मैने माना कि कुछ नहीं गालिब, मुफ्त हाथ आए तो बुरा क्या है…

page-3भारत की छह लाख एकड़ भूमि पर फैली हुई 4.9 लाख रजिस्टर्ड वक्फ संपत्तियों में से अधिकतर की स्थिति दयनीय है. स्वार्थी तत्वों की नज़र हमेशा से इन पर रही है और आज भी है, क्या सरकारी और क्या ग़ैर सरकारी. हद तो यह है कि संपत्ति दान करने वाले की मंशा के विरुद्ध इन पर नाजायज कब्जे हैं और ऐसा महसूस होता है कि हर एक व्यक्ति बकौल मिर्जा गालिब, मुफ्त हाथ आए तो बुरा क्या है…पर अमल कर रहा है. आश्‍चर्य की बात तो यह है कि मुसलमान, उनके कुछ संगठन और संस्थान भी अवैध कब्जेदारों की सूची से बाहर नहीं हैं. दिल्ली की 123 वक्फ संपत्तियां, जो पूर्ववर्ती मनमोहन सिंह सरकार द्वारा डी-नोटिफिकेशन के निर्णय के अनुसार दिल्ली वक्फ बोर्ड के अधीन प्राय: एक वर्ष पूर्व आ चुकी हैं, का भी कमोबेश यही हश्र हो रहा है.
यही वजह है कि दिल्ली वक्फ बोर्ड की वर्तमान अध्यक्ष राणा परवीन सिद्दीकी को सारे जहां से नाराज़गी और शिकायत है. उन्हें शिकायत सरकार, प्रशासन, मुसलमानों एवं उनके कुछ संगठनों से भी है. उन्हें इस बात की शिकायत है कि इन 123 वक्फ संपत्तियों में से आईटीओ स्थित मस्जिद अब्दुन नबी एवं मस्जिद गौसियान उर्फ झील के प्याऊ पर जमीयतुल उलमा हिंद के दोनों धड़े उसके आसपास की भूमि समेत काबिज हैं. दिल्ली वक्फ बोर्ड की अध्यक्ष सिद्दीकी, जो प्रसिद्ध वकील भी हैं, का कहना है कि 123 वक्फ संपत्तियों को बोर्ड को ट्रांसफर करने के संबंध में दो मार्च, 2014 के मनमोहन सिंह सरकार के निर्णय पर नरेंद्र मोदी सरकार द्वारा जांच शुरू कराना समझ से परे है. उनका कहना है कि ये तमाम संपत्तियां दान की हुई हैं, इसलिए 104 वर्ष के बाद उनकी वापसी पर जांच की आख़िर आवश्यकता क्यों आ पड़ी. उन्होंने बताया कि विश्‍व हिंदू परिषद ने 22 मई, 2014 को दिल्ली हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की, जिसके बाद केंद्र सरकार ने अब जांच शुरू की है. वह कहती हैं कि दिल्ली वक्फ बोर्ड भी अपना पक्ष न्यायालय के सामने जल्द ही पेश करेगा.
इस विवाद का विश्‍लेषण करते समय यह समझना आवश्यक है कि दिल्ली की 123 वक्फ संपत्तियां आख़िर हैं क्या. ग़ौरतलब है कि ब्रिटिश सरकार ने 1911-15 में कोलकाता से हटकर दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी बनाते समय यहां के विभिन्न स्थानों पर भूमि अधिग्रहण किया था, जिनमें बहुत-सी भूमि मस्जिदों, दरगाहों, कब्रिस्तानों एवं अन्य वक्फ की भी थीं, जिन्हें बिना अलग किए हुए सरकार के अधीन कर लिया गया. इसके विरुद्ध मुकदमे भी किए गए. यही कारण है कि दिल्ली मजलिस औकाफ, जिसका उत्तराधिकारी दिल्ली वक्फ बोर्ड है, ने औकाफ की भूमि का मुआवज़ा लेने से इंकार कर दिया था. देश आज़ाद होने के बाद तक उक्त मुकदमे विभिन्न अदालतों में लटके रहे.
