shyam rajakदलितों का सही उत्थान नहीं हुआ तो बहुत मुश्किल हो जाएगी. आजादी के 70 साल बाद भी वंचित वर्ग को उसका पूरा हक नहीं मिला है. न्यायिक सेवा और उच्च शिक्षा में तो दलितों की भागीदारी न के ही बराबर है. किसी एक नेता या किसी दल को मैं इसके लिए जिम्मेदार नहीं मानता, बल्कि मेरा मानना है कि सभी से  इस मामले में चूक हुई है.

अब समय आ गया है कि वंचित समाज को आगे बढ़ाने के लिए सभी दल और सभी नेता जुट जाएं, ताकि सदियों से दबे कुचले इस समाज का भला हो सके. अभी समय है चेतने का और अगर अभी भी नहीं चेते और वंचित समाज को उसका वाजिब हक नहीं दिला पाए तो इस देश को जलने से कोई नहीं रोक सकता. लेकिन मुझे उम्मीद है कि ऐसा कुछ नहीं होगा और वंचितों की भलाई के लिए पूरा देश आगे आएगा. ये विचार हैं जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और पूर्व मंत्री श्याम रजक के. काल में वे अपने बगावती बयानों से काफी चर्चा में हैं. अपने आगे के प्लान के बारे में उन्होंने खुलकर बात की. प्रस्तुत है उनसे बातचीत के कुछ खास अंश…

सवाल : आपकी पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा है कि कुछ नेता पद की लालसा में दलित आरक्षण को लेकर बयान दे रहे हैं. उन्हें इससे परहेज करना चाहिए.

जवाब : दरअसल वशिष्ठ बाबू के बयान को मीडिया ने तोड़-मरोड़ कर पेश किया है. उन्होंने यह नहीं कहा कि पद की लालसा को लेकर बयान दिया गया है. जहां तक मेरा सवाल है तो मैं 14 साल तक मंत्री रहा और 25 साल विधायक रहा, अब भी पार्टी के वरिष्ठ पद पर हूं तो पद की लालसा का सवाल कहां उठता है? मेरा आग्रह केवल इतना ही है कि आजादी के 70 साल के बाद भी दलितों का भला  क्यों नहीं हुआ, इस पर चुप्पी क्यों है? मैं भी दलित समाज से आता हूं और मैंने भी अपने जीवन में दलितों के साथ होने वाले भेदभाव को झेला है. मैं नहीं चाहता हूं कि मेरे बाद की पीढ़ी भी उसी प्रताड़ना से गुजरे जिससे मेरे जैसे लोग गुजर चुके हैं. आखिर ऐसी क्या मजबूरी है कि देश की संसद चुप है. शाहबानो के मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला बदला जा सकता है पर प्रोन्नति में आरक्षण के मुद्दे पर एक अजीब सी खामोशी है. देश की संसद इस पर पहल क्यों नहीं कर रही है.

सवाल : दलितों के उत्थान में आप किसे बाधक मानते हैं और इसे लेकर आप किस तरह की कार्ययोजना के साथ जनता के बीच जाना चाहते हैं?

जबाव : आजादी के बाद देश व राज्यों में अलग-अलग पार्टियों की सरकार रही है, इसलिए किसी एक नेता और पार्टी को इसके लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है. मेरा बस यही कहना है कि जो वक्त गुजर गया और हमलोगों ने जो गलती कि उससे सबक सीखने की जरूरत है. न्यायिक सेवा में दलितों की हिस्सेदारी एक फीसदी भी नहीं है. यही हाल उच्च शिक्षा का भी है. यहां भी दो फीसदी हिस्सेदारी ही है. हम इन क्षेत्रों में आरक्षण के प्रावधानों को क्यों नहीं लागू कर रहे हैं. यह देश तो सभी का है तो फिर दलितों की इतनी उपेक्षा क्यों? मेरा संकल्प है कि जब तक मैं जिंदा हूं, दलितों के हक की लड़ाई लड़ता रहूंगा. जो भी इस लड़ाई का नेतृत्व करना चाहे करे श्याम रजक कंधे से कंधा  मिलाकर उसका साथ देगा. बस दलितों के उत्थान के मुद्दे को प्राथमिकता मिलती रहनी चाहिए. मैंने पूरे बिहार में इस मुद्दे को लेेकर जनता से मिलने का कार्यक्रम बनाया है और सभी दल और  उनके नेताओं से अपील की है कि आप साथ आएं ताकि एक समरस समाज की स्थापना हो सके.

