मगध अपनी सांस्कृतिक एवं ऐतिहासिक विरासत के लिए जाना जाता है, लेकिन गर्मी का मौसम आते ही इसके सांस्कृतिक, धार्मिक एवं ऐतिहासिक महत्व भीषण जलसंकट के कारण गौण हो जाते हैं. पिछले तीन दशक से मगध से जीतकर विधानसभा जाने वाले विधायकों में आधा दर्जन ऐसे रहे जो सूबे के जल संसाधन मंत्री(पीएचईडी) हुए. लेकिन इसके बावजूद मगध की प्यास बुझाने की बात तो दूर, यहां की प्यास को कम भी नहीं किया जा सका. इस समय मगध के पांच जिलों गया, औरंगाबाद, जहानाबाद, अरवल और नवादा में भीषण जलसंकट है. मगध के पहाड़ी क्षेत्रों में आने वाले गावों के ग्रामीण जलसंकट की समस्या से सबसे अधिक प्रभावित हैं. सरकार की ओर से जलसंकट दूर करने के लिए जो प्रयास किए जा रहे हैं, ऊंट के मुंह में जीरा जैसी कहावत को चरितार्थ कर रहे हैं. सरकार को जानकारी है कि मगध के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में कितनी आबादी है और यहां प्रतिदिन कितने पानी की जरूरत है. लेकिन बावजूद इसके संबंधित विभागों द्वारा गर्मी शुरू होने के पूर्व जलसंकट की समस्या को दूर करने के लिए कोई उपाय नहीं किए जाते. जब गर्मी का मौसम शुरू होते ही जलसंकट की समस्या उतपन्न होती है, तब जाकर विभाग और अधिकारियों की नींद खुलती है. उसके बाद आनन-फानन में हैंडपम्पों, प्याऊं एवं जलापूर्ति केंद्रों की मरम्मत के लिए विभागीय अधिकारियों में सुगबुगाहट शुरू होती है.
1980 के बाद मगध के कई ऐसे विधायक हुए जिनके पास लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग रहा, लेकिन उन्होंने मगध की प्यास बुझाने के लिए कोई उपाय नहीं किए. जिसका नतीजा है कि वर्तमान समय में मगध भीषण जलसंकट का सामना कर रहा है. गया जिले के मुफ्फसिल विधानसभा क्षेत्र तथा वर्तमान में वजीरगंज के विधायक अवधेश कुमार सिंह राज्य में कांग्रेस के अंतिम सरकार में जल संसाधन मंत्री (पीएचईडी) हुआ करते थे. इसी प्रकार बेलागंज एवं जहानाबाद के पूर्व विधायक अभिराम शर्मा भी कुछ दिनों के लिए जलसंसाधन मंत्री बने थे. मगध के कई विधानसभा क्षेत्रों से जीतने वाले स्व. रामाश्रेय प्रसाद सिंह भी लंबे समय तक जल संसाधन मंत्री रहे. इसी प्रकार बिहार में बनी एनडीए की सरकार में गया शहर के विधायक डॉ प्रेम कुमार को भी सूबे में पेयजल संकट को दूर करने के लिए जल संसाधन मंत्रालय की कमान सौपी गई थी. इस समय राजद-जदयू की सरकार में भी जहानाबाद के घोषी विधानसभा से जीतने वाले कृष्ण नंदन वर्मा सूबे के जल संसाधन मंत्री हैं और साथ ही गया जिले के प्रभारी मंत्री भी हैं. लेकिन इनमें से किसी ने भी जनहित में पेयजल संकट को दूर करने के लिए कोई कारगार योजना नहीं बनाई, जिसकी वजह से गर्मी का मौसम शुरू होते ही मगध के लोगों के सामने भीषण जलसंकट की स्थिति उत्पन्न हो जाती है. अगर देखा जाए, तो गया और बोधगया अंतरराष्ट्रीय पयर्टन स्थल के रूप में जाना जाता है. लेकिन इन दोनों शहरों में यहां के लोगों के साथ देश-दुनिया से आने वाले पयर्टकों व तीर्थयात्रियों को भी जलसंकट का सामना करना पड़ता है.