वक्फ बोर्ड की स्थापना के बाद वक्फ संपत्तियों, विशेषकर उन धार्मिक स्थलों की वापसी की मांग जोर पकड़ने लगी, जो अधिग्रहण होने के बावजूद बोर्ड की देखभाल एवं निगरानी या मुसलमानों के इस्तेमाल में थीं. तब 1970 के दशक में केंद्र सरकार ने एक जांच कमेटी बना दी, जिसकी रिपोर्ट सैय्यद मुजफ्फर हुसैन बर्नी के नेतृत्व में तैयार हुई, जिसे बर्नी रिपोर्ट भी कहते हैं. इस कमेटी ने ऐसी 250 संपत्तियां चिन्हित कीं, जो वक्फ की थीं. इस रिपोर्ट पर अमल करने के लिए मीर नसीरुल्लाह के नेतृत्व में एक और कमेटी गठित की गई, जिसने इन 250 संपत्तियों में से 123 ऐसी संपत्तियों का खुलासा किया, जिन्हें वक्फ बोर्ड को ट्रांसफर किया जा सकता था. सरकार ने 1984 की शुरुआत में निर्णय लिया कि इन 123 संपत्तियों का मालिकाना हक़ दिल्ली वक्फ बोर्ड को वापस कर दिया जाए. इस संबंध में 27 मार्च, 1984 को एक नोटिफिकेशन जारी किया गया. उस समय इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री थीं. सेंट्रल वक्फ काउंसिल के पूर्व सेके्रटरी डॉ. मोहम्मद रिजवानुल हक़ कहते हैं कि उस समय दो ग़लत घटनाएं हुईं. नोटिफिकेशन प्रकाशित होने से दो दिनों पहले यह बात मीडिया तक पहुंच गई, जिसके कारण एक दिन पहले यह ख़बर इस तरह प्रकाशित की गई कि सरकार इन संपत्तियों को एक रुपये वार्षिक प्रति एकड़ की दर से लीज पर दे रही है. दूसरी घटना यह हुई कि नोटिफिकेशन में इन संपत्तियों को वक्फ संपत्ति के तौर पर दिल्ली वक्फ बोर्ड को सौंपने के बजाय एक रुपये वार्षिक प्रति एकड़ की दर से उसी बोर्ड को लीज पर देने की बात कही गई, जो पूर्ण रूप से सही नहीं थी, बल्कि सरकार के निर्णय एवं मंशा के विरुद्ध भी थी. उस समय मोहसिना किदवई संबंधित मंत्रालय की मंत्री थीं.
इन दोनों घटनाओं का प्रभाव यह पड़ा कि रातोंरात एक संगठन इंद्रप्रस्थ हिंदू महासभा के नाम से अस्तित्व में आ गया और उसने नोटिफिकेशन जारी होते ही दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर कर दी और उस पर स्थगनादेश ले लिया. यह स्थगनादेश 27 वर्षों तक कायम रहा. डॉ. रिजवानुल हक़, जो उस समय सेंट्रल वक्फ काउंसिल के सचिव थे, ने चौथी दुनिया को बताया कि उस समय सेंट्रल वक्फ काउंसिल के आग्रह पर सात अप्रैल, 2008 को केंद्रीय मंत्री जयपाल रेड्डी के चैंबर में एक बैठक बुलाई गई, जिसमें वह स्वयं भी मौजूद थे. मंत्री जी ने कहा कि इस संबंध में ज़रूरी फैसले ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स द्वारा ही लिए जा सकते हैं. इस तरह केंद्र सरकार इस मसले पर टाल-मटोल करती रही. तब दिल्ली हाईकोर्ट ने 12 जनवरी, 2011 को 123 वक्फ संपत्तियों से संबंधित इंद्रप्रस्थ हिंदू महासभा की याचिका सी-1512/1984 खारिज कर दी और सरकार को निर्देश दिया कि वह इस संबंंध में छह माह के अंदर अंतिम फैसला करे, लेकिन सरकार समय पर समय लेती रही.
