वर्तमान ऊर्जा संकट के बहाने मेरा मुक्त चिंतन !(हमारे मित्र श्री अशोक भार्गव ने आज अपने जीवन के पचहत्तर वे साल में प्रवेश करने के शुभ अवसर पर !)

साथियों ॠषी गंगा पन बिजलीके उध्व्स्त होने के साथ ! और भी काफी बडी खबर है “! कि हिमालय के ग्लेशियर पिघलने से जो हादसा हुआ अभितक उसमे मरने वाले लोगों का, और पूरे नुकसान का आकलन नहीं हो पाया है !
कमअधिक प्रमाणमे संपूर्ण भारत में पर्याप्त मात्रा में सुरज की रोशनीकी उपलब्धी होने के बावजूद ! अबतक की सबसे सस्ती और पर्यावरण का कुछ भी नुकसान न करने वाली ! सुरज के रोशनी से बिजली अपने अपने घरों की छतोपर लगा कर ! आप अपनी खुद की आवश्यकता पुरी करने के अलावा ! अतिरिक्त भी बिजली सरकार को बेच सकते हैं ! और वैसे भी बिजली की दरें दिन प्रतिदिन बढते हुए ! आप अपने बिजली बिल से परेशान हो रहे होंगे ! जबकि आप 25 से पचास लाख का मकान बना सकते हो ? तो दो-तीन लाख का अतिरिक्त खर्च सोलर बिजली के लिए नहीं खर्च कर सकते ?
यह हमारे खुद के घर के छतपर, अपने सोलर सिस्टम लगाने के अनुभव के आधार पर यह पोस्ट लिखने की कोशिश कर रहा हूँ ! हम लोगों ने गत चार साल से अपने छत पर कुल तीन लाख का खर्च कर के ! सोलर पैनल लगा कर चार साल मे एक रूपये का भी बिजली विभाग को बिल नहीं दिया है ! उल्टा कुछ युनिट अतिरिक्त जमा कर रहे हैं ! और अब तक हमारे तीन लाख खर्च वसूल भी हो गये हैं ! और हमने उसके रखरखाव के नाम पर, उन पैनलों पर एक रूपये का भी खर्च नहीं किया है ! और कोई अन्य तकनीकी दिक्कतों का सामना भी नहीं किया है ! और आज मैंने इस महीने का बिजली बिल का फोटो देखकर लगा कि हमें तो झिरो रूपये का भी खर्च नहीं आया ! उलटी तीस हजार रुपये की बिजली जमा हो गई है !
आने वाले समय में फाॅसिल फ्यूल समाप्त होने के कगार पर पूरा विश्व आ चुका है ! और अभी से हम पर्यायों का काम शुरू नहीं करेंगे तो क्या प्यास लगने के बाद कुआँ खोदेंगे ? पर्यायी विकास की बात तो बहुत करते हैं ! सब कुछ सरकारों के भरोसे ! पचहत्तर साल के सफर में सरकारों की विश्वसनीयता कुछ बची है ? महात्मा गाँधी जी के खुद अपने जीवन में अमल में लाओ ! (मेरा जीवन ही मेरा संदेश है!)


20 फरवरी के दिन यानी कल हमारे भागलपुर के गंगामुक्ति के साथियों ने, हिमालय दिवस मनाया ! बहुत ही अच्छी पहल है ! क्योंकी हमारी ज्यादातर नदियो का उगमस्थल हिमालय से होने के कारण, और हमारे देश की आबो-हवा से लेकर ग्लेशियर, तथा पर्यावरण का दारोमदार काफी कुछ हिमालय पर निर्भर होने के कारण ! हिमालय बचाओ अभियान बहुत ही महत्वपूर्ण पहल है ! और मुझे याद आ रहा है ! कि सुंदरलाल बहुगुणा 1990 के भूकंप के बाद एक साईकिल यात्रा लेकर गंगा सागर तक आये थे ! और कोलकाता हमारे साथ ठहरे थे ! और मुझे आग्रह कर रहे थे, कि आप चिपको आंदोलन को बल देने के लिए हमे सहयोग कीजिए ! तो मैंने उनसे कहा कि चिपको आंदोलन,गंगामुक्ति आंदोलन अलग अलग आंदोलन करने की जगह हम सबने हिमालय बचाओ, आंदोलन की शुरुआत करने की जरूरत है ! और वह अगर होता है, तो मै अवश्य शामिल होने के लिए तैयार हूँ !
