पिछले 20 सालों में इसी खुली और प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था, जिसे वित्त मंत्री रहते हुए मनमोहन सिंह ने शुरू किया था, की देन है कि आज इस देश में कोयला, पानी, हवा, तरंग में भी लाखों करा़ेडों के घोटाले होते है. यही अर्थव्यवस्था है जहां आज क्रोनी कैपिटलिज्म की बात हो रही है. यही प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था है जिसने लघु और कुटीर उद्योगों को बर्बाद कर दिया है. आज जब जरूरत इस बात की थी कि नई आर्थिक नीतियों के विकल्प पर सोचा जाए, कांग्रेस उसी पुरानी अर्थव्यवस्था को और आगे ले जाना चाहती है जिसने देश की सत्तर फीसदी आबादी को रोजाना 20 रूपये की आमदनी पर जीने को मजबूर कर दिया है.
चुनावी वादों को पूरा करने के लिए कोई कानूनी बाध्यता नहीं होती. इसके अलावा, इन वादों को पूरा करने के लिए किसी तरह की नैतिक बाध्यता भी नहीं होती. यही वजह है कि राजनीतिक दलों के लिए चुनावी घोषणाएं महज चुनावी लाभ हासिल करने के लिए होते है. एक बार चुनाव में जीत मिल जाए, सत्ता हासिल हो जाए, फिर इन घोषणाओं का कोई अर्थ नहीं रह जाता. कांग्रेस पिछले दस सालों से सत्ता में है. एक बार फिर चुनावी मैदान में है. एक बार फिर कांग्रेस ने घोषणाओं और वादों का पिटारा खोल दिया है. ऐसे में यह देखना जरूरी है कि पिछले चुनाव में किए गए वादें कितने पूरे हुई और अभी के वादों का क्या मतलब है?
2014 के चुनाव के लिए कांग्रेस ने अपने घोषणापत्र में सेहत का अधिकार को मुख्य रूप से स्थान दिया है. घोषणापत्र के मुताबिक स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च को बढ़ाकर जीडीपी का तीन प्रतिशत किया जाएगा. जाहिर तौर पर यह एक ऐसा मसला है जिसका कोई विरोध नहीं हो सकता. स्वास्थ्य का अधिकार जनता के लिए मूल अधिकार की तरह ही है. लेकिन क्या कांग्रेस से यह सवाल नहीं पूछा जाना चाहिए कि 2009 के घोषणापत्र में कांग्रेस ने जिस स्वास्थ्य के अधिकार का वादा किया था, उसे पांच सालों में क्यों नहीं पूरा कर पाई? आखिर पांच साल पुराने वादे को पूरा न कर पाने के लिए कांग्रेस को और पांच साल क्यों चाहिए और क्यों दिया जाना चाहिए? बहरहाल, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना में निवेश एक अच्छी बात है. लेकिन सबसे ब़डा सवाल है कि क्या सिर्फ पैसा ब़ढा देने से प्राइमरी हेल्थ सेंटर, जो स्वास्थ्य सेवा का बुनियादी स्तर है, की हेल्थ सुधारी जा सकती है. देश में आज सरकारी स्वास्थ्य सेवा की जो संरचना है, उसकी असलियत सब को पता है. पिछले कुछ समय में पंचायत स्तर पर ब़ढे भ्रष्टाचार की वजह से प्राइमरी हेल्थ सेंटर खस्ताहाल हो चुका है. यूपीए 1 व 2 के दौरान भी स्वास्थ्य सेवा के क्षेत्र में कई कार्यक्रम चलाए गए. लेकिन उसका हश्र सबको पता है. पोलियो पर जहां भारत ने काबू पाया वहीं कांग्रेस की सरकार पिछले दस सालों में बाल मृत्यु दर, प्रसव के दौरान महिलाओं की मौत की संख्या, कुपोषण आदि पर लगाम नहीं लगा पाई. आज भी करो़डोंे लोगों को साफ पीने का पानी नसीब नहीं है. ऐसे में सिर्फपैसा ब़ढाने से स्वास्थ्य सेवा बेहतर हो जाएगी, इसकी गुंजाइश कम ही है, उल्टे ज्यादा पैसे का अर्थ ज्यादा भ्रष्टाचार के रूप में दिख सकता है.
