हम ठगे से हैं। इस वक्त के बूढ़े कभी सोचेंगे कि जीवन में अवाक कर देने वाली घटनाओं का साबका कभी ऐसे होगा ! राजनीति ही नहीं, पर्यावरण भी। कब ऐसा सोचा गया होगा कि आप सब कुछ अपनी आंखों के सामने होता हुआ देखेंगे और खुद को बेबस महसूस करेंगे। राजनीति और पर्यावरण ये दोनों इंसान के जीवन को प्रत्यक्ष प्रभावित करने वाली वे ताकतें हैं जिसमें हमारा कर्मशील समाज अपने बहीखाते लिखता है। हम अवाक इसलिए भी हैं कि दोनों आज गंदगी और प्रदूषण के सिरमौर बने हुए हैं और हमारे हाथ जैसे बंधे और मुंह सिला दिखता है।

सुप्रीम कोर्ट के जज सोशल मीडिया के प्रदूषण से परेशान हैं। उनकी परेशानी के कई सबब हैं। वे इसलिए भी परेशान हैं कि अदालतों और जजों पर बेहूदा टिप्पणियां की जाती हैं और किसी पर कोई लगाम नहीं है। सबसे ज्यादा हैरानी की बात यह है कि यह सोशल मीडिया आज से नहीं पिछले छ: साल से बिगड़ा हुआ है। और इसका बिगाड़ समाज में गंदगी और नफरत के सिवाय कुछ नहीं। पिछले सात साल से हर जज और हर वकील इसे देख और भुगत रहा है। समाज तो जड़ हो ही चुका है तो ऐसे में अच्छा होता यदि सुप्रीम कोर्ट स्वत: संज्ञान लेता। सुप्रीम कोर्ट का नजरिया भी आधा अधूरा रहा।

अगर वह सोशल मीडिया की वेबसाइट्स से नफरत की बू महसूस करता है तो साम्प्रदायिक घृणा तो सबसे ज्यादा टीवी के मुख्य चैनलों पर फैलाई जा रही है और कौन हैं वे ताकतवर लोग जिनका जिक्र सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश कर रहे हैं। सारे चैनल तो इन्हीं ताकतवर लोगों के हाथों में समाये हुए हैं। तो क्या मान लें कि अदालतें भी ठगी सी खुद को पा रही हैं। वक्त ने इन्हें भी कुछ वैसा ही बना छोड़ा है। मुख्य न्यायाधीश और जस्टिस चंद्रचूड़ जो कुछ कोर्ट के बाहर कह रहे हैं और जिसे हम सब अपनी बात समझ कर प्रसन्न हो रहे हैं वे सब उनकी कार्यवाही में भी दिखना चाहिए। कोर्ट का सरकार से पूछना कि इन सब पर लगाम लगाने के लिए कोई नियम कायदे हैं कि नहीं, हैरान कर देने वाला है। कोर्ट और माननीय न्यायाधीशों को सब पता है। सरकार तो पहले से ही सोशल मीडिया पर लगाम चाहती है। तब टीवी चैनलों का क्या होगा ? सवाल कई हैं। पर इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से थोड़ी निराशा हुई है। कहने में कोई हर्ज नहीं।

नपुंसक वक्त का नपुंसक समाज विरोधी पार्टियों, खासकर कांग्रेस में दिखाई देता है। कांग्रेस पर एक खास विश्लेषण गये रविवार ‘लाउड इंडिया टीवी’ पर अभय दुबे और संतोष भारतीय के बीच का सुनना चाहिए। अभय दुबे की बातें साबित करती हैं कि देश की सबसे बड़ी और बीजेपी से पूरे देश में अकेले लड़ने की ताकत रखने वाली पार्टी कांग्रेस आज तीन लोगों की बंधक बन कर रहे गयी है। पूरा देश देख रहा है, सारे प्रबुद्धजन और तमाम कांग्रेसी देख रहे हैं लेकिन बिसात वैसी बिछी है जैसी द्रोपदी के चीरहरण के समय पाण्डवों के सामने थी। सब नपुंसक। मोदी ने पहले दिन से गहरी चाल चली और एक धुरंधर खिलाड़ी की भांति कांग्रेस और राहुल गांधी को अपने लिए अपने पक्ष में वरदान साबित कर लिया।

