इस शीर्षक से हमारे जेपी आंदोलन के समय से ही मित्रों मे से एक है ,श्री संतोष भारतीय की किताब दो हप्ता पहले ही लाँच हुई है ! जयप्रकाश नारायण के आंदोलन के पहले अस्सी के दशक की शुरुआत में ही तरूण शांति सेना नाम से एक संगठन जेपिकी पहल पर शुरू हुआ था ! जिसमें भारत के विभिन्न प्रदेशों के युवाओं ने सबसे पहले भागीदारी की थी ! और वर्तमान शिक्षा के निषेध स्वरूप कुछ युवक-युवतीओने शिक्षण बिच मे ही छोड़ दिया था !
और बादमे बिहार आंदोलन के लिए गैरदलिय संगठन छात्र युवा संघर्ष वाहिनी के नाम पर , संगठन की स्थापना जेपिकी पहल पर शुरू हुई थी ! लेकिन उसके बावजूद कुछ युवाओं ने संसदीय लोकतंत्र का रास्ता अपनाया ! और कुछ स्वयंसेवी संस्थाओं के माध्यम से मुख्यतः ग्रामीण क्षेत्रों में काम करने मे लगे, और अन्य पत्रकारिता तथा अन्य नौकरियों मे लगे !
संतोष भारतीय पहले पत्रकार फिर संसदीय क्षेत्र और ,पुनः पत्रकारिता मे सक्रिय हैं ! उनकी वी पी सिंह, चंद्रशेखर, सोनिया गाँधी और मै ! टाइटिल से एक भारीभरकम और जबरदस्त गेटअप वाली, पावने पाचसौ पन्ने की ! मेरे हाथ लगी , और किताब की विषयवस्तु पोस्ट जनता पार्टी के बाद भारत की संसदीय राजनीति का, विलक्षण आपाधापी का समय का होने के कारण ! और मै खुद इस दौरान उम्र के तीस साल के पडाव मे होने के कारण मेरी उत्सुकता का विषय-वस्तु रही है ! और इसीलिए किताब दो किश्तो मे पढने के बाद तुरंत प्रतिक्रिया लिखने बैठ गया हूँ !
यह कुल मिला कर पंद्रह-बीस साल के भारत के संसदीय राजनीति का दस्तावेज भी कहा तो गलत नहीं है !
और कुछ हदतक वी पी सिंह और चंद्रशेखर दो पूर्व प्रधानमंत्री के चरित्र पर रोशनी डालने का काम मुझे ज्यादा नजर आ रहा है ! हालाकि पुरी जीवनी तो नहीं है, लेकिन उनके राजनीतिक जीवन की जीवनी कहाँ जाये तो बेहतर होगा !
संतोष जी के पत्रकारिताकी शुरूआत कलकत्ता से आनंद बाजार प्रकाशन समूह के तरफसे पहली बार हिंदी मे रविवार नामकी पत्रिका से शुरू हुआ है ! वर्तमान में वह चौथी दुनिया पत्रिका के संस्थापक संपादक है ! पहले जेपी आंदोलन मे शामिल होने के कारण जेपिकी वजह से उनका चंद्रशेखर जी से परिचय हुआ है ! और वी पी सिंह जी से पत्रकार के नाते परिचय जरूर हुआ लगता है ! लेकिन उनके काफी विश्वास पात्र बन गए थे ! और उन्हींकी वजह से फर्रूखाबाद लोकसभा से वह 1989 मे लोकसभा मे सदस्य भी रहे हैं !
