आपने कभी सुना है कि जो कंपनी अस्तित्व में न हो, उसे पांच-पांच परियोजनाओं के ठेके दे दिए जाएं? लेकिन, ऐसे बेजोड़ कारनामे उत्तर प्रदेश में होते हैं. बसपा शासनकाल के ताकतवर मंत्री एवं एनआरएचएम घोटाले के मुख्य अभियुक्त बाबू सिंह कुशवाहा की सरपरस्ती में खनन का धंधा करने वालों ने एक कंपनी के नाम पर पांच जल विद्युत परियोजनाओं के ठेके पहले हासिल कर लिए, बाद में कंपनी बनाई. कंपनी का एक निदेशक खनन का बादशाह होने के साथ-साथ समाजवादी पार्टी का सक्रिय नेता भी है. परियोजनाएं शुरू नहीं हुईं, लेकिन उनके लिए मिलने वाले सस्ते ऋण और सब्सिडी का भोग चढ़ गया. परियोजनाओं का काम शुरू नहीं हुआ, तो उत्तर प्रदेश को सस्ती बिजली नहीं मिल पाई, जिससे हर साल करोड़ों का ऩुकसान अलग से हो रहा है. गुत्थी यह भी उलझी है कि खनन का पैसा परियोजनाओं में लगने वाला था या फिर खनन का धंधा करने वाले ताकतवर लोगों को जनता का धन समेटने का एक और ज़रिया दे दिया गया! जांच (निष्पक्ष) हो, तो पता चले…
उत्तर प्रदेश सरकार राज्य के विकास को लेकर कितनी चिंतित है, उसका यह नायाब उदाहरण है. बिजली को लेकर राज्य में भीषण मारामारी है. उत्तर प्रदेश को दूसरे राज्यों एवं एजेंसियों से महंगी बिजली खरीदनी पड़ रही है. अपने ही राज्य में सस्ते में बिजली उपलब्ध हो, इसकी सत्ता-अलमबरदारों को कोई चिंता नहीं है. उत्तर प्रदेश की तक़रीबन डेढ़ दर्जन लघु जल विद्युत परियोजनाएं ठप्प पड़ी हैं. यह उन परियोजनाओं का हाल है, जो मंजूरी की सभी सरकारी औपचारिकताओं से गुज़र चुकी हैं और जिनके लिए चयनित कंपनी से बाकायदा करार भी हो चुका है.
लेकिन उक्त परियोजनाएं शुरू ही नहीं हुईं. उत्तर प्रदेश सरकार के नौकरशाह करार पर हस्ताक्षर करके चुप बैठ गए और परियोजनाओं का भट्ठा बैठ गया. परियोजनाओं के लिए केंद्र से मिला सस्ता ऋण और 20 प्रतिशत सब्सिडी मिलाकर सैकड़ों करोड़ रुपये जेबाय नम: हो गए. न केंद्र ने ध्यान दिया, न प्रदेश सरकार ने कोई फिक्र की और भ्रष्टाचार की वेदी पर विकास-यज्ञ का नारा स्वाहा हो गया. बात यहीं पर थमती नहीं है, बल्कि बात यहीं से गति पकड़ती है. लघु जल विद्युत परियोजनाओं के ठेके लेने वाली कंपनी ओमनिस इंफ्रा पावर लिमिटेड के दो निदेशक उत्तर प्रदेश में खनन के गोरखधंधे से जुड़े हैं.
सरकार ने जिस कंपनी को ठेके दिए, उसके प्रभु लोग एक तऱफ बुंदेलखंड में खनन माफियाराज चलाने वाले बाबू सिंह कुशवाहा से गहरे जुड़े हैं, तो दूसरी तऱफ वे समाजवादी पार्टी के नेता हैं और सपा के टिकट पर चुनाव भी लड़ते रहे हैं. ठेके हथियाने की कारगुजारी में एनआरएचएम घोटाले के मुख्य अभियुक्त एवं पूर्व बसपा नेता बाबू सिंह कुशवाहा उर्फ राम शरण कुशवाहा का भी हाथ होने का अंदेशा है. आम लोगों की नज़र में यह धन के धंधे का विचित्र घालमेल है, लेकिन जानने वाले जानते हैं कि धंधेबाजों का यह बहुत सुव्यवस्थित तालमेल है.
इसी सुनियोजित-सुव्यवस्थित तालमेल का नतीजा है कि लघु जल विद्युत परियोजनाओं के ठेके ऐसी कंपनी को दे दिए गए, जो ठेके दिए जाने के वक्त तक पैदा नहीं हुई थी. ठेके पहले सुनिश्चित कर दिए गए, कंपनी बाद में अस्तित्व में आई. सियासत का खेल देखिए! उत्तर प्रदेश की पांच महत्वपूर्ण लघु विद्युत परियोजनाओं के ठेके बसपा के कार्यकाल में मंजूर हुए और समाजवादी पार्टी के कार्यकाल में परवान चढ़े. ठेके हासिल करने वाली मुंबई की कंपनी ओमनिस इंफ्रा पावर लिमिटेड के दो निदेशक दिलीप कुमार सिंह एवं सीरज ध्वज सिंह बांदा-बुंदेलखंड में खनन के धंधे के नामवर लोग हैं.