उसी तरह 1993-94 मे नेपाल की राजधानी काठमांडू में हुरोन, (हुमन राईट ऑर्गनाइजेशन ऑफ नेपाल) के कार्यक्रम के लिए नेपाल जाने का अवसर मिला था ! और श्री गिरिजा प्रसाद कोईराला प्रधानमंत्री पदपर थे ! तो उन्होंने अपने आवास पर हमे चाय पर बुलाया था ! और यह बात मैंने उनसे भी कहीं थी ! कि आप पहल कीजिए ! क्योंकी आप हिमालय किंग्डम के प्रधानमंत्री हो ! और हिमालय बचेगा तो भारतीय उपमहाद्वीप बचेगा ! यह बात सुनकर वह बोले थे !” कि मै जल्द ही चीन की यात्रा के लिए जा रहा हूँ ! और मैं चीन के राष्ट्रीपती और प्रधानमंत्री से भी इस विषयपर बात करूगा ! लेकिन राजनीति के उठा पटक मे इन सब के लिए कहा समय मिलता है ? शायद बात आई – गई हो गई !
हमारे देश के सभी दलों के लोगों को भी ! हमारे पर्यावरण संरक्षण के लिए जागरूकता लगभग नहीं के बराबर है ! क्योंकि संसदीय लोकतंत्र के लिए, जिस तरह से पैसे की बर्बादी और कुछ भी कर के, सत्ता में बने रहने की कवायद करने के लिए ! उद्योगपतियों से लेकर, विदेशी निवेश के लिए जोडतोड करने से ही ! सभी दलों के लोगों को फुर्सत नहीं है ! कि वह पर्यावरण जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर फैसला लेने के लिए तो दूर की बात है ! सोचने के लिए भी समय नहीं है ! उल्टा वर्तमान पर्यावरण संरक्षण मंत्रालय का काम देखनेवाले, मंत्री महोदय को जंगलों के बारे में वह कहते हैं कि वे विकास के लिए बाधक है ! और जमीन के संदर्भ मे इतना पर्यावरण विरोधी बोलते हुए देखा ! तो मुझे लगा “कि यह आदमी को पर्यावरण संरक्षण की जगह विनाश के लिए विशेष रूप से रखा गया है ” !
हालाँकि पन बिजलीके लागत और लाभ का गणित बहुत ही घाटे का सौदा है ! और अमेरिका जैसे देश में गत कुछ वर्षों से पन बिजलीके लिये एक भी नया बांध बनाने काम नहीं कर रहे हैं ! और उल्टा कुछ पुराने बांध तोड़े गए हैं ! और एक हम है कि वर्तमान में निर्माणाधीन बांधोंकी संख्या तीन हजार से भी ज्यादा है ! और अब नये अकेले हिमालय के क्षेत्र में पाचसौ के आस-पास पन बिजली के लिए ! अलग से योजना बनाने वाले हैं !
और हिमालय के बारे में बात साफ है ! कि यह पहाड़ दुनिया का सबसे तरुण पहाड़ के साथ इसमे कुछ हलचल होते रहती है ! अक्सर हम सुनते रहते हैं ! कि भूकंप से लेकर भूस्खलन में गांव के गांव आज थे और कल मलबे में गायब हो गए ! और वह भी मट्टी का ढेर जैसे ! स्थितियों में होने के कारण, हिमालय को तथाकथित परियोजनाओं के लिए ब्लॉस्ट करने से लेकर ! बडे बडे मशीन के माध्यम से रोड चौडे करने जैसे हरकतों से ! (चारों धाम को जोड़ने वाली सड़क बनाने के लिए ! और कमजोर करने का काम कर रहे हैं ! और हर साल कोई ना कोई हादसा होते हुए भी ! सरकार बाज नहीं आ रही है ! इससे उस क्षेत्र के लोगों के जीवन के साथ खिलवाड़ करने की बात लगातार जारी है ! और अब लोगों ने, खुद अपने आप को इस तरह के योजनाओके खिलाफ लामबन्दी करने की जरूरत है !