एक तरह से 1977 के बाद भारत की संसदीय राजनीति का दौर काफी उठा पटक का दौर रहा है ! जिसके साक्षी संतोष जी पहले पत्रकार फिर संसद सदस्य के रूप में रहने के कारण, इस दरम्यान की कई-कई महत्वपूर्ण घटना क्रम के वह प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्षरूप से गवाह रहे हैं ! इसलिए उन्होंने जो प्रसंग और घटनाओं का खाका खींचा है ! उसकी विश्वसनीयता अपनी जगह है ! और इसीलिए वर्तमान पीढ़ी जो कुछ अस्सी के बाद, कुछ नब्बे के बाद और कुछ इक्कीसवीं सदी में पैदा हुए!और यह सभी लोग आज भारत के मतदाता होने के कारण उन्हें यह जानकारी बहुत उपयोगी है ! हालाकि हमारे संपूर्ण इतिहास के बारे मे ही जानकारी जरूरी है ! लेकिन आजादी के बाद भारत की संसदीय राजनीति का इतिहास ज्यादा महत्वपूर्ण है ! क्योंकि कोई कुछ भी कोशिश करे भारत की संसदीय राजनीति बदस्तूर जारी रहेगी इतना पक्का !
अगर संतोष जी की भाषा में ही कहूँ तो चंद्रशेखर, वी पी सिंह और सोनिया गाँधी से जुड़ी यादें सिर्फ यादे नहीं है वह भारत के उस राजनीतिक कालखंड का दस्तावेज है जो सबसे ज्यादा हलचल भरे रहे हैं ! भारत का राजनीतिक इतिहास लिखने की परंपरा अभी प्रारम्भ नहीं हुई है, लेकिन जब भी इतिहास लिखा जायेगा यह कालखंड उसका अनिवार्य अंग होगा ! यह राजनीतिक इतिहास का वह हिस्सा है जिसकी घटनाएं छुपी रही, लोगो के नजरों में आई ही नहीं ! जबकि इसका रिस्ता राजीव गाँधी, वी पी सिंह, चंद्रशेखर और सोनिया गाँधी से सीधा रहा है, और यह सिलसिला मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री बनने पर खत्म होता है !
हालाँकि मुझे एक पाठक के रूप में खत्म नहीं हुआ है ! उल्टा एक संकट के दौर से शुरू हुआ है ! और इसके लिए 1977 से ही नींव डालनेका काम शुरू हुआ है ! जिसका प्रतिफल वर्तमान सांप्रदायीकता के इर्द-गिर्द घूमती राजनीति तक लाने के लिए, पिछले सभी घटनाक्रम के परिणाम स्वरूप आज की स्थिति बनी हुई है ऐसी मेरी मान्यता है ! लेखक क्यो यह छोड कर सिर्फ उन पिछले पच्चीस-तीस साल तक आकर रूक गए ? बेहतर होता और बीस पच्चीस पन्ने खर्च कर वर्तमान स्थिति तक लाने की कोशिश की होती तो ,ज्यादा समयोचित और उतना ही महत्वपूर्ण योगदान रहा होता ! खैर उनके अपने कारण वह खुद जाने और एक लेखक के नाते उन्हें वह अधिकार भी है !
मेरी नजर मे वी पी सिंह और राजीव गाँधी की अनबन यह वी पी सिंह की राजनीति का टर्निग पाइंट है ! राजीव गाँधी के करीब के लोगों मे मुख्यतः अरूण नेहरू ने यह काम कर ने के बाद यही आदमी वी पी सिंह की टीम मे शामिल होकर उस टीम का सबसे महत्वपूर्ण आदमी बनता है ! और वी पी सिंह को यह सब पता नहीं था ? यह मेरे लिए आश्चर्य की बात है कि, सरकार को एक साल पूरे होने के पहले ही हटाने के लिए जिम्मेदार लोगो मे अरूण नेहरू भी दिखाईं देते हैं ! और यह सबकुछ वी पी सिंह जैसे पर्याप्त होशियार राजनेता को भी नहीं समझ में आया यह मेरे लिए आश्चर्य की बात है !