ख्यातिनाम बाबू सिंह कुशवाहा का खनन साम्राज्य यही लोग चलाते थे और चलाते हैं. सत्ता चाहे बसपा की हो या सपा की, चलती इन्हीं लोगों की है. बाबू सिंह कुशवाहा के खास सीरज ध्वज सिंह समाजवादी पार्टी के नेता हैं और सपा के टिकट पर वह बांदा से 2007 का विधानसभा चुनाव भी लड़ चुके हैं. 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बांदा से सपा का टिकट पाने की उनकी मजबूत दावेदारी है. 2007 के चुनाव में वह तीसरे स्थान को प्राप्त हुए थे, लेकिन सत्ता-संरक्षित धंधों में वह अव्वल साबित होते रहे हैं.
बढ़ती विद्युत आवश्यकताएं पूरी करने की नीति का पालन करते हुए बूट (बिल्ट ओन ऑपरेट ट्रांसफर) फॉर्मूले पर उत्तर प्रदेश जल विद्युत निगम लिमिटेड ने लघु जल विद्युत की विभिन्न परियोजनाओं के लिए 28 जनवरी, 2011 को निविदाएं आमंत्रित की थीं. 28 फरवरी, 2011 को लखनऊ में हुई प्री-बिड मीटिंग में ओमनिस इंफ्रा पावर लिमिटेड को क़रीब 30 मेगावाट बिजली उत्पादन करने के लिए पीलीभीत में माधो-1 एवं डुंडा, शाहजहांपुर में माधो-2, बिजनौर में रामगंगा और ललितपुर में बंदरौन समेत पांच लघु जल विद्युत परियोजनाएं शुरू करने के ठेके दे दिए गए.
28 फरवरी, 2011 को ठेके मिले और एक महीने बाद 18 मार्च, 2011 को ओमनिस इंफ्रा पावर लिमिटेड नामक कंपनी औपचारिक रूप से अस्तित्व में आई. यानी जिस तारीख को निविदा (बिड) दाखिल हुई और जिस तारीख को ठेके मंजूर करने का निर्णय लिया गया, उन तारीखों में ओमनिस इंफ्रा पावर लिमिटेड का अस्तित्व नहीं था.
दस्तावेज देखें, तो पाएंगे कि कंपनी 28 मार्च, 2011 को मुंबई के रजिस्ट्रार ऑफ कंपनीज में इनकॉरपोरेट हुई है. कंपनी की पहली बैलेंस शीट 31 मार्च, 2014 को फाइल हुई. स्पष्ट है कि किस प्रभाव और दबाव के चलते उक्त ठेके दिए गए और किस तरह सारे नियमों- प्रावधानों की धज्जियां उड़ाई गईं. ओमनिस को जब ठेके मिले, तब उत्तर प्रदेश में बसपा की सरकार थी और जब ओमनिस के साथ जल विद्युत निगम का पावर परचेज एग्रीमेंट (पीपीए) हुआ, तब समाजवादी पार्टी की सरकार है.
बसपा सरकार ने पांच लघु जल विद्युत परियोजनाओं के ठेके ओमनिस को तब दिए, जब वह पैदा ही नहीं हुई थी और समाजवादी पार्टी की सरकार ने ओमनिस के साथ पावर परचेज एग्रीमेंट तब किया, जब ज़मीन पर उसका कोई अता-पता नहीं है. सियासत का यही असली रूप है. परियोजनाएं कहां गईं, अब तक काम शुरू क्यों नहीं हुआ और बिना काम शुरू हुए कंपनी के साथ पावर परचेज एग्रीमेंट कैसे हो गया, जैसे सवाल पूछने या खोज-़खबर लेने वाला कोई नहीं है.
ठेके मंजूर करने से लेकर लेटर ऑफ इंटेंट जारी करने, करार (मेमोरेंडम ऑफ एग्रीमेंट) एवं पावर परचेज एग्रीमेंट की प्रक्रिया में शामिल रहे नौकरशाह और जल विद्युत निगम के आला अफसर आज चुप्पी साधे बैठे हैं. इस मामले में ऊर्जा विभाग के बड़े नौकरशाहों से लेकर जल विद्युत निगम और राज्य विद्युत नियामक आयोग तक के अधिकारी एवं कर्ता-धर्ता दोषी हैं.
