उत्तर प्रदेश में चुनावों के लिए वोट पड़ रहे हैं. पंजाब और गोवा के वोट पड़ चुके हैं. भारी संख्या में मतदान हुआ है. लोकतंत्र में लोगों का फैसला ही सर्वोपरी होता है, चाहे वो किसी की नज़र में सही हो, या किसी की नज़र में गलत हो. इस चुनाव में बहुत सारे अंतर्विरोध भी दिखाई दिए.
हम आपको कुछ स्थितियां बताते हैं, ताकि आप खुद इस बात का फैसला कर सकें कि इन चुनावों में वोट पड़े हैं, तो फैसला किसके पक्ष में जाएगा. बात शुरू करने या स्थितियों का जायजा लेने से पहले हम आपको दो घटनाएं बताते हैं. एक घटना में नाम है, एक घटना में संकेत है. जिनमें संकेत हैं, उन्हें आप समझें कि उसके पात्र कौन-कौन हैं.
एक अभिनेत्री, एक नेता और उत्तर प्रदेश
देश की एक बहुत बड़ी अभिनेत्री अपने एक गहरे मित्र के साथ बैठी हुई थीं. दोनों की बातचीत राजनीतिज्ञों पर शुरू हुई, क्योंकि आजकल अभिनेत्री, अभिनेता और राजनेता न केवल हम प्याला-हम निवाला होते हैं, बल्कि अपनी परिधि और अपनी सीमाएं भी खुद बनाते हैं. इस अभिनेत्री ने अपने दोस्त से कहा कि चलो मैं तुम्हें एक खेल दिखाती हूं, जो रियल लाइफ ड्रामा है, पर शर्त ये है कि तुम चुप रहोगे. अगर सांस की आवाज भी फोन में आ गई, तो तुम्हारा सारा मजा किरकिरा हो जाएगा. उस दोस्त ने हामी भर दी. इस अभिनेत्री को यहां हम पीडी नाम देते हैं. पीडी ने देश के एक बड़े नेता को फोन मिलाया.
ये नेता उत्तर प्रदेश के हैं और उत्तर प्रदेश के उन 8 बड़े नेताओं में शामिल हैं, जो मुख्यमंत्री की दौड़ में हैं. फोन पर इस नेता को जैसे ही पीडी की आवाज सुनाई दी, उन्होंने बहुत लरजते हुए स्वर में कहा कि आज तो मेरी शाम बन गई. लेकिन अगर आप मेरे पास होतीं, तो मैं बहुत सुकून से सोता. पीडी ने बहुत ही मधुर आवाज में इस नेता से बात की कि ऐसा क्या हो गया कि आपको मेरी आवाज से इतना सुकून हुआ. इस अंदाज में लगभग पांच मिनट तक फोन पर दोनों की बातचीत हुई.
बातचीत खत्म होने के बाद पीडी का दोस्त थोड़ा भौचक्का था, क्योंकि पहले उसने पीडी से कहा था कि मुझे भरोसा ही नहीं होता कि तुम जो कह रही हो, वह सही है. इसका सबूत पीडी ने अपने दोस्त को दे दिया था, बातचीत करते हुए फोन को स्पीकर पर लगाकर. दोस्त ने कहा कि अब मुझे बताओ कि ये सब बात क्या है और कहां तक पहुंची है? पीडी ने पहले तो बताने से मना कर दिया, लेकिन इसके बाद सारी घटनाएं उसने अपने दोस्त को बताई.
पीडी के सेक्रेटरी ने पीडी से कहा कि आज मुझे थोड़ा सा गंवार दिखने वाला उत्तर प्रदेश का एक आदमी मिला, वो आपसे मिलना चाहता है. पीडी ने उससे कहा कि मैं किसी से नहीं मिलूंगी, तुम किसी का भी प्रस्ताव ले के आ जाते हो. तो सेक्रेटरी ने कहा कि नहीं, वो डायमंड की पांच कैरेट की अंगूठी और पांच कैरेट के इयर रिंग्स आपको गिफ्ट करना चाहता है. पीडी ने फौरन कहा कि उसे बुला लो. अगले दिन वो व्यक्ति पीडी से मिला और पीडी को गिफ्ट दिया.