बहरहाल, इस संबंध में मनमोहन सिंह सरकार ने दो मार्च, 2014 को अंतिम निर्णय लेते हुए इन 123 वक्फ संपत्तियों को डी-नोटिफाई किया और दिल्ली वक्फ बोर्ड को दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देशानुसार ट्रांसफर कर दिया. तब विश्‍व हिंदू परिषद ने 22 मई, 2014 को याचिका दायर की और कहा कि उक्त संपत्तियों का दिल्ली वक्फ बोर्ड को ट्रांसफर भूमि अधिग्रहण क़ानून के सेक्शन 48 का उल्लंघन है. विश्‍व हिंदू परिषद का दावा था कि संपत्तियां, जो सरकार द्वारा अधिग्रहण करके कब्जे में ली गई हैं, को न डी-नोटिफाई किया जा सकता है और न उन्हें अधिग्रहण से आज़ाद किया जा सकता है. इस संबंध में वर्तमान शहरी विकास मंत्री एम वेंकैया नायडू का कहना है कि उन्हें पूर्व केंद्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद के विरुद्ध एक रिप्रेजेंटेशन मिला है, जिसमें यह
आरोप लगाया गया है कि वह इन संपत्तियों के ट्रांसफर में सबसे आगे थे. शहरी विकास मंत्रालय की राय है कि उस वक्त पूरा निर्णय जल्दबाजी में लिया गया, इसलिए मंत्रालय ने क़ानून मंत्रालय से इस संबंध में लिखित राय मांगी है.
ज्ञात रहे कि गत वर्ष डी-नोटिफिकेशन के समय इन 123 वक्फ संपत्तियों में 61 लैंड एवं डेवलपमेंट ऑफिस, जबकि बाकी 22 दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरिटी के अधीन थीं. इनमें से कुछ तो सरकार के इस्तेमाल में थीं, तो कुछ अन्य मुस्लिम संगठनों एवं व्यक्तियों के कब्जे में थीं. इन वक्फ संपत्तियों में से अधिकतर कनाट प्लेस, मथुरा रोड, लोदी रोड, मान सिंह रोड, पंडारा रोड, अशोक रोड, जनपथ, संसद भवन, करोल बाग, सदर बाज़ार, आज़ाद मार्केट, दरियागंज, आईटीओ एवं जंगपुरा में स्थित हैं. प्रत्येक वक्फ भूमि से मस्जिद सटी हुई है, जबकि कुछ संपत्तियों में दुकानें एवं आवासीय भवन भी हैं. ऐसा प्रतीत होता है कि इन 123 वक्फ संपत्तियों पर एक बार फिर ख़तरे के बादल मंडरा रहे हैं. पिछली बार हिंदू महासभा ने 1984 में सरकार के नोटिफिकेशन पर स्थगनादेश ले लिया था, लेकिन 24 वर्षों के बाद 2008 में दिल्ली हाईकोर्ट ने सुनवाई के दौरान विचार व्यक्त करते हुए कहा कि अगर सरकार इन संपत्तियों को वक्फ संपत्ति मानती है, तो उसे इन्हें दिल्ली वक्फ बोर्ड को सौंप देना चाहिए. दिल्ली हाईकोर्ट ने 12 जनवरी, 2011 को यह याचिका खारिज भी कर दीऔर सरकार को कोई अंतिम निर्णय लेने के लिए निर्देशित किया. अब देखना यह है कि मार्च 2014 के अंतिम निर्णय को विश्‍व हिंदू परिषद की याचिका से जो चुनौती मिली है, उसका क्या होता है और अदालत इस संबंध में क्या निर्णय लेती है और इसी के
साथ-साथ वर्तमान सरकार का रुख भी क्या होता है?


