बेरोज़गारी एक ऐसा शब्द है जिसके स्मरण मात्र से ही न जाने कितनी बातें हर किसी के मन में उठने लगती हैं. इस शब्द का प्रयोग वैसे शिक्षित व अशिक्षित लोगों के लिए किया जाता रहा है जो अपने और परिवार के जीवन-यापन के लिए एक अदद नौकरी की तलाश में भटकते रहते हैं, लेकिन अब यह शब्द केवल आम लोगों के लिए ही उपयुक्त नहीं रह गया है. लोकतांत्रिक व्यवस्था के तहत चुनाव जीतकर सरकार में मौज करने वाले राजनीतिक दल के नेता भी इस श्रेणी में फिलहाल नजर आ रहे हैं जो विभिन्न राजनीतिक दलों से जुड़े हैं. मगर वर्तमान में इनकी पहचान एक पूर्व प्रतिनिध तक ही सिमटकर रह गई है. अंतिम चरण में संपन्न पंचायत चुनाव के बाद अब इनकी नजर उन प्रदेशों पर टिक गई है, जहां अब चुनाव की तैयारी अंतिम चरण में है. किसको कहां और क्या हाथ लगता है, अभी यह कहना मुश्किल है. वैसे जाति व पार्टी के प्रचारक की पहचान चुनावी मौसम में हर वक्त होती रही है.
उत्तर बिहार के सीतामढ़ी जिले में वर्तमान में तकरीबन दो दर्जन नेता बेरोजगारी का दंष झेलने को मजबूर हैं. इनमें पूर्व सांसद, पूर्व विधायक से लेकर पूर्व विधान पार्षद तक शामिल हैं. अब तक के संपन्न चुनावों में इनकी भूमिका पर अगर नजर डाली जाई, तो बहुत कम ही हैं जो जिले की राजनीति में अपनी सक्रिय भूमिका को लेकर लोगों के बीच चर्चा में रहे हैं. मगर चुनाव समाप्त होने बाद इनकी सक्रियता भी मौन धारण करने लगी है. जिले की राजनीति में अपनी सक्रियता की कवायद करने वाले इन नेताओं के कार्यशैली पर एक नजर डालते हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव से पूर्व सीतामढ़ी लोकसभा सीट पर अधिकांश यादव बिरादरी का कब्जा रहा. इनमें चार ऐसे पूर्व सांसद वर्तमान में मौजूद हैं जो जिले की राजनीति में अपनी पैठ कायम करने के लिए प्रयासरत हैं. इनमें पूर्व सांसद रामश्रेष्ठ खिरहर, नवल किशोर राय, सीताराम यादव व डॉ. अर्जुन राय शामिल हैं. पूर्व सांसद रामश्रेष्ठ खिरहर पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस से राजद में शामिल हुए थे. जबकि जिले के पुपरी अनुमंडल से राजनीति में आने वाले पूर्व सांसद नवल किशोर राय व सीताराम यादव के बीच राजनीतिक बर्चस्व की दावेदारी थमने का नाम नहीं ले रही है. गठबंधन की राजनीति की वजह से भले ही दोनों एक दूसरे के खिलाफ खुलकर बोलने से परहेज कर रहे हों, मगर दोनों नेताओं के बीच आंकड़ा हमेसा छत्तीस का ही रहा है.
डॉ. अर्जुन राय की बात करें, तो उन्होंने मुजफ्फरपुर जिले के औराई विधानसभा सीट से राजनीति में प्रवेश किया और सूबे की सरकार में मंत्री बनकर अपनी पहचान कायम की और बाद में सीतामढ़ी संसदीय सीट से जीत हासिल की.
जबकि स्थानीय निकाय से विधान परिषद चुनाव में बाजी मार चुके दो पूर्व विधान पार्षदों में एक नेता ने जहां जिले की राजनीति में अब तक अपने को जीवंत बनाए रखा है, तो वहीं दूसरे को जिले के लोग वर्षों पहले भूल चुके हैं. इनमें एक पूर्व सांसद सीताराम यादव के पुत्र दिलीप कुमार यादव हैं जो चुनाव हारने के साथ ही जिले की राजनीति से खुद को अलग कर लिया. वहीं दूसरी ओर पूर्व विधान पार्षद बैद्यनाथ प्रसाद दलगत समर्थन नहीं मिलने के बाद भी विधानसभा चुनाव में बेलसंड सीट से चुनाव लड़कर अपनी राजनीतिक पहचान को बचाने का प्रयास किया, लेकिन चुनाव में उनको सफलता नहीं मिली.