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में घर का अधिकार की बात कही है. इंदिरा आवास योजना और राजीव आवास योजना के दायरे में सभी शहरी और ग्रामीण गरीबों को शामिल किए जाने की बात कही है. एक बार फिर कांग्रेस ने इन दोनों योजनाओं में ज्यादा पैसे देने का वादा किया है. यानी कांग्रेस यह मान कर चल रही है कि सिर्फज्यादा पैसे दे देने भर से किसी योजना को सफल बनाया जा सकता है. इंदिरा आवास योजना का सच अगर जानना हो तो बिहार या उत्तर प्रदेश के गांवों में देखा जा सकता है. जैसे-जैसे इस योजना के तहत लाभार्थी के लिए ज्यादा पैसा ब़ढता गया, पंचायत प्रतिनिधियों और अधिकारियों का कमीशन भी ब़ढता गया. हालत यह है कि आज 60 हजार में से 20 हजार रुपये कमीशन देने के बाद ही किसी को इस योजना का लाभ मिल पाता है. यह एक खुला सच है, जिसे हर कोई जानता है. ऐसे में एक बार फिर केवल पैसा ब़ढाने से योजना सफल होगी, ऐसा सोचना सच को न देखने जैसा है. शहरों में जमीन का क्षेत्रफल घटता जा रहा है, ऐसे में शहरी गरीबों को घर मुहैया कराने के लिए किस तरह की नई तकनीक व योजनाओं की जरूरत है, इस पर कांग्रेस के रणनीतिकारों ने इस घोषणापत्र में कुछ नहीं कहा है. यानी कांग्रेस यह मान कर चल रही है कि जनता को सिर्फयह दिखाया जाए कि फलां-फलां योजना में ज्यादा से ज्यादा पैसे देने से सारी समस्याओं का समाधान हो जाएगा, और इससे जनता प्रभावित हो जाएगी.
2014 के घोषणापत्र में कांग्रेस ने पेंशन का अधिकार, सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, सम्मान का अधिकार और उद्यमिता का अधिकार देने की बात कही है. अब जरा कांग्रेस के 2009 के घोषणापत्र को भी देखिए. 2009 में भी कांग्रेस ने सामाजिक सुरक्षा देने व नेशन वाइड स्किल डेवलपमेंट प्रोग्राम चलाने की बात कही थी. अब क्या कांग्रेस इस देश की जनता को यह बताएगी कि आखिर पिछले पांच सालों में ऐसी क्या समस्या आई जिससे कि वो अपने वादे पूरे नहीं कर सकी. क्या कांग्रेस को यह नहीं बताना चाहिए कि क्यों जनता उसे इन वादों को पूरा करने के लिए पांच साल और दे?
इस घोषणापत्र में विकास दर को अगले तीन सालों के दौरान आठ प्रतिशत के स्तर पर लाने का आश्वासन दिया गया है. वहीं एक खुली और प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिए जाने की बात कही है. सबसे दिलचस्प वादा यही है. मसलन, पिछले 20 सालों में इसी खुली और प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था, जिसे वित्त मंत्री रहते हुए मनमोहन सिंह ने शुरू किया था, की देन है कि आज इसे देश में कोयला, पानी, हवा, तरंग में भी लाखों करोडों के घोटाले होते है. यही अर्थव्यवस्था है जहां आज क्रोनी कैपिटलिज्म की बात हो रही है. यही प्रतिस्पर्धी अर्थव्यवस्था है जिसने लघु और कुटीर उद्योगों को बर्बाद कर दिया है. आज जब जरूरत इस बात की थी कि नई आर्थिक नीतियों के विकल्प पर सोचा जाए, कांग्रेस उसी पुरानी अर्थव्यवस्था को और आगे ले जाना चाहती है जिसने देश की सत्तर फीसदी आबादी को रोजाना 20 रुपये की आमदनी पर जीने को मजबूर कर दिया है. कांग्रेस ने विनिर्माण क्षेत्र में दस प्रतिशत की विकास दर हासिल करने का लक्ष्य, छोटेे और मझोले उद्योगों पर जोर देने की बात कही है. लेकिन सबसे ब़डा सवाल है कि क्या मौजूदा अर्थव्यवस्था के रहते हुए छोटे और मझोले उद्योगों को पुनर्जीवीत किया जा सकता है?
