मोदी, वोटर और सोशल मीडिया । यहां मोदी से मतलब आरएसएस, व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी, ट्रोल्स , बीजेपी आई टी सेल और गोदी मीडिया से भी समझिए । तो एक ओर मोदी हैं तो दूसरी तरफ वोटर है और तीसरी तरफ हमारा सोशल मीडिया है । इन तीनों की भूमिकाओं में मंथन चल रहा है । जबरदस्त मंथन ।इसे आप सामने आ रहे चुनावों का समुद्र मंथन कह सकते हैं , इसमें जिसे मथा जा रहा है वह है वोटर । मोदी और उनकी ताकतों ने इस मंथन को एक बार फिर अपनी ओर झुकाया है । लेखक – उपन्यासकार पुरुषोत्तम अग्रवाल की एक बात विचार योग्य है । उन्होंने एक इंटरव्यू के दौरान कहा कि ‘मुझे मोदी की राजनीति पसंद नहीं फिर भी वह सबसे लोकप्रिय है ।ऐसा क्यों ? ‘ क्या इस पर हमारे सोशल मीडिया और विपक्ष ने कभी गंभीरता से गौर करने की जहमत उठाई है ? मुझे लगता है विपक्ष जितना भ्रमित है ,हमारा सोशल मीडिया भी उससे कम भ्रमित नहीं है। एक पागल जैसी दौड़ में सब शामिल होते दिख रहे हैं । पिछले दो चार दिनों में बनारस में मोदी ने जो मेगा शो किया ,वह भी आप इसी श्रेणी में रख सकते हैं लेकिन मोदी अपने हर कदम से सतर्क हैं ।वे जानते हैं उनकी छवि मटियामेट हो चुकी है इसलिए अब उन्होंने अपनी आंखों के दोनों ओर टांगें में जुते अश्व की भांति वह सब कुछ लगा लिया है जिससे वे केवल और केवल एक ही दिशा में देखते जाएं । उनकी चालें फिर भी भ्रमित करने वाली हैं ।श्रवण गर्ग कहते हैं मोदी चाहते क्या हैं यह अभी तक स्पष्ट नहीं है । लेकिन बाकी लोग उनकी राय से सहमत नहीं ।वे कहते हैं मोदी की पूरी पालिटिक्स खुल कर सामने आ गयी है ।पर मुझे श्रवण गर्ग की बात में दम लगता है । मोदी के भाषणों और संबोधनों के अलावा मोदी का मौन हमेशा गफलत पैदा करता रहा है । चौंकाने वाले प्रयोग उनकी आदत में शुमार हैं । बहरहाल ।
दो दिन पहले ‘वायर’ पर आरफा खानम शेरवानी ने अपूर्वानंद और आदित्य मुखर्जी के साथ अपना शो किया । उसमें आदित्य मुखर्जी को सुनना चाहिए । मैंने पहली बार किसी के मुख से स्पष्ट शब्दों में यह कहते या पूछते सुना है कि हम क्या कर रहे हैं । आदित्य मुखर्जी ने कहा हमें अपने से यह सवाल करना चाहिए कि आरएसएस की संगठित शक्तियों से लड़ने के लिए हम क्या कर रहे हैं । अपूर्वानंद ने विपक्ष को जितना कोसना था, कोसा ।पर कोई भी यह प्रश्न कर सकता है कि आज जब आफत सिर पर खड़े होकर नाच रही है तब भी क्या कोसना भर पर्याप्त है । विपक्ष और प्रबुद्धजनों की यह कमजोरी का भान मोदी को खूब है । क्या नहीं कहा जा सकता कि हम सब अभिमन्यु के घेरे में फंसे से जान पड़ते हैं । सोशल मीडिया में भी हर कोई अपनी भड़ास निकाल कर अपनी भूमिका की इतिश्री कर लेना चाहता सा दिख रहा है । कहिए कि वह भी भ्रमित सा है तो क्या गलत होगा । दो एक महीने पहले की बात है सोशल मीडिया पर यह चर्चा थी और ऐलानिया चर्चा थी कि आरएसएस मोदी को विधानसभा चुनावों में चेहरा नहीं बनाएगा । बेशक मोदी की सभाएं यूपी में होंगी पर चुनाव तो योगी के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा ।सारे वैकल्पिक मीडिया पर पैनलिस्ट यही ऐलान कर रहे थे । मोदी ने पंद्रह दिनों के अंदर ही अंदर सबको धता बता दी ।अब सब पैनलिस्ट पलट कर मोदी और योगी की अदृश्य भिड़ंत पर चर्चा कर रहे दिखते हैं । इधर तीसरी कथा यह चलने लगी है कि यदि बीजेपी यूपी चुनाव हार जाती है तो आरएसएस मान लेगा कि मोदी का प्रभाव खत्म । ऐसे में वह योगी को हिंदू राष्ट्र की खातिर प्रधानमंत्री का सबसे उपयुक्त उम्मीदवार देखते हुए आगे बढ़ाएगा ।धन्य हैं सोशल मीडिया के पैनलिस्ट । ऐसा लगता है जैसे उन्होंने मोदी को कागजी खिलाड़ी समझ लिया है ।