जैसी आशंका थी ठीक वैसे ही शरद यादव और जदयू नेताओं के बीच जुबानी जंग तेज हो गई है. शरद यादव पूरे बिहार के दौरे पर निकल पड़े हैं और इसमें राजद इनका पूरा साथ दे रहा है. शरद यादव जहां जा रहे हैं वहीं नीतीश सरकार को अपने जुबानी तीरों से घायल करने की कोशिश कर रहे हैं. शरद कहते हैं कि बिहार में अंधेर नगरी और चौपट राजा वाली कहावत चरितार्थ हो रही है. वे आरोप लगाते हैं कि विकास योजनाओं में लूट मची है. अगर ऐसा नहीं होता तो कोई बांध उद्घाटन के पहले थोड़े ही टूट सकता है. आरोपों से इतर शरद खेमा राजनीतिक दांव पेंच भी आजमा रहा है. शरद के खास और पूर्व मंत्री अर्जून राय ने यह कहकर सनसनी फैला दी कि हमलोगों ने विजेंद्र यादव को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार तय कर रखा है और उचित समय आने पर बिहार में इनके नेतृत्व में नई सरकार बन जाएगी. पार्टी पर कब्जे को लेकर तो लड़ाई चुनाव आयोग में चल ही रही है. कहा जाए तो शरद यादव पूरी ताकत लगा रहे हैं और कोशिश कर रहे हैं कि नीतीश खेमे को परेशानी में डाला जाए.

इधर राज्यसभा में जदयू के नेता आरसीपी सिंह शरद यादव पर जुबानी हमले कर रहे हैं. बीते दिनों उन्होंने शरद यादव को ये सलाह दे डाली कि आप आंखो की जांच कराकर चश्मे का नंबर बदलवाइए. उन्होंने कहा, शरद को कुछ भी बोलने से पहले सोचना चाहिए कि वे किसके साथ खड़े हैं. वे खुद भ्रष्टाचार में सजायाफ्ता लोगों के साथ हैं. दूसरों पर बोलने से पहले वे अपने गिरेबां में झांक कर देखें. शरद यादव वो दिन भूल गए, जब वे अपने लोकसभा चुनाव के दौरान गिनती में हुई धांधली के खिलाफ धरने पर बैठे थे. दोबारा गिनती हुई तब वे चुनाव जीते. वे बताएं कि उस समय किसका राज था. उन्हें ये भी बताना चाहिए कि क्या नीतीश कुमार ने किसी को छुड़ाने या बचाने के लिए पैरवी की है. बिहार की जनता जानती है कि शरद का यहां पर कोई आधार नहीं है. वे कभी जदयू तो कभी लालू प्रसाद के सहारे बिहार आते और घूमते रहे हैं. उनकी बिहार में अपनी क्या पहचान है? उन्हें तो जदयू ढो रहा था. आरसीपी सिंह ने शरद यादव से ये भी सवाल किया कि वे बताएं कि बिहार में अब कहां अंधेरा है. राज्य की सरकार ने बिजली की स्थिति को सुधार कर बिहार में अंधेरा खत्म कर दिया है. जीएसटी पर शरद यादव को कुछ समझ ही नहीं है. उन्होंने कहा कि जदयू ने शरद यादव पर सीधी कार्रवाई की है. चुनाव आयोग ने इनके दावे को भी खारिज कर दिया है.


जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह ने शरद यादव पर लालू को बचाने का आरोप लगाते हुए कहा कि उनकी यात्रा का असली मकसद भ्रष्टाचार के आरोपों में घिरे राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद की पारिवारिक विरासत और संपत्ति को बचाना है. साझी विरासत का नाम लेकर शरद सिर्फ जनता की आंखों में धूल झोंकने का प्रयास कर रहे हैं. उन्होंने कहा कि शरद जिस तरह के बयान दे रहे हैं, उससे उनकी हताशा साफ झलक रही है. शरद यादव से ऐसे बयान की उम्मीद नहीं थी. वैसे कल्पना के सागर में डूबने या गोते लगाने से किसी को रोका तो नही जा सकता है. वे जिले-जिले घूमकर अपना दुखड़ा रो रहे है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है. इधर लोजपा के प्रदेश अध्यक्ष व मंत्री पशुपति कुमार पारस ने भी शरद यादव को अपनी भाषा पर संयम रखने की नसीहत दी है. उन्होंने कहा कि बड़े नेताओं को कुछ भी बोलने से पहले सोचना चाहिए. जिस बिहार ने शरद को इतना मान-सम्मान दिया और जिस दल ने उन्हें राजनीतिक बुलंदी दी, आज उसी बिहार को और उसी जदयू को वे अपमानित कर रहे हैं.