Read also.. सरयू राय रघुवर से ख़फ़ा : मंत्रियों से मतभेद सरकार पर संकट
गया जिले के फतेहपुर, टनकुप्पा, वजीरगंज, अतरी, इमामगंज, डुमरिया, बांके बाजार, बाराचट्टी, मोहनपुर जैसे पहाड़ी क्षेत्रों के गांवों में पानी के लिए हाहाकार मचा है. लोगों को किसी तरह पीने का पानी उपलब्ध हो पा रहा है. नवादा जिले के कौआकोल, पकरीबरावां, गोविंदपुर, अकबरपुर, रजौली जैसे प्रखंडों के ग्रामीण व शहरी क्षेत्रों में भीषण जलसंकट है. औरंगाबाद जिले के मदनपुर, रफीगंज, देव आदि प्रखंडों में पेयजल संकट बरकरार है. जहानाबाद व अरवल जिले के शहरी क्षेत्रों में भी जलापूर्ति की बेहतर व्यवस्था नहीं होने की वजह से लोगों को भीषण जलसंकट का सामना करना पड़ रहा है. साढ़े पांच लाख की अबादी वाले गया नगर निगम क्षेत्र में तमाम प्रयासों के बाद भी अधिकतर वार्डों में जलसंकट की वजह से लोगों को काफी परेशानी उठानी पड़ रही है. जबकि गया नगर-निगम क्षेत्र में पंपिंग स्टेशन व जलापूर्ति केंद्र हैं. इसके अलावा 160 प्याऊं और विभिन्न योजनाओं से लगाए गए एक हजार हैंडपम्प भी हैं. लेकिन गया नगर निगम के दायरे में आने वाली आधी आबादी को जलापूर्ति नहीं की जा रही है. गया नगर-निगम क्षेत्र के दर्जन भर ऐसे मुहल्ले हैं जिन्हें ड्राईजोन माना जाता है. कुछ वर्ष पूर्व गया शहर के ड्राईजोन वाले इलाकों में जलापूर्ति के लिए जल संसाधन विभाग की ओर से किर्लोस्कर कम्पनी को ठेका दिया गया था. लेकिन कम्पनी ने ठीक से काम नहीं किया, जिसकी वजह से इन क्षेत्रों में गर्मी के दिनों में जलसंकट की स्थिति जस की तस है.
गया शहर के ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व को देखते हुए एशियन डेवलपमेंट बैंक ने इस शहर के जलसंकट को दूर करने के लिए 160 करोड़ की राशि दी है. इस राशि से आने वाले अगले 6 वर्षों में जलसंकट की समस्या को दूर करने के लिए बनी योजना को पूरा करना है. इस योजना की शुरुआत 1 जुलाई 2016 से होगी. इस योजना का मुख्य उद्देश्य गया शहर के प्रत्येक नागरिक को 24 घंटे और सातों दिन 135 लीटर पानी प्रतिदिन प्रति व्यक्ति के हिसाब से उपलब्ध कराना है. इसके लिए सभी घरों में वाटर मीटर का कनेक्शन दिया जाएगा. इसका शुल्क वाटर मीटर लेने वाले उफभोक्ताओं को देना होगा, जिससे गया शहर में पानी की बर्बादी पर रोक लगाई जा सके. गया शहर में आबादी के हिसाब से 65 मिलियन लीटर पानी की आवश्यकता है, जबकि आपूर्ति मात्र 33 मिलियन लीटर हो रही है. गया शहर में 1913 में जब पेयजल आपूर्ति की शुरुआत हुई थी, तब मात्र 6 फीट बोरिंग करने पर ही पानी निकल जाता था. लेकिन वर्तमान समय में गया शहर का भूमिगत जल इतना नीचे चला गया है कि 300 फुट तक बोरिंग कराने के बाद भी पानी नहीं निकल रहा है.
Read also.. जंग से मसाइल पैदा होते हैं हल नहीं
विशेषज्ञों का मानना है कि गया शहर में तेजी से मकानों की संख्या बढ़ रही है और हर घर में समरसिबल लगाया जा रहा है. जिसके कारण गर्मी का मौसम शुरू होते ही इस शहर में जलसंकट उत्पन्न हो जाता है. विशेषज्ञों के अनुसार मगध की जीवन रेखा माने जाने वाली फल्गू नदी का पानी अच्छा माना जाता था और इसके किनारे बसे लोगों को कुछ फीट बोरिंग करने के बाद ही पानी मिल जाता था. लेकिन वर्तमान में फल्गू नदी के अतिक्रमण और नदी में कूड़े फेंके जाने की वजह से उसका पानी भी प्रदूषित हो गया है. जिसकी वजह से लोगों के लिए पेयजल के भीषण संकट के साथ-साथ प्रदूषित पानी की समस्या भी उत्पन्न हो जाती है. गया शहर में दर्जनों तालाब और सरोवर थे, लेकिन तालाबों का अस्तित्व समाप्त हो गया है और बाकी बचे तालाबों का भी अतिक्रमण किया जा रहा है. राज्य सरकार को मालूम है कि जिस प्रकार बारिश के मौसम में उत्तर बिहार के लोग बाढ़ से परेशान रहते हैं, तो उसी प्रकार मगध की जनता को गर्मी का मौसम आते ही भीषण जलसंकट का सामना करना पड़ता है. उत्तर बिहार की बाढ़ की समस्या को दूर करने के लिए पहले ही पूरी तैयारी की जाती है, लेकिन मगध क्षेत्र में गर्मी के मौसम में उत्पन्न होने वाले भीषण जलसंकट को दूर करने के लिए कोई कार्य नहीं किया जाता है. जिसकी वजह से मगध की जनता को हर वर्ष गर्मी के मौसम में भीषण जलसंकट का सामना करना पड़ता है.