इनके अलावा सीतामढ़ी जिले के अलग-अलग क्षेत्रों का प्रतिनिधत्व कर चुके तकरीबन डेढ़ दर्जन पूर्व विधायक भी गंभीर राजनीतिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं. इनमें कई ऐसे भी हैं जो सूबे की सरकार में बतौर मंत्री कमान संभाल चुके हैं. इनमें रुन्नीसैदपुर के पूर्व विधायक नवल किशोर शाही व गुड्डी देवी, सुरसंड के नागेंद्र प्रसाद यादव, जयनंदन प्रसाद यादव, शाहिद अली खां व रवींद्र शाही, सोनबरसा से डॉ.रामचंद्र पूर्वे, रामजीवन प्रसाद व राम नरेश प्रसाद यादव, बथनाहा के सूर्यदेव राय व नगीना देवी, बेलसंड के संजय गुप्ता, मेजरगंज के गौरीशकर नागदंश, सीतामढ़ी के सुनील कुमार पिंटू व रीगा के मोतीलाल प्रसाद समेत अन्य शामिल हैं. इनमें कुछ तो ऐसे पूर्व प्रतिनिधि हैं जो क्षेत्र में जनता के बीच किसी न किसी रूप में अपनी उपस्थिति दर्ज कराते रहते हैं, तो कई ऐसे भी हैं जो चुनावी सीजन आने के साथ ही क्षेत्र में जनता के बीच प्रगट होते हैं.
वर्तमान में इन पूर्व प्रतिनिधियों के कार्यप्रणाली पर गौर करें, तो कई तथ्य सामने आ रहे हैं. सबसे अहम यह कि चुनाव हार जाने के बाद भी कुछ पूर्व प्रतिनिधि क्षेत्र की जनता की समस्याओं के निदान को लेकर जहां परेशान हैं, तो वहीं कुछ जनता के बीच विकास का खाका खींचने में लगे हैं. इनमें कुछ ऐसे भी हैं जिन्हें हर दिन हर पल अपना उल्लू सीधा करने के लिए मौके का इंतजार रहता है. जिले के रुन्नीसैदपुर विधानसभा क्षेत्र में अब भी चुनाव पर विराम नहीं लगा है. पूर्व विधायक गुड्डी देवी व उनके पति राजेश चौधरी अब भी क्षेत्र में लगातार दस्तक दे रहे हैं. पंचायत से लेकर प्रखंड स्तर तक की समस्या लेकर आने वाले लोगों के बीच अक्सर दोनों को देखा जाता है. वही सुरसंड क्षेत्र में जयनंदन प्रसाद यादव, तो रीगा में नगीना देवी व सूर्यदेव राय जनता के बीच अपनी उपस्थिति बनाए रखने का हरसंभव प्रयास कर रहे हैं. परिहार विधानसभा सीट से अपनी पत्नी गायत्री देवी को चुनाव जीताकर पूर्व विधायक रामनरेश प्रसाद यादव अपना बाजार बनाए रखने में लगे हैं. इनके अलावा अधिकांश या तो जिले से बाहर हैं या कहां हैं इसका जवाब किसी के पास नहीं है.
चुनावों में सक्रिय रहने वालों की माने तो कई पूर्व प्रतिनिधियों ने बेरोजगारी का हवाला देकर चुनावों में बिचौलिए की भूमिका निभाई. चुनावों में सेटिंग के खेल में माहिर कुछ नेताओं ने बेहतर प्रदर्शन कर अपनी राजनीतिक क्षमता का प्रदर्शन भी किया है. वहीं कुछ ने पर्दे के पीछे से ही अपने कुशल राजनीतिक अनुभव को आजमाया. इन नेताओं के समक्ष अब गंभीर बेरोजगारी का दौर शुरू हो गया है. आलम है कि जिले से नेताओं का पलायन भी शुरू हो चुका है और कोई पटना, तो कोई दिल्ली प्रवास पर निकलने लगा है. अब किसी पार्टी नेता के आगमन पर न जिंदाबाद का नारा लग रहा है और न ही सड़कों की घेराबंदी की जा रही है. केंद्र व राज्य सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर बहस का दौर जरूर जारी है. कोई कश्मीर की घटना पर केंद्र को घेर रहा है, तो कोई टॉपर घोटाले को लेकर राज्य सरकार पर सवाल खड़े कर रहा है. कुल मिलाकर अब देखना है कि नवनिर्वाचित प्रतिनिधि क्षेत्र के विकास को क्या दिशा दे पाते हैं?
चुनावी आस में भटक रहे राजनीतिक बेरोज़गार
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