ये उस दौर की बात है जब देश में न तो कोई प्राइवेट टीवी चैनल था और न इंटर्नेट या सोशल मीडिया । उस दौर में टीवी समाचारों पर सरकार के दूरदर्शन का एकाधिकार तोड़ते हुए मैंने 1989 में कालचक्र विडीओ मैगज़ीन की शुरुआत कर भारत में स्वतंत्र हिंदी टीवी पत्रकारिता की स्थापना की थी।
हमारे पहले अंक के दिसम्बर 1989 में जारी होते हुए ही राजनीतिक, औद्योगिक और मीडिया जगत में भूचाल आ गया था। देश के बड़े-बड़े लोग इस माध्यम का प्रभाव और हमारी बेबाक़ी देखकर सकते में आ गये थे।
तब मुझे कई बड़े उद्योगपतियों व राजनेताओं ने मेरे दफ़्तर आकार बड़ा फ़ाइनैन्स देने या दिलवाने का प्रस्ताव किया ।
अगर मैं स्वीकार कर लेता तो कालचक्र देश का पहला हिंदी TV समाचार चैनल होता। पर मैं दूसर्रों की बंदूक़ अपने कंधों पर चलाने को राज़ी न था। क्योंकि मुझे अपने देश और देशवासियों के हक़ में टीवी पत्रकारिता करनी थी। एक तरफ़ा रिपोर्टिंग , चारण या भांड़गिरी नहीं। इसलिये साधनहीनता के कारण मैंने बहुत कठिन संघर्ष किया पर अपनी निडर , निर्भीक और खोजी पत्रकारिता से कालचक्र ने देश में झंडे गाड़ दिये।
मुझे याद है मुम्बई में अनिल अम्बानी की शादी में शामिल होकर लौटे केंद्रिय मंत्री वसंत साठे ने मुझे बताया था कि वहाँ शादी में उद्योगपतियों और नेताओं के बीच तुम्हारे कालचक्र की ही चर्चा प्रमुखता से हो रही थी।
निष्पक्ष रहने के इसी तेवर के कारण ही मैं कालचक्र में 1993 में ‘ जैन हवाला कांड ‘ उजागर कर सका । जिसने देश की राजनीति को बुरी तरह हिलाकर रख दिया। जबकि इतने बड़े-बड़े मीडिया घराने 1947 से 1993 तक इतना बड़ा ऐसा एक भी घोटाला उजागर करने की हिम्मत नहीं कर पाये थे, जिसमें लगभग हर प्रमुख दल के बड़े नेता आरोपित हुए हों।
अपने लोकप्रिय प्रधानमंत्री मोदी जी को भी ये सब घटनाक्रम याद होगा । क्योंकि तब वे जनता में न पहचाने जाते हों पर भाजपा के सक्रिय कार्यकर्ता तो थे । आज जब वे सार्वजनिक मंच पर जिन चैनल मालिकों के संघर्ष की प्रशंसा करते हैं वे लोग वही हैं जिन्होंने हर काल में सत्ताधीशों के इर्द-गिर्द रहकर बड़े आर्थिक लाभ कमाये और अपने मीडिया साम्राज्य खड़े किये। इसीलिये वे आज टीआरपी चाहे जितनी बता दें , पर पत्रकारिता में कोई इतिहास नहीं रच पाये हैं । हाँ फ़िल्मी सितारों की तरह ग्लैमर स्टार ज़रूर बन गये हैं।
मेरा हमेशा से मानना रहा है कि पत्रकारिता एक मिशन है -व्यवसाय नहीं। अगर आप सब इस भावना का सम्मान करें व छोटा-छोटा भी सहयोग करें तो हम मिलकर कालचक्र को फिर से जनता के हक़ में खड़ा कर सकते हैं। जिसकी शायद आज ज़्यादा ज़रूरत है। ऐसा हमारे शुभचिंतकों का कहना है, आपका क्या विचार है?
विनीत नारायण
कालचक्र समाचार ट्रस्ट
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