गिफ्ट देने के बाद उसने कहा, मैं चाहता हूं कि आप मेरी कंपनी की ब्रांड एंबेसडर बनें. उस शख्स को यहां हम एसएन कहेंगे. ये उत्तर प्रदेश के एक शहर का बड़ा बिल्डर है, या अपकमिंग बिल्डर है. उसने पीडी से कहा कि आप अगर मेरी कंपनी की ब्रांड एंबेसडर बनेंगी, तो मेरे बनाए हुए मकान ज्यादा अच्छी तरह से बिक जाएंगे. पीडी ने हामी भर दी. उसके बाद ये शख्स पीडी को महंगे-महंगे तोहफे भेजने लगा. एक दिन इस शख्स ने कहा कि मैं आपसे मिलकर कुछ बात करना चाहता हूं. पीडी ने उसे बुला लिया.
एसएन ने पीडी से कहा कि एक शख्स (एक बड़ा राजनेता) आपसे मिलना चाहता है. पीडी ने नाम सुना, तो मिलने की हामी भर दी. एसएन ने कहा कि कल शाम को वो शख्स मुंबई में होगा और वहां आपसे मुलाकात करेगा. पीडी ने कहा कि मुलाकात में क्या मैं अपने मैनेजर को साथ ला सकती हूं. एसएन ने कहा, जरूर ले आइए. अगले दिन कोलाबा के ताजमहल होटल के प्रेसिडेंसियल सुइट में रात 9 बजे पीडी की मुलाक़ात उस शख्स से हुई. मुलाक़ात में 10 मिनट के बाद पीडी ने अपने मैनेजर को इशारा किया और मैनेजर सुइट के ड्राइंग रूम में बैठ गया.
इस बड़े राजनेता और पीडी के बीच बातचीत शुरू हुई, जिसमें उसने पीडी की बहुत तारीफ की. इस दौरान उस शख्स ने पीडी से कहा कि मैं तुम्हें मूनलाइट यानी चांदनी रात में ताजमहल दिखाना चाहता हूं. पीडी मुस्कुराते हुए उसके चेहरे की तरफ देखती रह गई. उस शख्स ने पीडी से यह भी पूछा कि मैं आपके लिए क्या कर सकता हूं.
पीडी ने कहा कि आप क्या करना चाहते हैं. उसने कहा कि मैं चाहता हूं कि आप जिंदगी में बहुत खुश रहें, सुखी रहें. यह मुलाक़ात लगभग डेढ़ घंटे चली, फिर खाने-पीने के बाद पीडी अपने मैनेजर के साथ घर आ गई. अगले दिन से इस शख्स ने पीडी को बहुत अपनेपन के मैसेजेज भेजने शुरू किए. इसके दो हफ्ते के बाद एसएन ने पीडी से कहा कि आपको एक फंक्शन में लखनऊ में आना है, आपके वो मित्र आपको आमंत्रित कर रहे हैं.
एसएन ने पीडी से ये भी कहा कि वे आपके प्यार में वशीभूत हो गए हैं और आपसे बहुत ज्यादा प्रभावित हैं. पीडी ने कहा कि पागल हो गए हो, वो इतने बड़े हैं, शादीशुदा हैं, उनके बच्चे हैं. तो एसएन ने कहा कि इससे क्या हुआ. बहुत सारे लोग शादीशुदा हैं, बहुत से लोगों को बच्चे हैं, लेकिन वो प्यार करते हैं.
पीडी को उसके ऊपर भरोसा नहीं हुआ. उसे लगा कि ये गॉसिप है. हालांकि वो स्पेशल हवाईजहाज से तय समय पर लखनऊ पहुंची. लखनऊ में कोई कार्यक्रम नहीं था. एक बड़े पॉश गेस्ट हाउस में पीडी की मुलाक़ात उस शख्स से हुई. उस शख्स ने पीडी से कहा कि पीडी मैं चाहता हूं कि मैने आपको चाहा है, तो आपको जिंदगी में कभी दु:ख नहीं हो. बताइए आप कहां रहती हैं.
