उत्तर प्रदेश में कांगे्रस ने नया अवतार लिया है. 20 वर्षों के वनवास के बाद कांगे्रस में एक बार फिर उम्मीद की किरण जागी है. उसका परंपरागत वोट बैंक वापस आ गया है. कांगे्रस के युवराज राहुल गांधी की सकारात्मक सोच और मतदाताओं द्वारा उनकी सोच पर मुहर लगाए जाने का ही परिणाम था जो बिल्कुल हाशिए पर खड़ी कांगे्रस, बसपा और सपा के बराबर आ गई. कांगे्रस को छोड़कर अन्य सभी दलों के लिए नतीजे चौंकाने वालेे रहे. आश्चर्यजनक रूप से राज्य में कांगे्रस नंबर दो की पार्टी बन गई. एक जमाने बाद कांगे्रस के दलित, ब्राह्मण और मुस्लिम जैसे वोट बैंक की घर वापसी शुरू हो गई. कांगे्रस का फेंका गया हर पासा सटीक बैठा. बसपा की सोशल इंजीनियरिंग, सपा का पिछड़ा-यादव और मुस्लिम गठजोड़ तथा भाजपा का हिंदुत्व का कार्ड, कुछ भी नहीं चला. 1984 के बाद कांग्रेस ने पहली बार इतना अच्छा प्रदर्शन किया है. राजीव गांधी की मौत के बाद कांगे्रस उत्तर प्रदेश में कभी संभल नहीं पाई. कांग्रेस ने 1998 में ऐसा भी दौर देखा जब देश के सबसे बड़े सूबे में उसका खाता भी नहीं खुल पाया. 1989 से कांगे्रस के पतन का जो दौर शुरू हुआ था 2009 में थम-सा गया लगता है. पिछले लोकसभा चुनाव के मुक़ाबले कांगे्रस के वोट प्रतिशत में इस बार लगभग 14 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है. 2004 के लोकसभा चुनाव में कांगे्रस को 12.04 प्रतिशत वोट और नौ सीटें ही मिलीं थीं. इस बार कांगे्रस को 26 प्रतिशत मत मिले. कांगे्रस आलाकमान अगर सपा से समझौते के चक्कर में फंस कर अपने प्रत्याशियों की घोषणा करने में देरी न करती तो शायद कांगे्रस को इससे भी बड़ी जीत मिल सकती थी.
2012 में उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव आते-आते कांगे्रस के पक्ष में बयार बहने लगे तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए. निश्चित ही राहुल अब उत्तर प्रदेश में और अधिक समय देंगे. वह युवाओं और ग़रीबों की बात करके प्रदेश की जनता को पहले से ही लुभा रहे थे. अब इस काम में और तेज़ी आएगी. कांगे्रस के लिए ख़ुशी की बात यह भी है कि कांगे्रस को प्रदेश में बिना किसी संगठन के इतनी बड़ी सफलता मिली. विकास के नाम पर वोटरों ने ख़ुुद निकलकर पंजे का बटन दबाया. यूपी में कांगे्रस की यह जीत कांगे्रस की नई पीढ़ी की जीत है. राजीव की मौत के बाद उनके दोनों बच्चों-राहुल और प्रियंका-को इसका पूरा श्रेय मिल रहा है, मिलना चाहिए भी. अब शायद प्रियंका को गुड़िया और राहुल को बच्चा कहने की जुर्रत कोई नहीं कर पाएगा. आज एक चौथाई जीत कल प्रदेश और केंद्र में कांगे्रस के पूर्ण बहुमत की सरकार का शंखनाद है. यह जीत केवल राज्य की नहीं, हिंदी के हदय में कांगे्रस की वापसी की किरण है. उत्तराखंड, दिल्ली, राजस्थान, पंजाब इसके प्रमाण हैं. उत्तर प्रदेश में अपनी जड़ें मजबूत करने में लगी कांगे्रस नई सरकार में राज्य के मंत्रियों की संख्या अच्छी-खासी बढ़ा सकती है. पिछले मंत्रिमंडल में उत्तर प्रदेश से एक नेता को कैबिनेट और तीन नेताओं को राज्य मंत्री का