सवाल : लालू प्रसाद ने आपके बयान का स्वागत किया है और कहा है कि वह उनके साथ हैं, संघर्ष जारी रखना चाहिए.

जबाव : लालू प्रसाद को यह बताना चाहिए कि जब वे रेल मंत्री थे तो उन्होंने दलितों के आरक्षण को लेकर क्या किया? रेलवे की नौकरियों में दलितों को आरक्षण देने का विचार तब उनके मन में क्यों नहीं आया? रेलवे में सफाईकर्मियों की भर्ती के लिए तो वे प्रयास कर सकते थे, लेकिन भाषण के अलावा उन्होंने क्या किया? अभी क्या बिगड़ा है? दिल्ली तक उनकी पहुंच है. संसद में प्रस्ताव लाकर दलितों के उत्थान से जुड़े मसलों पर बहस कराकर रास्ता निकलवा दें तब यह माना जाएगा कि वह सही मायनों में दलितों के हितैषी हैं.

सवाल : ऐसी चर्चा है कि आप पार्टी नेतृत्व से नाराज हैं और निकट भविष्य में जदयू को बाय-बाय भी कर सकते हैं.

जबाव : सवाल ही पैदा नहीं होता है. जदयू में हूं और अंतिम सांस तक रहूंगा. नीतीश कुमार ही ऐसे नेता हैं जिन्होंने दलितों के दर्द को समझा और उस पर मरहम लगाने का प्रयास किया. नीतीश कुमार ने हर पल दलितों की भलाई के लिए सोचा, पर उनकी भी एक सीमा है. जो काम देश की संसद को करना है, उसमें वे क्या कर सकते हैं? लेकिन यह कहने में मुझे कोई हिचक नहीं है कि देश भर में कोई एक नेता जो दलितों के हित के लिए गंभीर है तो उसका नाम नीतीश कुमार है.

सवाल : आप जब राजद में थे तो उस समय भी कहते थे कि अंतिम सांस तक लालू प्रसाद के साथ हूं और पार्टी नहीं छोडूंगा.

जबाव : हां यह सही है कि मैंने ऐसा कहा था, लेकिन मैंने हमेशा यह बात भी कही है कि मिट्‌टी में मिल जाऊं, पर अपने स्वाभिमान से समझौता नहीं करूंगा. जब मुझे लगने लगा कि राजद में मेरे स्वाभिमान से खिलवाड़ किया जा रहा है, तो मैंने उस पार्टी को छोड़ देने का फैसला किया. लेेकिन जिसके साथ रहता हूं, पूरी ईमानदारी से रहता हूं.

सवाल : एक चर्चा यह भी है कि लोकसभा टिकट के लिए आप दलितों के मद्दे को आधार बनाकर नेतृत्व पर दबाव बना रहे हैं.

जबाव : ऐसी चर्चा लोग कर रहे हैं, पर मैं साफ कर देना चाहता हूं कि लोकसभा का चुनाव मैं नहीं लड़ने वाला हूं. मेरी दिल से इच्छा है कि अपना बचा जीवन मैं पूरी तरह दलितों के उत्थान के लिए समर्पित कर दूं. इस काम में अगर कुछ सहयोग कर पाया तो लगेगा कि जीवन में मैंने कुछ किया. समाज के सभी वर्गों के प्रति मेरा पूरा सम्मान है और मैं सभी वर्गों से यह अपील करता हूं कि सब मिलकर आगे आएं और विकास की दौड़ में पिछड़ चुके दलित समाज को आगे बढ़ाने का जतन करें.

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