पीडी ने बताया कि मैं एक छोटे फ्लैट में रहती हूं, लेकिन एक बड़ा फ्लैट खरीदना चाहती हूं. उस शख्स ने पूछा कि उस फ्लैट की कीमत कितनी है, तो पीडी ने कहा कि वो 32 करोड़ का फ्लैट है. अब इस शख्स के चेहरे पर चिंता दिखने लगी. इसने कहा कि 32 करोड़ तो बहुत ज्यादा है, लेकिन आपके पास कितना पैसा है? पीडी ने कहा कि 12 करोड़ मेरे पास है, लेकिन बाकी 20 करोड़ नहीं है. इस व्यक्ति ने पीडी को 20 करोड़ देने का वादा कर लिया.
इस वादे को उसने अगले 4 दिनों में निभाया. उसने पीडी से ये भी कहा कि मैं आपको मुंबई में एक इतनी बड़ी प्रॉपर्टी खरीद के दूंगा, जिसका किराया आएगा 15-16 लाख रुपया महीना. शायद इस व्यक्ति ने ये प्रॉपर्टी भी खरीद के पीडी को दे दी और उसके बाद उसने जिस तरह से पीडी को मैसेजेज भेजने शुरू किए- मैं ये करना चाहता हूं, मैं ये कर लूंगा, मैं ये छोड़ दूंगा. इससे पीडी परेशान हो गई और उसने एसएन से कहा कि कृपा कर मेरा इनसे पिंड छुड़वाइए. वो पिंड अभी छूटा नहीं है.
जाट आपका साथ नहीं देगा…
दूसरी घटना, चुनाव की घोषणा हो गई, टिकटों के बंटवारे शुरू हुए, तो अमित शाह ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट नेताओं की अपने जाट मंत्रियों सहित एक मीटिंग बुलाई. मीटिंग में उन्होंने कहा, ऐसा लगता है कि जाट नाराज हैं. पिछले लोकसभा चुनाव में उन्होंने सौ प्रतिशत भारतीय जनता पार्टी को वोट दिया था.
किसी भी तरह से जाटों को अपने साथ लाना है. पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलग-अलग जिलों के जितने जाट नेता आए थे, वे अपने यहां के चौधरी माने जाते हैं. उन्होंने हाथ जोड़ लिए और कहा कि इस बार जाट आपका साथ नहीं देगा, क्योंकि आपने अजित सिंह को अपने साथ नहीं लिया.
जाटों को लगता है कि अजित सिंह के राजनीतिक एकांतवास के पीछे भारतीय जनता पार्टी की रणनीति है और जाट पूरे तौर पर अजित सिंह के साथ हैं. अमित शाह ने कहा कि किसी भी तरह से जाटों को साथ रखिए, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के जाट मंत्रियों सहित जाट नेता अमित शाह से यह साफ कह कर चल दिए कि इस बार वे जाटों को अपने साथ या भारतीय जनता पार्टी के साथ रखने के लिए कुछ नहीं कर पाएंगे.
ये दो घटनाएं दो तरह के संकेत देती हैं. एक तो, चुनाव में भारतीय जनता पार्टी कैसे अपने वादे से हटती है और कैसे अपना गठजोड़ बनाने में विफल रहती है, जिसकी वजह से पश्चिमी उत्तर प्रदेश का एक बड़ा समुदाय उससे दूर चला जाता है. इसका अगला संभावित कदम लोकसभा चुनाव मेंहरियाणा में भी देखने को मिल सकता है. दूसरा यह कि उत्तर प्रदेश के अगले आठ संभावित मुख्यमंत्रियों में किस तरह के लोग हैं, जो अपनी मानवीय कमज़ोरियों को बिना किसी संकोच के पूरा करने के लिए अपनी स्थिति का फायदा उठाते हैं.