पिछले दिनों नीतीश सरकार के वरिष्ठ मंत्री विजेंद्र यादव का नाम उछाल कर शरद खेमे ने दोहरी चाल चली. शरद खेमा चाह रहा है कि नीतीश से नाराज और भाजपा के साथ गठबंधन से नाराज जदयू के विधायक विजेंद्र यादव के नेतृत्व में एकजुट हों. शरद खेमे का ऐसा मानना है कि भाजपा के साथ गठबंधन को लेकर जदयू के यादव और मुसलमान विधायक बहुत खुश नहीं हैं. लेकिन दलबदल कानून के डर से ये विधायक चुप हैं वरना बहुत पहले ही ये सभी शरद यादव के साथ आ जाते. शरद खेमे का मानना है कि यादव व मुसलमान विधायक हर हाल में लालू का साथ चाहते हैं कि क्योंकि इन्हें अगले चुनाव में भी जीत कर आना है. ऐसे विधायकों को लगता है कि लालू प्रसाद का जो वोट बैंक है, वो अगली लड़ाई में इन्हें मदद कर सकता है. इसी धारणा को आधार मानते हुए अर्जुन राय ने विजेंद्र यादव का नाम मुख्यमंत्री पद के लिए उछाल दिया. अर्जुन राय का कहना है कि विजेंद्र यादव यह नहीं चाहते थे कि लालू प्रसाद के साथ रिश्ता खत्म किया जाय. पार्टी की बैठक में भी इन्होंने इसका कड़ा विरोध किया था. इसलिए हमलोग चाहते हैं कि विजेंद्र यादव के नेतृत्व में बिहार में नई सरकार का गठन हो. लेकिन शरद खेमे के इस तीर को सबसे पहले विजेद्र यादव ने ही भौथर कर दिया. विजेंद्र यादव कहते हैं कि पार्टी की बैठक में मैंने विरोध नहीं किया. हां, मेरे मन में कुछ आशंका थी जिसका मैंने इजहार किया था. लेकिन पार्टी ने उन शंकाओं का समाधान कर दिया. विजेंद्र यादव ने कहा कि एक मुख्यमंत्री केे तौर पर नीतीश कुमार ने इतनी लंबी लकीर खींच दी है कि इसको पीछे छोड़ना किसी के बस की बात नहीं है. जदयू में आंतरिक लोकतंत्र बेहद मजबूत है और जहां तक मुख्यमंत्री बनने की बात है, तो यह कोरा बकवास है और शरद खेमे में फैली हताशा का प्रतीक है.

शरद यादव खेमे के इस ताजा हमले के बाद नीतीश खेमा अब और भी आक्रामक हो गया है. पहली कोशिश हो रही है कि जल्द से जल्द शरद यादव की राज्यसभा सदस्यता को खत्म हो और शरद को पूरी तरह लालू के पिछलग्गू के तौर पर दिखलाया जाय. जदयू जनता में यह संदेश फैलाना चाहती है कि नीतीश कुमार ने जिस भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए महागठबंधन तोड़ दिया, शरद यादव उसी भ्रष्टाचार को संरक्षण देने के लिए लालू प्रसाद के पीछे-पीछे घूम रहे हैं. आने वाले दिनों में यह मुद्दा भी उठाया जाएगा कि शरद यादव अपने बेटे के टिकट के लिए लालू के शरण में चले गए हैं. नीतीश ने चूंकि परिवारवाद का विरोध किया, इसलिए शरद और नीतीश कुमार के रास्ते अलग हो गए. शरद यादव की बोलती बंद करने के लिए जदयू उनके दिल्ली के नेटवर्क को ध्वस्त करने की कोशिश में है. जमीनी ताकत में शरद यादव पहले से ही कहीं नहीं टिकते. देखा जाए तो अब लड़ाई आर-पार की है और सीज फायर की भी कोई गुंजाइश नहीं है. न शरद मानेंगे और न ही जदयू छोड़ेगा.

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