भोपाल। मप्र की जब स्थापना हुई थी, प्रदेश में करीब 576 उर्दू स्कूल मौजूद थे।लेकिन आती-जाती सरकारों का उर्दू को लेकर नकारात्मक रवैया इसको नीचे धकेलने पर आमादा है। आज उर्दू मीडियम स्कूलों की तादाद सरक पर महज 129 पर आ टिकी है। नई शिक्षा नीति में जिस तरह से उर्दू को दरकिनार किया गया है, उससे आने वाले दिनों मेंं इन हालात से इंकार नहीं किया जा सकता कि प्रदेश और देश से उर्दू का नाम-ओ-निशान खत्म हो जाएगा।

किसी मजहब की भाषा मानकर उर्दू के साथ नाइंसाफी करने वाले इस बात को भुलाए बैठे हैं, कि उर्दू पर जितना हक मुस्लिमों का है, उससे ज्यादा इसके इस्तेमाल से गैर मुस्लिमों ने किया और फायदा उठाया है।

मप्र कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता मुनव्वर कौसर ने पत्रकारवार्ता में कहा कि मप्र मेंं कांग्रेस शासन के दौरान तात्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय ने प्रदेश के उर्दू मीडियम स्कूलों के लिए करीब 2200 शिक्षकों की नियुक्ति के आदेश दिए थे। लेकिन सरकार बदल के बाद यह मामला ठंडे बस्ते में चला गया और इन स्वीकृत नियुक्तियों में से अब तक महज 600 पदों पर भर्ती हो पाई है।

कौसर ने कहा कि राजधानी भोपाल समेत प्रदेश के कई शहरों और इलाकों में उर्दू को दूसरी भाषा की तवज्जो मिलती रही है, लेकिन पिछले कुछ सालों में राजधानी के बाजारों में लगे साइन बोर्ड से लेकर वार्डों की नाम पट्टिकाएं तक हटा दी गई हैं। भोपाल के ऐतिहासिक इकबाल मैदान पर बरसों से लगे उर्दू बोर्ड को हटाकर इसकी पहचान मिटाने की कोशिश भी की जा चुकी है, लेकिन शहर के उर्दू चाहतमंदों ने इसे पुन: लगवाकर उर्दू की लाज बचाई है।

मुनव्वर कौसर ने कहा कि उर्दू के साथ जो हालात बनाए जा रहे हैं, वह महज इस इरादे और मंशा के साथ हैं कि यह मजह मुसलमानों की जुबान है। लेकिन ऐसा सोचने वालों को इस बात को ध्यान में रखना चाहिए कि उर्दू को पढऩे, लिखने, इस्तेमाल करने और इसे अपना कमाई का जरिया बनाने वालों में मुसलमानों से ज्यादा हिन्दू भाईयों की तादाद है। कायस्थ, पंजाबी, सिंधी समाज के लोग उर्दू को ही अपनी जुबान कहते और मानते हैं। कई ऐसे बड़े लेखक से लेकर नामवर शायर तक मौजूद हैं, जिनका धर्म हिन्दू है और उनकी जुबान उर्दू।

कौसर ने कहा कि उर्दू के खिलाफ रची जा रही साजिश को लेकर एक अभियान चलाया जाएगा। जिसमें इस बात को रेखांकित किया जाएगा कि उर्दू महज लिखने-पढऩे की भाषा नहीं, बल्कि यह हिन्दी के माथे की बिंदी है, जिससे एक भाषा या कोई बात पूरी होती है और उसमें मिठास शामिल होती है। उन्होंने बताया कि अभियान के दौरान शहर के बाजारों में हॉडिंग्स और बोर्ड को हिंदी या अंग्रेजी के साथ उर्दू में लिखने की शुरूआत भी की जाएगी। जिससे एक जुबान का वजूद सियासी कवायदों से खत्म न हो।

भोपाल से खान आशु की रिपोर्ट

Adv from Sponsors