नारी ही थी जो चल दी
पुरूष के पीछे
वन के लिए जाते समय
नारी ही ने
दिन रात
विरह में
आंसू बहाए पुरूष के लिए
जब वह चला गया था
राज काज करने के लिए
दूर समुंदर किनारे
अज्ञातवास हो या
युद्ध क्षेत्र
या मीलों तक पैदल का सफ़र
नारी ने विकल्प नहीं चुना
पुरूष के अलावा कोई और
उधर कवि ,ब्रह्म
और ऋषि रुप में भी यही
पुरुष
नारी का नाम रखता रहा रहस्य
नारी को कहता रहा अवसर।
नारी को मानता रहा ठगिनी।
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