हम सात साल से और उससे पहले 2002 से मोदी का रूप देख रहे हैं ।आज का फलसफा मोदी स्वयं गढ़ चुके हैं — या तो मोदी या फिर कोई नहीं ।न पक्ष में, न विपक्ष में । अब देखना विपक्ष को है । अपूर्वानंद ने विपक्ष के विषय में जो कुछ कहा वह सब विचारणीय है ।पर विपक्ष तो शिखंडी की भूमिका अपना कर स्वयं ही एक दूसरे को घायल करने के फेर में दीख पड़ रहा है । समय अपनी रफ्तार से सरपट दौड़ रहा है । सात सालों से हम देख रहे हैं हर चुनाव में नैरेटिव मोदी तय करते हैं विपक्ष उसके दायरे में उछल कूद करने लगता है । होते होते सब कुछ इतना फूहड़ हो चला है कि राहुल गांधी तो एक मजाक से ज्यादा कुछ नहीं रहा ।उसे शायद शीतल पी. सिंह ने ट्विटर का शेर कहा । इससे ज्यादा वह कुछ दिखता भी नहीं । अफसोस यह है कि भाई लोगों ने एक ऐतिहासिक राष्ट्रीय पार्टी पर कब्जा जमाया हुआ है । ऐसी पार्टी जो अकेले दम पर पूरे देश में बीजेपी को टक्कर दे सकने में समर्थ है । पहली बार प्रियंका गांधी ने 40 प्रतिशत महिलाओं को टिकट देने का ऐलान कर सबको चौंका दिया था और लगा था यह भी था कि पहली बार किसी ने मोदी के सामने नैरेटिव सैट किया ।पर प्रियंका अपने भाई की ही भांति अगंभीर ही दिख रही हैं ।
राजनीति की उधेड़बुन में अब कुछ बचा नहीं है । फिर भी सोशल मीडिया में कुछ हैं जिन्हें सुनना अच्छा लगता है । अभय कुमार दुबे, अपूर्वानंद, श्रवण गर्ग, संतोष भारतीय, आलोक जोशी, लक्ष्मण यादव , विजय त्रिवेदी,भट्ट जी जैसे कुछ नाम हैं जिन्हें सुनना अच्छा लगता है । रवीश कुमार सदाबहार हैं ।
राजनीति से अलग हटें और सुकून चाहें तो हिमांशु वाजपेई का कार्यक्रम देखें — क से किताब ।अभी तक जितने देखे उनमें सबसे बेहतर हमें पुरुषोत्तम अग्रवाल से बातचीत लगी । जरूर सुनें ।मजा आएगा ।जितने रस में डूबे हैं पुरुषोत्तम जी उससे कहीं कम हिमांशु नहीं । हिमांशु अभिभूत थे ।
फिर राजनीति पर लौटिए । लौटना ही पड़ेगा ।सबसे बड़े लोकतंत्र पर आंच आई है । मैंने हर बार यही लिखा है कि यह संकटकालीन समय है । यह वक्त है जब हर किसी प्रबुद्ध को अपनी जमीन छोड़ कर देश में भ्रमण करना चाहिए ।जब हम ‘कारवां ए मोहब्बत’ जैसी टोली निकाल सकते हैं , तो गांव गांव वोटर को जाग्रत करने का अभियान क्यों नहीं चला सकते । एक बड़े पत्रकार ने मुझे कुछ समय पहले फोन कर पूछा भी था कि क्या किया जाना चाहिए आपके हिसाब से ।तब भी मैंने यही सुझाव दिया था ।और योगेन्द्र यादव का इसके लिए नाम सुझाया था । पर योगेन्द्र भाई तो किसान आंदोलन में लग गेल । इधर हमारा विपक्ष न कुछ कर रहा है ,न करेगा ।आज का विपक्ष इंदिरा गांधी के समय का विपक्ष नहीं रहा । जब अपूर्वानंद जैसे लोग यह जानते हैं कि विपक्ष सत्ता पक्ष की भाषा ही बोलने पर विवश हैं तब वे और उनके जैसे लोग कोई नयी पहल क्यों नहीं करते । प्रश्न यही है । हम मोदी को जानते हैं मोदी हमारे पूरे औरे को जानते हैं । फिर भी अदृश्य सा महाभारत रचा जा रहा है । मोदी अपनी तमाम विफलताओं के बावजूद अपने औरे का विस्तार करने में सक्षम हैं । ऐसे में पुरुषोत्तम अग्रवाल की दुविधा समझ आती है , कि मोदी की राजनीति इतनी लोकप्रिय क्यों है ।अब सोचने का वक्त नहीं रहा । 2022 के यूपी चुनाव मोदी जीतें या हारें ,यह तो तय सा लगता है कि फेसबुक, ट्विटर और व्हाट्सएप पर पाबंदियां लगेंगी और इनके जरिए गिरफ्तारियां बढ़ जाएंगी । तब कोई भी पहल बहुत मुश्किल होगी । इसलिए आज और अभी का वक्त चेताने का है । क्या हम समझ रहे हैं ??
इस समुद्र मंथन में समुद्र तो वोटर ही है ….
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