कृषि के क्षेत्र में भी कांग्रेस ने चुनावी वादों की बौछार कर दी है. मसलन, सिंचाई, बेहतर आपूर्ति श्रृंखला, कोल्ड स्टोर और वेयरहाउस में निवेश बढ़ाया जाएगा. लेेकिन इस निवेश से छोटे-मंझोले और सीमांत किसानों को कितना फायदा होगा, यह सवाल अनुत्तरित रह जाता है. आज जब देश में कॅारपोरेट एग्रीकल्चर का दौर शुरू हो चुका है, ऐसे में देश के आम किसानों को कृषि क्षेत्र में निवेश से कैसे और कितना फायदा होगा, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है. अगले एक दशक के दौरान बिजली, परिवहन और दूसरी बुनियादी सुविधाओं के विकास में 1000 अरब डालर के निवेश की बात कही गई है वहीं अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप अधिक लचीली श्रम नीति को बढ़ावा देने की बात भी है. वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ जुड़ाव बढ़ाने के साथ प्रत्यक्ष विदेशी निवेश को बढ़ावा दिए जाने का वादा इस घोषनापत्र में किया गया है. इसके अलावा, 18 महीनों के भीतर सभी ग्राम पंचायतों और कस्बों को हाई स्पीड ब्राडबैंड कनेक्टिविटी से जोड़ने की बात की गई है. हालांकि, यह घोषणा यूपीए2 के दौरान भी की गई थी जिसे आज तक पूरा नहीं किया जा सका है.
कांग्रेस ने काले धन को वापस लाने के लिए विशेष दूत की नियुक्ति की बात कही है. लेकिन यह घोषणा कितना ब़डा छलावा है, इसका अंदाजा सिर्फइस एक बात से लगाया जा सकता है कि खुद यूपीए 2 ने स्वीट्जरलैंड के साथ एक समझौता किया है जिसके तहत काला धन के मालिक का नाम सार्वजनिक नहीं किया जा सकता है. इसके अलावा, सरकार के पास ऐसे कई लोगों के नाम भी मौजूद है जिनके पास काला धन है लेकिन जिसे आज तक सरकार ने सार्वजनिक करना जरूरी नहीं समझा. ऐसे में जब कांग्रेस काला धन पर किसी भी तरह का वादा करती है तो इसे क्या समझा जाए? कांग्रेस ने अगले पांच सालों के दौरान दस करोड़ युवाओं को प्रशिक्षण और रोजगार देने की बात कही है. अब यह सपना कैसे पूरा किया जाएगा, सबसे ब़डा सवाल है?
कांग्रेस ने सांप्रदायिक हिंसा विधेयक को जल्द से जल्द पास कराने की बात कही है लेकिन अल्पसंख्यकों के लिए रंगनाथ मिश्र आयोग के सुझावों के मुताबिक आरक्षण पर कुछ भी बोलना जरूरी नहीं समझा है. वहीं यूपीए सरकार शुरू से महिला आरक्षण विधेयक की बात करती रही है. इस बार भी इसे पास कराने के लिए वादा किया गया है. लेकिन जब बात इसे पास कराने की आती है तो संसद के भीतर क्या हाल होता है, इसे पूरा देश जानता है. यह अलग बात है कि तेलंगाना बिल को संसद का दरवाजा बंद कर के पास कर दिया जाता है लेकिन महिला आरक्षण विधेय के नाम पर सरकार सर्वसम्मति का इंतजार करती रही.
वादे हैं वादों का क्या
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