 

वक्फ संपत्तियों से खिलवाड़ बंद हो

विश्‍व हिंदू परिषद द्वारा दिल्ली हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका को लेकर विभिन्न पक्षों की बैठक बुलाने का निर्देश न्यायालय ने दिया है. इस निर्देश पर अमल करने से पूर्व मोदी सरकार ने यह जांच शुरू कर दी है कि मनमोहन सिंह की सरकार ने जाने से पहले दिल्ली वक्फ बोर्ड को 123 संपत्तियां सौंपने का जो निर्णय लिया था, कहीं वह ग़ैर क़ानूनी तो नहीं है. इस पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए ऑल इंडिया मिल्ली काउंसिल के महासचिव डॉ. मोहम्मद मंजूर आलम कहते हैं कि सरकार को इस मामले में राजनीति के बजाय अदालती निर्देश पर अमल करना चाहिए, वरना वक्फ के महान उद्देश्य के साथ खिलवाड़ होगा और न्यायालय की अवमानना भी. उनका मानना है कि इस तरह की राजनीति के ज़रिये 103 वर्षों के बाद सुलझा मामला एक बार फिर से उलझाया जा रहा है. मरकजी जमीअत अलेहदिस हिंद के महासचिव मौलाना असगर अली इमाम मेहंदी सल्फी मदनी का कहना है कि वक्फ के साथ राजनीति नहीं होनी चाहिए, क्योंकि उससे इसका उद्देश्य ही समाप्त हो जाता है. जमाअत इस्लामी हिंद के महासचिव मौलाना नुसरत अली कहते हैं कि जब पूर्व केंद्र सरकार ने दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देशानुसार निर्णय लिया था, तो फिर किसी विवाद की आवश्यकता ही नहीं थी. उनका कहना है कि यह समस्या बहुत ही संवेदनशील है, इसलिए सरकार न्यायालय के निर्देशानुसार ही इसे सुलझाए. बिहार राज्य के पूर्व मुख्य सचिव डॉ. एमए इब्राहिमी, जिनकी आईएएस अधिकारी के तौर पर वक्फ की समस्या पर गहरी नज़र रही है, कहते हैं कि यह मामला बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि इसका संबंध जनकल्याण से है. इब्राहिमी ने चौथी दुनिया से बात करते हुए कहा कि यही कारण है कि उन्होंने इस संबंध में अपने व्यवहारिक तजुर्बे माई एक्सपीरियंस इन गवर्नेंस में बताए हैं. उनका साफ़ तौर पर कहना है कि 123 वक्फ संपत्तियों का मामला अदालत पर छोड़ देना चाहिए. 2011 में दिल्ली हाईकोर्ट ने इंद्रप्रस्थ हिंदू महासभा की 1984 की याचिका भलीभांति निपटाई. इसलिए उम्मीद है कि 2014 में विश्‍व हिंदू परिषद द्वारा दायर याचिका भी अदालत उसी तरह निपटाएगी, तभी इस मामले में इंसाफ़ हो पाएगा.


 

वक्फ आख़िर क्या है

पैगंबर मोहम्मद के कथित हदीस में वक्फ की व्याख्या करते हुए कहा गया है कि मूल को इस तरह खैरात में दो कि वह न बेची जा सके, न उसे उपहार में दिया जा सके और न उसमें विरासत का सिलसिला जारी हो, बल्कि उसके फ़ायदे आम लोगों को मिलें. उक्त हदीस के अनुसार, पूरे संसार में मुसलमानों में वक्फ करने का सिलसिला जारी है और यह जनकल्याण का एक लाभदायक एवं प्रभावकारी साधन बना हुआ है. जहां तक भारत का मामला है, 17 नवंबर, 2006 को मनमोहन सिंह सरकार को सौंपी गई सच्चर रिपोर्ट के अनुसार, देश भर में छह लाख एकड़ भूमि पर 4.9 लाख रजिस्टर्ड वक्फ संपत्तियां हैं, जिनकी क़ीमत पिछले वर्ष  छह हजार करोड़ रुपये आंकी गई थी और उनसे सालाना आमदनी कम से कम 163 करोड़ रुपये बताई गई थी. इसी रिपोर्ट में दिल्ली की 318 वक्फ संपत्तियों की सूची भी प्रकाशित की गई है और उन पर तमाम कब्जों को ग़ैर क़ानूनी बताया गया है. इन्हीं में इस समय विवादास्पद दिल्ली की 123 वक्फ सपंत्तियां भी शामिल हैं.

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