मंत्री तो आते-जाते रहते हैं, लेकिन नौकरशाह हमेशा अपने पदों पर विराजमान रहते हैं. नौकरशाही की तुलना अक्सर घोड़े से की जाती है. कल्याण सिंह जब मुख्यमंत्री थे, तब एक बार उन्होंने यहां तक कह डाला था कि नौकशाही रूपी घोड़े को वह ही काबू में रख सकता है जिसकी रानों में ताक़त और लगाम को अपने ढंग से खींचने की क्षमता हो. ग़ौरतलब है कि नौकरशाही पर कल्याण सिंह की पकड़ की चर्चा काफी दिनों तक रही थी. यह बात दूसरी है कि कुसुम राय के बीच में आ जाने पर यह पकड़ कुछ ढीली हो गई थी. पूर्व मुख्यमंत्री स्वर्गीय वीर बहादुर सिंह की भी नौकरशाही पर जबर्दस्त पकड़ थी. वह नौकरशाहों को ‘पेपर वेट’ की तरह जैसे चाहते घुमाते-फिराते थे, लेकिन उनकी विरासत संभाले उनके पुत्र और वन मंत्री फतेह बहादुर सिंह को पिता के ऩक्शे क़दम पर चलना महंगा पड़ गया. मंत्री जी को नसीहत देने के लिए एक नौकरशाह ने ऐसा रास्ता चुना, जिससे मंत्री जी की न केवल जनता के सामने फजीहत हो गई, बल्कि वह उफ भी नहीं कर पाए. पूरा मामला इस प्रकार है.
पिछले दिनों जिला महाराजगंज के पनियरा विधानसभा क्षेत्र के विधायक और मंत्री फतेह बहादुर सिंह क्षेत्र के दौरे पर गए हुए थे. वहां उन्हें बसपा कार्यकर्ताओं ने घेर लिया. कार्यकर्ताओं की एक ही शिकायत थी कि मंडलायुक्त पी.के मोहंती कार्यकर्ताओं की नहीं सुनते हैं, जिस कारण जनता के सामने उन्हें शर्मिंदगी उठानी पड़ती है. कार्यकर्ताओं ने मंत्री जी को यहां तक बताया कि मंडलायुक्त के घनिष्ट संबंध लखनऊ के पंचम तल में बैठने वाले कई उच्च अधिकारियों से हैं, जिस कारण वे बेलगाम हो गए हैं. फतेह बहादुर सिंह कार्यकर्ताओं का हमेशा ख़याल रखते हैं. उन्हें यह बात असहज लगी. उन्होंने तुरंत मंडलायुक्त मोहंती को फोन लगा दिया. मोहंती ने मंत्री जी के फोन को कोई तवज्जो नहीं दी. यह बात फतेह बहादुर सिंह को काफी नागवार गुज़री. उन्होंने मुख्यमंत्री से इस नौकरशाह की शिकायत करने का मन बनाया तो उनके ही कुछ सहयोगी मंत्री उन्हें हतोत्साहित करने लगे. उन्होंने एक सर्वसमाज के मंत्री और दलित नौकरशाह (जिलाधिकारी) से जुड़ा किस्सा भी सुना दिया. बात ज़्यादा पुरानी नहीं थी, इसलिए सबके दिलो-दिमाग़ में ताज़ा थी. माया कैबिनेट के इस मंत्री की किसी बात पर उस दलित नौकरशाह से मनमुटाव हो गया. इस नौकरशाह को जब मंत्री जी ने अपने अर्दब में लेने की कोशिश की तो नौकरशाह और भी नाराज़ हो गया. इसी नाराज़गी में उक्त नौकरशाह एक दिन अपने कार्यालय से शस्त्र लाइसेंस के ऐसे तमाम आवेदन पत्र, जो सर्वसमाज के लोगों के थे, की छाया प्रति लेकर बहनजी के दरबार में पहुंच गया. बहन जी को उस नौकरशाह ने अपने हिसाब से समझा दिया. उसने बहन जी से मंत्री की जो शिकायत की थी उसका सार यह था कि मंत्री जी अपनी ही बिरादरी वालों का काम कराने में लगे रहते हैं. दलितों और मुस्लिमों की उन्हें बिल्कुल भी चिंता नहीं है. अपने ही समाज के लोगों को सरकारी ठेके-पट्टे दिलाते हैं, जिससे ग़लत संदेश जा रहा है. इस जिलाधिकारी की माया दरबार में सीधी पहुंच है, इसीलिए बहन जी ने उसकी बातों को गंभीरता से लिया. दूसरे ही दिन मंत्री जी के पर कतर दिए गए. उस दिन के बाद से मंत्री जी जिलाधिकारी से कोई सिफारिश करना तो दूर उलटे उन्हें ‘सर-सर’ कहने लगे.