बसपा और मुस्लिम समाज
सबसे पहले हम बहुजन समाज पार्टी को लेते हैं. हमारे सर्वे में शुरू में बहुजन समाज पार्टी सबसे आगे दिखाई देती थी. लेकिन बहुजन समाज पार्टी से कई लोग, पार्टी छोड़कर चले गए और वो भी तब, जब चुनाव नजदीक आ गया था. उन्होंने लोगों के बीच कई अलग-अलग तर्क दिए. लेकिन जो पार्टी में हैं, उनमें एक सज्जन मंत्री भी रहे. उन्होंने अपने किसी दोस्त से कहा कि मैंने दो टिकट मांगे थे और उन दो टिकटों के लिए मुझे 10 करोड़ रुपए देने पड़े. उन्होंने अपने मित्र से कहा कि तब मुझे लगा कि मैं क्यों इस पार्टी में हूं. जिसके लिए मैंने सब कुछ किया और मुझे भी अपने और एक दूसरे टिकट के लिए पार्टी को 10 करोड़ देने पड़ रहे हैं.
इस तरह की घटनाएं बहुत सारे लोगों के साथ घटीं और जो अच्छे उम्मीदवार थे, उनकी जगह उन लोगों को टिकट मिला, जो उम्मीदवार शायद दलित समुदाय के वोट के लिए बहुजन समाज पार्टी में शामिल हुए हैं. पूरे चुनाव के दौरान या चुनाव से पहले, बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने मुस्लिम समाज को अपने पास न तो बुलाया, न तो उनसे मंत्रणा की और न ही उनके सवालों को हल करने का कोई वादा किया. उल्टे मुस्लिम समाज या इस समाज के नेता बहुजन समाज पार्टी के पक्ष में अपीलें करने लगें, क्योंकि उन्हें लगा कि अखिलेश यादव के अंतर्विरोध की वजह से कहीं भारतीय जनता पार्टी को बढ़त ना मिल जाय.
अगर मुस्लिम समुदाय अखिलेश यादव और मायावती में बंट गया, तब भारतीय जनता पार्टी की जीत निश्चित हो जाएगी. अखिलेश यादव ने सफलता पूर्वक उत्तर प्रदेश के मुसलमानों के बीच यह संदेश पहुंचा दिया कि अगर मायावती जी ये चुनाव जीतती हैं और कुछ सीटें कम रह जाती हैं, तो उनका गठजोड़ भारतीय जनता पार्टी के साथ हो जाएगा. इस प्रचार का दबाव इतना ज्यादा बढ़ा कि मायावती जी को सार्वजनिक रूप से ये घोषणा करनी पड़ी कि मैं भले सरकार ना बना पाऊं, लेकिन भारतीय जनता पार्टी की मदद से सरकार नहीं बनाऊंगी.
सपा-कांग्रेस गठबंधन की कमज़ोरी और ताक़त
दूसरी ताकत, जो उत्तर प्रदेश के चुनाव में सबसे बड़ी बनकर उभरी है, वो अखिलेश यादव हैं. अखिलेश यादव इस समय अति आत्मविश्वास से लबालब हैं और उन्होंने समाजवादी पार्टी की राजनीतिक दिशा एक झटके में मोड़ दी है. मुलायम सिंह यादव 30 साल तक कांग्रेस के विरोध की राजनीति करते रहे. हालांकि कांग्रेस सरकार को समर्थन भी देते रहे, सरकार भी चलवाते रहे.
लेकिन सार्वजनिक तौर पर उन्होंने कभी कांग्रेस की प्रशंसा नहीं की. अखिलेश यादव ने एक झटके में कांग्रेस का साथ लिया और राहुल गांधी के साथ सीटों का समझौता कर लिया. इस समझौते के पीछे राहुल गांधी कम और प्रियंका गांधी ज्यादा थी. प्रियंका गांधी ने किसी भी तरह से अखिलेश यादव को समझाया और तैयार किया कि वो कांग्रेस के साथ समझौता करें.