जब जनमोर्चा की 2 अक्टूबर 1987 को घोषणा हुई हुई थी ! यह संगठन वी पी सिंह, ने अरुण नेहरू, रामधन,अरिफ मोहम्मद खान और विद्याचरण शुक्ल के साथ मिलकर बनाया और जनमोर्चा बनने के पीछे के कारणों को भारतीय राजनीति की कमजोरीयो का दस्तावेज माना जा सकता है !(यह लेखक के अध्याय 14 पन्ना नंबर 114 का उद्धरण है !) जनमोर्चा बनने का समय और 1975 और हालही में अण्णा हजारे के नाम पर जो आंदोलन हुआ जिसमें से आम आदमी पार्टी का जन्म हुआ ! इसमे एक मौलिक फर्क यह दिखाई देता है कि वी पी सिंह ने सिर्फ अपने व्यक्तिगत छवि को प्रोजेक्ट किया केडर बनाना तो दूर केडर बनाना चाहते थे उन्हें रोक कर कहा है कि हवा बनाओं केडर की जरूरत नहीं है ! और आम आदमी के लोगों ने जगह-जगह अपने केडर बनाना उतना ही अहम माना जितना माहौल बनाने के लिए !
आज आम आदमी की दिल्ली मे दुसरे बार सरकार चुनने का यही राज है और शुरुआत मे ही जो लोग उनके हिसाब से बेकाम के लगे उन्हें दुध मे की मक्खी की तरह उठाकर फेंका और फेके गए लोग कुछ भी नहीं कर सके ! क्योंकि वह भी हवा की थेअरी वाले थे ! सिर्फ कसमसाकर रह गये और अब स्वराज इंडिया नाम से कुछ कोशिश कर रहे हैं ! आजादी के बाद भारत की संसदीय राजनीति का सफर मे से संतोष जी ने एक विशिष्ट कालखंड को चुना, शायद वह उस समय उसके खुद एक कारक तत्व होने के कारण उन्होंने अपने खुद के आँखो और कानों से सुनाई बातों को पावने पाचसौ पन्नों में दर्ज किया है ! शैली पाठक को बांधकर रखने की है ! और रहस्यकथा जैसे आगे क्या की उत्सुकता बनी रहती है ! और शायद ही कोई ऐसा पाठक होगा जो इसे पूरा नहीं पढेंगे !
महात्मा गाँधी के एक सौ बारह साल पहले की किताब हिंद स्वराज मे गाँधी जी ने संसद को गणिका की उपमा दी है ! और यह किताब पढते हुए लगभग जगह-जगह पर उस उपमा की याद आती है ! हालाकि लेखक ने खुद ही 217 नंबर के पन्ने पर अव्यवस्थित सरकार अव्यवस्थित दल के टाइटल से ! इक्कीसवा अध्याय में वी पी सिंह अक्सर कुछ फैसले बदल दिया करते थे ! मेरे पास एक जानकारी आई ,और मुझे लगा कि प्रधानमंत्री को बताना चाहिए ! जानकारी यह थी कि एक मंत्री ने 15% कमिशन की मांग की थी और माँग प्रधानमंत्री के नाम पर हुई थी ! उन दिनों भारत सरकार कोशिश करती थी कि बार्टर के सिद्धांत पर विदेशों से सामान मंगवाया जाए ! मेरे पास एक कार्पोरेशन के चेयरमैन आए ,और उन्होंने मुझसे कहा , किसी भी विदेशी सौदे में 10% इमानदारी का कमिशन होता है ! जो मंत्री के पास जाता है , परेशानी तब होती है जब इससे ज्यादा की मांग होती है ! इस बार प्रधानमंत्री के नाम पर 5% ज्यादा माँग रहा है ! मैंने प्रधानमंत्री वी पी सिंह को बताया तो उन्होंने चेयरमैन का नाम पूछा, मैंने बता दिया ! और उन्होंने फोन उठाया और कैबिनेट सेक्रेटरी से कहा कि इस अफसर के खिलाफ सीबीआई जांच बैठाइए, यह अफवाह फैला रहा है ! मैं चौंक गया और बुरा भी लगा !