नियामक आयोग ने यह नहीं देखा कि जिस कंपनी को ठेके दिए जा रहे हैं, उसका कार्य-अनुभव और दक्षता क्या है. जबकि यह सख्त प्रावधान है कि परियोजना का काम उसी कंपनी को दिया जाएगा, जिसे उस क्षेत्र में कम से कम 10 साल काम करने का अनुभव हो और उसकी ठोस वित्तीय पृष्ठभूमि (कम से कम तीन साल का ऑडिटेड एकाउंट) ज्ञात हो. ओमनिस इंफ्रा पावर लिमिटेड ऐसी कोई भी शर्त पूरी नहीं कर रही थी. इसके बावजूद जल विद्युत निगम लिमिटेड के मुख्य अभियंता जीएस सिन्हा, कार्यपालक अभियंता पंकज सक्सेना, पीके सिंघल एवं एचसी मौर्या समेत अन्य अधिकारियों ने प्री-बिड मीटिंग में ओमनिस के नाम पर सहमति की मुहर लगा दी.
जल विद्युत निगम के तत्कालीन चेयरमैन सह प्रबंध निदेशक (एमडी) आलोक टंडन, मौजूदा चेयरमैन संजय अग्रवाल एवं एमडी विशाल चौहान, नियामक आयोग के तत्कालीन चेयरमैन राजेश अवस्थी एवं मौजूदा चेयरमैन देशदीपक वर्मा और ऊर्जा विभाग के आला अफसरों ने इतनी बड़ी व्याधि पर तब से लेकर आज तक कोई ध्यान नहीं दिया. इसी प्रसंग में आप यह भी याद करते चलें कि विद्युत नियामक आयोग के तत्कालीन चेयरमैन राजेश अवस्थी भीषण भ्रष्टाचार के आरोपों में हाईकोर्ट के आदेश से बर्खास्त किए गए थे और सुप्रीम कोर्ट ने उस आदेश पर मुहर लगा दी थी.
ऩुकसान बेहिसाब
पांच लघु जल विद्युत परियोजनाओं के लिए ओमनिस इंफ्रा पावर लिमिटेड से 23 जनवरी, 2013 को हुए करार (पीपीए) के मुताबिक वहां से उत्पादित बिजली प्रदेश को क़रीब चार रुपये प्रति यूनिट की दर से प्राप्त होती. अभी उत्तर प्रदेश सरकार को दूसरी एजेंसियों से क़रीब आठ रुपये प्रति यूनिट की दर से बिजली खरीदनी पड़ रही है. परियोजनाएं शुरू न हो पाने के कारण बिजली का उत्पादन नहीं हो सका. ऊर्जा तकनीक के विशेषज्ञ बताते हैं कि क़रीब 30 मेगावाट उत्पादन क्षमता वाली केवल पांच परियोजनाओं में उत्पादन शुरू न होने के कारण 300 लाख यूनिट बिजली प्रति वर्ष के हिसाब से ऩुकसान हो रहा है.
चार रुपये प्रति यूनिट के हिसाब से ऩुकसान की राशि अरबों में पहुंचती है. दूसरी एजेंसियों से ठीक दोगुनी क़ीमत (आठ रुपये) पर बिजली खरीदनी पड़ रही है, वह ऩुकसान अलग से. कुल 15 परियोजनाएं मिलाकर तक़रीबन सौ मेगावाट बिजली उत्पादित होती, जो नहीं हो सकी. लिहाजा कुल ऩुकसान का भयावह आकलन किया जा सकता है. इसके अलावा जानकार बताते हैं कि पांच परियोजनाओं के निर्माण पर 10 करोड़ रुपये प्रति मेगावाट के हिसाब से खर्च का आकलन किया गया था.
यानी 30 मेगावाट के पांच हाइड्रो पावर स्टेशन स्थापित करने में तक़रीबन 300 करोड़ रुपये का खर्च आता, लेकिन इन परियोजनाओं पर काम शुरू नहीं हुआ. विशेषज्ञ कहते हैं कि अगर अब काम शुरू हुआ, तो मौजूदा दर के हिसाब से यानी 16 करोड़ रुपये प्रति मेगावाट की दर से 480 करोड़ रुपये खर्च होंगे. शेष अन्य 10 हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स के निर्माण खर्च और ऩुकसान का आकलन भी इससे ही किया जा सकता है, जो आज तक शुरू नहीं हुए.
15 जल विद्युत परियोजनाओं का कबाड़ा
ओमनिस जैसी हठात पैदा हुई कंपनी को पीलीभीत की माधो-1 एवं डुंडा लघु जल विद्युत परियोजना, शाहजहांपुर की माधो-2 जल विद्युत परियोजना, बिजनौर की रामगंगा और ललितपुर की बंदरौन लघु जल विद्युत परियोजनाएं देकर जिस तरह सरकार ने विद्युत उत्पादन का कबाड़ा किया, वही हाल अन्य 10 लघु जल विद्युत परियोजनाओं का भी हुआ है. उत्तर प्रदेश जल विद्युत निगम लिमिटेड ने उसी दरम्यान शाहजहांपुर में खैरी एवं नाहिल, मिर्जापुर में बाणसागर-1, बाणसागर-2 एवं मेजा, बांदा में केन ब्रांच-1 एवं केन ब्रांच-2, चंदौली में कर्मनासा और सहारनपुर में मलकपुर रेहनी लघु जल विद्युत परियोजनाएं शुरू करने का उपक्रम किया था.