विश्व के बांधोंके विशेषज्ञ, अब इस नतीजेपर आ चूके है ! “कि अब बडे बांध तकनीकी रूप से, और आर्थिक रूप से लाभान्वित नहीं है ! यह सिद्ध हो चुका है ! उसके बावजूद भारत में बांध बनाने के काम बदस्तूर जारी है ! क्योंकि आर्थिक रूप से कमीशनखोरी की, आदतों से फिर वह सरकार किसी भी दल की हो ! जबरदस्त अफरा तफरी करने के लिए ! आउटडेटेड तकनीक फिर वह बांधों की हो या कल कारखाने या कृषी क्षेत्र हो ! मुनाफाखोरी जैसी बिमारी के कारण ! राष्ट्रीय संपत्ति का नुकसान करने वाले ! निर्णय लागु करने की जिद से ! बढकर राष्ट्र-द्रोही कृत्य करने वाले ! सत्ता पक्ष के लोग, ऐसे गलत निर्णयोंका विरोधियों कोही ! राष्ट्र-द्रोही बोलनेवाले, उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाले कहावत जैसे कर रहे हैं !
दुनिया कि सबसे आऊटडेटेड टेकनालॉजी को कलकारखाने से लेकर बांधों तक ! और सबमरिन से लेकर राफेल जैसे सौदा इसका परिणाम है ! लेकिन संसद में तथाकथित बहुमत के आधार पर ! भारत में यह सब कुछ करने के लिए, वर्तमान सरकार को खुली छूट मिली हुई है ! और देश के पर्यावरण से लेकर देश की सुरक्षा के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं और वह भी राष्ट्रवाद के आडमे !
ग्लोबल वार्मिंग का संकट दिन-प्रतिदिन बढानेका काम बदस्तूर जारी है ! और उस कारण से मौसम की साईकिल उल्टी – पुल्टी होने के बावजूद !(कभी बेतहाशा बारिश, बर्फबारी तो सुखा से लेकर ठंड या गर्मियों के रेकॉर्ड ब्रेक होने लगे हैं !) दूसरी तरफ बीजेपी उसपर काम करने वाले लोगों को देशद्रोह के आरोप में गिरफ्तार करने जैसे ! गैरजिम्मेदारी के काम कर रहे हैं ! और विश्व मे अपने आप को हास्यास्पद सिद्ध करने पर तुले हुए हैं !


और प्रोफेसर अगरवाल(गंगा पुत्र की मौत हो गई है ! गंगा को बचाने के लिये ! अनशन के कारण !) की प्रधानमंत्री के नाम की ! आखिरी चिठ्ठी, मैंने इस पोस्ट के साथ, जानबूझकर देना ठीक समझा ! वह किसी भी राजनीतिक दल के नहीं रहते हुए ! और आई आईटी जैसे महत्वपूर्ण संस्थाओं मे संपूर्ण जीवन संशोधन कर के ! नदी,पहाड़ और पर्यावरण के लिए, विशेष रूप से अध्ययन किया था ! और अंतिम समय सिर्फ गंगा को समर्पित कर दिया था ! और वह अपने नाम के आगे गंगापुत्र लगाने लगे थे ! और वर्तमान प्रधानमंत्री उनको अपने बडे भाई से भी ज्यादा करीब हूँ ! करके दावा करते थे ! और खुद बनारस चुनाव के लिए आये तो मुझे माँ गंगा ने पुकारा करके मै यहाँ आया हूँ ! जैसे वक्तव्य देते रहे ! लेकिन हिमालय मे बनाने ने वाले विभिन्न परियोजनाओं को ! रोकने के लिए, विशेष रूप से प्रोफेसर अगरवाल के 111 दिन के अनशन को ! अनदेखा करने वाले भी यही, माँ गंगा ने पुकारा करके मै यहाँ आया हूँ ! बोलनेवाले प्रधानमंत्री ने ! अपने भाई गंगापुत्र प्रोफेसर अगरवालजी की ! प्रधानमंत्री के नाम की तीन-तीन चिठ्ठीयोका जवाब देने के लिए, प्रधानमंत्रीजी को समय नहीं मिला ! और अंततः प्रोफेसर अगरवाल की, उसी अनशन मे 11 अक्तूबर 2018 के दिन देहरादून के एम्स मे मृत्यु हो गई !