मैंने फौरन प्रतिवाद किया आप करवाईए सी बी आई जाँच लेकिन इसके बाद कोई भी भ्रष्टाचार की जानकारी नहीं देगा ! कहकर मै उठ गया 45 मिनट बाद वी पी सिंह का बुलावा आया ! मुझसे बोले मै कैबिनेट सेक्रेटरी से तुरंत मिलूं ! मैं कैबिनेट सेक्रेटरी के पास गया ! वे मुस्कुरा रहे थे, पूँछा क्या बात है ? मैंने सारी बात बताई और कहा कि आपने सीबीआई जांच का आदेश दे दिया होगा? वे बोले नहीं दिया ! मै एक घंटे इंतजार करता हूँ ! क्योंकि मुझे मालूम है कि वह फैसले बदल दिया करते हैं ! और ठीक चालीस मिनट बाद पी एम का फोन आया कि ,संतोष जैसा कहे वैसा कीजिए ! मुझे विनोद पांडे हसते हुए कहने लगे मंत्री का नाम सही है, लेकिन कुछ नहीं कर सकते ! जिस भ्रष्टाचार के मुद्दे पर वी पी सिंह और राजीव गाँधी के दरम्यान फासला बढा ! लेकिन वी पी सिंह की सरकार को देखीये तो क्या फर्क नजर आता है ? हमाम मे सभी नंगे होते हैं वाली कहावत याद आ रही है ! शायद राजीव गाँधी भी व्यक्तिगत रूप से मिस्टर क्लीन की इमेज वाले थे और वी पी सिंह भी !
हालाकि मिली-जुली सरकार की कुछ मजबूरियाँ होती है ! उदाहरण के लिए जनता पार्टी की सरकार मे उद्योग मंत्री जार्ज फर्नांडिस ने भारत से पेप्सी और कोका-कोला को निकाल बाहर किया था ! और आई के गुजराल के प्रधानमंत्री काल में अकाली दल के समर्थन होने की वजह से और सिखों के अमेरिकी-कॅनेडियन कनेक्शन की वजह से गुजराल सरकार को समर्थन देने की एक शर्त वापस पेप्सिको भारत मे आने दो और इस तरह दोबारा यह शितपेय भारत मे वापस आया ! उसी तरह के भारतीय उद्योगपतियो का हर सत्ताधारी दल के उपर दबाव रहता है ! और हर उद्योग घराने का एक आदमी दिल्ली मे सिर्फ विभिन्न मंत्रालयों से अपनी कंपनियों के कामों को निपटाने हेतु विशेष रूप से लायसन अफसर की हैसियत से होता है ! और उसके काम का हिस्सा सरकार मे बैठे संबधित लोगों को कमिशन देकर अपने कंपनी का काम निकालना होता है !
लेकिन एडन से भारत मे आकर पहले नैचुरल धागे को आयात करने वाले धीरूभाई ने मुंबई-से पुणे के पुराने रास्ते पर तळकोकण नाम की जगह रिलायंस इंडस्ट्रीज की नींव रखी है ! कृत्रिम धागा (पाँलिस्टर) और आज भारत के सभी औद्दोगिक घराने से आगे निकल ने वाले का एक रहस्य यही है ! कि सरकार किसी की भी हो ! अंबानी उद्योग समुह का काम करना है ! और उसके एवज में उस सत्ताधारी दल को चंदा के नाम पर बेहिसाब पैसा देकर ! इंदिरा गाँधी के समय से ही इस घराने को हर तरह की मदद करने के लिए पूर्व राष्ट्रपति जो कभी वित्तंमंत्री थे प्रणव मुखर्जी ने इस उद्योगपति के लिए दिल खोलकर मदद की है ! यह तथ्य भी इसी किताब मे ही है ! और उसके एवज में अंबानी समूह ने भी उपकार के बदले कांग्रेस और वर्तमान में बीजेपी को पैसे देने का ! यह सिलसिला कमअधिक प्रमाणमे आजादी के बाद भारत की सभी सरकारो के समय से चला आ रहा है !