उक्त योजनाएं समय से शुरू हो जातीं, तो प्रदेश को तक़रीबन 80 से सौ मेगावाट बिजली मिलने लगती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. नई परियोजनाएं शुरू न होने के कारण ही अपर गंगा कैनाल पर बने निर्गजनी, चित्तौरा, सलावा एवं भोला जैसे 70 साल पुराने हाइड्रो पावर स्टेशन क्रमिक रूप से बंद नहीं हो पा रहे हैं. उन्हें बंद कर नए स्टेशन बनाने का काम भी नहीं हो सका.
ओमनिस का मायाजाल
अस्तित्व में आने के पहले ही उत्तर प्रदेश की पांच लघु जल विद्युत परियोजनाओं के ठेके झटकने वाली ओमनिस इंफ्रा पावर लिमिटेड के निदेशक (गण) इसी नाम की कई कंपनियां खोले बैठे हैं. ओमनिस इंफ्रा के दो निदेशकों दिलीप कुमार सिंह एवं सीरज ध्वज सिंह का उल्लेख ऊपर हो चुका है. इसके तीसरे निदेशक का नाम अनंत कुमार श्रीराम गनेडीवाल है. ओमनिस इंफ्रा पावर लिमिटेड मुंबई में रजिस्टर्ड है, जबकि ओमनिस डेवलपर्स प्राइवेट लिमिटेड कानपुर में रजिस्टर्ड है. इसका दफ्तर लखनऊ में गोमती नगर के विकास खंड में है. इसके निदेशकों में भी दिलीप कुमार सिंह एवं सीरज ध्वज सिंह शामिल हैं. ओमनिस फूड्स प्राइवेट लिमिटेड, ओमनिस एजुकेशन-हेल्थ लिमिटेड समेत कई अन्य कंपनियां भी अलग-अलग स्थानों में रजिस्टर्ड हैं.
कुशवाहा के अजीज हैं दिलीप और सीरज
ओमनिस इंफ्रा पावर लिमिटेड के निदेशक दिलीप कुमार सिंह एवं सीरज ध्वज सिंह बसपा सरकार में मंत्री रहे बाबू सिंह कुशवाहा के इतने खास थे कि संकट की घड़ी में कुशवाहा ने उन्हें अपने धंधे का दायित्व सौंप दिया था. यहां तक कि कई बेनामी संपत्तियां भी उनके नाम कर दी थीं और कई ट्रस्टों में उन्हें शामिल कर लिया था. भागवत प्रसाद एजुकेशनल ट्रस्ट लखनऊ, श्रीनाथ प्रॉपर्टीज बांदा, तथागत ज्ञानस्थली लखनऊ, मेसर्स शिवा वाइंस बांदा, एक्सिस एजुकेशनल सोसायटी कानपुर समेत कई संस्थाओं और न्यासों में कुशवाहा ने दिलीप सिंह एवं सीरज ध्वज सिंह को खास जगह दी थी. दिलीप एवं सीरज को उन्होंने कई भू-संपत्तियों का मालिक भी बनाया था.
बांदा में चल रहे बालू और पत्थर के खनन के पट्टाधारकों में दिलीप सिंह एवं सीरज ध्वज सिंह के नाम प्रमुखता से रहे हैं. इलाके में उन्हें पूर्व खनिज मंत्री बाबू सिंह कुशवाहा का डमी ठेकेदार भी कहा जाता रहा है. खनन के धंधे से होने वाली हज़ारों करोड़ रुपये की मोटी कमाई पर उक्त माफियाओं का राज यथावत कायम है. लोकायुक्त की जांच में भी पाया गया है कि महोबा और बांदा में बड़े-बड़े क्षेत्रफल के खनन पट्टे कुशवाहा ने दिलीप कुमार सिंह, सीरज ध्वज सिंह एवं गिरधारी लाल कुशवाहा जैसे अपने लोगों को दे दिए थे.
फर्जी नामों से चलने वाले कुशवाहा के खनन धंधे की देखरेख दिलीप एवं सीरज ही करते थे. उनके बालू खनन के धंधे से बुंदेलखंड के बांदा, हमीरपुर, चित्रकूट, उरई एवं फतेहपुर के बेंदा घाट में नदियों का सीना छलनी हो चुका है. बुंदेलखंड को रेगिस्तान बनाने की साज़िश में सरकार और माफिया दोनों शामिल हैं. तमाम अदालती पाबंदियों के बावजूद खनन बेतहाशा जारी है. विशेषज्ञों को अंदेशा है कि ओमनिस के ज़रिये खनन माफियाओं को धन के अपार स्रोत वाले ऊर्जा सेक्टर में घुसाने की साज़िश को अंजाम दिया जा रहा है.
