के योगदान की सराहना करने और ये कहने के लिए कि कांग्रेस ने देश को कई बड़े नेता दिए, जिसका अनुसरण आज भी लोग करते हैं, के लिए सरसंघ चालक मोहन भागवत को कोटि-कोटि धन्यवाद. यह बैनर चंद्रपुर के बीच शहर में लगने के बाद भारतीय जनता पार्टी के कार्यकर्ताओं की किरकिरी हो गई. उनके समझ के परे था कि वे इसका विरोध करें या साथ दें.

खबर के पीछे की खबर ये है कि कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी को चंद्रपुर के उस शहर अध्यक्ष से सीख लेने की जरूरत है. राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने अपने तीन दिन के कार्यक्रम में यह मैसेज तो देश को दिया कि लगातार कांग्रेस को गाली देने वाले और कांग्रेस के पूर्व नेताओं को गलत कहने वाले कहीं न कहीं गलत हैं.

राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के ऐसे कई स्वयं सेवक हैं, जो वर्तमान सरकार से नाराज हैं. लेकिन राहुल गांधी जितना संघ पर और मोहन भागवत पर हमला करेंगे, उतने ही वे स्वयं सेवक मजबूरी में भाजपा के साथ हो लेंगे. एक समय देश में ऐसा भी आया था कि संघ ने कांग्रेस का भी समर्थन किया था. एक कुशल राजनीतिज्ञ बनकर राहुल को ये स्ट्रैटजी अपनानी होगी. राहुल द्वारा लगातार की जा रही ऐसी बयानबाजी के कारण वे स्वयं सेवक मजबूरी में सरकार के साथ हो लेंगे, जो भाजपा और सरकार से दुखी हैं. ये कांग्रेस के लिए नुकसानदेह होगा.

भगवान भरोसे राजनीति

2019 के चुनाव को देखते हुए देश के विभिन्न राजनीतिक दल अलग-अलग भगवानों के शरण में जाते हुए दिखाई देते हैं. केन्द्र में और देश के सबसे ज्यादा राज्यों में जिस पार्टी की सत्ता है, वह भारतीय जनता पार्टी पिछले 25 साल से राम के भरोसे चल रही है. राम की मार्केटिंग कर उन्होंने मतदाताओं का इतना विश्वास प्राप्त किया कि पूरा देश भगवा हो गया. भारतीय जनता पार्टी की सफलता को देखते हुए देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस भी अब सॉफ्ट हिन्दुत्व की तरफ मुड़ रही है. कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष राहुल गांधी भगवान शिव के शरण में चले गए.

अब वे जहां जाते हैं, शिव जी के नारे गूंजते हैं और बम बम भोले के जयकारे लगते हैं. लगता है, अगले चुनाव में कांग्रेस शिव के भरोसे मैदान में उतरेगी. उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा लड़ाई का केन्द्र होगा. वहां सामजवादी पार्टी, जो एक समय मुसलमानों की हितैषी मानी जाती थी, उन्होंने भी भगवान विष्णु के चरणों में शरण ली. अखिलेश जी ने शायद ये सोचा कि जिस भगवान विष्णु के अवतार राम हैं और उनके भरोसे यदि भाजपा सत्ता में आ सकती है तो मैं सीधे भगवान विष्णु के ही भरोसे क्यों नहीं सत्ता में आऊं.

खबर के पीछे की खबर ये है कि पिछले कुछ महीनों से जिस हिसाब से सारी राजनीतिक पार्टियां धर्म की ओर मुड़ रही हैं, उससे लगता है कि 2019 का लोकसभा चुनाव भगवानों के बीच में ही होगा. क्योंकि समाज की जो बेसिक समस्याएं है-बेरोजगारी, किसानों की आत्महत्या, अतिवृष्टि, सूखा, पीने का पानी, ऊर्जा, गिरता रुपया, पेट्रोल के बढ़ते दाम, महंगाई इसके लिए किसी के पास कोई समय नहीं है न कोई ब्लूप्रिंट है. आने वाले समय में अब तो जनता को देखना है कि वाकई भगवान के भरोसे चलने वाले इन राजनीतिक दलों पर वे भरोसा रखे या यथार्थ के धरातल पर काम करने वालों पर.