और वी पी सिंह ने राजीव गाँधी के समय वित्तं मंत्री रहते हुए अंबानी की नकेल कसने की शुरुआत की है ! शायद उसकी बदौलत राजीव गाँधी ने उन्हें सिर्फ उद्योग मंत्री के पद से हटाने से लेकर कांग्रेस से भी निकाल बाहर किया था !और उसी की प्रतिक्रिया स्वरूप वी पी सिंह के अंदर का बगावती विश्वनाथ जगा ! और ग्यारह महीनों के लिए ही सही राजीव गाँधी के जगह प्रधानमंत्री बनने का चमत्कार कर दिखाया !और उन ग्यारह महीनों में और क्या काम किया ? पर इतिहास उन्हें डॉ राम मनोहर लोहिया के सौ मे पिछडा पावें सांठ नीति के अंतर्गत मंडल आयोग की सिफारिशों को लागू करने के लिए वह हमेशा-हमेशा के लिए याद किये जायेंगे ! और बिहार के मुख्यमंत्री लालु प्रसाद यादव को अडवाणी जी को गिरफ्तार करने के लिए इजाजत दी जोके उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने यह करने के लिए कोशिश की है ! पर रथयात्रा के रास्ते में पहले बिहार आया तो लालू प्रसाद यादव को अडवाणी जी को रोकने का श्रेय मिला !
और उसी तरह किसानों के वर्तमान आंदोलन को देखते हुए वह प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद शायद पहले ही प्रधानमंत्री होंगे जिन्होंने झुग्गी-झोंपड़ियों और किसानों के लिए बाकायदा आंदोलन किये ! लेकिन प्रधानमंत्री रहते हुए किसानों के लिए सिर्फ शरद जोशी को फसल के दाम तय करने का जिम्मा दिया था पर जोशीजी ने क्या किया पता ही नहीं चला !
और जबकि उसीका परिणाम स्वरूप अर्थात प्रधानमंत्री पद से हटने के बाद ! मुंबई में जो अनशन किया जिसमें उन्होंने पानी तक नहीं लेने के कारण उनकी किडनी खराब होकर उनका अंत उसी कारण हुआ ! लेकिन एक दिन डायलिसिस और दूसरे दिन आंदोलन मे जाते रहे ! ऐसे प्रधानमंत्री दुसरे नहीं दिखाई दे रहे !
संतोष भारती जी की नजदीकी और एक पूर्व प्रधानमंत्री के साथ रही ! वह थे चंद्रशेखर और उनके संबंध में भी काफी कुछ बातें लिखी है ! लेकिन मुझे मेरे जैसे ही चंद्रशेखर कश्मीर समस्या की तरफ देखते थे ! यह संतोष जी के किताब से ही ज्ञात हुआ ! हालाकि संतोष जी ने कश्मीर के लिए भारत की पहली सरकार से ही इशारों-इशारों में कश्मीर की वर्तमान स्थिति के लिए कांग्रेस की करतूतों पर रोशनी डालने का काम किया है ! सत्ता के लिए सांप्रदायिक कार्ड कांग्रेस बखुबी खेली है फिर वह कश्मीर हो या बाबरी मस्जिद-राममंदीर का सवाल छुड़वाने की जगह और बढानेका काम किया है और शाहबानो के प्रकरण ने संघ को सवाल कानून का नहीं है आस्था का है यह मुसलमानो ने शाहबानो के प्रकरण से ही उछाला और संघ ने उसे बाबरी-जन्मभूमि पर बखूबी इस्तेमाल कर के और न्यायपालिका पर भी कानून की जगह सिर्फ आस्था के नाम पर मंदिर बनाने की इजाजत देने का निर्णय देकर बाबरी विध्वंस केस को बाबरी मस्जिद के मलबे में हमेशा-हमेशा के लिए दफनाने का काम किया है !