सब कुछ अपने वश में करके पूरे देश दुनिया में यह संदेश दे ही दिया कि कांग्रेस इस देश के लिए कितनी घातक है। राहुल गांधी आज तक उस छवि को नहीं तोड़ पाया जो बीजेपी ने उसकी बना कर घर घर पहुंचा दी। मात्र प्रेस कॉन्फ्रेंस और ट्विटर पर बयान देना या चीखने चिल्लाने को ही ‘पालिटिक्स’ समझ लिया। कांग्रेस के अंधभक्त इसी में खुश हैं।
अभय दुबे ने कांग्रेस की पूरे देश में बनी आज की हालत को तफसील से बयान किया। सुनने वाला विश्लेषण है। वे कहते हैं कि आज की यह कांग्रेस तदर्थवाद पर चल रही है, जिसमें निरंतरता का अभाव है। राहुल गांधी और प्रियंका दोनों नेता के रूप में ‘फ्लाप’ हो चुके हैं।

और सबसे ज्यादा इन लोगों का नौसीखियापन यह है कि जिन प्रदेशों में गुटबाजी नहीं है वहां ये गुटबाजी पैदा कर रहे हैं। पंजाब और छत्तीसगढ़ इसके उदाहरण हैं । वे यह भी खुलासा करते हैं कि मां, बेटा, बेटी तीनों में मतभेद हैं। अभय और संतोष जी की इस बातचीत में कई दिलचस्प खुलासे भी हुए। महत्वपूर्ण यह है कि जो कांग्रेस को छोड़ना चाह रहे हैं वे तो छोड़ ही रहे हैं पर जो रहना चाहते हैं उनके लिए आप क्या कर रहे हैं। इस संदर्भ में सुष्मिता देव का उदाहरण ताजा है, जो कांग्रेस छोड़ कर टीएमसी में चली गयी हैं। बीजेपी ने भी उन पर डोरे डाले थे। तो कहने का अभिप्राय यही है कि मोदी के सामने कांग्रेस है और कांग्रेस को आलाकमान ने नपुंसक सा बना दिया है। मोदी से त्रस्त यह देश करे तो क्या करे ?

सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा कि बुद्धिजीवी सरकार का सत्य सामने लाएं ।काश कोई यह भी कहे कि कांग्रेस के उद्धार के लिए बुद्धिजीवी प्रयत्न करें या पहल करें। आज का सबसे बड़ा सत्य यही है कि यदि कांग्रेस पूरे देश में खुद को बाहुबली के रूप में आज भी तैयार कर ले तो शायद किसी क्षेत्रीय दल की भी जरूरत न पड़े। मोदी ने बड़ी चतुराई से इसी विचार पर चोट की थी और तब से ही कांग्रेस न केवल गश खाये पड़ी है बल्कि अंदरूनी सिर फुटव्वल से दो चार हो रही है। इस नपुंसक वक्त का अंत कब होगा। पचास पचास प्रतिशत के दांव देखे जा रहे हैं आने वाले समय में। बाकी सोशल मीडिया की भयावहता से जितना सुप्रीम कोर्ट परेशान है उतना ही हम भी हैं। यूट्यूब अब देखा नहीं जाता। कुछ गिने चुने कार्यक्रम और गिनती की वेबसाइट्स।

‘द वायर’ को वियना के International press Institute से प्रतिष्ठित Free media pioneer award मिला है। सिद्धार्थ वरदराजन, एम के वेणु और उनकी पूरी टीम बधाई की पात्र है। इसका तमगा आरफा खानम शेरवानी के सिर पर भी जाना चाहिए। क्योंकि वायर की भीतरी दुनिया से ज्यादा दर्शक और श्रोता बाहरी दुनिया से प्रभावित होता है। और बाहरी दुनिया में आरफा छायी हैं। वायर की पूरी टीम को सलाम !

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