प्रियंका गांधी के विश्वासपात्र प्रशांत किशोर का भी इसमें बड़ा रोल रहा. अखिलेश यादव के साथ इस चुनाव में उत्तर प्रदेश का नौजवान दिखाई दे रहा है. समाजवादी पार्टी के चुने हुए एमएलए भी अखिलेश यादव के साथ हैं. लग रहा है कि अखिलेश यादव बड़े बहुमत से चुनाव जीतेंगे. लेकिन अखिलेश यादव के साथ दो अंतर्विरोध हैं. अखिलेश यादव पिछले तीन सालों से समाजवादी पार्टी को नौजवानों की पार्टी बनाने की कोशिश कर रहे थे.
उन्होंने हर विधान सभा में एक नौजवान तैयार किया और उसे पिछले चार साल में उसे पैसे से मजबूत किया. उसे ठेके दिलवाए, ताकि वो किसी के प्रति आश्रित न रहे. उस व्यक्ति ने अपने चुनाव क्षेत्र में जम कर काम किया. लेकिन जैसी गतिविधिया हुईं, जिस तरह की घटनाएं घटीं और चुनाव आयोग में विधायकों के शपथपत्र की आवश्यकता पड़ी, तो अखिलेश यादव ने मौजूदा सभी विधायकों से वादा किया या उन्हें ये वादा करना पड़ा कि वे उन्हें टिकट देंगे. अखिलेश यादव ने ज्यादातर मौजूदा विधायकों को टिकट दिया.
इसका परिणाम ये हुआ कि वो सारे लोग टिकट से वंचित रह गए, जो पिछले 3-4 सालों के दौरान उत्तर प्रदेश विधानसभा में जाने की तैयारी कर रहे थे और जिन्हें अखिलेश यादव ने ही मजबूत बनाया था. उनमें से अधिकांश समाजवादी पार्टी के आधिकारिक उम्मीदवारों के खिलाफ ही चुनाव लड़ रहे हैं. दूसरी तरफ, जब अखिलेश यादव अपने पिता से सत्ता छीन रहे थे, तब मुलायम सिंह यादव ने दो बयान दिए. पहला बयान कि अखिलेश यादव मुस्लिम विरोधी हैं और दूसरा ये कि मैं इस गठबंधन को सही नहीं मानता और मेरे समर्थक कांग्रेस के खिलाफ चुनाव लड़ें.
इस घोषणा के बाद बहुत सारे लोग, लगभग 50 सीटों पर कांग्रेस के खिलाफ निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में खड़े हो गए. हालांकि, मुलायम सिंह यादव ने ये वादा किया था कि वे उनके लिए चुनाव प्रचार करेंगे. लेकिन मुलायम सिंह यादव किसी के लिए भी चुनाव प्रचार में अभी नहीं गए हैं.
ये दो स्थितियां अखिलेश यादव के लिए परेशानी पैदा कर सकती हैं. एक तीसरी अंतर्धारा है कि शिवपाल यादव को जिस तरह से मात मिली, उससे शिवपाल यादव के बहुत सारे समर्थक चुनाव से दूर खड़े हैं. हालांकि सिर्फ शिवपाल यादव के समर्थक ही दूर नहीं खड़े हैं, मुलायम सिंह के 40 साल के राजनीतिक साथी और उनकी प्रशंसा करने वाले लोग भी चुनाव से दूर खड़े हैं. ये तीन चीजें अखिलेश यादव के पूर्ण रूप से सत्ता प्राप्त करने में आड़े आ सकती हैं.
कांग्रेस पार्टी का गठजोड़ समाजवादी पार्टी से हुआ और इसमें प्रियंका गांधी का बहुत बड रोल रहा. सीटें भी लगभग बंट गईं और कांग्रेस सिर्फ 105 सीटों पर चुनाव लड़ रही है. लेकिन इस समझौते में इतनी देर हो गई कि उत्तर प्रदेश की किसी भी रैली में कांग्रेस के लोग शामिल नहीं हुए (उन रैलियों को छोड़ कर जिनमें अखिलेश यादव और राहुल गांधी एक साथ बोलने वाले थे). दूसरा तथ्य, कांग्रेस के समर्थक वोट समाजवादी पार्टी को नहीं पड़े, बल्कि जहां कांग्रेस नहीं लड़ रही है, वहां कांग्रेस का वोट भारतीय जनता पार्टी को चला गया.
