pixमध्य प्रदेश व्यावसायिक परीक्षा मंडल (व्यापमं) घोटाले का स्वरूप दिन-ब-दिन व्यापक होता जा रहा है. राज्यपाल, मुख्यमंत्री और कई आलाधिकारियों के बाद अब राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कुछ पूर्व एवं वर्तमान पदाधिकारियों के नाम भी इस घोटाले से जुड़ते दिख रहे हैं. घोटाला तो हुआ है, यह बात मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने विधानसभा में स्वीकार की है. मुख्यमंत्री के अनुसार, एक हज़ार पदों को भरने में अनियमितताएं हुई हैं. इस मामले की जांच मध्य प्रदेश हाईकोर्ट की निगरानी में एसटीएफ (स्पेशल टास्क फोर्स) कर रही है. अब तक घोटाले से जुड़ी जो भी जानकारियां उपलब्ध हैं, उनके अनुसार, व्यापमं घोटाले की शुरुआत वर्ष 2004 में हुई थी और उसी साल अगस्त में भारतीय जनता पार्टी की प्रदेश की सत्ता में वापसी हुई थी. इसका सीधा-सा मतलब है कि भाजपा सरकार की नाक के नीचे प्रदेश के लाखों युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ हो रहा था और सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी. यह भी कहा जा सकता है कि सरकार ने जानबूझ कर इसे अनदेखा कर दिया. प्रवेश परीक्षाओं में होने वाली धांधली यहीं पर थमने का नाम नहीं ले रही है. मध्य प्रदेश लोकसेवा आयोग भी घोटाले की जद में आता दिख रहा है. प्रदेश के छात्र संगठन व्यापमं के साथ-साथ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित की गईं प्रवेश परीक्षाओं की भी जांच कराने की मांग कर रहे हैं. जबकि कांग्रेस लगातार व्यापमं मामले की जांच सीबीआई (केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो) या सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में बनी एसआईटी से कराने की मांग कर रही है.
व्यापमं घोटाला 6 जुलाई, 2013 को इंदौर पुलिस द्वारा छापेमारी की एक घटना के बाद सामने आया था. शुरुआत में यह घोटाला प्री-मेडिकल टेस्ट (पीएमटी) में धांधली से जुड़ा दिख रहा था, लेकिन जब एक-एक करके सारी परतें खुलती चली गईं, तब मामले के तार पीएमटी से लेकर प्री-पीजी मेडिकल परीक्षा, पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा, सब-इंस्पेक्टर एवं संविदा शिक्षक जैसी कई अन्य प्रवेश परीक्षाओं से जुड़ते चले गए. इंदौर, भोपाल, ग्वालियर एवं जबलपुर जैसे कई बड़े और छोटे शहरों के नाम इस मामले से जुड़े. जब राज्य सरकार के ऊपर दबाव बढ़ा, तो मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने मामले की जांच एसटीएफ (स्पेशल टास्क फोर्स) से कराने का निर्णय लिया. अगस्त, 2013 में जांच की ज़िम्मेदारी एसटीएफ को सौंप दी गई. पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा समेत कई रसूखदार लोगों के नाम धीरे-धीरे इस प्रकरण से जुड़ते गए. जांच की धीमी रफ्तार देखकर हाईकोर्ट ने एसटीएफ की निगरानी करने का निर्णय लिया. मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के आदेश पर अलग-अलग शहरों में एसआईटी (स्पेशल इंवेस्टिगेशन टीम) बनाई गईं. डेढ़ दर्जन से अधिक एसआईटी अलग-अलग शहरों में इस मामले की जांच कर रही हैं. जांच के दौरान कई ऐसे बिंदु चिन्हित किए गए, जिनसे जाहिर होता है कि यदि सरकार सक्रियता बरतती, तो यह मामला बहुत पहले सामने आ जाता.
