उत्तर भारत के तीन बडे राज्यों उत्तर प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी ने इस चुनाव में अपना परचम लहराया है. इनमें मध्य प्रदेश में तो पार्टी की सफलता को लेकर लोग पहले से ही आश्वस्त थे लेकिन बिहार और उत्तप्रदेश में मिली सफलता ने पार्टियों के नेताओं के चेहरे पर मुस्कान ला दी है. यूपी में तो भाजपा ने रिकॉर्ड 73 सीटों पर जीत हासिल की. नरेंद्र मोदी लहर में इन राज्योंे की जनता ऐसी डूबी कि किसी दूसरी पार्टी के लिए करने के लिए कुछ खास बचा नहीं.
इस बार के चुनावी नतीजों में जिस प्रदेश ने सबसे ज्यादा हैरान किया है वह उत्तर प्रदेश. इस राज्य में जातिगत राजनीति को सबसे ज्याद क्लिष्ट माना जाता है. मायावती और मुलायम सिंह यादव जैसे कददावर नेताओं ने इस राज्य में जातिगत राजनीति में इस तरह से पैठ बनाई हुई थी कि कुछ विशेष जातियों से संबंधित वोटों पर इनका एकाधिकार समझा जाता था. चुनाव से पहले भी मीडिया मेंे हो रही मोदी लहर की लाख चर्चाओं के बावजूद यह माना जा रहा था कि इस राज्य में भाजपा चालीस सीटों से ज्यादा शायद ही जीत पाए. लेकिन पूरे चुनाव प्रचार अभियान के दौरान मोदी के आकर्षण मतादाताओं को अपनी तरफ ऐसा खींचा की सारे मिथक टूटने में ज्यादा समय नहीं लगा. 16 मई को जैसे-जैसे नतीजे खुलते गए सत्ताधारी समाजवादी पार्टी और दलित मतों पर अपना एकाधिकार समझने वाली बहुजन समाजवादी पार्टी को अपने सारे सपने टूटते नजर आए. इस राज्य में भजपा ने 73 सीटें जीतकर जहां सारे रिकॉर्ड तो़ड दिए वहीं सपा को सिर्फ 5 सीटें आईं और कांग्रेस 2 सिमट कर रह गई. बसपा तो अपने गढ में भी अपना खाता नहीं खोल पाई.
चुनाव की शुरुआत में ही जब नरेंद्र मोदी ने वाराणसी लडने की घोषणा की थी उसके बाद से ही यह माना जा रहा था कि राज्य में पार्टी का प्रदर्शन अच्छा होने जा रहा है. लेकिन चुनाव में भाजपा का ऐसा डंका बजेगा किसी को उम्मीद नहीं थी. हालत यह हो गई वाराणसी सीट नरेंद्र मोदी ने लगभग साढे तीन लाख मतों के अंतर से जीती. जबकि ऐसा कहा जा रहा था कि दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री और आम आदमी पार्टी के संयोजक अरविंद केजरीवाल की भी दावेदारी के बाद यह अंतर घट सकता है. कुछ ऐसा ही हाल सपा मुखिया का आजमगढ सीट पर रहा. वहां बहुत मश्किल से मुलायम अपनी यहां की सीट बचा पाए. ऐसा हाल लगभग राज्य में दूसरी पार्टी के सभी बडे नेताओं का रहा. कांग्रेस की रीता बहुगुणा जोशी को भाजपा अध्यक्ष राजनाथ सिंह ने हराया. मुरली मनोहर जोशी ने यूपीए सरकार में मंत्री रहे श्री प्रकाश जायसवाल को बहुत आसानी से हरा दिया. वहीं अमेठी सीट पर हर बार आसानी से जीत जाने वाले राहुल गांधी भी मतगणना के दौरान दूसरे नंबर पर पहुंच गए थे. हालांकि उनके लिए सुखद यह रहा कि आखिरी नतीजों में विजयी रहे.
कुछ ऐसी ही स्थिति बिहार में भी रही. पिछले साल सत्ताधारी जदयू ने भाजपा से अपना नाता तोड लिया था. इस निर्णय शुरुआत में मुसलमान मतों से जोडकर देखा जा रहा था. ऐसा कहा जा रहा था नीतीश कुमार को नरेंद्र मोदी के पीएम उम्मीदवार बन जाने के बाद मुस्लिम मतों के छिटकने का डर सता रहा था. इसके बाद भाजपा के साथ लोजपा और रालोसपा के साथ गठबंधन हुआ. चुनाव परिणाम आने के बाद राज्य में एनडीए को आशा से ज्यादा सफलता हाथ लगी. राज्य में एनडीए गठबंधन को 31 सीटें हासिल हुईं. वहीं राजद और कांग्रेस के यूपीए गठबंधन को 7 सीटें मिलीं जबक सत्ताधारी जदयू को मात्र 2 सीटों से ही संतोष करना प़डा. एनडीए के संयोजक रहे शरद यादव भी चुनाव हार गए. सिर्फ इतना ही नहीं कई बडे नेताओें को राज्य की जनता के हाथों निराशा हाथ लगी. इनमें पूर्व मुख्यमंत्री राबडी देवी, पूर्व मुख्यमंत्री राम सुंदर दास, लालू यादव की बेटी मीसा भारती शामिल हैं. हालांकि किशनगंज सीट से भाजपा के कददार नेता शाहनवाज हुसैन को भी कडे मुकाबले में हार का सामना करना पडा.
मध्य प्रदेश के चुनाव के बारे में तो पहले से यह कयास लगाए जा रहे थे कि राज्य में भाजपा का प्रदर्शन काफी अच्छा रहेगा. कुछ ही महीनों पहले सम्पन्न हुए विधान सभा चुनावों के दौरान भी पार्टी वहां से भारी बहुमत से जीतकर आई थी. शिवराज सिंह चौहान की राज्य में लोकप्रियता और नरेंद्र मोदी लहर ने राज्य में पार्टी को बेहतर नतीजा देने मेंे और आसानी कर दी. राज्य की 29 लोकसभा सीटों में से भाजपा ने 27 पर विजयश्री हासिल की. सिर्फ दो सीटों पर कांग्रेसी प्रत्याशी जीत पाए. इनमें गुना से ज्योतिरादित्य सिंधिया और छिंदवा़डा से कमलनाथ रहे. ये दोनों ही पूर्ववर्ती यूपीए सरकार में मंत्री थे. एक तरीके से राज्य मेंे भाजपा ने अपना ऐसा परचम लहराया कि कांग्रेस के लिए कोई जगह ही नहीं छो़डी.
उत्तर भारत में भाजपा का परचम
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