वन मंत्री फतेह बहादुर सिंह ने पूरी बात ध्यान से सुनी, लेकिन वह अपने इरादे से टस से मस नहीं हुए. आख़िर उनमें अपने पिता के स्वाभिमान का अंश जो था. इसलिए हिम्मत कर उन्होंने बहन जी से मुलाक़ात का समय लेकर उन्हें अपना दुखड़ा सुना ही दिया. मुख्यमंत्री ने उनकी बातों को गंभीरता से सुना. वैसे भी बहन जी की ‘गुड लिस्ट’ में फतेह बहादुर का नाम सबसे ऊपर तो था ही. वह जब-तब फतेह बहादुर की तारी़फ करती रहती थीं. फतेह बहादुर हैं भी तारी़फ के क़ाबिल. वह आजकल के नेताओं से काफी अलग दिखते और लगते हैं. शराब-शबाब से हमेशा दूर रहने वाले मिलनसार फतेह बहादुर सिंह की गिनती काफी व्यवहार कुशल और जुझारू नेता के रूप में होती है. यही वजह है कि बसपा सुप्रीमो ने फतेह बहादुर की शिकायत को काफी गंभीरता से लिया. उन्होंने अपने कार्यालय से मोहंती की रिपोर्ट मंगाई. रिपोर्ट मोहंती के न केवल पूरी तरह पक्ष में थी, बल्कि सारा दोष मंत्री जी का ही बताया गया था. यह देख कर मुख्यमंत्री ने तत्काल फतेह बहादुर को दरबार में तलब कर ‘हैसियत’ में रहने की नसीहत दे दी.
अगले दिन ही गोरखपुर में अतिक्रमण विरोधी अभियान की शुरुआत मंत्री जी के भाई जितेंद्र के आवास से की गई. अतिक्रमण विरोधी अभियान मंडलायुक्त के ही निर्देश पर चला. मंत्री जी के भाई पर आरोप लगा कि उन्होंने रामगढ़ ताल की कुछ ज़मीन पर अवैध निर्माण करा रखा है. मकान के सामने सरकारी बुलडोज़र देख जितेंद्र सिंह ने लखनऊ में मौजूद भाई फतेह बहादुर सिंह को जानकारी दी. मंत्री जी को पूरा मामला समझते देर नहीं लगी. उन्होंने मौके की नज़ाकत को समझते और फज़ीहत से बचने के लिए अपने भाई से दो टूक कह दिया, जैसा अफसर कहें वैसा करो. अगर वह कहें पूरा मकान अवैध बना है तो पूरा मकान ध्वस्त हो जाने देना. भाई जितेंद्र ने समझदारी से काम लिया. अफसरों से कहा, मैं ख़ुद ही इस निर्माण को गिरवा दे रहा हूं, जिसे आप लोग अवैध कह रहे हैं. इसी के बाद जितेंद्र ने मीडिया को बुला कर इसी के सामने अपना तथाकथित अवैध निर्माण स्वयं ही गिरवा दिया.
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