इसलिए ,मै उस बात को लिखने का मोह छोड़ नहीं सकता ! प्रधानमंत्री की शपथ लेकर चंद्रशेखर जी को सीधे माले के सार्क देशों की बैठक में जाना पडा ! तो पहला भाषण नवाब शरीफ का हुआ, और बादमे चंद्रशेखर जी का ! तो नवाज शरीफ अपनी जगह से उठकर चंद्रशेखर जी की तरफ आने लगे, तो चंद्रशेखर भी उनके तरफ चलकर उन्हें गले लगाते हुए प्रेम से बोले कि आप बहुत बदमाश हो! तो नवाज शरीफ ने कहा कि आप हमें कश्मीर दे दीजिए , तो चंद्रशेखर जी ने एक क्षण सोचकर बोला कि दे दिया ! तो नवाज शरीफ बगल के एक कमरे में चंद्रशेखर जी को लेकर गये और कहने लगे अब बताइए यह कैसे किया जाए ? तो चंद्रशेखर बोले कि सिर्फ एक शर्त है ! कश्मीर के साथ-साथ भारत के पंद्रह-बीस करोड़ मुसलमान भी लेकर जाने की शर्त है ! क्योंकि इतने बड़े जनसंख्या को सुरक्षित रखने के लिए नाही हमारे पास इतनी सेना या पुलिस नहीं है ! वैसे कश्मीर को सम्हलने के लिए भारत को काफी कीमत चुकानी पड़ती है ! लेकिन क्या कर सकते हैं? भारत के मुसलमानों को सुरक्षित रखने के लिए यह सब करना पडता है ! यह सुनकर नवाज शरीफ हक्का-बक्का होकर कुछ और बातें करने लगे !
बिल्कुल यही बात मेरे मुँहसे नागपुर में सितम्बर के प्रथम सप्ताह में 2005 मे पुनुन कश्मीर और कश्मीर के हुरियत कांफ्रेंस के लोगों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता मै कर रहा था ! और दोनों ने कहा कि हम दोनों एक दूसरे के सामने पहली बार क्रास हो रहे हैं ! तो मैंने आयोजन समिति को, समय सीमा का बंधन हटाकर अध्यक्ष के नाते कहा कि आज आप लोगों को जो भी कुछ बोलना है बोलो ! क्योंकि मुझे हैरानी की बात लग रही थी कि दोनों कश्मीरी भारत के मध्य बिंदु नागपुर में प्रथम बार मिल रहे हैं ! जो भी मनमें है दिल खोलकर बोले, और वही हुआ ! कश्मीरी पंडितों के नेतृत्व के तीन प्रतिनिधियों ने एक-एक घंटा बोला ! और हुरियत के भी तीन प्रतिनिधियों ने लेकिन संक्षेप में बोले ! मैंने अध्यक्षिय भाषण सिर्फ पांच मिनट के लिए बोला कि कश्मीर आजाद रहे मुझे कोई आपत्ति नहीं है, ! कश्मीर पाकिस्तान में शामिल होना चाहता है उसमें भी मुझे आपत्ति नहीं है ! लेकिन भारत के मुसलमानों की लोकसंख्या जोके कश्मीर से बीस गुना ज्यादा है दुनिया मे दुसरे नंबर पर है ! उनके सुरक्षा के लिए मैं चिंतित हूँ ! और मेरे जीवन के सबसे बेहतरीन समय 1990 से आज तक (भागलपुर के 1989 दंगे के बाद) भारत के मुसलमानों को हिंदू सांप्रदायिक हिंसा करने वाले लोगों से बचाने के लिए खर्च हो रहा है ! कश्मीर अपने बारे मे जो भी बहुमत से सोचने के लिए मुक्त है ! सिर्फ एक क्षण के लिए भारत मे रह रहे मुस्लिम लोगों को नजर के सामने लाकर सोचिये !