मध्य प्रदेश में व्यापमं की भूमिका एसएससी (कर्मचारी चयन आयोग) की तरह है, लेकिन कर्मचारियों के चयन के अलावा व्यापमं की ज़िम्मेदारी इंजीनियरिंग, मेडिकल और अन्य व्यावसायिक पाठ्यक्रमों की प्रवेश परीक्षाओं का आयोजन करना भी है. इस वजह से इसकी भूमिका ज़्यादा महत्वपूर्ण हो जाती है. यह परीक्षाएं आयोजित करने वाली प्रदेश की सबसे बड़ी संस्था है, जो तकनीकी शिक्षा निदेशालय के अंतर्गत आती है. यह एक स्व-पोषित एवं स्वायत्त संस्थान है. राज्य सरकार ने वर्ष 2007 में नीतिगत और संस्थागत मामलों में निर्णय लेने के लिए प्रोफेशनल इग्जामिनेशन बोर्ड एक्ट 2007 पारित किया था. इसके बाद व्यापमं ने अपने स्तर पर प्रवेश संबंधी नियमों में कई बदलाव किए, जिनका सीधा फ़ायदा रिश्‍वत देने वाले परीक्षार्थियों को हो रहा था. प्रदेश में कर्मचारियों की भर्तियां पहले संबंधित विभाग करता था, लेकिन सरकार ने यह ज़िम्मेदारी व्यापमं को सौंप दी. व्यापमं को परीक्षाओं की ज़िम्मेदारी सौंपने से पहले एसआई की भर्ती में 33 प्रतिशत अंक शारीरिक परीक्षा के होते थे. 2012 में भर्ती नियमों में बदलाव करके इसे 20 प्रतिशत कर दिया गया. इसके बाद वर्ष 2013 में फिजिकल टेस्ट ही ख़त्म कर दिया गया. फिजिकल टेस्ट की वजह से जिन लोगों का एसआई के पद पर चयन नहीं हो सका, उनसे कहा गया कि आगे आरटीओ में आरक्षकों की जगह निकलेगी, उन्हें उसमें समायोजित कर लिया जाएगा. पहले आरटीओ में आरक्षकों की भर्ती पुलिस महकमा करता था और उसमें फिजिकल टेस्ट अनिवार्य था, लेकिन 2012 में यह व्यवस्था समाप्त कर दी गई. इसके अलावा भर्ती के नियमों में भी आधारभूत बदलाव इसलिए किए गए, क्योंकि दूसरे राज्य के अभ्यर्थी ज़्यादा रिश्‍वत दे सकते हैं. 1980 यानी अर्जुन सिंह के मुख्यमंत्रित्व काल के दौरान प्रदेश में रोज़गार कार्यालय में पंजीकृत व्यक्ति ही रोज़गार पा सकता था, लेकिन 1998 में दिग्विजय सिंह ने प्रदेश से 10वीं और 12वीं कक्षा पास करने की अनिवार्यता भी ख़त्म कर दी.
व्यापमं घोटाले की जांच के लिए एसटीएफ के गठन को लेकर भी कई तरह के विवाद उठे. एसटीएफ में ऐसे लोगों को भी जगह दी गई, जो प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से इस मामले से जुड़े थे. उनके होने से जांच प्रभावित होने की पूरी आशंका थी. हबीबगंज संभाग के सीएसपी जयंत राठौर एसआईटी भोपाल के सदस्य हैं. जब राठौर 2009 में इंदौर के राजेंद्र नगर थाना प्रभारी थे, तब वहां पीएमटी का पेपर लीक होने का मामला सामने आया था. चार आरोपी भी पकड़े गए थे, लेकिन पुलिस ने न्यायालय के समझ जो चालान पेश किया, उसमें उसे गेस पेपर बताया गया था. इस घटना को हुए पांच साल गुजर चुके हैं, लेकिन न्यायालय में अब तक गवाही नहीं हो सकी है. इस संबंध में विधानसभा में सवाल भी उठ चुके हैं. ग्वालियर में सीएसपी रक्षपाल सिंह यादव को एसआईटी का सदस्य बनाया गया था. उनके बेटे अजीत का नाम जनवरी, 2014 में ही सामने आ गया था, फिर भी वह ग्वालियर में एसआईटी के सदस्य बने रहे. एसटीएफ के अफसर इस बात से स्वयं को अनजान बताते रहे, जबकि मामले में पिता-पुत्र दोनों आरोपी थे. जब यह बात उजागर हुई, तब तक बहुत-सी बारीकियां और जानकारियां रक्षपाल यादव के हाथ लग चुकी थीं. इसके बाद वह फरार हो गए. इसी वजह से वह निलंबित हुए और बाद में उन्होंने पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर दिया. खंडवा में वर्ष 2004 में व्यापमं परीक्षा में दूसरे नाम से परीक्षा देने वालों को पकड़ा गया था. इस संबंध में अलग-अलग सात मुकदमे दर्ज हुए थे, जिनकी जांच वहां के तीन अलग-अलग थाना प्रभारी कर रहे हैं. जांच से जुड़े एक अधिकारी के रिश्तेदार का नाम 2010 में हुई परीक्षा के फर्जीवाड़े में शामिल है.