तीसरी चीज, मुसलमानों में बंटवारा हुआ और मुसलमानों की बड़ी संख्या बहुत सारे चुनाव क्षेत्रों में अखिलेश और राहुल गांधी के गठबंधन के साथ गई. कांग्रेस की परेशानी ये है कि बहुत सारी जगहों पर उम्मीदवार ही नहीं मिले, तो उसे समाजवादी पार्टी के उम्मीदवारों को अपने चुनाव चिन्ह पर चुनाव में उतारना पड़ा, क्योंकि उसे अपने 105 लोगों की संख्या पूरी करनी थी.
लखनऊ के ताज होटल में अखिलेश यादव और राहुल गांधी की पहली प्रेस कांफ्रेंस में लोगों ने ध्यान नहीं दिया. वहां पर राहुल गांधी अपना वर्चस्व दिखाने के लिए बेताब थे. अखिलेश यादव ने अपना संबोधन राहुल जी बोल कर किया और राहुल गांधी ने अपने संबोधन में कहा कि अखिलेश एक अच्छा लड़का है. अखिलेश ने उनकी तरफ अचंभे से देखा और इस वाक्य के बाद उन्होंने राहुल जी की जगह राहुल कहना शुरू किया. ये बताता है कि दोनों के कार्यकर्ता एक हो कर चुनाव नहीं लड़ रहे हैं.
इसलिए कांग्रेस की सीटें 35 से 45 के बीच रहने की उम्मीद है. जबकि प्रशांत किशोर का कहना है और उन्होंने प्रियंका गांधी को इस बात पर प्रजेंटेशन भी दिया कि कांग्रेस उत्तर प्रदेश में 76 सीटें जीत रही है. लेकिन, प्रियंका गांधी ने सिर्फ गांधी परिवार के पारंपरिक सीट रायबरेली क्षेत्र में ही प्रचार करने का फैसला किया.
जबकि, ये खबर आ रही थी कि वह पूरे उत्तर प्रदेश में कैंपेन करेंगी. प्रियंका शायद इस पशोपेश में पड़ी रहीं कि अगर वो कैंपेन करती हैं और कांग्रेस को सीटें नहीं आती हैं, तो उनके अपने राजनीतिक भविष्य को ले कर बहुत बड़ा प्रश्नवाचक चिन्ह खड़ा हो जाएगा. इस पशोपेश से राहुल गांधी का कोई लेना-देना नहीं है. राहुल गांधी इस चुनाव में साधु-संत वाली भाषा में उन सवालों पर ज्यादा बात करते दिखाई दिए, जिनका चुनाव से कोई मतलब नहीं है.
भाजपा की दुविधा
भारतीय जनता पार्टी अपना चेहरा तय नहीं कर पाई है, जिसे मुख्यमंत्री बनाया जा सके. लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश की एक सभा में योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह का भाषण दिया और उन्हें वहां जैसी प्रतिक्रिया मिली, उससे दिल्ली में बैठे पार्टी अध्यक्ष को ये निर्णय लेना पड़ा कि योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश में ज्यादा से ज्यादा जगहों पर घुमाया जाए.
योगी आदित्यनाथ को दिल्ली बुलाया गया. उनके दिल्ली पहुंचने से पहले ये फैसला हो गया था कि उन्हें स्थायी रूप से प्रचार के लिए एक हेलिकॉप्टर दिया जाए, ताकि वे ज्यादा से ज्यादा जगहों पर जाएं. जब वे दिल्ली आए, तो उनसे पार्टी के वरिष्ठ नेताओं ने, खास कर पार्टी अध्यक्ष ने कह दिया कि हम घोषणा तो नहीं कर रहे हैं, लेकिन अगर हम जीतते हैं, तो आप हमारे अगले मुख्यमंत्री होंगे.
