देश के मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के खिलाफ कांग्रेस द्वारा लाए गए महाभियोग प्रस्ताव के नोटिस को उपराष्ट्रपति और राज्यसभा सभापति एम. वेंकैया नायडू ने खारिज कर दिया है. इसे खारिज करते हुए कहा गया है कि नोटिस में चीफ जस्टिस पर लगाए गए आरोपों को मीडिया के सामने उजागर किया गया, जो संसदीय गरिमा के खिलाफ है. साथ ही इस प्रस्ताव को तर्कसंगत बताया गया है. गौरतलब है कि मुख्य न्यायाधीश को हटाने के लिए लिए 5 वजहों को आधार बनाया था और इस नोटिस पर विपक्ष के 64 सांसदों ने हस्ताक्षर किए थे.
इस नोटिस को खारिज करने की राज्यसभा सभापति की तरफ से जो वजहें बताई गई हैं, उसके अनुसार, सांसदों ने प्रेस कॉन्फ्रेंस कर नोटिस में बताए गए सीजेआई के खिलाफ आरोपों को सार्वजनिक किया, जो संसदीय गरिमा के खिलाफ है. यह अनुचित है और सीजेआई के पद की अहमियत कम करने वाला कदम है. साथ ही कहा गया है कि नोटिस उचित तरीके से नहीं दिया गया है. महज किसी के विचारों के आधार पर हम गवर्नेंस के किसी स्तंभ को कमजोर नहीं होने दे सकते. ठोस सबूत और बयान की कमी को भी नोटिस के खारिज होने का कारण बताया गया है और कहा गया है कि सभी पांच आरोपों पर गौर करने के बाद पाया गया कि यह सुप्रीम कोर्ट का अंदरूनी मसला है और ऐसे में महाभियोग के लिए ये आरोप स्वीकार नहीं किए जा सकते.
मास्टर ऑफ रोस्टर को लेकर चल रहे विवाद पर भी राज्यसभा सभापति ने अपनी राय दी है. उनकी तरफ से कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों ने अपने आदेश में साफ कहा है कि चीफ जस्टिस ही मास्टर ऑफ रोस्टर हैं और वे ही तय कर सकते हैं कि मामला किसके पास भेजा जा सकता है. नोटिस खारिज करने से सम्बन्धित अपने 10 पेज के फैसले में सभापति एम वेंकैया नायडू ने बताया है कि विपक्षी दलों के नोटिस को अस्वीकार करने से पहले उन्होंने कानूनविदों, संविधान विशेषज्ञों, लोकसभा और राज्यसभा के पूर्व महासचिवों, पूर्व विधिक अधिकारियों, विधि आयोग के सदस्यों और न्यायविदों से सलाह-मशविरा किया.