बिहार -झारखंड में अब नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई होगी. इसके लिए पूरी तैयारी कर ली गई है. नक्सल प्रभावी क्षेत्रों के संबंध में सभी तरह की जानकारी सरकारी खुफिया तंत्र के सहारे इकट्ठा की गई है. नक्सलियों के खिलाफ अभियान में लगे सुरक्षा बलों को स्थानीय पुलिस एवं अन्य सरकारी तंत्रों के बीच समन्वय बनाकर ठोस एवं कारगर कार्रवाई करने की रणनीति तैयार की गई है. गत 12 जून 2017 को केन्द्रीय सुरक्षा सलाहकार के विजय कुमार ने बिहार के गया जिला के बाराचट्टी स्थित कोबरा बटालियन के मुख्यालय में सुरक्षा बलों के अधिकारियों के साथ हुई बैठक में आवश्यक निर्देश दिए. इस बैठक में बिहार- झारखंड के सीमावर्ती क्षेत्रों समेत दोनों राज्यों से नक्सलियों के पूर्ण सफाए की रणनीति बनाई गई.
12 जून 2017 को गया जिले के बाराचट्टी के बरवाडीह स्थित कोबरा कैंप में केन्द्रीय सुरक्षा सलाहकार के विजय कुमार तमाम सुरक्षा बलों के पदाधिकारियों के साथ नक्सलियों के खिलाफ निर्णायक लड़ाई की तैयारी कर रहे थे, उसी दौरान गया जिले के कोठी थाना क्षेत्र के वसुरा गांव के पास सड़क निर्माण कर रहे कंपनी के दो जेसीवी को नक्सलियों ने फूंक दिया. यह हाल तब है, जब झारखंड की सीमा से सटे गया जिले के शेरघाटी अनुमंडल में कोबरा, सीआरपीएफ, एसएसबी के कैंप तथा बिहार पुलिस के दर्जन भर से अधिक थाने हैं. स्थानीय स्तर पर हर थाने में पंचायतों में चौकीदार की भी नियुक्ति है.
ये चौकीदार अपने क्षेत्र में आपराधिक गतिविधियों की जानकारी पुलिस को देते हैं. नक्सलियों की गतिविधियों की जानकारी भी इन चौकीदारों को होती है, लेकिन इनकी पुलिस से ज्यादा मिलीभगत नक्सलियों से होती है. यहां तक कि थाने के पुलिसकर्मियों की भी संलिप्तता नक्सलियों के साथ होती है. यही कारण है कि केन्द्रीय सुरक्षा बलों के तमाम प्रयासों के बाद भी नक्सलियों के खिलाफ कारगर कार्रवाई नहीं हो पाती है. नक्सलियों का सूचना तंत्र इतना मजबूत है कि सर्च ऑपरेशन की जानकारी नक्सलियों को पहले ही मिल जाती है. इसका प्रमुख कारण है कि स्थानीय लोगों, कुछ पुलिसकर्मियों के साथ-साथ बिहार-झारखंड के कई राजनेता आज भी नक्सलियों के संरक्षक बने हुए हैं.
प्रतिबंधित नक्सली संगठन भाकपा माओवादी की मध्य एरिया कमेटी का सचिव संदीप यादव उर्फ विजय यादव पिछले दो दशकों से बिहार-झारखंड के सीमावर्ती जिलों में सुरक्षा बलों के लिए चुनौती बना है. 42 साल के संदीप ने दो दशक पूर्व गया जिले के बांके बाजार में तत्कालीन थानेदार बिनोद सिंह पर बम फेंककर अपराध की दुनिया में कदम रखा था. बाद में बिहार-झारखंड की सीमा से लगे गया और औरंगाबाद जिलों में कई नक्सली घटनाओं को अंजाम देने के बाद उसका कद भी बढ़ता गया. आज की तारीख में संदीप स्थानीय पुलिस के अलावा केन्द्रीय सुरक्षा बलों के भी टॉप लिस्ट में है. इस कुख्यात नक्सली कमांडर के कई राजनेताओं से भी संबंध हैं.
12 जून 2017 की बैठक में नक्सलियों के खिलाफ कारगार अभियान चलाने का फैसला किया गया है, ताकि झारखंड से भागे नक्सलियों को बिहार के जंगलों में पनाह नहीं मिल सके. बैठक में नक्सलियों को उन्हीं की भाषा में जवाब देने की रणनीति तय की गई है. बैठक में बिहार-झारखंड के संबंधित जिलों के एसपी समेत अन्य सुरक्षा एजेंसियों के कमांडेंट ने भाग लिया.
लेकिन सवाल है कि नक्सलियों के खिलाफ अबतक निर्णायक कार्रवाई क्यों नहीं की गई? सुरक्षा बलों पर अबतक प्रति महीने खर्च हुए करोड़ों की राशि बेकार क्यों गई? नक्सली प्रभाव वाले क्षेत्रों में सरकारी खुफिया तंत्र लाचार क्यों नजर आता है? स्पष्ट है कि नक्सलियों को किसी न किसी रूप में सत्ता और राजनीति का संरक्षण प्राप्त है, तभी तो नक्सलियों के खिलाफ कोई अभियान सफल नहीं हो पाता है.
ज्ञात हो कि बिहार-झारखंड केे पन्द्रह जिलों के पचास नक्सली वर्षों से पन्द्रह हजार सुरक्षा बलों पर भारी पड़ रहे हैं. इन नक्सलियों पर सरकार ने 25 हजार से पांच लाख तक के इनाम घोषित कर रखे हैं. इन नक्सलियों पर 12 से लेकर 20-20 मामले दर्ज हैं. खुफिया विभाग के साथ-साथ सुरक्षा बलों तथा स्थानीय पुलिस के खुफिया विभाग भी इन क्षेत्रों में सक्रिय हैं. इसके बावजूद इन कुख्यात नक्सलियों का कोई सुराग नहीं मिल पा रहा है.