योगी आदित्यनाथ दिन-रात भारतीय जनता पार्टी के प्रचार में लगे हुए हैं. योगी द्वारा उठाए गए सवाल उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी को ये आशा दे गए कि चुनाव में ध्रुवीकरण हो जाएगा और मुसलमानों के खिलाफ सारे हिंदू भाजपा को वोट देंगे. हालांकि अब तक ये ध्रुवीकरण नहीं हो पाया है. सारी कोशिशों के बाद भी, शुरू के तीन-चार फेज तक जनता ने ध्रुवीकृत होने से मना कर दिया है. अब आखिरी चरण के लिए कुछ ताकतें ध्रुवीकरण की कोशिशें कर रही है.
भारतीय जनता पार्टी के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अलावा कोई और बड़ा कैंपेनर नहीं है. उन्हीं की सभाओं में भारी भीड़ हो रही है. वे जैसे भाषण दे रहे हैं, उससे ये माना जाना चाहिए कि उत्तर प्रदेश में भाजपा को स्पष्ट विजय मिलने वाली है. लेकिन यहां पर सन 1957 के चुनाव को याद रखना चाहिए, जब भारतीय जनसंघ की सभाएं हो रही थीं और अटल बिहारी वाजपेयी की सभाओं में लाखों लोग आते थे.
बाद में अटल जी ने एक बातचीत के दौरान, जिसमें मैं शामिल था, भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर जी से कहा कि हम ये सोच रहे थे कि हम जीत रहे हैं, लेकिन बाद में मुझे पता चला कि मेरी सभाओं में जितनी भीड़ हो रही थी, उतने ही हमारे वोट कम हो रहे थे. ये बात मैं इसलिए याद कर रहा हूं क्योंकि भारतीय जनता पार्टी से ग्रामीण क्षेत्र के लोग नाराज हैं.
खास कर किसान, जिन्हें इस नोटबंदी से काफी परेशानियां झेलनी पड़ी. व्यापारी वर्ग हमेशा भाजपा का समर्थक रहा है, लेकिन आज उसका एक बड़ा तबका भाजपा से नाराज है. नोटबंदी से उनका खुदरा व्यापार बहुत ज्यादा दबाव में आ गया और उन्हें उनलोगों को अपने यहां से हटाना पड़ा, जिन्हें वे नगद पैसा दे कर अपने व्यापार को बढ़ाने के लिए काम में लाते थे.
व्यापार पर जिस तरह की सख्ती प्रधानमंत्री मोदी लागू करने की कोशिश कर रहे हैं, वो व्यापारियों को समझ में नहीं आ रहा है. व्यापारियों की नाराजगी का दूसरा कारण यह भी है. उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी का संपूर्ण नेतृत्व पिछडों को दे दिया गया है. इससे उनका परंपरागत ब्राह्मण समाज सौ प्रतिशत भारतीय जनता पार्टी के साथ नहीं है.
भारतीय जनता पार्टी को अजित सिंह के साथ गठबंधन न करने का बड़ा नुक़सान उठाना पड़ रहा है. भारतीय जनता पार्टी को कुछ मुस्लिम वोट भी मिलते, लेकिन भाजपा ने एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को चुनाव में नहीं उतारा. इसलिए इस चुनाव में भारतीय जनता पार्टी की स्थिति भले ही देखने में बहुत मजबूत लगे, पर ये परेशानियां चुनाव में उसके सामने आ रही हैं और लोगों को उसके पक्ष में वोट देने से रोक रही है.
सरकार किसकी बनेगी..