अखिलेश सरकार भी मेहरबान
बांदा-बुंदेलखंड के खनन सम्राट एवं ओमनिस इंफ्रा पावर लिमिटेड के निदेशक सीरज ध्वज सिंह पर समाजवादी सरकार भी उतनी ही मेहरबान है. पांच लघु जल विद्युत परियोजनाओं के ठेके लेने के बाद भी काम शुरू न करने वाली कंपनी के निदेशक का खनन धंधा जारी रहे, इसका सरकार पूरा ख्याल रखती है. राज्य सरकार ने सीरज ध्वज सिंह के नाम एक और खनन पट्टा जारी करने के लिए अपनी तऱफ से हरी झंडी दी थी, जिस पर पर्यावरण निदेशालय ने भी अपनी औपचारिक मंजूरी दे दी. इस मंजूरी के बाद सीरज ध्वज सिंह के आधिकारिक खनन साम्राज्य में महोबा का जुझार गांव (सर्वे नं.2/4, खंड-01) भी शामिल हो गया है.
दलीय सीमाएं लांघकर कमाते-कमवाते हैं नेता
अगर निष्पक्ष जांच कराई जाए, तो उत्तर प्रदेश के ऊर्जा सेक्टर का घोटाला देश का सबसे बड़ा घोटाला साबित होगा, जिसमें नेता, नौकरशाह, इंजीनियर, जज, सरकारी वकील एवं सीबीआई के अधिकारी यानी सब लिप्त हैं. उत्तर प्रदेश में यह भी होता है कि अरबों के ऊर्जा घोटाले की सीबीआई जांच का औपचारिक आदेश हो जाने के बाद भी उसे अदालत दबाकर रख देती है या फिर बाद में सीबीआई ही जांच करने से मना कर देती है.
सीबीआई के इस ग़ैर क़ानूनी आचरण पर न केंद्र सरकार कुछ बोलती है और न राज्य सरकार. घोटाले की रकम इतनी बड़ी थी कि उसने राज्य और केंद्र की सत्ता में बैठे नेताओं, नौकरशाहों, जजों एवं सीबीआई के अधिकारियों तक को अपने प्रभाव में ले लिया. तभी सीबीआई ने सरकार की अधिसूचना को ताक पर रखकर यह रिपोर्ट दे दी कि मामला जांच के उपयुक्त नहीं है. सीबीआई ने पहले टालमटोल की, उसे तकनीकी मामला बताया और अपनी तकनीकी अक्षमता का हवाला दिया.
फिर उसने कहा कि घोटाले का कोई अंतरराष्ट्रीय प्रसार नहीं है. सीबीआई की यह रिपोर्ट झूठी थी, क्योंकि पांच हज़ार करोड़ रुपये का संदर्भित ऊर्जा घोटाला हुंडई जैसी विदेशी कंपनी के साथ मिलीभगत करके अंजाम दिया गया था. उक्त घोटाले का प्रभाव क्षेत्र इतना विकराल हुआ कि उसने अदालत को भी अपने घेरे में ले लिया. घोटाले की जांच कराने के बजाय अदालत ने घोटाला उजागर करने वाले व्हिसिल ब्लोअर नंदलाल जायसवाल के खिला़फ ही अदालत की अवमानना का मामला शुरू कर दिया.
यह प्रक्रिया अभी जारी है, जबकि इलाहाबाद हाईकोर्ट की डबल बेंच ने यह फैसला दे रखा है कि पांच हज़ार करोड़ के घोटाले की जांच के बाद ही अवमानना मामले पर सुनवाई की जाएगी. लेकिन, उस आदेश को ताक पर रखकर कार्यवाही चलाई जा रही है. व्हिसिल ब्लोअर का मुंह बंद करने की साज़िशें अदालतों में भी रची जा रही हैं, सुप्रीम कोर्ट चाहे कुछ भी चिंता जताता रहे.
घोटाला और उसकी लीपापोती करने में वे सारी राजनीतिक पार्टियां शामिल हैं, जो प्रदेश की सत्ता में रही हैं. इसमें बहुजन समाज पार्टी सरकार और समाजवादी पार्टी सरकार की बराबर संलिप्तता है. बसपा और सपा, दोनों ही जब-जब सत्ता में आती हैं, तो एक-दूसरे के घोटाले दबाने का काम करती हैं. विरोध-प्रतिरोध सब दिखावा है. वह केवल आम लोगों को दिखाने वाला प्रहसन होता है.