जीडीपी के साथ बेरोजगारी बढ़ी

देश में जीडीपी ग्रोथ रेट बढ़ने के साथ ही नौकरियों के मौके भी कम होते जा रहे हैं. अजीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी के सेंटर फॉर सस्टेनवल इम्प्लायमेंट ने एक रिपोर्ट जारी की और उस रिपोर्ट के अनुसार, देश में अनइम्पलायमेंट का प्रतिशत सोलह फीसदी तक पहुंच गया है. 2013 से 2015 के बीच 70 लाख नौकरियां कम हो गईं, ऐसा रिपोर्ट का कहना है. रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि हमारे देश में जो इम्पलाय लोग हैं, उनमें से 82 प्रतिशत पुरुषों का और 92 प्रतिशत महिलाओं का वेतन 10 हजार रुपए से भी कम है. खबर के पीछे की खबर ये है कि हमारे देश की सरकार वास्तविकता से दूर भाग रही है.

देश में लगातार हो रहे आन्दोलन और युवाओं का उसमें सहभाग, इस बात को दिखाता है कि देश में वाकई युवा बेरोजगार है और रोजगार के लिए लड़ रहा है. सरकार विभिन्न योजनाओं का रिफरेंस देते हुए रोजगार निर्मित होने की बात करती है, लेकिन ठोस आंकड़े उसके पास भी नहीं है. जब से मोदी सरकार सत्ता में आई, उस दिन से आजतक सरकार चुनावी मोड में है. इसलिए जो पूरे किए जाने वाले वादे के लिए आंकड़ों का खेल होता है. लेकिन वास्तविकता जनता जानती है. यदि 50 चपरासी की पोस्ट के लिए 92 हजार एप्लीकेशसं आते हैं और उसमें भी पीएचडी से लेकर पोस्टग्रेजुएट लोगों के,तो देश में बेरोजगारी का आलम क्या है, सबको दिखाई देता है. ये समय आ गया है कि सरकार को ऐसे विभिन्न रिपोर्ट को गंभीरता से लेते हुए आंखें खोलकर देखना चाहिए कि देश की वास्तविकता क्या है? नहीं तो चुनावी मोड में रहने वाली सरकार गवर्नेंस करना ही भूल जाएगी.

संसद के भरोसे दागियों का भविष्य

जिस संसद में तीस प्रतिशत सांसद दागी हो, उन्हीं को सुप्रीम कोर्ट ने दागियों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए कानून बनाने को कहा है. एक याचिका पर अपना फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मात्र आरोप पत्र दाखिल होने से हम किसी भी दागी को चुनाव लड़ने से रोक नहीं सकते. हां, उन्होंने ये जरूर कहा कि जो दागी चुनाव लड़ेगा, उसे ये सार्वजनिक रूप से बताना होगा कि किस-किस प्रकार के मुकदमे उस पर चल रहे हैं और किस-किस प्रकार के गुनाह उस पर दाखिल हो चुके हैं. वर्तमान संसद में 230 दागी सांसद हैं.

यदि हम लोकसभा और राज्यसभा की बात करें तो लोकसभा में 179 दागी सांसद हैं, उनमें से 114 पर गंभीर आपराधिक प्रकरण हैं. राज्यसभा में 51 सांसद दागी हैं, उनमें से 20 ऐसे हैं जिनके ऊपर गंभीर आरोप हैं. यदि पार्टी वाइज बात करें तो भाजपा के 107 दागी सांसद हैं, उनमें से 64 पर गंभीर आरोप हैं. कांग्रेस के 15 दागी हैं, जिनमें से आठ पर गंभीर आरोप हैं. यदि राज्यों की बात करें तो झारखण्ड ऐसा राज्य है, जहां 63 प्रतिशत विधायक दागी हैं. नॉर्थ ईस्ट के जो पांच राज्य हैं, वहां दागियों का प्रतिशत न के बराबर है. सबसे शर्मनाक बात ये है कि सांसद और विधायकों में 48 ऐसे लोग हैं, जिनके ऊपर महिलाओं के खिलाफ आपराधिक मामले हैं.

खबर के पीछे की खबर ये है कि सुप्रीम कोर्ट ने ये जरूर कहा कि दागियों को चुनाव लड़ने से पहले अपने ऊपर जितने भी आरोप है और मुकदमे चल रहे हैं, उसे सार्वजनिक करना होगा. लेकिन क्या ये हमारे देश में एक बड़ा मजाक नहीं है कि हमारी राजनीतिक पार्टियां दागियों को ही चुनाव लड़वाती हैं, क्योंकि वो जिताऊ उम्मीदवार होते हैं. राजनीतिक पार्टियां सत्ता के हवस में दागियों को अपने नजदीक करते हैं. अब ये मतदाताओं पर निर्भ करता है कि वे दागियों को चुनाव में जितवाने के पहले उन्हें दरकिनार कर दें.

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