प्रोफ़ेसर अगरवाल टेकनालॉजी के अथॉरिटी थे ! आई आईटी जैसे महत्वपूर्ण संस्थानों मे संपूर्ण जीवन संशोधन कर के ! नदी और पर्यावरण संरक्षण के लिए ! विशेष रूप से अपने आप को खपाने के कार्य करने वाले, देश की पर्यावरण संरक्षण की एक्सपर्ट कमेटीयो के सदस्य ! के तौर पर अपने अनुभव और ज्ञान का उपयोग किया है ! और यूपीए के सरकार के समय उनके सूचना के कारण ! हिमालय के 118 किलोमीटर के क्षेत्र को इकोसेंसिटिव जोन का एलान कराने ! और चार पनबिजली परियोजनाओं को करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद रद्द ! (श्री मनमोहन सिंह के प्रधानमंत्री के समय !) करानेवाले प्रोफेसर अगरवाल को ! वर्तमान प्रधानमंत्री अपने भाई कहकर ! खुद को माँ गंगा ने पुकारा करके मै यहाँ आया हूँ बोलनेवाले ! प्रधानमंत्री ने उनके किसी भी खत का जवाब तक नहीं दिया !

और अंततः प्रोफेसर अगरवाल की उसी अनशन मे 111 दिन के अनशन मे मृत्यु हो गई है ! और उसके पस्चात ग्लेशियर का पानी पिघल कर हुआ हादसे में कितनी जाने गई है ? और कितना नुकसान हुआ है ? वह अभीभी पता नहीं चला है !
क्या सरकार की संवेदनशीलता किसान-मजदूर के ! और देश के नागरिकता कानून से लेकर ! देश की महत्वपूर्ण पर्यावरण संरक्षण के लिए मर गई है ?


और अगर सरकार नाम की व्यवस्था, आखिर किस बात के लिए है ? यह सबसे अहम बात उभर कर सामने आ रही है ! सामान्य जनता से वोट लेकर देश की सत्ता में आने के बाद ! जन विरोधी काम करने वाले ! सरकार को क्या नैतिक अधिकार है ? एक क्षण के लिए भी सत्ता में बने रहने का ? और देश की जनता के पसीने से इकट्ठा, पैसों की बर्बादी ! और हिमालय जैसे, सबसे संवेदनशील और सबसे तरुण पहाड़ के साथ, छेड़छाड़ कहाँ तक ठीक है ? क्या केदारनाथ और 1990 को हुआ विनाशकारी भूकंप और बादल फटनेसे आई हुई बाढ भुल गये ? और बीच-बीच में भूस्खलन के कारण गाँव के गाँव गायब होने की घटनाओ के ! बावजूद सरकार तथाकथित विकास के नाम पर कर रहे छेडछाड को अविलंब रोकने की जरूरत है ! अन्यथा आचार्य विनोबा भावे ने सरकार – असरकारक की टिप्पणी शतप्रतिशत सही साबित हो सकती है !
डॉ सुरेश खैरनार 21,फरवरी 2022 , नागपुर

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