बसपा सरकार के समय तीस हज़ार करोड़ रुपये का बिजली घोटाला हुआ था. उक्त घोटाले के दस्तावेजी प्रमाण लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा को दिए गए थे. लोकायुक्त ने उसे संज्ञान में लिया, लेकिन सत्ता के प्रभाव में कार्यवाही आगे नहीं बढ़ पाई. उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन ने पांच निजी पावर ट्रेडिंग कंपनियों के साथ द्विपक्षीय समझौता किया था.
पावर कॉरपोरेशन ने उक्त कंपनियों से महंगी दर पर पांच हज़ार करोड़ यूनिट बिजली खरीदने का समझौता किया था. विडंबना देखिए कि उस करार की शर्त थी कि सस्ती बिजली मिलने पर भी पावर कॉरपोरेशन को कहीं और से बिजली खरीदने का अधिकार नहीं होगा, चाहे वह केंद्रीय ग्रिड की एनटीपीसी और दूसरी कंपनियां ही क्यों न हों. इस विचित्र खरीद से उत्तर प्रदेश को भीषण नुक़सान हुआ. इस तरह की विचित्र खरीद सपा सरकार में भी जारी है. बसपा सरकार से पहले सपा के शासनकाल में राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना में 1,600 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ था. उस समय भी केवल जांच ही चली, नतीजा कुछ नहीं निकला.
सत्ता पर काबिज होने के बाद समाजवादी पार्टी सरकार के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कहा था कि मायावती सरकार 25 हज़ार करोड़ रुपये का घाटा छोड़कर गई है. लेकिन, उन्होंने इस घाटे की वजह जानने या उसकी औपचारिक जांच कराने की ज़रूरत नहीं समझी. यहां तक कि राज्य विद्युत नियामक आयोग के अध्यक्ष राजेश अवस्थी को हाईकोर्ट के आदेश से बर्खास्त होना पड़ा, फिर भी सरकार ने घोटाले को लेकर कोई क़ानूनी कार्रवाई आगे नहीं बढ़ाई.
इसी तरह उत्तर प्रदेश जल विद्युत निगम में भी 750 करोड़ रुपये का घोटाला हुआ, लेकिन उसमें लिप्त तत्कालीन सीएमडी आईएएस आलोक टंडन समेत अन्य अधिकारियों एवं अभियंताओं का कुछ नहीं बिगड़ा. सपा के मौजूदा शासनकाल में बिजली के बिलों में फर्जीवाड़ा करके हज़ार करोड़ रुपये का घोटाला किए जाने का मामला सामने आया. घोटाले दर घोटाले हो रहे हैं. घोटाले करने में नेता दलीय सीमाएं लांघकर कमाते और कमवाते हैं.
घोटालों का पैंडोरा-बॉक्स
उत्तर प्रदेश का ऊर्जा विभाग और उससे जुड़े विभिन्न महकमे घोटालों का पैंडोरा-बॉक्स हैं, जिसे खोलें, तो परत दर परत घोटाले ही घोटाले मिलेंगे. पचास-सौ करोड़ के घोटालों की तो बात न करें. चार-पांच सौ या हज़ार करोड़ और इससे ऊपर के घोटाले देखने हों, तो उत्तर प्रदेश के ऊर्जा सेक्टर में झांकें. मायावती सरकार के दौरान उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन में पांच हज़ार करोड़ रुपये का घोटाला हुआ हो या मुलायम सरकार के दौरान राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना में 1,600 करोड़ रुपये का घोटाला, विद्युत नियामक आयोग की शह पर जेपी समूह समेत निजी बिजली घरानों को लाभ पहुंचाने में किया गया 30 हज़ार करोड़ रुपये का घोटाला हो या राज्य जल विद्युत निगम में हुआ 750 करोड़ रुपये का घोटाला.
उत्तर प्रदेश पावर कॉरपोरेशन के मध्यांचल विद्युत वितरण निगम द्वारा तेलंगाना की वैरिगेट प्रोजेक्ट प्राइवेट लिमिटेड नामक फर्जी कंपनी को दिया गया क़रीब हज़ार करोड़ का ठेका-घोटाला हो या उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा हिमाचल प्रदेश के खोदरी में जल विद्युत गृह बनवाने और उसका मालिकाना हक़ छोड़ने में किया गया छह हज़ार करोड़ का घोटाला, इनमें से किसी भी मामले में सरकार ने कोई कार्रवाई नहीं की. उत्तर प्रदेश का इसी तरह विकास होता रहा…और, अब ऊर्जा सेक्टर में खनन माफियाओं की घुसपैठ कराकर उत्तर प्रदेश के विकास का रास्ता और प्रशस्त किया जा रहा है.
जब ऐसे देना था ठेका, तो क्यों बुलाया नामी कंपनियों को!