मध्य प्रदेश में विधानसभा एवं लोकसभा चुनावों में चारों खाने चित्त होने वाली कांग्रेस को व्यापमं घोटाले के रूप में एक बड़ा हथियार मिल गया है. मामले में आरोप की सूई जब मुख्यमंत्री शिवराज एवं उनके परिवार की ओर घूमी, तो ऐसा लगा, जैसे कि प्रदेश में मृतप्राय: कांग्रेस को संजीवनी मिल गई. प्रदेश में वापसी के लिए छटपटा रही कांग्रेस अपने वयोवृद्ध नेता एवं प्रदेश के राज्यपाल राम नरेश यादव को भी निशाना बना रही है. व्यापमं घोटाले के मुख्य आरोपियों नितिन महिंद्रा एवं पंकज त्रिवेदी ने खुलासा किया है कि राज्यपाल राम नरेश यादव के ओएसडी धनराज यादव ने एक उम्मीदवार को पुलिस आरक्षक भर्ती परीक्षा में पास कराने की सिफारिश की थी. एसटीएफ यह पता लगा रही है कि त्रिवेदी ने किसके कहने पर किसे पास कराया था. अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह ने राज्यपाल की भूमिका पर सवाल उठाए और नैतिकता के आधार पर उनसे इस्ती़फे की मांग की है. व्यापमं घोटाले में राजभवन की भूमिका पर पहले ही सवाल उठे थे. संविदा शिक्षकों की भर्ती मामले में स्पेशल टास्क फोर्स ने राज्यपाल के ओएसडी धनराज यादव को गिरफ्तार किया था. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह से राम नरेश यादव के घनिष्ठ संबंध हैं. अब यह बात सामने आ रही है कि राज्यपाल ने भी कुछ नामों की सिफारिश की थी. उत्तर प्रदेश निवासी धनराज अभी जेल में हैं. उनकी गिरफ्तारी के बाद से राजभवन पर उंगलियां उठ रही हैं. अब कांग्रेस नेताओं द्वारा एक बार फिर से यह मामला उठाने से राजनीति गर्मा गई है. कांग्रेस और भाजपा नेताओं का एक वर्ग यह भी मान रहा है कि मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की ओर से लोगों का ध्यान हटाने के लिए भाजपा के अन्य नेताओं और राज्यपाल का नाम लिया जा रहा है.
व्यापमं घोटाले में संघ के पूर्व सरसंघ चालक के एस सुदर्शन और कार्यवाहक सह सरसंघ चालक सुरेश सोनी के नाम भी सामने आए हैं. व्यापमं के पूर्व परीक्षा नियंत्रक और मामले के मुख्य आरोपी विनय त्रिवेदी द्वारा एसटीएफ को दिए गए बयान में यह बात सामने आई है कि मध्य प्रदेश के पूर्व मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने आरएसएस के पूर्व प्रमुख दिवंगत के एस सुदर्शन के कहने पर उनके सहयोगी मिहिर कुमार की सिफारिश नाप-तौल इंस्पेक्टर या फूड इंस्पेक्टर पद पर भर्ती के लिए की थी. मिहिर ने एसटीएफ को बताया कि वह के एस सुदर्शन के सहायक के तौर पर काम करता था. उसने फूड इंस्पेक्टर एग्जामिनेशन-2012 के अपने आवेदन फॉर्म की फोटोकॉपी सुदर्शन को दी थी और उनसे अपनी नौकरी के लिए गुजारिश की. इसके लिए उन्होंने पूर्व उच्च शिक्षा मंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा को फोन किया था और शर्मा ने नौकरी के लिए भरोसा दिलाया था. मिहिर से कहा गया कि उत्तर पुस्तिका खाली छोड़कर आ जाना. इसके बाद जब परिणाम आया, तो चयन मेरिट लिस्ट में उसे सातवां स्थान मिला.
कांग्रेस महासचिव एवं मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह का कहना है कि व्यापमं मामले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह की भूमिका संदिग्ध है. उन्होंने कहा कि मध्य प्रदेश पुलिस द्वारा गठित एसटीएफ मुख्यमंत्री की देखरेख में काम करती है. एसटीएफ में पहले जांच एक एडीजी कर रहे थे, लेकिन बाद में एक अन्य एडीजी की नियुक्ति वहां क्यों कर दी गई, यह समझ से परे है. जो व्यक्ति इस घोटाले के दौरान व्यापमं का वकील था, उसे बाद में प्रदेश का एडिशनल एडवोकेट जनरल बना दिया गया. इसका मतलब यह कि जो शख्स पहले चोर का वकील था, अब वह पुलिस का वकील है. एक और शख्स हैं वी वी शर्मा, जो एबीवीपी छत्तीसगढ़ के संगठन मंत्री हैं, जिनसे आज तक पूछताछ नहीं हुई. व्यापमं के माध्यम से तक़रीबन 1.5 लाख भर्तियां हुई हैं, उनमें से कितनी वाजिब हैं, यह तो जांच के बाद मालूम होगा.