अगर यही स्थिति रहती है, तो इसमें शंका है कि उत्तर प्रदेश में किसी भी पार्टी को बहुमत मिले और अगर ऐसा होता है, यानी किसी पार्टी को बहुमत नहीं मिलता है, तो इसका मतलब है, फ्रैक्चर्ड मैंडेट यानी हंग विधान सभा उत्तर प्रदेश में दिखाई देगी. तब सरकार किसकी बनेगी? इसका सीधा जवाब है कि तब भारतीय जनता पार्टी और मायावती जी की सरकार बनेगी या भारतीय जनता पार्टी और अखिलेश यादव जी की सरकार बनेगी. अखिलेश यादव के बारे में एक आम धारणा है कि उन्होंने संघर्ष नहीं देखा है, समाजवाद नाम उनका रटा हुआ है, लेकिन समाजवादी मूल्यों में उनकी आस्था कम है. उन्होंने जैसे कांग्रेस के साथ गठबंधन किया, सरकार बनाने के लिए वैसे ही भारतीय जनता पार्टी के साथ भी गठबंधन कर सकते हैं. अगर मायावती की संख्या कम हुई, तो राहुल गांधी अखिलेश यादव का साथ छोड़ कर मायावती से भी हाथ मिला सकते हैं और उनकी सरकार बनवा सकते हैं. राहुल गांधी ने अपनी पहली प्रेस कांफ्रेंस में ये संदेश या इशारा दिया भी कि वे मायावती को बहुत हानिकारक नहीं मानते हैं. अगर चुनाव के बाद ऐसी कोई स्थिति आती है, तो मायावती साथ समझौता करने में उन्हें कोई परेशानी नहीं होगी.
भारतीय जनता पार्टी के कुछ नेता अगर चुनाव नहीं जीतते हैं, जिनमें संगीत सोम भी शामिल हैं, तो उत्तर प्रदेश का फैसला भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ गया माना जाएगा. ऐसी स्थिति में भाजपा के अध्यक्ष अमित शाह के भविष्य पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि बिहार और उत्तर प्रदेश के सारे फैसले सिर्फ और सिर्फ अमित शाह ने लिए हैं. अमित शाह की कोशिश राजनाथ सिंह को उत्तर प्रदेश में पार्टी का चेहरा बनाने की थी, लेकिन राजनाथ सिंह बहुत सफाई से उनके हाथ से निकल गए.
उत्तर प्रदेश का चुनाव देश के आने वाले चुनावों पर भी असर डालेगा, जिनमें मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और महाराष्ट्र जैसे प्रदेश शामिल हैं. 2019 के ऊपर तो निश्चित तौर पर इसका असर होगा. यह चुनाव उन रेखाओं को साफ तौर पर सामने लाएगा, जिसके आस-पास अखिलेश यादव-राहुल गांधी अपनी रणनीति तय करेंगे.
प्रियंका गांधी और नीतीश कुमार, ये दो पर्दे के पीछे के खिलाड़ी हैं. प्रियंका गांधी कांग्रेस की पूरी रणनीति बनाने में, मुद्दे तय करने में, मदद पहुंचाने में सबसे बड़ा रोल प्ले कर रही हैं. दूसरी तरफ, नीतीश कुमार उत्तर प्रदेश में एक भी सीट पर चुनाव नहीं लड़ रहे हैं, ताकि सेकुलर वोटों का बंटवारा न हो. हालांकि अगर वे 50-60 सीटों पर चुनाव लड़ते, तो भी उनके पास भी 6-8 सीटें होतीं. लेकिन उन्होंने वैसा ही साहसिक फैसला लिया, जैसा फैसला उन्होंने कांग्रेस को बिहार में 40 सीटें दे कर लिया था.
अखिलेश यादव की एक बात सही है कि उत्तर प्रदेश का चुनाव देश का भविष्य तय करेगा. ये बात लगभग सभी लोग दबी जुबान से कर रहे हैं. मैं ये तो नहीं कहता कि यह चुनाव देश का भविष्य तय करेगा, लेकिन देश के भविष्य की दिशा तय करेगा और भारतीय जनता पार्टी को अपनी बहुत सारी नीतियों पर फिर से सोचने पर विवश करेगा. भारतीय जनता पार्टी अगर ये चुनाव जीत जाती है, तो फिर समाजवादी पार्टी हो या देश की दूसरी पार्टियां, उन्हें 2019 के लिए एक दबाव के तहत एक साथ आने पर विवश होना पड़ेगा. उस समय अगर राहुल गांधी परिस्थितियों के ऊपर सारा बोझ डाल देंगे, तब वे विपक्ष के एकमात्र नेता नहीं कहलाएंगे, उनके सामने कई सारे और नेता खड़े हो जाएंगे, जिस स्थिति का फायदा सीधे-सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को होगा.