उत्तर प्रदेश जल विद्युत निगम की विभिन्न लघु जल विद्युत परियोजनाओं के लिए आमंत्रित की गईं निविदाओं में देश की कई नामी कंपनियां शामिल हुई थीं. कई ऐसी कंपनियों ने निविदा डाली थी, जिनका हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट्स में देश-दुनिया में नाम है. लेकिन, उत्तर प्रदेश सरकार ने खनन माफियाओं को ठेके देने का पहले से ही ़फैसला कर रखा था, इसलिए निविदाएं आमंत्रित करने से लेकर उसे निर्धारित करने के लिए बैठक बुलाने समेत तमाम औपचारिकताओं की नौटंकी की गई, लेकिन पांच लघु जल विद्युत परियोजनाओं के ठेके उस कंपनी को दे दिए गए, जो निविदाएं निर्धारित किए जाने की तारीख तक अस्तित्व में ही नहीं थी. अनैतिकता-अराजकता का इतना प्रभाव प्रदर्शित हुआ कि सारी नामी कंपनियों के प्रतिनिधि तमाशा देखते रह गए और ओमनिस जैसी कंपनी ठेका-मेडल लेकर विजेता घोषित कर दी गई.
उत्तर प्रदेश में लघु जल विद्युत परियोजनाओं के ठेके हासिल करने के लिए आंध्र प्रदेश की नागार्जुन कंस्ट्रक्शंस लिमिटेड जैसी नामी कंपनी भी शामिल हुई थी. इस कंपनी को ऊर्जा के क्षेत्र में आंध्र प्रदेश एवं ओडिशा समेत देश भर में काम करने का पुराना अनुभव है. चीन की मशहूर नॉर्दर्न हेवी इंडस्ट्रीज ग्रुप कंपनी लिमिटेड के साथ मिलकर नागार्जुन कंस्ट्रक्शंस मध्य प्रदेश के सासन इलाके में बहुत बड़ा काम कर रही है.
विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में ओडिशा में 350 मेगावाट का नीलांचल प्रोजेक्ट नागार्जुन की देखरेख में बन रहा है. आंध्र प्रदेश के राजामुंदरी में सौ मेगावाट का पांडुरंग प्रोजेक्ट, पेड्डापुरम का 469 मेगावाट का गौतमी पावर प्रोजेक्ट और नेल्लोर के कृष्णपट्टनम में 1,320 मेगावाट का थर्मल पावर प्रोजेक्ट भी नागार्जुन कंस्ट्रक्शंस बना रही है. इसके अलावा करनूल के रचेरला सीमेंट प्लांट के विद्युतीकरण, तिरुपति के हाई वोल्टेज डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम, असम के नौगांव में सब-ट्रांसमिशन और डिस्ट्रीब्यूशन समेत कई अन्य प्रदेशों में नागार्जुन कंस्ट्रक्शंस के काम चल रहे हैं.
उत्तर प्रदेश की लघु जल विद्युत परियोजनाओं के ठेके हासिल करने की दौड़ में इंडिया बुल्स जैसी कंपनी भी शामिल थी. सब जानते हैं कि रियल इस्टेट के क्षेत्र में इंडिया बुल्स के देश भर में काम चल रहे हैं. नासिक में स्पेशल इकोनॉमिक जोन विकसित करने और हरियाणा के गुड़गांव में टेक्नोलॉजी पार्क बनाने में इंडिया बुल्स का काफी नाम हुआ है. ऊर्जा के क्षेत्र में दाखिल होने के इरादे से यह कंपनी उत्तर प्रदेश आई थी. नोएडा स्थित कंपनी अक्षयिनी ऊर्जा भी उत्तर प्रदेश में लघु जल विद्युत परियोजनाओं का काम हासिल करना चाहती थी.
वर्ष 2007 की यह कंपनी उत्तराखंड के मुंशियारी में मंदाकिनी स्मॉल हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट का काम कर रही है. इस प्रोजेक्ट के तहत 4.50 मेगावाट विद्युत उत्पादन क्षमता वाली चार यूनिटें स्थापित हो रही हैं. मंदाकिनी प्रोजेक्ट-बी का काम भी इसी कंपनी ने हासिल किया, जिसके तहत 5.25 मेगावाट की चार यूनिटें स्थापित हो रही हैं. इसके अलावा हिमाचल प्रदेश के कुल्लू ज़िले में कालानाव हाइड्रो प्रोजेक्ट भी अक्षयिनी ऊर्जा की देखरेख में बन रहा है. सिक्किम में भी कुछ प्रोजेक्ट्स पर यह कंपनी काम कर रही है.
