देश के पूर्व प्रधानमंत्री और भारतीय राजनीति के अजातशत्रु कहे जाने वाले भारतीय जनता पार्टी के कद्दावर नेता अटल बिहारी वाजपेयी का 93 साल की उम्र में दिल्ली के अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS) में गुरुवार को शाम में 5.05 बजे निधन हो गया. उनकी मौत की सूचना शाम में एम्स प्रशासन ने दी.

उनकी मौत से पूरे देश में शोक की लहर है. तमाम नेताओं का हूजूम अटल जी के आखिरी दर्शन के लिए उमड़ रहा है. नेताओं की भीड़ में शामिल लालकृष्ण आडवाणी वाजपेयी की श्रद्धांजलि सभा में तन्हा से बैठे थे. लालकृष्ण आडवाणी और अटल बिहारी वाजपेयी का 65 सालों का साथ था. 6 दशकों का यह साथ अब खत्म हो गया.

गुरुवार को जब भारतीय राजनीति का अटल अध्याय समाप्त हुआ तो आडवाणी ने कहा कि ‘हमारा साथ 65 सालों से अधिक का था, आज मेरे पास इस दुख को व्यक्त करने के लिए शब्द नहीं हैं.’

अटल और आडवाणी की दोस्ती इतनी गहरी थी कि पिछले कई सालों से जब अटल अपनी बीमारी की वजह से सार्वजनिक जीवन से बाहर हो गए तो उनके घर जाकर लगातार मिलने वालों में दो ही नाम प्रमुख थे. ये दो नाम थे आडवाणी और राजनाथ. बताते हैं कि इन मुलाकातों के दौरान आडवाणी घंटों अटल के सामने बैठे रहते थे. अपनी बात सुनाते रहते थे. अटल को बोलने में दिक्कत थी पर आडवाणी को कोई परेशानी नहीं होती होगी, क्योंकि 65 सालों के साथ में तो आदमी एक दूसरे के मौन का मतलब भी समझने लगता होगा शायद. पर आज आडवाणी के पास न तो अटल हैं और न उनकी खामोशी.

अटल और आडवाणी की पहली मुलाकात 1952 में हुई थी. यह मुलाकात ट्रेन में हुई थी. अटल जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी के साथ राजस्थान के कोटा से गुजर रहे थे. आडवाणी कोटा में संघ के प्रचारक थे. ट्रेन में मुखर्जी ने आडवाणी की मुलाकात अटल से करवाई थी. इसके बाद दोनों ने 6 दशकों से अधिक समय तक जिंदगी की रेल का सफर साथ पूरा किया. लेकिन आज आडवाणी का वह साथी उनका साथ छोड़ गया है. जिंदगी का बाकी सफर अब आडवाणी को अटल के बिना ही पूरा करना है.

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