दर्जा मिला था, अबकी यह संख्या सात तक हो सकती है. इसमें सबसे पहला नाम श्रीप्रकाश जायसवाल का है. उनके अलावा सपा से बग़ावत करके आए बेनी प्रसाद वर्मा, फर्रूखाबाद से चुनाव जीते सांसद सलमान खुर्शीद, धौरहरा के सांसद जितिन प्रसाद, बाराबंकी के सांसद और पूर्व नौकरशाह पीए पुनिया और डुमरियागंज से विजयी रहे जगदंबिका पाल को भी लालबत्ती से नवाजा जा सकता है. इसके अलावा संजय सिंह, जफर अली नकवी और हर्षवर्धन भी मंत्री बनने की दौड़ में शामिल हैंं. कांगे्रस यूपी को फतह करने के लिए मंत्रिमंडल में तो प्रदेश को प्रतिनिधित्व देगी ही, इसके अलावा सपा और बसपा के प्रति भी इसके नजरिए मेें व्यापक बदलाव आ सकता है. अपनी इस जीत को विधानसभा चुनाव से पहले का सेमीफाइनल मानने वाली कांगे्रस बदले हालात में बसपा और सपा के प्रति अधिक हमलावर हो सकती है. बसपा को सबक सिखाने के लिए कांगे्रस पूर्व नौकरशाह और बाराबंकी से लोकसभा चुनाव जीते पीएल पुनिया को उनके ख़िला़फ खड़ा कर सकती है. इसी क्रम में कांगे्रस देर-सबेर उन्हें प्रदेश कांगे्रस का अध्यक्ष भी बना सकती है.
यूपी पर कब्जा करने को बेचैन कांगे्रस के लिए विधानसभा चुनाव से पहले ही परीक्षा की घड़ी आ सकती है. प्रदेश में सात विधायकों के सांसद बनने और चार सीटें पहले से ख़ाली होने के कारण कुल 11 सीटों पर शीघ्र मतदान होना है. राहुल का करिश्मा यहां भी चल गया तो निश्चित ही कांगे्रस को पंख लग जाएंगे. ऐसा होना कोई मुश्किल लगता भी नहीं है. प्रदेश में अब जो भी चुनाव होगा विकास के मुद्दे पर ही होगा. इसमें निश्चित ही कांगे्रस का पलड़ा भारी रहेगा. यूपीए शायद ही यह भूले कि उसकी जीत में रोज़गार गारंटी योजना, महिला को सुरक्षा गारंटी, महिला शिक्षा योजना, स्वास्थ्य सुरक्षा योजना, किसानों की क़र्ज़ माफी योजना, पिछड़ी जातियों के लिए योजना आदि लोकलुभावन कामों का बड़ा हाथ रहा है. इसलिए नई सरकार में विकास का पहिया और भी तेज़ी से दौड़ना तय है.
कांगे्रस के उत्साह का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि प्रदेश कांगे्रस की अध्यक्ष रीता बहुगुणा जोशी ने पार्टी हाईकमान  से केंद्र में सरकार बनाने के लिए बसपा, सपा और रालोद का सहारा न लेने की अपील जारी कर दी. प्रदेश कांगे्रस अध्यक्षा ने हाईकमान से कहा है कि यूपी में कांगे्रस को तीन साल बाद विधानसभा चुनाव में इन्हीं दलों से लड़ना है, इसलिए उन्हें सरकार में शामिल करना ठीक नहीं होगा. उम्मीद तो यही है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्षा की बातों को न केवल गंभीरता से लेगा बल्कि उस पर अमल भी करेगा. उत्तर प्रदेश के प्रभारी दिग्विजय सिंह तो पहले ही सपा-बसपा से दूरी बनाए रखने की बात कह रहे थे. राहुल भी जीत के बाद उसी शाम जब सुल्तानपुर पहुंचे तो बोले-असल लड़ाई तो अब शुरू हुई है. राहुल की बात में दम है. उन्होंने देश के सबसे बड़े राज्य की सत्ता हासिल करने के लिए जो कमर कसी है, उसमेंे उन्हें कामयाबी मिलेगी यही सबको उम्मीद है.

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