सिम्प्लेक्स इंफ्रास्ट्रक्चर्स लिमिटेड जैसी पुरानी कंपनी भी इस दौड़ में शामिल थी. 1924 से ऊर्जा के साथ-साथ कई अन्य तकनीकी क्षेत्रों में काम करने वाली यह कंपनी देश भर में क़रीब तीन हज़ार बड़े प्रोजेक्ट्स स्थापित कर चुकी है. ऊर्जा के क्षेत्र में इस कंपनी ने 1960 में क़दम रखा था और तबसे लेकर आज तक यह थर्मल, हाइड्रो, न्यूक्लियर और अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट्स स्थापित करने की विशेषज्ञता हासिल कर चुकी है. सिम्प्लेक्स द्वारा ऊर्जा सेक्टर के प्रमुख कामों में मुंद्रा में टाटा पावर का चार हज़ार मेगावाट का अल्ट्रा मेगा पावर प्रोजेक्ट, रायचूर-शोलापुर ट्रांसमिशन लाइन और कन्याकुमारी का मशहूर कुडनकुलम न्यूक्लियर पावर प्रोजेक्ट समेत कई बड़े प्रोजेक्ट्स शामिल हैं.
उत्तर प्रदेश में लघु जल विद्युत परियोजनाओं के लिए 1980 में स्थापित कंपनी गो-गोल हाइड्रो भी आई थी. हाइड्रो प्रोजेक्ट्स में इस कंपनी का खासा काम है. इस कंपनी को दिल्ली में उद्योग रत्न का पुरस्कार भी मिल चुका है. यह कंपनी उत्तराखंड जल विद्युत निगम की तऱफ से भी पुरस्कृत हो चुकी है. उत्तराखंड के विभिन्न प्रोजेक्ट्स के अलावा कई राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कंपनियों के साथ मिलकर यह कंपनी देश भर में ऊर्जा के क्षेत्र में काम कर रही है.
उक्त कंपनियों के अलावा पैरामाउंट कंस्ट्रक्शन कंपनी, किर्लोस्कर सिस्टेक लिमिटेड, ऑरो मीरा एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड चेन्नई, एलेओ मनाली हाइड्रो प्रोजेक्ट्स लिमिटेड, राना शुगर, ओम एनर्जी जेनरेशन प्राइवेट लिमिटेड और वेल्सपन एनर्जी लिमिटेड जैसी कंपनियां भी ठेके लेने की दौड़ में शामिल थीं. पैरामाउंट कंपनी का हिमाचल प्रदेश में लघु जल विद्युत परियोजनाओं में काम चल रहा है.
किर्लोस्कर इंजीनियरिंग के क्षेत्र की नामी कंपनी है. ऑरो मीरा एनर्जी प्राइवेट लिमिटेड को भी जल विद्युत उत्पादन के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल है. कर्नाटक स्थित भीमा नदी पर बने सोनाथी बैराज पर हाइड्रो प्रोजेक्ट ऑरो मीरा का बनाया हुआ है. कर्नाटक के अलावा हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश एवं ओडिशा में भी मीरा एनर्जी का काम है.
एलेओ मनाली हाइड्रो प्रोजेक्ट्स लिमिटेड हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, जम्मू- कश्मीर, सिक्किम और पूर्वोत्तर में लघु जल विद्युत परियोजनाओं का काम कर रही है. राना शुगर को चीनी मिलों में विद्युत उत्पादन का अनुभव है और ओम एनर्जी जेनरेशन प्राइवेट लिमिटेड को लघु जल विद्युत उत्पादन का. ओम एनर्जी हिमाचल प्रदेश के कई प्रोजेक्ट्स पर काम कर रही है. वेल्सपन एनर्जी लिमिटेड को खास तौर पर सौर ऊर्जा के क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल है. इसका काम न केवल भारत, बल्कि अमेरिका, मध्य पूर्व के देशों और दक्षिण पूर्व एशिया में भी है.
यह सब लिखने का तात्पर्य है कि उत्तर प्रदेश सरकार के अधीन काम करने वाले राज्य जल विद्युत निगम लिमिटेड ने निविदा आमंत्रण और निविदाओं पर बैठक करने का नाटक करके उन नामी कंपनियों का समय और धन बर्बाद किया, जो राज्य में लघु जल विद्युत परियोजनाओं के ठेके प्रोफेशनल तरीके से हासिल करने के लिए दौड़ में शामिल हुई थीं. उन कंपनियों की योग्यता और उनकी ठोस वित्तीय पृष्ठभूमि नेता-माफिया गठजोड़ के आगे फेल साबित हुई.
ऐसे ही घोटाले करते हुए मायावती पूरे पांच साल तक उत्तर प्रदेश की सत्ता का उपभोग करती रहीं और ऐसे ही घोटाले करते हुए अखिलेश यादव सरकार पांच साल पूरे करने जा रही है. इस तरह उत्तर प्रदेश के दस साल गर्त में चले गए. उत्तर प्रदेश का विकास कब होगा, इस सवाल का जवाब आगे आने वाली सरकार देगी, ऐसा नहीं लगता. सियासी परंपरा और अनुभव तो यही बताता है कि भावी सरकार भी घोटालों और भ्रष्टाचार से सत्ता का स्वाद लेगी और हम फिर दिन गिनेंगे.