मध्य प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के के मिश्रा ने अपने पास कुछ ऐसे एसएमएस होने का दावा किया था, जो कथित रूप से राजनीतिक नेताओं, पत्रकारों एवं अन्य विभिन्न लोगों ने व्यापमं परीक्षा नियंत्रक पंकज त्रिवेदी, सिस्टम एनालिस्ट नितिन महिंद्रा और खनन उद्योगपति सुधीर शर्मा को भेजे थे. तीनों ही इस मामले में प्रमुख आरोपी हैं. मिश्रा ने मांग की थी कि इस घोटाले के पीछे बिचौलियों, राजनीतिक नेताओं, नौकरशाहों एवं शिक्षा माफिया के बीच साठगांठ को बेनकाब करने के लिए सीबीआई जांच कराई जानी चाहिए. पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी कहा है कि व्यापमं घोटाले की जांच एसटीएफ के वश की बात नहीं है, इसलिए यह जांच सीबीआई से कराई जानी चाहिए. पहले इन लोगों (भाजपा नेताओं) को सीबीआई जांच से डर लगता था, लेकिन अब सीबीआई जांच कराने में किस बात की हिचक है? केंद्र में तो उनकी पार्टी की सरकार है.
जिस तरह इस मामले में नए-नए खुलासे हो रहे हैं, उसी तरह शिवराज सिंह की कुर्सी भी जाती दिख रही है. हालांकि, इसे गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने सिरे से नकार दिया है, लेकिन प्रधानमंत्री कार्यालय द्वारा इस मामले पर नज़र रखा जाना इसकी गंभीरता को बताता है. पीएमओ में तैनात मध्य प्रदेश कॉडर के अधिकारी एस रामानुजम को व्यापमं मामले से संबंधित समाचारों (अख़बारों) की कतरनें एकत्र करने से लेकर पल-पल की गतिविधियों पर नज़र रखने को कहा गया है. इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) ने भी व्यापमं मामले में केंद्र सरकार को निगेटिव रिपोर्ट भेजी है. व्यापमं मामले को लेकर जिस तरह प्रदेश की राजनीति गर्माई हुई है, उस पर भाजपा हाईकमान और प्रधानमंत्री कार्यालय लगातार नज़र रखे हुए है. मध्य प्रदेश कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता के के मिश्रा द्वारा इस मामले में मुख्यमंत्री एवं उनके परिवार की संलिप्तता के आरोप लगाए जाने के बाद शिवराज सिंह ने न स़िर्फ उनके आरोप खारिज किए, बल्कि उनके ख़िलाफ़ मानहानि का दावा भी दाखिल किया है. व्यापमं घोटाले में संघ के लोगों के नाम आने के बाद आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि मामले में क़ानून अपना काम करेगा. कुल मिलाकर शिवराज सिंह एक ऐसे जाल में फंस गए हैं, जिससे निकलना उनके लिए बेहद कठिन होगा. चाल, चरित्र और शुचिता की बात करने वाली भाजपा के लिए यह संकट का समय है. भले ही क़ानूनी तौर पर उन्हें आरोप मुक्त कर दिया जाए, लेकिन जिन युवाओं के भविष्य के साथ खिलवाड़ हुआ है, खासकर ग़रीबों के होनहार बच्चे अपने साथ हुए अन्याय के लिए शिवराज को कभी माफ़ नहीं करेंगे.


 
न जाने कितने मुन्ना भाई एमबीबीएस!
व्यापमं वर्ष 2010, 2011, 2012 एवं 2013 की पीएमटी के संदिग्धों के परिणाम भी निरस्त कर चुका है. वर्ष 2012 के 286 परीक्षार्थियों के परिणाम निरस्त किए गए, जिनमें 272 ऐसे थे, जिन्हें परीक्षा केंद्रों पर नकल कराई गई थी. पीएमटी-2009 के 85 संदिग्धों की परीक्षा निरस्त होने के साथ ही व्यापमं द्वारा आयोजित पिछले पांच वर्षों की पीएमटी में गड़बड़ियां उजागर हो चुकी हैं. व्यापमं ने इससे पहले की पीएमटी में धांधली की जांच भी शुरू कर दी है. पीएमटी में वर्ष 2004 से गड़बड़ी के प्रमाण मिले हैं. व्यापमं अधिकारियों एवं दलालों ने परीक्षा केंद्रों पर नकल कराई थी. व्यापमं ने खुलासा किया कि कई बार परीक्षार्थियों को नकल कराने के लिए प्रदेश के बाहर से स्कोरर बुलाए गए थे. वर्ष 2009-10 में व्यापमं के परीक्षा नियंत्रक एस के एस भदौरिया थे. उन पर भी गड़बड़ी के आरोप लगे थे. हालांकि, उन्हें जांच के बाद क्लीन चिट मिल गई थी.
 

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