उसके बाद हुरियत (मिरवाईज फारूख गुट) कांफ्रेंस के लगातार फोन आते रहे ! कि आप कश्मीर के लिए कब समय निकाल रहे ? जो मुझे एक साल के आसपास का समय लगा ,लेकिन मैंने आजतक हर साल कश्मीर जाने का सिलसिला जारी रखा है ! और सिर्फ 2020 में कोविद के कारण नहीं जा सका ! संतोष भारती जी के किताब से चंद्रशेखर जी का भी मत मुझसे मिलता-जुलता है तो बहुत अच्छा लगा ! लेकिन वही चंद्रशेखर संघ को लेकर संतोष जी के साथ की चर्चा में इतना अंडर एस्टिमेट क्यो कर रहे थे ? यह मेरे लिए आश्चर्य की बात है ! क्या नवाज शरीफ को डिप्लोमेटिक हॅन्डल करने के लिए यह सब बोला था ? या दिल से ?
वैसे तो चंद्रशेखर पुर्वाश्रमी के समाजवादी होने के कारण मुझे अच्छे लगते है ! और वी पी सिंह कांग्रेसी रहने के बावजूद उनके तेवर किसी भी समाजवादी से कम नहीं लगे ! उनके मुख्यमंत्री पद से लेकर प्रधानमंत्री पद तक का सफर एक सच्चे समाजवादी ही लगते हैं ! लेकिन सत्ता में रहने वाले और सत्ता के बाहर वाले वी पी सिंह में फर्क है ! अंतिम पार्ट सोनिया गाँधी के संदर्भ में ! संतोष जी की किताब से ही ज्ञात हुआ है , अभिताभ बच्चन और गाँधी परिवार की दूरी ,और सोनिया गाँधी के प्रधानमंत्री बनने के लिए वी पी सिंह और चंद्रशेखर दो पूर्व प्रधानमंत्री के प्रयास देखकर(जो कि उनके दोनों बच्चे, राहुल और प्रियंका के कारण वह खुद न बनते हुए मनमोहन सिंह को बनाया वह बात दीगर है !) आश्चर्य होता है !
हालाकि सांप्रदायिक राजनीति को रोकने के लिए यह प्रयास सराहनीय ही था ! पर सांप्रदायिक राजनीति करने वाले लोगों को लेकर भी चंद्रशेखर, वी पी सिंह ने राजनीतिक सफर किया है ! और सबसे अहम बात 1989 के अक्टूबर से भागलपुर मे हुआ दंगा राजीव गाँधी के समय मे हुआ ! उसके बाद तुरंत वी पी सिंह की सरकार आई ! और साल भर के अंदर चंद्रशेखर जी की सरकार ! भागलपुर दंगे के बाद के तीनों प्रधानमंत्रीयोने भागलपुर को भेंट दी है ! फिर तीन साल बाद बाबरी विध्वंस ! देश भर दंगे प्रमुखतः मुंबई में सबसे भीषण ! और दस साल बाद गुजरात शत-प्रतिशत राज्य सरकार की शह से हुआ दंगा देखकर भी ! सांप्रदायिक राजनीति को समझने मे दोनो की कमजोरी दिखती है !
और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी उस कांड के लिए जिम्मेदार रहते हुए यह लोग उनके खिलाफ कुछ खास कर नहीं सके उल्टा चौवालीस इंची छाती फुलाकर छप्पन इंची बना कर देश के सर्वोच्च शिखर पर बैठे आज संपूर्ण देश की छाती पर मुंग दल रहे है ! विशेषतः चंद्रशेखर जी और संतोष भारती की संघ को लेकर हुई चर्चा में चंद्रशेखर संघ को लेकर कितने अंडर एस्टिमेट करते हुए दिखते हैं ! मैं सचमुच ही बहुत हैरान हूँ कि चंद्रशेखर जी के जीवन काल में ही गांधी हत्या से लेकर समय-समय के दंगे और बाबरी-जन्मभूमि के मुद्दे के बाद संघ का सही -सही आकलन क्यो नहीं कर पाये? यह बात मुझे संदेह है कि सचमुच ही संघ का आकलन नहीं कर पाये या यह भी डिप्लोमेटिक जवाब था ! लेकिन इस बात की किमत संपूर्ण भारतीय उपमहाद्वीप के लिए कितनी नुकसान देह साबित हो ने जा रही है ? और यह नुकसान सदियो के लिए हो सकता है !
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